परोपकार पर निबंध | Essay on Paropkar In Hindi

नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत हैं, आज हम परोपकार पर निबंध Essay on Importance of Charity in Hindi [Essay on Paropkar] पढ़ेंगे.

इस निबंध, अनुच्छेद, भाषण स्पीच में हम जानेगे कि परोपकार का अर्थ क्या हैं, जीवन में इस का अर्थ और महत्व क्या हैं आदि के बारें में विस्तार से यहाँ समझने का प्रयास करेंगे.

परोपकार पर निबंध Essay on Importance of Charity in Hindi

परोपकार पर निबंध | Essay on Paropkar In Hindi

प्रस्तावना– संसार के हर धर्म में परोपकार की महिमा गाई गयी हैं. महामुनि व्यास कहते हैं- परोपकार पुण्याय पापाय पर पीडनम्. परोपकार ही सबसे बड़ा पुण्य है और पर पीड़न ही सबसे बड़ा पाप हैं. महाकवि तुलसीदास भी कहते हैं परहित सरिस धरम नहिं भाई, परपीड़ा सम नहिं अधमाई.

परोपकार क्या है– पर अर्थात दूसरों का उपकार ही परोपकार है. मनुष्य को पशु स्तर से उठाकर मानवीयता के महिमामय स्वरूप से मंडित करने वाला परोपकार ही हैं. दूसरों का उपकार स्वार्थ भावना से भी किया जाता हैं.

यश प्राप्ति या प्रसिद्धि के लिए भी लोग दूसरों की सहायता किया करते हैं. किन्तु कोई भी कार्य तब तक उपकार की श्रेणी में नहीं आ सकता. जब तक कि निस्वार्थ भाव से न किया गया हो.

परोपकार के मूल में त्याग है और त्याग के लिए साहस आवश्यक हैं. अतः साहस के साथ स्वयं कष्ट सहते हुए भी दूसरों की भलाई में रत रहना ही परोपकार हैं.

परोपकार एक दैवी गुण-परोपकार एक उच्च कोटि का असाधारण गुण है जो विरले ही व्यक्तियों में देखा जाता हैं. हर व्यक्ति के लिए इस व्रत को धारण कर पाना संभव भी नहीं हैं.

जब मनुष्य की दृष्टि व्यापक हो जाती है. स्व और पर भेद समाप्त हो जाता हैं. उसे जीव मात्र में एक ही विभूति के दर्शन होते हैं. तभी परोपकार का सच्चा स्वरूप सामने आता हैं.

एक महात्मा बार बार नदी में बहते बिच्छू को बचाने के लिए उठाते है और वह मुर्ख हर बार उनको डंक मार नदी में जा गिरता है लेकिन परोपकारी संत असहय पीड़ा सहन करके भी उसे बचाते हैं. ऐसे परोपकारी संत देवताओं के तुल्य हैं.

परोपकारी महापुरुष– भारत को परोपकारी महात्माओं की दीर्घ परम्परा ने गौरवान्वित किया हैं. महर्षि दधीचि तथा महाराजा रन्ति देव के विषय में यह उक्ति देखिये “क्षुधार्त रन्ति देव ने दिया करस्थ थाल भी, तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थि जाल भी.

शिवी राजा का उदाहरण भी कम उज्ज्वल नहीं, जिन्होंने एक पक्षी की रक्षार्थ अपना माँस ही नहीं, शरीर तक दान में दे दिया. परोपकारियों को इसकी चिंता नहीं होती कि संसार उनके विषय में क्या कह रहा है या कर रहा हैं. उनका स्वभाव ही परोपकारी होता है.

तुलसी संत सुअब तरु, फूल फलहिं पर हेत, इतते ये पाहन हनत उतते वे फल देत

परोपकार का महत्व- आज के घोर भौतिकवादी युग में तो परोपकार का महत्व और भी बढ़ गया हैं. विकसित और विकासशील देशों की कटु स्पर्धा को रोकने और संसार में आर्थिक संतुलन तथा सुख सम्रद्धि लाने के लिए राष्ट्रों को चाहिए कि वे परोपकार की भावना से काम लें परन्तु उस उपकार के पीछे राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि एवं प्रभाव विस्तार की भावना नहीं होनी चाहिए.

