वीर सावरकर की जीवनी Veer Savarkar Biography In Hindi Story History: भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में वीर सावरकर का योगदान इतिहास में क्रांतिकारी नेताओं के रूप में वीर सावरकर का नाम व स्थान विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.
ये महान क्रांतिकारी, महान देशभक्त और महान संगठनकर्ता थे. उन्होंने आजीवन देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया.
उनकी प्रशंसा शब्दों में व्यक्ति नहीं की जा सकती. वे अपने तप और त्याग का बिना कोई पुरस्कार लिए ही चिरनिद्रा में सो गये.
वीर सावरकर की जीवनी | Veer Savarkar Biography In Hindi
विनायक दामोदर सावरकर का इतिहास व जानकारी (History and information of Vinayak Damodar Savarkar)
पूरा नाम | विनायक दामोदर सावरकर |
जन्म | 28 मई 1883 |
जन्मस्थान | ग्राम भागुर, जिला नासिक बम्बई |
पिता | दामोदर सावरकर |
माता | राधाबाई सावरकर |
पत्नी | यमुनाबाई |
मृत्यु | फ़रवरी 26, 1966 (इच्छा मृत्यु) |
सावरकर का जन्म ब्रिटिशकालीन बम्बई प्रान्त के भागुर गाँव में हुआ था. इनकी माँ का नाम राधाबाई व पिताजी का नाम दामोदर पन्त था.
गणेश व नारायण दामोदर इनके भाई थे. नैनाबाई इनकी बहिन का नाम था. सावरकर बहुत कम आयु में थे, तभी इनके माता-पिता चल बचे.
परिवार में सबसे बड़े भाई गणेश पर परिवार के लालन पोषण की जिम्मेदारी थी. संकट की स्थतियों में परिवार को सँभालने वाले गणेश भी एक स्वतंत्रता प्रेमी नवयुवक थे, सावरकर पर इनके बड़े भाई के व्यक्तित्व का बहुत प्रभाव पड़ा.
पढ़ने में तेज सावरकर ने 1901 में नासिक के विद्यालय के दसवी की परीक्षा उतीर्ण की, ये पढाई के साथ साथ देशभक्ति की कविताएँ भी लिखा करते थे.
फ्ग्युर्सन कॉलेज से इन्होने बीए की डिग्री हासिल की, इनका विवाह यमुनाबाई के साथ हुआ. वीर सावरकर ने आगे की पढाई की इच्छा जताई विश्वविद्यालय की शिक्षा का सम्पूर्ण खर्च यमुनाबाई के पिताजी ने वहन किया.
यहाँ वो नवयुवकों को एकत्रित कर उनमें राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने का कार्य करने लगे, तथा भारत की स्वतंत्रता के लिए साथी युवकों का एक संगठन तैयार किया.
वर्ष 1904 में इन्होने अभिनव भारत नामक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की, तथा 1905 के बंगाल विभाजन के खिलाफ विदेशी वस्त्रों की होली जलाकर अंग्रेजी सरकार के इस कार्य के प्रति कड़ी प्रतिक्रिया दी.
सावरकर पर रूस एवं इटली के स्वतंत्रता सैनानियों का व्यापक प्रभाव पड़ा. इन्होंने 10 मई 1907 को प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयन्ती मनाई तथा द इण्डियन वार ऑफ इण्डिपेण्डेंस पुस्तक लिखी, जिनमें इन्होने यह साबित किया कि 1857 की क्रांति कोई गदर नही बल्कि पहला भारतीय स्वतंत्रता संग्राम था.
मगर अंग्रेज सरकार ने इस पुस्तक के प्रकाशन तथा वितरण पर प्रतिबंध लगा दिया. सावरकर और उनके साथियों ने फ्रांस, जर्मनी व पेरिस से इसे प्रकाशित करवाने का प्रयत्न किया,
इसी बिच नीदरलैंड से उन्हें कामयाबी मिली. जिनकी प्रतियाँ जर्मनी व अन्य यूरोपीय देशों में वितरण की गई. इसी बिच 1909 में इनकी लो की पढाई पूरी हो गई, मगर इन्हें इंग्लैंड में वकालत करने से रोका गया.
वीर सावरकर के विचार (veer savarkar thought in hindi)
हिन्दू, हिंदी तथा हिंदुस्तान की विचारधारा के जनक वीर सावरकर 20 वीं सदी के सबसे बड़े हिंदूवादी नेता था. उन्हें हिन्दू शब्द से गहरा लगाव था, तथा इस विचारधारा को इन्होने भारत के जन जन तक पहुचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी.
