नमस्कार विक्रम संवत का इतिहास Vikram Samvat History In Hindi में आपका स्वागत हैं. प्रत्येक राष्ट्र का अपना एक कलैंडर है कही ग्रेगोरियन कलैंडर तो कही हिजरी संवत है.
उसी तरह भारत में विक्रम संवत और शक संवत दो पंचाग हैं. आज के आर्टिकल में हम विक्रम संवत क्या है इसका इतिहास क्या है आसान भाषा में जानेगे.
विक्रम संवत का इतिहास | Vikram Samvat History In Hindi
आप सभी को हिन्दू नववर्ष व विक्रम संवत 2080 की हार्दिक शुभकामनाएं देते हैं. यह भारत का अपना संवत हैं. जिसे राजा विक्रमादित्य ने 57 ई पू इसकी शुरुआत की थी.
सरल मायनों में सबसे तो यह ग्रेगोरियन / अंग्रेजी कैलेंडर से प्राचीन तथा पूर्ण रूप से वैदिक गणित पर आधारित पंचाग हैं.
बताया जाता है कि कोई भी शासक प्रजा का पूर्ण कर्ज समाप्त करने के बाद ही संवत आरम्भ कर सकता था. अतः राजा विक्रमादित्य ने अपनी प्रजा का सम्पूर्ण कर्ज चुकाकर विक्रम संवत की शुरुआत की थी.
दुनियां में बहुत से देश ऐसे हैं जो अपनी प्राचीन भाषा, संस्कृति, इतिहास, पहनावे, मान्यताएं अपने कैलेंडर को लेकर चलते हैं तथा यही उनकी पहचान होती हैं.
मगर दुर्भाग्य के साथ भारत की जनता के साथ इस मामले में बड़ा अन्याय हुआ हैं. ब्रिटिश शासन में भारत में ग्रिगोरियन कलैंडर आया और सम्पूर्ण व्यवस्था तथा इतिहास उसी के मुताबिक़ लिखा गया.
मगर आजादी के बाद जहाँ हमें अपनी चीजों को पुनः स्थापित किया जाना था वो नहीं हुआ. 22 मार्च 1957 को भारत में शक संवत को देश का आधिकारिक पंचाग घोषित किया गया, जिसके वर्ष की शुरुआत 22 मार्च अथवा 21 मार्च को होती हैं.
मगर हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक त्योहार, पर्व तथा धार्मिक अनुष्ठान आज भी विक्रम सम्वत तथा उनके महीनों के हिसाब से चलते हैं.
आज 2023 वर्ष ईसवीं सदी को शुरू हुए हो चुका हैं. ईसा के जन्म से 57 साल पहले विक्रमी संवत का आगाज हुआ था.
वैसे तो कई प्राचीन भारतीय पंचाग हैं मगर वे समय के साथ साथ जटिल व अप्रासंगिक होते चले गये. मगर वि. सं. आज भी उतना ही प्रासंगिक एवं वैज्ञानिक हैं जितना प्राचीन समय में था.
अप्रैल 2023 को हिन्दू नववर्ष 2080 की शुरुआत होने जा रही हैं. नववर्ष की शुरुआत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होती हैं. इस दिन गुड़ीपड़वा तथा चैत्र नवरात्रि भी शुरू होते हैं. इस सम्वत में बारह राशियों के अनुसार इसे 12 महीनों में विभाजित किया गया हैं.
एक सप्ताह में सात दिन का फौर्मुला भी विक्रम संवत से लिया गया हैं. जिनमें 7 दिन का एक हफ्ता, 15 दिन का पक्ष तथा 30 दिन का माह होता हैं.
आज इस संवत की एकमात्र एवं बड़ी पहचान यही हैं कि यह हिन्दू पंचाग कहा जाता हैं नेपाल में भी इस पंचाग को आधिकारिक मान्यता प्राप्त हैं.
सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने दिन ही शकों से भारत को मुक्त कराया था, इस महान विजय के उपलक्ष्य में विक्रम संवत की नीव रखी गई थी.
विक्रम संवत हिन्दू कैलेंडर के महीने
- चैत्र – मध्य मार्च से मध्य अप्रैल
- बैशाख – मध्य अप्रैल से मध्य मई
- जेष्ठ – मध्य मैं से मध्य जून
- आषाढ़ – मध्य जून से मध्य जुलाई
- श्रावण – मध्य जुलाई से मध्य अगस्त
- भाद्र – मध्य अगस्त से मध्य सितम्बर
- आश्विन – मध्य सितम्बर से मध्य अक्टूबर
- कार्तिक- मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर
- अगहन – मध्य नवम्बर से मध्य दिसम्बर
- पौष – मध्य दिसम्बर से मध्य जनवरी
- माघ- मध्य जनवरी से मध्य फरवरी
- फाल्गुन- मध्य फरवरी से मध्य मार्च
हिन्दू कलैंडर की तिथियाँ अन्य पंचाग के बिलकुल अलग तथा विज्ञान सम्मत हैं. हमारे इस कलैंडर में 24 घंटे या 12 घंटे के विभाजन की बजाय सूर्योदय तथा सूर्यास्त के आधार पर तिथियों का विभाजन किया जाता हैं.
साथ ही चन्द्रमा की कलाओं तथा सूर्य चन्द्रमा की स्थितियों के अनुसार ही तिथियाँ कम अथवा ज्यादा होती हैं.
विक्रमी संवत व भारत के इतिहास से सम्बन्ध
पिछले एक हजार वर्ष तक भारत विविध विदेशी ताकतों का राजनीतिक गुलाम रहा, जो भी विदेशी शक्ति भारत पर शासन करने के लिए आई उसने एक नवीन पंचाग जारी किया.
मगर भारत की जनता का विक्रमी संवत के साथ हमेशा पुराने सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं इन्हें धर्म के एक पवित्र संकेत की तरह माना गया.
जब 18 वीं सदी में अंग्रेज भारत में आए तो उनकी शिक्षा दीक्षा संस्कृति भारतीय लोगों पर थोप दी. लोग ईसवीं सदी को पूर्ण रूप से अपना चुके थे.
तथा अपने ऐतिहासिक पंचाग विक्रमी संवत को भुलाते चले गये, मगर आज भले ही ईस्वी संवत का बोलबाला हो देश के सांस्कृतिक पर्व-उत्सव तथा राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गुरु नानक समेत सभी पर्व तथा जयन्तियां विक्रमी संवत के अनुसार ही मनाई जाती हैं.
विवाह-मुण्डन, शुभ मुहूर्त हो या श्राद्ध-तर्पण तथा कोई भी सामाजिक तथा धार्मिक कार्य भी इसी संवत के अनुसार किये जाते हैं.