उपसंहार– परोपकार धर्मों का धर्म कहलाता हैं. अन्य धर्म अफीम हो सकते हैं जिसके नशे में भले बुरे का ज्ञान होना संभव नहीं किन्तु परोपकार धर्म वह अमृत है जो जीव मात्र को संतोष तथा आनन्द की संजीवनी से ओत प्रेत कर देता हैं.

परोपकारी व्यक्ति स्वयं स्वार्थ हीन होता हैं, उसका परोपकार ही उसकी अमर निधि बन जाता हैं. हरि अनंत हरि कथा अनंता की भांति परोपकार की कथा भी अनंत हैं.

वह द्रोपदी का चीर है जिसका कोई अंत नहीं. अंत में महाकवि तुलसीदास के शब्दों को उद्घृत करते हुए हम कह सकते हैं.

परहित लागि तजहिं जो देहि सन्तत संत प्रशंसहि तेही.

परोपकार पर निबंध Essay on Charity in Hindi

हमारे यहाँ प्रसिद्ध कहावत है “परहित सरिस धर्म नहिं भाई” अर्थात औरों के हित (दूसरो के लिए भलाई) के सिवाय कोई बड़ा धर्म नहीं हैं.

मानवता का मूल सिद्धांत परोपकारी जीवन पर आधारित हैं. हिन्दू सनातन धर्म का मूल सार सहअस्तित्व और परोपकार की बात करता हैं, हमारे आधुनिक समाज में भी परोपकार को एक स्वीकार्य सामाजिक मूल्य के रूप में अनुग्रहित किया जाता हैं.

धर्म भी मानव मात्र के साथ एकमत होकर उसकी सेवा करने की बात करता हैं, यथा किसी भूखे को अन्न खिलाना, कपड़े दान करना, बीमार एवं वृद्धों की सेवा करना, आगन्तुक मेहमान की सेवा करना, दान पुण्य के पथ पर चलना आदि धर्म के कार्य हैं.

परोपकार क्या हैं  इसकी परिभाषा? Definition of Word Paropkar?

मूल शब्द परोपकार दो शब्द पर और उपकार के संयोग से बनता हैं. जिसका आशय यह हैं कि बिना किसी लोभ या लालच के दूसरों की भलाई करना उनकी मदद करना परोपकार कहा जाता हैं.

इसे अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि भलाई के कार्य को परोपकार की संज्ञा दी जाती हैं, मानव के मूल भावों में निहित करुणा ही औरों के विषय में सोचने उनके प्रति सहानुभूति जताने और उनकी मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाने के लिए हमें अग्रसर करती हैं.

हमारे परिवार में जन्म से बच्चों में परोपकारी भाव के गुण संस्कारों में ही सिखाएं जाते हैं. ताकि वे बड़े होकर मनुष्य मात्र के दुःख दर्द में भागीदार बन सके.

बच्चों को बचपन से ही महापुरुषों के परोपकारी और मानव की भलाई मात्र के कार्यों की गाथाएं बताने से भी उनमें इस गुण का भाव मजबूत होकर उभरता हैं तथा वे भी इस राह पर चलने के लिए प्रेरित होते हैं.

परोपकार का अर्थ? Meaning of Charity in Hindi?

पर उपकार का सरल सा अर्थ यह हैं कि जब हम मनुष्य के रूप में इस पृथ्वी पर जन्म लेते हैं, तो ईश्वर द्वारा निर्मित इस सृष्टि में हम जैसे करोड़ों मानव एवं जीव जन्तु इस पर विद्यमान हैं.

हमारा जीवन एक दूसरे के अस्तित्व के साथ जुड़ा हैं. हम बिना किसी लालच पीड़ित और जरूरतमंद की मदद के लिए आगे आए, जिससे कभी हम भी संकट में हो तो कोई हमारी मदद के लिए भी अपने हाथ बढ़ाएगा.