वीर सावरकर को 6 बार अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के अध्यक्ष बनाए गये थे. जो बाद में एक राजनीतिक संगठन बन गया. आजादी के बाद वीर सावरकर की विचारधारा को समर्थन नही दिया गया, कांग्रेस पार्टी संभवतया उनकी विचारधारा की समर्थक नही थी.
इसी कारण इस महान स्वतंत्रता सेनानी व हिंदुत्व के पुजारी को भुला दिया गया. भारत पाकिस्तान विभाजन के यह प्रबल विरोधी थे, उन्हें हमेशा खंडित भारत के प्रति अफ़सोस रहा.
इन्होने विभाजन को लेकर कहा था राज्य की सीमायें नदी तथा पहाड़ों या सन्धि-पत्रों से निर्धारित नहीं होतीं, वे देश के नव युवकों के शौर्य, धैर्य, त्याग एवं पराक्रम से निर्धारित होती हैं. आखिर 26 फरवरी 1966 में दिन मुंबई में तेज बुखार के चलते इनका निधन हो गया.
सावरकर को भारतीय जनता ने वीर की उपाधि से विभूषित किया. यही कारण हैं कि उन्हें विनायक दामोदर सावरकर की जगह वीर सावरकर कहकर पुकारा गया.
वे सचमुच भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा थे. वे स्वयं सिपाही भी थे और सेनापति भी. भारत की स्वतंत्रता के इतिहास में ही नहीं, बल्कि संसार के किसी भी देश की स्वतंत्रता के इतिहास में इन जैसा स्वतंत्रता सेनानी योद्धा बहुत कम मिलेगा.
वीर सावरकर का प्रारम्भिक जीवन Early life of Veer Savarkar In Hindi
वीर सावरकर का जन्म भागुर गाँव (महाराष्ट्र) में 28 मई 1883 ई में हुआ था. उनका पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था. देशभक्ति की भावना इन्हें पूर्वजों से विरासत के तौर पर मिली थी.
1901 ई में मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद किशोर सावरकर ने पूना के फर्ग्यूसन कॉलेज में नाम लिखवाया. वे प्रतिभाशाली छात्र थे. कॉलेज के साथ ही दिनों में इनका सम्पर्क बाल गंगाधर तिलक से हुआ.
बंग भंग के समय उन्होंने अपने साथियों के साथ मित्र मेला नामक संगठन बनाकर विदेशी वस्त्रों की होली जलाई. इस घटना के कारण उन्हें कॉलेज से निलम्बित कर दिया गया तथा उनकी बी ए की डिग्री भी निरस्त कर दी गई.
वीर सावरकर का राजनीतिक जीवन Veer Savarkar’s political life In Hindi
बाल गंगाधर तिलक से सम्पर्क होने के बाद उन्होंने देश की वस्तुस्थिति के बारे में सोचना शुरू किया. वे अंग्रेजों की नीति से ज्यादा आक्रोशित थे.
उन्होंने जैसे तैसे बैरिस्ट्री की परीक्षा पास की और देशसेवा में लग गये. देशभक्ति की भावना और उसमें कार्यरत होने के कारण इन्हें बैरिस्ट्री की डिग्री प्रदान नहीं की गई.
सावरकर ऐसे पहले व्यक्ति थे जिनके जीवन का एक लम्बा काल अंडमान की सेलुलर जेल के सींखचों के पीछे बीता और विश्व के एकमात्र ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने एक जन्म की ही नहीं अपितु दो जन्मों की आजीवन कारावास दी थी.
विश्व के इतिहास में ऐसा कोई भी क्रांतिकारी देशभक्त नहीं हुआ जो जान की परवाह किये बिना देश की स्वतंत्रता के लिए घंटों समुद्र की लहरों पर तेरा हो.
वे ऐसे क्रांतिकारी लेखक थे जिनकी पुस्तक प्रकाशन से पूर्व ही सरकार द्वारा जब्त कर दी गई थी. कठिन यातना के बावजूद भी वह देशप्रेम नहीं छोड़ सके.
उन्होंने अंतिम समय तक भारत के विभाजन को रोकने का प्रयास किया. सावरकर सदैव ही अपने युग के क्रांतिकारी एवं देशभक्तों के लिए आदर्श रहे.
