राम चरण की कहानी और इतिहास | Ram Charan History in Hindi रामचरण महाराज रामस्नेही सम्प्रदाय के संस्थापक थे.
आप स्वामी राम चरण जी महाराज के नाम से प्रसिद्ध है. इनका मूल नाम रामकिशन विजयवर्गीय था. इनका जन्म माघ शुक्ल 14, विक्रम संवत् 1776 (24 फरवरी 1720) में टोंक जिले में सोडा गाँव में हुआ था.
निर्वाण वैशाख कृष्णा 5 विक्रम संवत् 1855 (1799) ईसवीं को शाहपुरा भीलवाड़ा में हुआ था. ये रामद्वारा शाहपुरा के संस्थापक आचार्य थे.
स्वामी राम चरण की कहानी और इतिहास | Ram Charan History in Hindi
इनके बचपन का नाम रामकिशन था एवं पिताजी का नाम बख्तराम विजयवर्गीय एवं माता का नाम देवहुति देवी था. इनका विवाह गुलाब कंवर के साथ हुआ. शादी के बाद आमेर के जयसिंह द्वितीय ने जयपुर के मालपुरा के दीवान पद पर नियुक्त किया.
पिताजी की मृत्यु के बाद भौतिकवाद के प्रति राम चरण जी की रूचि कम होने लगी. कुछ समय बाद ही इन्होने संन्यास ग्रहण कर लिया और शाहपुरा के निकट उन्होंने दांतड़ा गाँव में गुरु कृपाराम जी के सम्पर्क में आये और उनके शिष्य बन गये. भीलवाड़ा में मियाचंद जी की पहाड़ी पर उन्होंने तपस्या की.
राम चरण जी ने निर्गुण भक्ति पर जोर दिया लेकिन सगुण का भी इन्होने विरोध नही किया. लोगों को राम राम शब्द बोलने के लिए प्रेरित किया. स्वामी जी ने विशिष्ट अदैवतवाद भक्ति परम्परा का अनुसरण किया. श्रीराम की स्तुति का प्रचार किया. राम की स्तुति के फलस्वरूप इनके द्वारा स्थापित सम्प्रदाय रामस्नेही के रूप में प्रसिद्ध हुआ.
समाज में प्रचलित दिखावे एवं आडम्बरों का राम चरण जी ने विरोध किया. उन्होंने मूर्तिपूजा की अंधभक्ति का समर्थन नही किया. उन्होंने व्यक्ति की समानता का समर्थन किया एवं जातिगत भेद का विरोध किया. रामचरण जी महाराज ने बताया कि व्यक्ति को ईश्वर की खोज में अलग अलग स्थानों पर जाने की बजाय अपने आप को तलाशना चाहिए.
राम चरण जी की रचनाओं का संकलन वाणी जी ने राम में संकलित है. इसका प्रकाशन शाहपुरा भीलवाड़ा से रामचरण जी महाराज की अभिनव वाणी के नाम से प्रकाशित है. विक्रम संवत् 1817 में राम चरण जी के शिष्य रामजान जी ने चरण जी महाराज के सिद्धांतो के प्रसार की दृष्टि से विशेष प्रयास किया.
पूजा स्थलों के रूप में विभिन्न स्थानों पर रामद्वारों का निर्माण किया गया. शाहपुरा के प्रसिद्ध रामद्वारा का निर्माण शाहपुरा के शासक महाराजा अमरसिंह व उनके भाई छतरसिंह के सहयोग से किया गया.
अन्य स्थानों में भीलवाड़ा व सोडा में भी रामद्वारे है. रामद्वारों को रामनिवास धाम या रामनिवास बैकुंठधाम भी कहते है. राजस्थान में शाहपुरा रामस्नेही सम्प्रदाय का प्रमुख केंद्र है. इस सम्प्रदाय का यहाँ पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यालय भी है.
राम चरण जी महाराज ने कहा कि बिना किसी भेदभाव के कोई भी व्यक्ति रामद्वारा आकर ईश्वर की पूजा कर सकता है. रामस्नेही शब्द का तात्पर्य राम से स्नेह करना है.
18 वीं शताब्दी एक प्रकार से राजस्थान के राजनैतिक सामाजिक एवं धार्मिक जीवन के पतन का युग था. ऐसें वातावरण को शुद्ध करने का कार्य रामस्नेही सम्प्रदाय ने किया. इस सम्प्रदाय के संतो ने रामभक्ति की निर्गुण शाखा का व्यापक प्रसार किया.
सभी संतो ने जाति व्यवस्था का खंडन किया. गुरु का होना अनिवार्य बताया, धर्म के बाह्य आडम्बरों का खंडन किया. समाज में प्रचलित सामाजिक बुराइयों का जबरदस्त विरोध किया.
समन्वय की भावना अधिक होने के कारण राजस्थान एवं आसपास के राज्यों में यह सम्प्रदाय काफी लोकप्रिय हुआ.
जन्म व जीवन
मध्यकालीन राजस्थान में जो समाज एवं धर्म सुधार के लिए सम्प्रदाय स्थापित किए गये, उन सम्प्रदायों में रामस्नेही सम्प्रदाय का विशेष महत्व हैं. रामस्नेही सम्प्रदाय की स्थापना रामचरणजी ने की थी.
इस सम्प्रदाय में अनेक केंद्र राजस्थान में स्थापित हुए जैसे शाहपुरा भीलवाड़ा में संत रामचरणजी, रैण नागौर में संत दरियावाजी, सिंह्थल बीकानेर में संत हरिदास जी, खेड़ापा जोधपुर में संत रामदासजी आदि.
