बढ़ते वाहन घटता जीवन पर निबंध | Badhte Vahan Ghatta Jeevan Essay In Hindi

बढ़ते वाहन घटता जीवन पर निबंध Badhte Vahan Ghatta Jeevan Essay In Hindi नमस्कार दोस्तों आज का निबंध वाहनों की बढ़ती संख्या और इसकी समस्या पर दिया गया हैं.

सरल भाषा में स्टूडेंट्स के लिए आसान भाषा में निबंध दिया गया हैं. उम्मीद करते है यह आपको पसंद आएगा.

बढ़ते वाहन घटता जीवन पर निबंध

बढ़ते वाहन घटता जीवन पर निबंध | Badhte Vahan Ghatta Jeevan Essay In Hindi

सभ्यता का प्रगति पथ और वाहन– मानव सभ्यता का प्रगति रथ पहले रथ, बैलगाड़ी, इक्का तांगा, बग्घी से आगे बढ़ा तो फिर पालकी रिक्शा के रूप में चला.

लेकिन नयें यांत्रिक युग के आते ही वैज्ञानिक मानव ने नये नये द्रुतगामी वाहनों का निर्माण किया. आज तो स्कूटर, मोटर साइकिल कार बस आदि अनेक तरह के द्रुतगामी वाहनों का निर्माण मानव प्रगति की कथा बता रहे हैं.

विशेष रूप से सड़क भू मार्ग पर चलने वालों की आज ऐसी रेल पेल हो रही हैं जिससे सड़क पर पैदल चलने की जगह नहीं रह गई हैं.

वाहन वृद्धि के कारण– यांत्रिक युग का आरम्भ जनसंख्या वृद्धि  जुड़ा हैं. जनताके आवागमन एवं परिवहन को सुविधायुक्त तथा द्रुतगामी बनाने के लिए यांत्रिक वाहनों का अविष्कार हुआ. 

पहले साइकिल, रिक्शा, स्कूटर के साथ कार और मोटर वाहनों का निर्माण हुआ, फिर आवश्यकतानुसार ओटो रिक्शा, मध्यम एवं भारी मालवाहक वाहनों का निर्माण हुआ.

वस्तुतः जनसंख्या की वृद्धि के अनुपात के अनुसार सभी यांत्रिक वाहनों का निर्माण हुआ. इस तरह वाहनों की असिमित वृद्दि यदपि मानव की सुख सुविधा की दृष्टि से ही हुई तथापि ऐसी असीमित वाहन वृद्धि पर्यावरण तथा जनस्वास्थ्य की दृष्टि से जटिल समस्या बन रही हैं.

वाहन वृद्धि से लाभ– वाहन वृद्दि से अनेक लाभ हैं. इनसे आवागमन की सुविधा बढ़ी हैं. जो मार्ग पहले  आठ दस दिनों तक चलने में तय होता था, वह अब कुछ ही मिनटों में पार हो जाता हैं. 

माल ढोने वाले वाहनों की वृद्धि से अनाज या अन्य उत्पादन शीघ्रता से ढोया जाता हैं. अब दूर दूर के स्थानों की यात्रा सुगम और सुविधाजनक हो गई हैं.

लोगों के पास छोटे बड़े निजी वाहन होने से उन्हें दूसरो का मुह ताकना नहीं पड़ता हैं. इससे जनता के समय धन और श्रम की बचत हो रही हैं तथा देश के अन्य क्षेत्रों से निकटता का सम्बन्ध स्थापित हो रहा हैं.

वाहन निर्माण करने वाले उद्योगों में हजारो लाखों लोगों को रोजगार मिल रहा हैं. इस तरह देश के विकास वाहन वृद्धि से अनेक लाभ हैं.

बढ़ते वाहनों का कुप्रभाव– यांत्रिक वाहनों के संचालन में पेट्रोल डीजल का उपयोग होता हैं. इससे वाहनों द्वारा विषैली कार्बन गैस छोड़ी जाती हैं.

जिससे ह्रदय रोग, दमा रोग, मस्तिष्क रोग, चरम रोग, तपेदिक, कैंसर आदि घातक रोग फ़ैल रहे हैं. इससे आम जनता की स्वास्थ्य हानि हो रही हैं.

उनका जीवन काल घट रहा हैं. वाहनों की वृद्धि से सड़कों पर भीडभाड रहती हैं. अनेक भयावह दुर्घटनाएं घटित होती हैं. और जिंदगी अशांत लगती हैं. पेट्रोल डीजल की अधिक खपत से मूल्य वृद्धि हो रही हैं.

जिसका असर सभी पर पड़ता हैं. अब ऋण लेकर वाहन खरीदने की भौतिकतावादी प्रवृत्ति बढ़ रही हैं, जिससे ऋणग्रस्तता एवं मुद्रास्फीति देखने को मिल रही हैं. इस तरह बढ़ते वाहनों से लाभ के साथ ही हानि भी हो रही हैं और इनके कुप्रभाव से जीवन धन क्षीण हो रहा हैं.

उपसंहार– यांत्रिक वाहनों का विकास भले ही मानव सभ्यता की प्रगति अथवा देशों के औद्योगिक विकास का परिचायक हैं, तथापि वर्तमान वाहनों की असीमित वृद्धि से मानव जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ रहा हैं.

जयपुर जैसे महानगरों में तो कई मार्ग ऐसे हैं जिन पर चलने से जीवन हानि का भय बना रहता हैं. अतएवं वाहनों की वृद्धि उसी अनुपात में अपेक्षित है जिससे  मानव के स्वास्थ्य पर बुरा असर न पड़े तथा यांत्रिक प्रगति भी बाधित न हो.

