तेजा दशमी कब है 2024 और क्यों मनाई जाती हैं इतिहास कथा व मेले की जानकारी

तेजा दशमी कब है 2024 और क्यों मनाई जाती हैं इतिहास कथा व मेले की जानकारी: तेजा दशमी का पर्व भाद्रपद शुक्ल दशमी तिथि को मनाते हैं. आपकों बता दे 2024 तेजा दशमी कब है तेज दशमी क्यों मनाई जाती हैं.

वीर तेजाजी महाराज का मेला ( Veer Teja Ji Mela 2024 In Rajasthan) कब और कहाँ भरता हैं. आमजन में लोकदेवता कुंवर तेजल के बारे में क्या क्या लोक कथाएँ व इतिहास की गाथाएं प्रसिद्ध हैं.

कब से तेजा दशमी का पर्व मनाया मनाया जाता हैं. गौरतलब है कि उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों में तेजादशमी का पर्व को मनाया जाता हैं.

जाट समुदाय के आराध्य देव तेजाजी महाराज को साँपों के देव के रूप में पूजा जाता हैं. कितना भी जहरीला सांप काट जाए यदि तेजा के नाम की तांती बाँध दी जाए तो वह जहर उतर जाता हैं. तेजा दशमी कब है और इस पर क्या करे इसकी जानकारी यहाँ दी गई हैं.

तेजा दशमी कब है 2024 और क्यों मनाई जाती हैं इतिहास कथा व मेले की जानकारी

Teja Dashmi Kab Hai 2024 Date Time Mela: भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजदशमी पर्व मनाया जाता है, यह गोगानवमी से ठीक बाद होता हैं.

नवमी की रात्री को ही तेजल के बड़े मन्दिरों जिन्हें थान कहते है. वहां पर रात्री जागरण एवं भजनों के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.

अगले दिन इन मुख्य स्थलों पर विशाल मेला भरता हैं. दूर दूर से भक्त अपनी मनौती लेकर आते है. भगवान् को नारियल का भोग लगाकर सत्यवादी वीर तेजाजी का दर्शन करते हैं.

ऐसी मान्यता है कि सर्पदंश से पीड़ित मनुष्य, पशु यह धागा सांप के काटने पर, बाबा के नाम से, पीड़ित स्थान पर बांध लेते हैं, जिन्हें छोड़ने के लिए वों तेजाजी के धाम आते हैं.

नागौर जिले में परबतसर का तेजाजी पशु मेला इन्ही महान पुरुष की स्मृति में भरता हैं. इसके अतिरिक्त भी नागौर जिले में तेजाजी के मेले लगते हैं.

तेजा दशमी की तारीख 2024 में

आगामी 13 सितम्बर मंगलवार 2024 को तेजादशमी हैं. रविवार के दिन राजस्थान में तेजा दशमी का पर्व मनाया जाना हैं. हर साल यह अगस्त-सितम्बर में गोगानवमी से एक दिन बाद होती हैं.

राज्य में इस दिन का राजकीय अवकाश भी घोषित किया जाता हैं. आपकी जानकारी के लिए बता दे, भाद्रपद शुक्ल पक्ष सबसे अधिक व्रत पर्व एवं त्योहारों का पंखवाड़ा हैं.

भादों शुक्ल दशमी को एक तो तेजा दशमी है, तथा एक अन्य बलिदान दिवस भी हैं. जी हाँ ईमरती बाई विश्नोई के नेतृत्व में वृक्षों को बचाने की खातिर 363 विश्नोई सम्प्रदाय के स्त्री पुरुषों ने जान दे दी थी.

इस बलिदान की याद में हर साल भाद्रपद शुक्ल दशमी तिथि को खेजड़ली शहीद मेला अथवा खेजड़ली वृक्ष मेला भी मनाया जाता हैं.

वीर तेजाजी महाराज का जीवन परिचय और इतिहास

Veer Teja Ji Biography : लोक देवता तेजाजी का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गांव में ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था. 

तेजाजी के माता-पिता को कोई सन्तान नही थी, उन्होंने शिव पार्वती की कठोर तपस्या की, जिसकें परिणामस्वरूप तेजाजी का उनकें घर दिव्य अवतरण हुआ था.