वीर सावरकर की क्रांतिकारी गतिविधियाँ
छत्रपति शिवाजी, लोकमान्य तिलक व अगम्य गुरु परमहंस सावरकर के क्रांतिकारी प्रेरक थे. उन्होंने 1901 ई में महारानी विक्टोरिया की मृत्यु पर शोकसभा करने का विरोध किया.
एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक उत्सव को गुलामी का उत्सव विदेशी शासन के प्रति राजभक्ति के प्रदर्शन को देश और जाति के प्रति द्रोह कहा.
1906 ई में उन्होंने अभिनव भारत की स्थापना की. चापेकर बंधुओ की फांसी के बाद उन्हें भी गिरफ्तार किया जाता किन्तु वे बैरिस्ट्री शिक्षा प्राप्त करने के लिए लन्दन चले गये थे.
वे अभी गिरफ्तार नहीं होना चाहते थे, क्योंकि लन्दन में श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा स्थापित इंडिया हाउस में विभिन्न अवसरों पर अपने व्याख्यानों से लोगों में देशभक्ति की भावना का संचार किया.
विनायक सावरकार क्रांतिकारी विचारधारा
सावरकर ने 10 मई 1907 को इंडिया हाउस में 1857 की क्रांति की अर्द्ध शताब्दी मनाने का निश्चय किया. 1857 की क्रांति पर मराठी में एक पुस्तक प्रकाशित की.
और इसे आजादी की पहली लड़ाई बताया, वही प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने 1857 की क्रांति को गदर न कहकर प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन कहा.
अंग्रेज सरकार इतनी भयभीत हुई कि पुस्तक प्रकाशन से पूर्व ही जब्त कर ली गई. भारत के क्रांतिकारियों ने पुस्तक द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस को पवित्र ग्रन्थ के रूप में पढ़ा.
इस पुस्तक ने इंग्लैंड में सावरकर को युवा क्रांतिकारियों का ह्रदय सम्राट बना दिया, मदनलाल धींगरा का बलिदान इन्ही की वाणी का परिणाम था. सावरकर के कार्यो ने उन्हें प्रसिद्ध तो कर दिया पर इंग्लैंड की अंग्रेज सरकार उनके कार्यों से अप्रसन्न हो गई.
हिंसात्मक क्रांति के समर्थक
सावरकर गुप्त रूप से अस्त्र शस्त्र तथा क्रांतिकारी साहित्य आदि भी भारत ले आया करते थे. गुप्तचर विभाज ने भारत में जैक्सन की हत्या के साथ सावरकर का नाम जोड़ दिया.
मदनलाल घींगरा ने दिन दहाड़े वाईली की हत्या कर दी थी. वाइली की मृत्यु पर शोक सभा करने के लिए एक सभा की गई. शोक सभा में धींगरा की निंदा का प्रस्ताव रखा गया तो इस निंदा प्रस्ताव का सावरकर ने जमकर विरोध किया.
इन घटनाओं के कारण अंग्रेजी सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया तथा उन्हें जब भारत लाया जा रहा था तो उन्होंने जहाज से कूदकर भागना चाहा किन्तु उन्हें पुनः पकड़ लिया गया. इन्हें एक वर्ष काले पानी की सजा दी गई और सेलुलर की जेल में रखा गया.
कठिन यातनाओं के बावजूद वह देशप्रेम नही छोड़ सके. उन्होंने अंतिम समय तक भारत के विभाजन को रोकने का प्रयास किया, सावरकर सदैव ही अपने युग के क्रांतिकारियों एवं देशभक्तों के आदर्श रहे.
क्रांतिकारियों के प्रेरणा स्रोत होने के कारण इनकों इंग्लैंड से गिरफ्तार कर जब भारत ला रहे थे. तब सावरकर जहाज के शौचालय से निकल बाहर समुद्र में कूद पड़े.
लम्बी दूरी तैरकर बन्दरगाह पहुचे, किन्तु फ़्रांस में फिर से पकड़ लिए गये. वीर सावरकर पर मुकदमा चलाकर राजद्रोह के आरोप में दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.
तब सावरकर ने हंसकर अंग्रेज अफसर से पूछा ”क्या तुम्हे विश्वास है, कि अंग्रेजी सरकार इतनें दिनों तक भारत में टिक पाएगी”? जेल में सावरकर के साथ अमानवीय अत्याचार किये जाते थे.
जेल से छूटने के बाद समरसता का प्रचार करने के लिए उन्होंने अस्प्रश्यों को मन्दिर में प्रवेश कराया और पतित पावन मंदिर बनाया.
