History of Thakur Kushal Singh In Hindi ठाकुर कुशाल सिंह का इतिहास: राजस्थान की जोधपुर रियासत जिसे मारवाड़ भी कहा जाता है, इसमें आठ ठिकाने थे जिनमें एक आउवा भी था.
ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत पाली जिले के इसी आउवा के ठाकुर थे. इन्होने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जोधपुर रियासत और ब्रिटिश संयुक्त सेना को पराजित कर मारवाड़ में आजादी की अलख जगा दी थी.
आज हम कुशाल सिंह का जीवन परिचय इतिहास आदि के बारें में यहाँ विस्तार से जानेगे.
History of Thakur Kushal Singh In Hindi ठाकुर कुशाल सिंह का इतिहास
19 वीं में ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ विद्रोह की बागडोर उठाने वाले क्रांतिकारियों में ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत भी एक थे.
इन्होने 1857 की क्रांति में मारवाड़ क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए जोधपुर की ब्रिटिश सेना को बुरी तरह पराजित किया था. ये स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे के घनिष्ठ मित्र व सहयोगी थे.
ठाकुर कुशाल सिंह मारवाड़ राज्य के अधीन आउवा ठिकाने का जागीरदार था. सामंतों के परम्परागत अधिकारों में हस्तक्षेप और नजराना एवं हुक्मनामें की राशि को लेकर महाराजा तखतसिंह से उसका विरोध था.
वह इन सबके लिए अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजी नीतियों को जिम्मेदार समझता था. तत्कालीन शासक तख्तसिंह के प्रति समूचे मारवाड़ में घोर असंतोष व्याप्त था.
मूलत जमीदार वर्ग इनसे असंतुष्ट था, जिन्होंने आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह को अपना नेता चुना तथा उन्ही के नेतृत्व में क्रांति की लड़ाई लड़ी गई.
21 अगस्त के दिन जोधपुर की लिजियन सैनिक टुकड़ी ने विद्रोह कर दिया. जमीदारों तथा कुशाल सिंह ऐसे अवसर की तलाश में ही थे, उन्होंने विद्रोहियों को अपने साथ मिला लिया.
21 अगस्त 1857 को एरिनपुरा छावनी में ब्रिटिश फौज के भारतीय दस्तों ने बगावत का झंडा खड़ा कर दिल्ली की ओर कूच किया.
ब्रिटिश लेफ्टिनेंट हीथकोट के नेतृत्व में जोधपुर की फौज के साथ 8 सितम्बर को कुशाल सिंह ने मोर्चा सम्भाला तथा इसमें राज्य की सेना को मुहं की खानी पड़ी.
इस हार से छटपटाई मारवाड़ हुकुमत ने जोर्ज लारेंस को आउवा पर आक्रमण के लिए भेजा. मगर 27 सित्मबर को उन्हें पराजय झेलनी पड़ी और युद्ध में जोधपुर का पोलिटिकल एजेण्ड मोंक मेसन मारा गया था.
परास्त करने के लिए ए जी जी लारेंस ने डीसा और नसीराबाद से सेना भेजी, जिसके साथ जोधपुर की राजकीय सेना भी थी. इस सेना ने 20 जनवरी 1858 को आउवा को घेर लिया.
तब ठाकुर कुशालसिंह किले की रक्षा का भार अपने भाई पृथ्वीसिंह को सौपकर 23 जनवरी 1858 को सलूम्बर की ओर चला गया.
किलेदार के विश्वासघात के कारण आउवा का पतन हो गया. ठाकुर कुशालसिंह ने 8 अगस्त 1860 को नीमच में अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उस पर मुकदमा चलाया गया.
जिसमें उसे बरी कर दिया गया. मारवाड़ राज्य में आज भी आउवा और ठाकुर कुशालसिंह को 1857 ई के प्रतीकों के रूप में स्मरण किया जाता हैं.
आऊवा गांव का इतिहास
आउवा राजस्थान के पाली जिले के मारवाड़ जंक्शन तहसील में अवस्थित एक छोटा सा गाँव हैं जिसकी मारवाड़ जंक्शन से 13 किमी की दूरी हैं.
आउवा में भगवान शिव का ग्याहरवीं सदी का बना मन्दिर भी हैं. 1857 की क्रांति में संग्राम का नेतृत्व यही के ठाकुर कुशाल सिंह ने किया था.
तीन हजार की आबादी वाले छोटे से गाँव ने क्षेत्र में देशभक्ति की ऐसी ललक पैदा कि वो आजादी मिलने तक देखने को मिली.
आजादी के दीवाने जोश और जज्बे से जोधपुर राज्य और अंग्रेजों की संयुक्त सेना से भीड़ गये, जिसमें गोरों की सेना को भागना पड़ा था.
आऊवा और कुशालसिंह के इतिहास को मिटाने की अंग्रेजो ने भरपूर कोशिश की, मगर 160 साल बाद इस धरती के साथ न्याय हुआ और यहाँ सरकार द्वारा पेनोरमा का निर्माण किया गया.
इसी जगह गोरों ने 24 स्वतंत्रता सेनानियों को मौत के घाट उतार दिया था, यहाँ वर्णित उनके दृश्य आज भी आक्रोश जगा रहे हैं.
आऊवा का युद्ध और बलिदान
मारवाड़ का एक छोटा सा गाँव आऊवा जिसने ब्रिटिश हुकुमत की नीव हिला दी थी, जब कभी अंग्रेजों के समक्ष इस गाँव का नाम आता तो सिहर उठते थे.
1857 के संग्राम में जहाँ पूरे देश के देशभक्तों ने अपना बलिदान दिया तो भला आऊवा कैसे पीछे रह जाता. ठाकुर कुशाल सिंह के नेतृत्व में ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ बगावत के सुर छेड़ने वाली इस भूमि ने 24 बेटों का बलिदान किया था.
25 जनवरी 1858 को ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार किये गये 120 क्रांतिकारियों में से 24 को मौत की सजा सुनाई. सभी को एक पंक्ति में खड़ा कर फांसी दे दी गई. उपनिवेश युग में सबसे कम समय में इतने अधिक लोगों को फांसी देने का दर्दांत कृत्य भी यहीं हुआ था.
मारवाड़ में कुशाल सिंह के नेतृत्व में आऊवा क्रांति का गढ़ बन चूका था. अंग्रेजों ने इस पर धावा बोलने के लिए जोधपुर रियासत की सेना को अपने साथ लिया.
मोक मोसन के नेतृत्व में आऊवा आई यह सेना वीरो के आगे टीक नहीं पाई. कुशाल सिंह ने मोक मेसन का सिर काटकर गढ़ के दरवाजे पर लटका दिया था.
अंग्रेज सरकार ने यहाँ माँ सुगाली माता की मूर्ति को खंडित करवा दिया कुशाल सिंह देवी के भक्त थे. तथा छ किलों को सुरंग बनाकर ध्वस्त कर दिया गया था.
आखिरकार 24 जनवरी 1858 को कर्नल होप्स के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना आऊवा किले पर अधिकार करने में सफल हो पाई थी.
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