माना जाता है जब वे दुनियां में आए तो एक भविष्यवावाणी में कहाँ गया किया- भगवान् ने आपके घर अवतार लिया हैं.

ये अधिक वर्ष तक इस रूप में नही रहेगे. बचपन में ही तेजाजी का विवाह पनेर के रायमल जी सोढा के यहाँ कर दिया गया था.

तेजाजी के जन्म के बारे में मत है—-

आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।।
जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के मांय।
सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान।।


जानिए कब मनाई जाएगी तेजा दशमी 2024 में

तेजादशमी यानी भाद्रपद शुक्ल दशमी तिथि को ही उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया था. प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल 10 (तेजा दशमी) से पूर्णिमा परबतसर पशु मेले का आयोजन इन्ही की स्मृति में होता हैं. इस साल 13 सितम्बर 2024 को सभी जगहों पर तेजा दशमी मनाई जाएगी,

भक्तगण प्रसादी चढाने और सर्पदंश के धागे इत्यादि को छोड़ने के लिए उनके मुख्य मंदिर खरनाल में आते हैं. तेजाजी मी मृत्यु गौरक्षा की राह जाते जलते सर्प को बाहर निकालने और फिर उनके द्वारा दंश देने के वरदान के फलस्वरूप हुई थी. सत्यवादी कहे जाने वाले वीर तेजाजी ने नाग देवता को यह वचन दिया था.

तेजा दशमी कथा

कि वे गायों को छुड़ाकर आपके पास वापिस आएगे, तब आप डंस लेना. इस तरह अपनी मृत्यु का भय देखे बिना डाकुओं के गायें छुडाने के बाद वीर तेजाजी नाग देवता के पास जाके अपना वचन पूरा किया.

अपने सत्यवादी होने के इस गुण से नाग बेहद प्रसन्न हुआ तथा उन्हें साँपों के देवता के रूप में कलयुग में पूजे जाने का वरदान देते हुए कहा कोई भी सांप का खाया यदि आपका नाम लेकर तांती बांधेगा तो वह मरेगा नही उसका जहर समाप्त हो जाएगा.

तेजादशमी 2024 इन हिंदी

राजस्थान बहुसांस्कृतिक प्रदेश हैं यहाँ विभिन्न संस्क्रति के लोग बसते हैं, मूल रूप से हिन्दू बाहुल्य राजस्थान प्रदेश में हिन्दुओं के विभिन्न मतों एवं सम्प्रदायों को मानने वाले यहाँ बसते हैं. गुजर, मीणा, राजपूत, विश्नोई और जाट ये राजस्थान की बड़ी एवं मुख्य जातियां हैं.

सभी के अपने अपने कुल देवता एवं देवियाँ हैं कोई देवनारायण जी को कोई जाम्भोजी को अपना आराध्य देव मानते है तो भूमिपुत्र जाट अपना आराध्य देव वीर तेजाजी को मानते हैं. नागौर के खरनाल में तेजाजी महाराज का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था. गायों की रक्षार्थ उन्होंने अपने जीवन का बलिदान किया था.

राज्य के लोक देवताओं में इन्हें प्रमुख माना जाता हैं. भाद्रपद शुक्ल दशमी तिथि को तेजाजी दशमी अर्थात तेजाजी जयंती या तेजा दशमी के रूप में मनाया जाता हैं. वर्ष २०२4 में तेजा दशमी की तिथि 13 सितम्बर मंगलवार हैं.

तेजा दशमी 2024 की तारीख मेला तेजाजी का मंदिर – Veer Tejaji Dashmi Mela History Katha

तेजादशमी 2024 लोकदेवता तेजाजी के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में मनाई जाती हैं. तेजा दशमीकी तारीख 13 सितम्बर  हैं. तेजादशमी के दिन नागौर व देश के कोने कोने में जहाँ वीर तेजाजी के मंदिर बने हुए है, विशाल मेले भरते हैं.