ब्रिटिश साम्राज्य की बेड़ियों में जकड़ी भारतमाता की स्वतंत्रता के लिए वीर सावरकर लगातार संघर्ष करते रहे. उन्होंने कॉलेज जीवन में एक संस्था ‘‘अभिनव भारत” की स्थापना की.
संस्था के सदस्यों ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाकर ब्रिटिश शासन के प्रति विद्रोह की घोषणा कर दी. इंग्लैंड में रहकर उन्होंने इटली के देशभक्त क्रांतिकारी मैसिनी की जीवनी लिखी.
इसकी प्रतियाँ प्रकाशित होते ही जब्त कर ली. उन्होंने 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम नामक पुस्तक लिखकर इतिहास के वास्तविक स्वरूप को प्रस्तुत किया. इसके प्रकाशन के कारण उनके बड़े भाई को आजीवन कारावास हुआ.
वीर सावरकर की दया याचिका (Veer Savarkar’s mercy petition and criticism)
आजादी के बाद से भारत में यही किसी शख्स को लेकर वैचारिक मतभेद चला है तो वे वीर सावरकर ही हैं. खासकर हिन्दू वादी पार्टियों ने इन्हें अपना आदर्श माना और सच्चे राष्ट्रपिता की उपाधि दी और भारतरत्न से सम्मानित करने की मांग भी की.
वही वीर सावरकर का घोर विरोध लेफ्ट लिबरल और कांग्रेस के ख़ास वर्ग ने हमेशा से जारी रखा हैं. अगर हम अतीत के पन्ने पलटे तो गांधी के राष्ट्रीय नेता बनने से पूर्व सावरकर एक लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे.
आजादी मिलने के बाद भी ये नेहरु के समकक्ष थे, और लोकप्रिय भी मगर गांधी के नेहरु के प्रति अतिशय झुकाव ने उन्हें राजनैतिक धरातल से दूर कर दिया.
हम कांग्रेस की ही बात करें तो 1980 तक वीर सावरकर को लेकर कांग्रेस में कोई बड़ा मतभेद नहीं था. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सावरकर पर न केवल एक फिल्म बनवाई बल्कि उन पर डाक टिकट जारी किया साथ ही उनके एक संगठन को 11 हजार रूपये की नकद सहयोग राशि भी दी थी.
इंदिरा के दौर के बाद एक तरफ भारतीय जनता पार्टी का जनाधार बढ़ रहा था दूसरी तरफ बीजेपी के नेताओं ने सावरकर के विचारों पर बल देना शुरू कर दिया, इस कारण भी कांग्रेस ने वैचारिक मतभेद के कारण सावरकर पर हमलावर रही और उन्हें फासीवादी तक करार दिया.
हाल ही में राजनाथ सिंह ने विनायक दामोदर सावरकर पर लिखी एक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर सावरकर पर उनके द्वारा लिखी अंग्रेज सरकार को दया याचिकाओं को गलत सन्दर्भ में लेकर एक वर्ग द्वारा फैलाई जा रही गलत बातों को लेकर बयान दिया कि सावरकर ने गांधीजी के कहने पर मर्शी पिटीशन दायर की थी.
नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड में वीर सावरकर को 7 अप्रैल 1911 को अंडमान निकोबार की कालापानी (सेलुलर जेल) भेज दिया गया था. ये करीब यहाँ 10 साज तक सजा काटते रहे और इस दौरान साथी कैदियों व उनके साथ अमानवीय यातनाएं दी जाती रही.
इन्ही यातनाओं के चलते वीर सावरकर ने राजनैतिक कैदियों की रिहाई बाबत अंग्रेज सरकार को कुल पांच दया याचिकाएं भेजी थी. जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने नकार दिया था.
उनका मानना था कि जेल में बंद रहकर धरातल पर कुछ नहीं किया जा सकता अतः सशर्त रिहाई की स्थिति में भी वे देश की स्वतंत्रता के संग्राम को गति दे सकते हैं.
यही वजह थी कि सावरकर ने ब्रिटिश सरकार को झासा देने के लिए “अंग्रेज सरकार के विरुद्ध कोई कृत्य नहीं करेगे” ऐसी शर्ते भी भेजी,
मगर ब्रिटिश सरकार उनके मन्तव्य से परिचित थी, क्योंकि उस समय बहुत से स्वतंत्रता सेनानी भूमिगत रहकर भी ब्रिटिश हुकुमत के विरुद्ध माहौल तैयार कर रहे थे.