बढ़ते वाहन घटता जीवन पर निबंध Badhte Vahan Ghatta Jeevan Essay In Hindi

प्रस्तावना– वाहन का होना सामाजिक प्रतिष्ठा से जुड़ा रहा हैं. पशुओं और मनुष्यों द्वारा खीचे और ढोए वाले परम्परागत वाहन आज लुप्तप्राय हो चुके हैं.

इनका स्थान पेट्रोल और डीजल चालित वाहनों ने ले लिया हैं. आज सड़कों पर स्वचालित वाहनों का राज हैं. दुपहिया, तिपहिया, चौपहिया, छ आठ और बारह पहियों वाले नाना प्रकार और उपयोग के वाहन सड़कों पर दौड़ रहे हैं.

वाहनों का इंधन– कुछ अपवादों को छोड़ दे, तो प्रायः सभी स्वचालित वाहन पेट्रोल और डीजल का उपयोग करते हैं. गैस, बिजली, सौर ऊर्जा, हाइड्रोजन आदि से भी वाहन चलाए जा रहे हैं किन्तु इनकी संख्या नगण्य हैंवाहनों की संख्या बढ़ने से ईधन की खपत भी बढ़ती जा रही हैं.

वाहनों की बढ़ती संख्या– सड़कों पर वाहनों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही हैं. वाहन निर्माता कम्पनियाँ नाना प्रकार आकर्षक विज्ञापन देकर लोगों को वाहन खरीदने के लिए आकर्षित कर रही हैं.

लाखों से आगे अब करोड़ों रुपयों के मूल्य की लग्जरी कारें उतारी जा रही हैं. वाहन खरीदने के लिए ऋण की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही हैं.

व्यक्तिगत वाहनों के अलावा सार्वजनिक और व्यावसायिक वाहनों की संख्या भी निरंतर बढ़ती जा रही हैं. गाड़ियों की निरंतर बढ़ती संख्या ने सड़कों को छोटा साबित कर दिया हैं.

वाहनों में वृद्धि के दुष्परिणाम- वाहनों की बढ़ती भीड़ के अनेक दुष्परिणाम सामने उपस्थित हैं.

  • बढ़ती दुर्घटनाएं– सड़क हादसों में हो रही निरंतर वृद्धि वाहनों के बढ़ते का ही दुष्परिणाम हैं. सड़क दुर्घटनाएं रोज सैकड़ों हजारों लोगों की बलि ले रही हैं. इन खुनी सड़कों द्वारा ली गई जिंदगियों की संख्या आतंकी घटनाएँ में मारे गये लोगों से सैकड़ों गुना अधिक हो गई हैं. सड़कों पर ये खून खराबा निरंतर जारी हैं.
  • अर्थव्यवस्था पर बढ़ता भार- वाहनों की बढ़ती संख्या के कारण पेट्रोल और डीजल की मांग बढ़ती जा रही हैं. देश की आवश्यकता का अधिकांश ईधन बाहर से आता हैं. आजकल पेट्रोलियम के भाव आकाश चूम रहे हैं. इस प्रकार वाहनों की संख्या बढ़ने से तेल का आयात भी बढ़ता जा रहा हैं. देश की अर्थव्यवस्था पर निरंतर भार बढ़ रहा हैं.
  • शोषण का साधन– वाहन खरीदने के लिए निर्माता कम्पनियाँ तथा बैके ऋण देती हैं. इससे लोग अनावश्यक आवश्यकता की पूर्ति करते हैं. ऋणदाता ब्याज सहित वाहन का दूना मूल्य उनसे वसूल करता हैं. इससे जनता का अनावश्यक शोषण होता हैं तथा समाज में अनुचित प्रतिस्पर्द्धा बढ़ती हैं. लाभ होता है तो केवल पूंजीपति वर्ग को.
  • समय और धन की हानि– वाहनों की संख्या बढ़ने से व्यस्त मार्गों पर प्रायः जाम लगते हैं. इन जामों में फंसे लोगों का समय तो नष्ट होता ही हैं. व्यर्थ ईधन फुकने का खर्च भी उठाना पड़ता हैं. कभी कभी ये जाम रोगियों के लिए जानलेवा साबित होते हैं.
  • पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि– वाहनों के बढ़ने से ईधन अधिक व्यय हो रहा हैं. इससे वायुमंडल में कार्बनडाई ऑक्साइड गैस अधिक मात्रा में मिल रही हैं और वायुमंडल प्रदूषित हो रहा हैं. दिन और रात दौड़ रहे वाहनों के शोर से ध्वनि प्रदूषण भी भोगना पड़ रहा हैं. इससे लोगों को अनेक प्रकार के रोग हो रहे हैं और उनका स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा हैं.
  • सड़कों की दुर्दशा– वाहनों का भार बढ़ने से सड़के क्षतिग्रस्त हो रही हैं. सड़कों का उचित रख रखाव न होने से दुर्घटनाएं बढ़ रही है और यात्रियों को परेशान भोगनी पड़ रही हैं. सड़कों के रख रखाव पर पैसा बर्बाद हो रहा हैं.

उपसंहार– वाहनों की निरंतर बढ़ती संख्या एक ऐसी समस्या हैं. जिसका समाधान जनता और सरकार दोनों के समझ बूझयुक्त सहयोग से ही सम्भव हैं. जनता वाहनों के प्रयोग से संयम से काम ले.

आवश्यक होने पर ही वाहन का प्रयोग किया जाए. अनेक देशों में साइकिल के प्रयोग को अनिवार्य बनाया गया हैं. हमारी सरकारें भी ऐसा कर सकती हैं.

कारों के प्रयोगकर्ताओं पर विशेष कर लगाया जाय. वाहन क्रय करने के लिए ऋण देने की व्यवस्था को समाप्त किया जाय.

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