तेजाजी के भजन गीत गाये जाते हैं. भाद्रपद की शुक्ल दशमी तिथि को तेजा दशमी के रूप में मनाया जाता हैं, भक्ति, आस्था व श्रद्धा की प्रतीक तेजा जी जयंती गोगा नवमी से एक दिन बाद में मनाई जाती हैं. इस दिन जोधपुर के खेजड़ली बलिदान पर खेजड़ली मेलाभी भरता हैं. 

तेजा दशमी कब है की हैं तारीख 2024: साँपों के देवता तेजाजी को लोकदेवता के रूप में राजस्थान के अतिरिक्त कई राज्यों में किसान सम्प्रदाय अपना आराध्य देव मानते हैं.

किसी भी तरह के नाग दंश पर तेजा के नाम का धागा व मनौती मांगने पर सांप का जहर उतर जाता हैं. भक्त अपने आराध्य कुंवर तेजाजी के मंदिर पर भादों सुदी दशमी तिथि को माथा टेकने आते हैं. इसे तेजाजी दशमी कहा जाता हैं. इस दिन इनका जन्म खरनाल नागौर में हुआ था.

वर्ष 2024 में तेजादशमी की तिथि 13 सितम्बर हैं. ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 के दिन एक जाट कुल में इनका अवतरण (जन्म) हुआ था.

ये बचपन से ही साहसिक कार्य करने लग गये थे. तेजाजी महाराज का विवाह बचपन में ही पेमल के साथ कर दिया था. उस समय भारतीय समाज में बाल विवाह प्रचलन में था.

तेजा दशमी 2024 की तारीख के इस आर्टिकल में वीर तेजा जी की कहानी कथा आपकों बता रहे हैं. सिद्ध पुरुष तेजल के बारे में कई पौराणिक कथाएँ आमजन में प्रचलित हैं.

कहा जाता है कि तेजाजी की मृत्यु सर्पदंश के कारण हुई थी. उन्होंने गायों की रक्षा करने जाते समय जलते नाग को बचाया था.

क्रोधित सांप ने जब उन्हें डंसने की बात कही तो तेजाजी ने उन्हें वचन दिया, कि वे वापिस आकर अपने वचन का पालन करेगे उन्हें गायों की रक्षा के लिए जाने दे.

Teja Ji Mela Date In Rajasthan : जानकारी के लिए बता दे तेजाजी पशु मेला परबतसर नागौर में भादों दशमी तिथि को भरता हैं. यह राज्य का सबसे बड़ा पशु मेला भी हैं.

तेजा दशमी के इस मेले में हजारों लाखों की संख्या में कृषक समुदाय के लोग आते हैं. जाट जाति के लोग इन्हें अपना कुल देवता मानकर पूजा करते हैं. गाज्यों गज्यों जेठ आषाढ़ कुंवर तेजा रे जैसे लोकगीत राजस्थानी कृषक संस्कृति के पर्याय बन चुके हैं.

किसान परिवार में जन्में कुंवर तेजाजी बचपन में गायें चराने का कार्य किया करते थे. वे अपने पिताजी का खेती में हाथ बंटाने का कार्य भी करते थे.

सत्यवादी वीर तेजाजी जब जवान हुए तो उन्होंने अपने घर का सम्पूर्ण कार्य अपने हाथ में ले लिया. एक समय जब वों अच्छी बरसात होने पर खेती में धान बो रहे थे. तो उनके बड़े भाई की पत्नी द्वारा देरी से खाना खिलाने पर तेजाजी को क्रोध आ गया था.

भाभी भी तेजा को समझ नही पाई थी, उन्होंने उनके बचपन के विवाह और अपनी पत्नी के पीहर में बैठे रहने का ताना उन्हें दिया. इस पर तेजाजी ने अपना खेती कार्य छोड़ रातो रात ससुराल जाने का निश्चय किया.

अपनी घोड़ी जिसका नाम लीलण था. पर चढकर वो पनेर गाँव गये जहाँ उनका ससुराल था. तमाम अपशकुनों के बावजूद वो अपनी हठ छोड़ने वाले नही थे. अनजान में सासू द्वारा भी उन्हें अपशब्द बोल दिए जाते हैं.

