महाराजा सूरजमल इतिहास Maharaja Surajmal History In Hindi महाराजा बदनसिंह की मृत्यु के बाद उसके पुत्र महाराजा सूरजमल जाट 1756 ई. में भरतपुर राज्य का शासक बना.
राजनैतिक कुशलता और कुशाग्र बुद्धि के कारण उसे जाट जाति का प्लेटों भी कहा जाता है. आगरा, मेरठ, मथुरा, अलीगढ़ आदि उसके राज्य में सम्मिलित थे.
सूरजमल का इतिहास के इस लेख में लोहागढ़ भरपूर के महान प्रतापी शासक महाराजा सूरजमल इतिहास व जीवनी पर यहाँ संक्षिप्त प्रकाश डाला गया हैं.
महाराजा सूरजमल इतिहास Maharaja Surajmal History In Hindi
जाट राजा सूरजमल का संक्षिप्त इतिहास व जीवन परिचय (Brief history and biography of Jat Raja Surajmal)
नाम | महाराजा सूरजमल या सूजान सिंह |
जन्म | 13 फरवरी 1707 |
शासनावधि | 1755 – 1763 AD |
राज्याभिषेक | डीग, 22 May 1755 |
जीवनसंगी | महारानी किशोरी देवी |
संतान | जवाहर सिंह, नाहर सिंह, रतन सिंह, नवल सिंह, रंजीत सिंह |
पिता | बदन सिंह |
माता | महारानी देवकी |
निधन | 25 दिसम्बर 1763 |
उपाधि | जाटों का प्लेटों |
कौन थे महाराजा सूरजमल इनका इतिहास (Who was the history of Maharaja Surajmal)
भरतपुर राज्य के राजा चूड़ामन सिंह के बाद उनके भतीजे राजा बदन सिंह भरतपुर रियासत के राजा बने. इनके 13 फरवरी 1707 को एक बेटा हुआ जो आगे चलकर जाट महाराजा सूरजमल के रूप में विख्यात हुए.
बदन सिंह ने डींग महलो का निर्माण कराया और पुरानी गढ़ी पर लोहागढ़ दुर्ग बनाया और भरतपुर को राज्य की राजधानी बनाया. 1755 ई में बदन सिंह ने अपने जीवनकाल में ही सूरजमल को राज्य की बागडौर सौप दी.
वीरता, धीरता, गम्भीरता, उदारता, सतर्कता, दूरदर्शिता, सूझबूझ, चातुर्य और राजमर्मज्ञता गुणों के धनी सूरजमल को इतिहासकारों ने जाटों का प्लेटों कहा हैं इनकी तुलना ओडिसस से की है.
जब सूरजमल 25 वर्ष हुए हुए तब इन्हें पिता बदन सिंह ने सोघरिया रुस्तम पर आक्रमण करने भेजा और इस तरह ये इनके जीवन का पहला सफल अभियान था.
मुगलों, मराठों व राजपूतों के समानांतर इन्होने दिल्ली, उत्तर प्रदेश के आगरा, अलीगढ़, बुलन्दशहर, ग़ाज़ियाबाद, फ़िरोज़ाबाद, इटावा, हाथरस, एटा, मैनपुरी, मथुरा, मेरठ जिले; राजस्थान के भरतपुर, धौलपुर, अलवर, जिले; हरियाणा का गुरुग्राम, रोहतक, झज्जर, फरीदाबाद, रेवाड़ी, मेवात तक एक विशाल और सम्पन्न राज्य की सीमाओं को बढ़ाया था.
सूरजमल की सैन्य शक्ति अभियान व विजये
सूरजमल अन्य राज्यों की तुलना में हिन्दुस्तान का सबसे शक्तिशाली शासक था. इनकी सेना में 1500 घुड़सवार व 25 हजार पैदल सैनिक थे.
उन्होंने अपने पीछे 10 करोड़ का सैनिक खजाना छोड़ा. मराठा नेता होलकर ने 1754 में कुम्हेर पर आक्रमण कर दिया. महाराजा सूरजमल ने नजीबुद्दोला द्वारा अहमद शाह अब्दाली के सहयोग से भारत को मजहबी राष्ट्र बनाने को कोशिश को भी विफल कर दिया.
इन्होने अफगान सरदार असंद खान, मीर बख्शी, सलावत खां आदि का दमन किया. अहमद शाह अब्दाली 1757 में दिल्ली पहुच गया और उसकी सेना ने ब्रज के तीर्थ को नष्ट करने के लिए आक्रमण किया.
इसको बचाने के लिए केवल महाराजा सूरजमल ही आगे आये और उनके सैनिको ने बलिदान दिया. अब्दाली पुनः लौट गया.
