राजस्थान की मूर्तिकला- Rajasthan Ki Murtikala In Hindi: लोक कलाओं में शुमार राजस्थान की मूर्तिकला एक हस्त कला हैं, राज्य में जयपुर को इनका मुख्य केंद्र कहा जाता हैं.
इस कला के सिद्धहस्त कलाकार को सिलावट कहते है राजस्थान के अलग अलग स्थानों पर लाल संगमरमर, भूरे, काले, पीले, गुलाबी, सफेद तथा लाल रंग की मूर्तियाँ बनाने के प्रसिद्ध केंद्र हैं.
राजस्थान की मूर्तिकला का इतिहास विभिन्न प्राचीन मूर्तियों के बारे में जानकारी इस आर्टिकल में दी जा रही हैं.
राजस्थान की मूर्तिकला- Rajasthan Ki Murtikala In Hindi
गुप्तकालीन भारतीय मूर्तिकल के आदर्श तत्वों ने कला को नया रूप प्रदान किया. गुप्त युगीन मूर्तिकला परम्परा के परम्परा के प्रभावों से राजस्थान प्रभावित रहा हैं.
इस समय राजस्थान में वैष्णव, शैव, शाक्त आदि धर्मों के प्रचार के साथ साथ जैन धर्म को भी राजकीय संरक्षण प्राप्त था. इसलिए राजस्थान में उपर्युक्त धर्मों के देवी देवताओं के देवालय एवं प्रतिमाओं का पर्याप्त मात्रा में निर्माण किया गया.
‘राजस्थान की मूर्तिकला’ की मूर्तियों से अलंकृत देवालयों का निर्माण गुर्जर, प्रतिहार, परमार, चौहान, गुहिल शासकों के संरक्षण में हुआ हैं. किन्तु प्रतिहारों का योगदान सर्वाधिक रहा हैं.
शैव धर्म की प्राचीन परम्परा में शिव के लिंग विग्रह और मानवीय प्रतिमाएं पर्याप्त मात्रा में निर्मित हुई हैं. इन प्रतिमाओं में महेश मूर्ति, अर्द्धनारीश्वर, उमा महेश्वर, हरिहर व अनुग्रह मूर्तियों को पर्याप्त किया गया हैं. इन सभी प्रतिमाओं का सौन्दर्य अनुपम हैं.
वैष्णव धर्म का प्रसार राजस्थान में ईसा पूर्व प्रथम द्वितीय सदी में नगरी के अभिलेखीय विवरण से मिलता हैं. वैष्णव प्रतिमाओं में दशावतार प्रतिमाएं, लक्ष्मीनारायण, गजलक्ष्मी, गुरुडासीन विष्णु आदि प्रतिमाओं में वैकुण्ठ, अनन्त त्रैलोक्य मोहन इत्यादि पर्याप्त रूप में उत्कीर्ण की गई हैं.
पूर्व मध्यकाल में शाक्त मत का व्यापक प्रचार था. परिणामस्वरूप कई शाक्त देवालयों का निर्माण हुआ. इन देवालयों में महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमाओं की प्रधानता हैं.
सुर्यमत का प्रभाव 8-9 सदी से देखा जा सकता हैं. औसियां, वरमाण सिरोही, झालरापाटन, चित्तोडगढ, उदयपुर में आज भी सूर्य मंदिर स्थित हैं. सिरोही क्षेत्र में बसंतगढ़ और आहाड़ क्षेत्र से प्राप्त धातु की जैन मूर्ति इसके प्राचीनतम उदहारण हैं.
मीरपुर, आबू, देलवाड़ा जैन मंदिर, रणकपुर, चित्तोडगढ, औसियां में जिनालयों के निर्माण की परम्परा इसके सुंदर उदाहरण हैं. इस युग की हिन्दू व जैन प्रतिमाओं के निर्माण में भारतीय मूर्ति विज्ञान के नियमों का पालन किया गया हैं.
प्रतिमाओं में आभूषण, परिधान व केश विन्यास एवं विभिन्न मुद्राओं में उत्कीर्ण प्रतिमाएं इस युग में “राजस्थान की मूर्तिकला” की प्रधान विशेषताएं हैं.
दक्षिणी राजस्थान के झालारापाटन में स्थित सूर्य मंदिर को आकृतियों की एक पंक्ति सुशोभित करती है. इस क्षेत्र के पत्थर तराशने वालों ने देवी , शिव , विष्णु को समर्पित कुछ बेहतरीन मंदिरों का निर्माण किया, और सूर्य देव, मानव और खगोलीय प्राणियों की नाजुक नक्काशीदार आकृतियों से इमारतों को सुशोभित करते हैं.
मूर्तिकला की विभिन्न शैलियाँ
इस तालिका के जरिये हम यह समझने का प्रयास करेगे कि राजस्थान की मूर्तिकला के विभिन्न केंद्र और वहां किन तरह की मूर्तियों का निर्माण किया जाता था.
मूर्तिकला का विशेष केन्द्र | जयपुर |
मूर्तिकला के कारीगर | सिलावट |
लाल संगमरमर की मूर्तियों के लिए | धौलपुर व थानागाजी (अलवर) |
भूरे संगमरमर की मूर्तियों के लिए | जोधपुर |
सफ़ेद संगमरमर की मूर्तियों के लिए | जयपुर |
पीले संगमरमर की मूर्तियों के लिए | जैसलमेर |
काले संगमरमर की मूर्तियों के लिए | भैंसलाना (जयपुर) |
गुलाबी संगमरमर की मूर्तियों के लिए | बाबरमाल (उदयपुर) |