जब ससुराल वालों को सच्चाई पता चली तो तैसे वैसे सुलह करवाई और उसी रात उस गाँव में चोरों द्वारा गायों की चोरी हो गई. गौरक्षक तेजाजी को गायों की रक्षा के लिए जाना पड़ा.

रास्ते में उन्होंने एक सांप को जलते बचाया, जिसका परिणाम उन्हें अपनी मृत्यु के रूप में चुकाना पड़ा था. डाकुओं से गायों को छुड़ाकर तेजाजी ने अपना वचन नाग के समक्ष पूरा किया.

भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160, तदनुसार 28 अगस्त 1103 को तेजाजी की मृत्यु हो गई, उनकी पत्नी पेमल भी इनके शरीर के साथ जीवित सती हो गई.

भारत भर में लोकदेवता तेजाजी के मंदिर बने हुए हैं. तेजाजी का मुख्य मन्दिर नागौर के खरनाल में बना हुआ हैं, जहाँ भादवा सुदी दशमी (तेजा दशमी) को विशाल मेला भरता हैं.

राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, गजरात तथा हरियाणा के भी कुछ बड़े मन्दिर हैं. The Illustrated Weekly of India के 28 जून 1971 के अंक में एक बड़ा खुलासा किया गया था.

अंक में छपी बातों के अनुसार आगरा को जाटों का गढ़ माना जाता था, आज भी यहाँ की बहुल आबादी जाट समुदाय से हैं. पी एन ओंक के अनुसार ताजमहल एक शिव मन्दिर था, जिसे जाट तेजो महालय के नाम से जानते थे.

यहाँ के लोग तेजाजी को अपना आराध्य देव मानते हैं. अतः यहाँ तेजा मन्दिर हुआ करते थे, जिनमें एक तेजलिंग भी हुआ करते थे, जिसकी उपासना की जाती थी.

इतिहासकार ओंक के वर्णन से यह सिद्ध होता हैं कि कथित रूप से शाहजहाँ द्वारा निर्मित कहे जाने वाला ताजमहल वाकई में एक शिव मन्दिर था, जिसे तेजो महालय के नाम से जाना जाता था.

श्री पी.एन. ओक अपनी पुस्तक Tajmahal is a Hindu Temple Palace में सैकड़ों प्रमाण एवं तर्क देकर यह सिद्ध किया कि वर्तमान का ताजमहल एक शिव मंदिर था, जिसे तेजो महालय कहा जाता था. 

राजस्थान के लोक देवता तेजाजी की दशमी क्यों मनाते है.

लोक देवता ऐसे महा पुरुषो को कहा जाता हे जो मानव रूप में जन्म लेकर अपने असाधारणऔर लोकोपकारी कार्यो के कारन देविक अंश के प्रतीक के रूप में स्थानीय जनता द्वारास्वीकार किये गये हे |

राजस्थान मेंरामदेवजी, भेरव,तेजाजी, पाबूजी, गोगाजी, जाम्भोजी,जिणमाता ,करणीमाता आदि सामान्यजन में लोकदेवता के रूप में प्रसिद्ध हे |

इनके जन्मदिन अथवा समाधि की तिथि को मेलेलगते हे | राजस्थान में भादो शुक्ल दशमी को बाबा रामदेव और सत्यवादी जाट वीर तेजाजी महाराज का मेला लगता हे |

तेजाजी के पुजारी को घोडला एव चबूतरे को थान कहा जाता हे | सेंदेरिया तेजाजी कामूल स्थान हे यंही पर नाग ने इन्हें डस लिया था |ब्यावर में तेजा चोक में तेजाजी का एकप्राचीन थान हे |

नागौर का खरनाल भी तेजाजी का महत्वपूर्ण स्थान हे | प्रतिवर्ष भादवासुधि दशमी को नागौर जिले के परबतसर गाव में तेजाजी की याद में “तेजा पशु मेले” काआयोजन किया जाता हे | वीर तेजाजी को “काला और बाला” का देवता कहा जाता हे | इन्हेंभगवान शिव का अवतार माना जाता हे |