रामचरण जी निर्गुण भक्ति में विश्वास करते थे. उन्होंने मोक्ष प्राप्ति के लिए गुरु को अत्यधिक महत्व दिया. उनका विचार था कि गुरु ब्रह्म के समान होता हैं और वही मनुष्य को संसार रूपी भवसागर से पार उतार सकता हैं.
रामस्नेही सम्प्रदाय में राम की उपासना पर बल दिया गया हैं. राम से उनका अर्थ निर्गुण निराकार ब्रह्म से हैं, उन्होंने मूर्ति पूजा और बाह्य आडम्बरों का विरोध किया. इस सम्प्रदाय के प्रार्थना मंदिर ‘रामद्वारा’ कहलाते हैं जहाँ समय समय पर मेले भरते हैं तथा भजन संध्या का आयोजन होता हैं.
विक्रम संवत् 1871 में रामस्नेही सम्प्रदाय की स्थापना रामचरण जी के शिष्य रामजन जी द्वारा की गई थी. श्री राम दयाल जी वर्तमान में राजस्थान में रामस्नेही सम्प्रदाय की मुख्य पीठ शाहपुरा भीलवाड़ा के मठाधीश हैं. धर्म को व्यवसाय के रूप में, तथा बाहरी ढोंग का रूप देकर लोगों को भ्रमित करने वालों से दुखी होकर स्वामी जी ने इस नयें सम्प्रदाय की नीव रखी थी.
इनका जन्म रामकृष्ण विजयवर्गीय माघ शुक्ला 14, 1776 बिक्रम संवत (24 फरवरी, 1720 ईस्वी) सोडा गांव, टोंक में हुआ था. इनके पिता जी का नाम कृपाराम जी था.
उच्च आदर्शों तथा मानवीय मूल्यों को अधिक महत्व देने वाले इस सम्प्रदाय के संतों ने लोकभाषा के जरिये ही आम लोगों तक अपनी बात पहुचाई तथा उन्हें एक सूत्र में बाँधने का प्रयत्न किया.
हिंदू-मुसलमान, जैन- वैष्णव, द्विज- शूद्र, सगुण-निर्गुण, भक्ति व योग के प्रतिरोध को समाप्त कर एक ऐसे धर्म सम्प्रदाय की स्थापना हुई, जों मानवीय मूल्यों एवं आदर्शों में विश्वास रखता हैं. जिसके मध्य में रुढ़िवादी विचार, ढोंग, अंधविश्वास से परे होकर मानव मात्र को रखा गया.
राम चरण जी का आध्यात्मिक जीवन
राम चरण जी के पिताजी की मृत्यु साल 1743 में हो गई थी और अपने पिता की मृत्यु हो जाने के बाद यह कुछ पल के लिए तो एकदम से टूट गए थे परंतु फिर इन्होंने हिम्मत इकट्ठा की और उसके बाद इन्होंने भौतिकवाद में इंटरेस्ट लेना चालू कर दिया.
ऐसे ही उन्हें 1 दिन भृंगी संत की भविष्यवाणी के बारे में जानकारी हासिल हुई और उसी रात को जब यह सो रहे थे तो सपने में उन्हें यह दृश्य दिखा कि वह एक नदी में डूब रहे हैं और उन्हें एक संत ने बचाया।
इसके अगले ही दिन उन्हें अपने परिवार वालों से भी इस बात की परमिशन मिल गई कि वह अब घर छोड़कर जा सकते हैं और इस प्रकार घरवालों की सहमति प्राप्त होने के बाद भगवान को और अधिक नजदीक से जानने के लिए संत राम चरण जी ने एक आध्यात्मिक गुरु को खोजने के लिए साल 1808 में अपना घर छोड़ दिया और निकल पड़े आध्यात्मिक गुरु की खोज करने की यात्रा पर।
गुरु की खोज करते करते 1 दिन संत राम चरण जी राजस्थान राज्य के भीलवाड़ा जिले में स्थित शाहपुरा नाम के गांव में पहुंचे और यहां पर उनकी मुलाकात “संत कृपाराम” से हुई और श्री रामचरण जी ने उन्हें अपना गुरु मान लिया.
उनके शिष्य बन कर यहीं पर रहने लगे और तपस्या करने लगे और इन 9 साल में कई चमत्कार संत रामचरण जी ने किए, जो अभी भी रामसनेही संप्रदाय के लोगों के बीच बहुत ही ज्यादा लोकप्रिय है।
राम स्नेही सम्प्रदाय का गठन
रामसनेही संप्रदाय का गठन साल 1817 में राम चरण महाराज के शिष्य रामजन जी ने किया और उसके बाद से ही लगातार इस के अनुयायियों में बढ़ोतरी होती जा रही हैं।
वर्तमान के समय में भी जहां पर संत राम चरण जी को संत कृपाराम जी मिले थे वही जगह रामसनेही संप्रदाय का मुख्यालय है। रामसनेही संप्रदाय का मुख्यालय राजस्थान राज्य के भीलवाड़ा शहर के शाहपुरा में स्थित है और वर्तमान में इस संप्रदाय का नेतृत्व स्वामी श्री रामदयाल जी कर रहे हैं।
संत राम चरण की मौत
पाखंडवाद का विरोध करने वाले और लोगों में आध्यात्मिक भावना की अलख जलाने वाले तथा रामसनेही संप्रदाय के प्रख्यात संत श्री राम चरण जी की मृत्यु साल 1799 में हो गई थी। हालांकि जो कारवां इन्होंने चालू किया था वह आज भी निरंतर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता जा रहा है।