जब सदाशिव राव भाऊ अहमद शाह अब्दाली को पराजित करने के उद्देश्य से आगे बढ़ रहा था, तभी स्वयं पेशवा बालाजी बाजीराव ने भाऊ को परामर्श दिया कि उत्तर भारत में मुख शक्ति के रूप में उभर रहे महाराजा सूरजमल का सम्मान कर उनके परामर्श पर ध्यान दिया जाए.
लेकिन भाऊ ने युद्ध सम्बन्धी इस परामर्श पर ध्यान नही दिया और अब्दाली के हाथों पराजित हो गया. इस युद्ध में मराठों को भारी क्षति उठानी पड़ी. युद्ध के बाद लगभग 50 हजार मराठा परिवार महाराजा सूरजमल के राज्य में पहुचे.
अब्दाली ने सूरजमल को चेतावनी देते हुआ शरण में आए मराठों को सौपने को कहा , लेकिन महाराजा सूरजमल ने इस चुनौती को स्वीकार किया और मराठा सरदारों को सौपने से मना कर दिया. विद्वानों ने तत्कालीन शासकों ने महाराजा सूरजमल के इस कार्य की प्रशंसा की.
राजा सूरजमल के समय जाट राज्य अपने सर्वोच्च शिखर पर था. मुग़ल राज्य के मध्य में उन्होंने भरतपुर का शक्तिशाली राज्य स्थापित किया.
भरतपुर राज्य इतना शक्तिशाली हो गया था कि मुग़ल एवं अन्य राजनैतिक शक्तियाँ उसकी मदद मांगने को आतुर रहती थी. महाराजा सूरजमल भरतपुर के लोकप्रिय शासक थे.
उसके पिता बदनसिंह ने डीग बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया. सूरजमल ने भरतपुर शहर की स्थापना की. सूरजमल से पूर्व जाट नेता गोकुल औरंगजेब की मंदिर मूर्ति विध्वंस निति का प्रबल विरोधी थे.
मथुरा और आगरा के जाट बहुत समय तक मुगलों के अत्याचार और कुशासन का शिकार रहे. गोकुल राजाराम ने मुगलों के अत्याचार का प्रबल विरोध किया तथा सिकन्दरा में स्थित अकबर के मकबरे से बहुमूल्य रत्नों व सोने चांदी के पत्थरों को उखाड़ दिया.
राजाराम के बाद चूडामन ने आजीवन मुगलों से संघर्ष किया. जयपुर के महाराजा जयसिंह की मृत्यु के बाद हुए उत्तराधिकार युद्ध में सूरजमल के सहयोग से ईश्वरी सिंह विजयी हुआ और जयपुर की गद्दी पर बैठा.
मई 1753 ई. सूरजमल ने फिरोजशाह कोटला पर कब्जा कर लिया. मराठों ने जनवरी 1754 ई. से मई 1754 ई तक भरतपुर के कुम्हेर के किले को घेरे रखा पर वे इस किले को नही जीत पाएं और उन्हें संधि करनी पड़ी.
1761 ई. में पानीपत की तीसरी लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली के हाथों हार के बाद शेष बचें मराठा सैनिकों के खाने पीने, इलाज व कपड़ों की व्यवस्था महाराजा सूरजमल ने की. सूरजमल ने अपने प्रभुत्व वाले क्षेत्रों के किले व महल बनवाएं, जिनमें प्रसिद्ध लोहागढ़ किला भी शामिल हैं.
मराठों के पतन के बाद सूरजमल ने गाजियाबाद, रोहतक, झज्जर, आगरा, धौलपुर, मैनपुरी, हाथरस, बनारस, फरुखनगर इत्यादि इलाके जीत लिए, 25 दिसम्बर 1763 ई. को महाराजा सूरजमल की मुगलों ने धोखे से हत्या कर दी थी, एक साल बाद जवाहरसिंह जो सूरजमल के पुत्र थे, इन्होने बदला लेकर लाल किले पर फतह हासिल की थी.
सूरजमल जयंती
राजा झुके झुके मुगल अंग्रेज झुका गगन सारा
सारे जहाँ के शीश झुके झुका न कभी सूरज हमारा
25 दिसम्बर 1763 के दिन भरतपुर के इस महान शासक ने नवाब नजीबुद्दौला के साथ हिंडन नदी के तट पर हुए युद्ध में अपना बलिदान दिया था.
उनकी स्मृति में 25 दिसम्बर को प्रतिवर्ष सूरजमल जयंती मनाई जाती हैं. कभी किसी के सामने शीश न झुकाने वाले सूरज की वीरता का वर्णन कवि सूदन ने सुजान चरित्र में किया हैं.