इस तरह से परोपकार इस हाथ से देना और उस हाथ से लेने की तरह ही हैं. पर मानव की सेवा को नारायण अर्थात ईश्वर की सेवा के समतुल्य माना जाता हैं. किसी की मदद या सहायता के अनगिनत तरीके हो सकते हैं.

यदि आप वाहन से कही जा रहे हैं और राह में किसी थके राहगीर को अपने साथ बिठा लेते हैं. आपके द्वार पर किसी दूसरे शहर गाँव से कोई अजनबी आया हैं और उसे एक रात गुजारनी हैं आप सहर्ष उसे अपने घर रखने के लिए राजी हो जाते हैं,

यही परोपकार हैं, बेशर्त आप उस मदद को बिना किसी स्वार्थ के कर रहे हैं. यदि आप उससे कुछ भी पाने की उपेक्षा नहीं करते हैं और उनकी मदद करते हैं तो यही परोपकार हैं और धर्म व कर्तव्य की राह पर चलने वाला प्रत्येक मानव इस तरह हजारो अवसरों पर दूसरों की मदद करता रहता हैं.

परोपकार का महत्व Importance of Charity in Hindi

हमारे जीवन निर्माण में परोपकार अर्थात चैरिटी का बड़ा महत्व हैं. इसके दो नजरिये हैं यदि पश्चिम में हम परोपकार के अंग्रेजी शब्द चैरिटी को समझे तो यह सरलता से समझ आ जाता हैं.

संस्थाओं को वित्तीय सहायता देकर अधिकतर लोग परोपकार का काम करते हैं, जैसे कोई NGO अनाथ बच्चों का पालन कर रहा हैं तो लोग उसे डोनेट करते हैं. मगर हमारी सनातन परम्परा में परोपकार को एक जीवनचर्या माना गया हैं.

घरों में जब चूल्हा जलाया जाता हैं तो पहली रोटी गाय व कुत्ते के लिए बनाई जाती हैं. हर तीज त्यौहार पर दान पुण्य की परम्परा यहाँ के जीवन का आधार हैं.

गरीबों को रोटी कपड़े आदि देने, जरूरतमंद की मदद के लिए हमारा समाज सदैव तैयार नजर आता हैं. हमारी और पश्चिम के सामाजिक ढाँचे में मूलभूत अंतर हैं. हम पड़ोसी को परमेश्वर मानते हैं, सुख दुःख में एक दूसरे के साथ खड़े नजर आते हैं.

खुद के लिया जिया तो क्या जिया सच में जीवन के आनन्द की प्राप्ति करनी हैं तो औरों के लिए जीकर देखना चाहिए, सचमच जीवन और उसका नजरिया बदला हुआ मिले.

आपका सम्मान, महानता और ख्याति धन कमाने और अपना घर भरने में नहीं हैं बल्कि जरूरतमंद लोगों के मसीहा बनकर जीने में ही हैं.

परोपकार की शक्ति अतुल्य हैं, एक साधारण सा मानव भी इस राह पर चलकर महानता को प्राप्त कर अपने जीवन को सफल बना सकता हैं. हमारे महापुरुषों का जीवन इसका उदाहरण हैं,

यदि वे अपने लिए ही जीते तो उन्हें आज कोई याद नहीं करता, पेड़, नदी आदि की तरह परोपकार और विनम्रता के भाव यदि हर मानव में हो तो संसार में कोई दुखो से दुखी और भूख से कोई व्याकुल नहीं रहेगा.

यहाँ ध्यान देने योग्य यह हैं कि परोपकार का आशय किसी की सहायता करना भर नहीं हैं, बल्कि उस नियति से मदद की जाए कि बदले में हम उससे कुछ भी अपेक्षा न करें अर्थात निस्वार्थ भाव से जरूरतमंद की मदद करना ही परोपकार हैं, मनुष्य होने के नाते यह हमारा पहला धर्म हैं.

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