मेले की लोकाक्ति यह है कि वीर तेजाजी जाति से जाट थे । वह बड़े शूरवीर, निर्भीक, सेवाभवी, त्यागी एवं तपस्वी थे । उन्होंने दूसरों की सेवा करना ही अपना परम धर्म समझा । निस्वार्थ सेवा ही उनके जीवन का लक्ष्य था । उनका विवाह बचपन में ही इनके माता-पिता ने कर दिया था ।

उनकी पत्नी पीहर गई हुई थी । भौजाई के बोल उनके मन में चुभ गए और उन्होंने अपने माता-पिता से अपने ससुराल का पता ठिकाना मालूम करके अपनी पत्नी को लाने, लीलन घौड़ी पर चल दिए । रास्ते में उनकी पत्नी की सहेली लाखा नाम की गूजरी की गायों को जंगल में चराते हुए चोर ले गया ।

लाखा ने तेजाजी को जो इस रास्ते से अपने ससुराल जा रहे थे, गायों को छुड़ाकर लाने की कहा । तेजाजी तुरंत चोरों से गायों को छुड़ाने लाने को कहा ।

तेजाजी तुरंत चोरों से गायों को छुड़ाने चल दिए । रास्ते में उनको एक सांप मिला जो उनका काटना चाहता था, परंतु तेजाजी ने सांप से लाखा की गायों को चोरों से छुड़ाकर उसे संभलाकर तुरंत लौटकर आने की प्रार्थना की

जिसे सांप ने मान ली वादे के मुताबिक लाखा की गाएं चोरों से छुड़ाकर लाए और उसे लौटा दी और उल्टे पांव ही अपनी जान की परवाह किए बगैर सांप की बाम्बी पर जाकर अपने को डसने के लिए कहा ।

तेजाजी ने गायों को छुड़ाने के लिए चोरों से लड़ाई की थी जिससे उनके सारे शरीर पर घाव थे । अतः सांप ने तेजाजी को डसने से मना कर दिया ।

तब तेजाजी ने अपनी जीभ पर डसने के लिए सांप को कहा जिसने तुरंत लीलन घेाड़ी पर बैठना डालकर तेजाजी की जीभ डस ली ।

तेजाजी बेजान हो धरती माता की गोद में समा गए । यह बात उनकी पत्नी को मालूम पड़ी तो पतिव्रता के श्राप देने के भय से सांप ने पेमल को उसे श्राप ने देने की विनती की ।

तेजाजी का यह उत्सर्ग उनकी पत्नी को सहन नहीं हुआ । अतः वह भी उनके साथ ही सती हो गई । सती होते समय उसने ‘अमर वाणी’ की कि भादवा सुदी नवमी की रात जागरण करने तथा दशमी को तेजाजी महाराज के कच्चे दूध, पानी के कच्चे दूधिया नारियल व चूरमें का भेाग लगाने पर जातक की मनोकामना पूरी होगी ।

इसी प्रकार सांप ने भी उनको वरदान दिया कि आपके ‘अमर-पे्रम’ को आने वाली पीढ़ी जन्म जन्मांतर तक ‘युग-पुरूष देवता’ के रूप में सदा पूजा करती रहेगी ।

तेजा दशमी 2024

लोक देवता कुंवर वीर तेजाजी के बारे में कहा जाता हैं कि वे जाट कुल में जन्में एक क्षत्रिय वीर थे. जो किसान के बेटे के रूप में आज भी बड़े सम्मान के साथ याद किये जाते हैं. उन्होंने गायों की रक्षार्थ बलिदान दिया था.

उनका बलिदान दिवस प्रत्येक किसान पुत्र को अपने कर्तव्यों की याद दिलाता हैं. तेजा दशमी के अवसर पर हमें उन गायों की रक्षा का प्रण लेना चाहिए जिसकी रक्षार्थ तेजाजी महाराज ने बलिदान दिया था.

जाटों के अधिष्ठाता देव तेजाजी की दशमी को राजस्थान एवं इससे सटे अनेक प्रान्तों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता हैं. हमने तेजाजी दशमी दसम दशम के अवसर पर कई लेख तैयार किये हैं जिनमें वीर तेजाजी के जीवन पर कविताएँ शायरी निबंध आदि का लेखन किया गया हैं.

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