अल्लामा इकबाल की शायरी 2024 | Allama Iqbal Shayari In Hindi 9 नवम्बर 1877 को जन्में मुहम्मद इकबाल ब्रितानी भारत के महान कवि, राजनेता एवं उर्दू व फारसी शायरियों के आधुनिक शायर थे.
इन्ही ने सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ता हमारा गीत लिखा था. माना जाता है, इसके दादा कश्मीरी पंडित थे, जो वर्तमान पाकिस्तान (सियालकोट) में बस गये थे.
इकबाल को पाकिस्तान राष्ट्रकवि भी कहा जाता है. यहाँ प्रस्तुत है कुछ allama iqbal 2 line shayari, प्लीज अच्छा लगे तो सर मुहम्मद इक़बाल की शायरी को अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करे.
अल्लामा इकबाल की शायरी 2024 | Allama Iqbal Shayari In Hindi
अगर हगामा-हा-ए-शोक से है ला-मका ख़ाली खता किस की है या रब ला-मका तेंरा है या मेंरा !!
ढूढता रहता हूं ऐ ‘इक-बाल’ अपनें आप कों, आप ही खोया मुसाफिर, आप ही मजिल हू मै।
अल्लामा इक़बाल रह० ने फरमाया था:-
की मोहम्मद से वफ़ा तू ने तो हम तेरे हैं
ये जहाँ चीज़ है क्या लौह-ओ-क़लम तेरे हैं
वक़्त-ए-फ़ुर्सत है कहाँ काम अभी बाक़ी है
नूर-ए-तौहीद का इत्माम अभी बाक़ी है
शक्ती भी शान्ती भी भक्तों के गीत में है
धरती के वासियों की मुक्ती पिरीत में है
हर सुबह मिल के गायें मन्तर वो मीठे- मीठे
सारे पुजारियों को मय प्रीत की पिला दें
दुनिया के तीरथों से ऊँचा हो अपना तीरथ
दामान-ए-आस्माँ से इस का कलस मिला दें
हम से पहले था अजब तेरे जहाँ का मंज़र
कहीं मसजूद थे पत्थर कहीं माबूद शजर
खूगर ए पैकर ए महसूस थी इंसां की नज़र
मानता फिर कोई अनदेखे ख़ुदा को क्योंकर
तुझ को मालूम है लेता था कोई नाम तेरा
कुव्वत ए बाज़ू ए मुस्लिम ने किया काम तेरा
अक़वाम में मखलूक-ए-खुदा बटती है इस से
क़ौमिय्यत-ए-इस्लाम की जड़ कटती है इस से
अफराद के हाथों मे है अक्वाम की तकदीर
हर फर्द है मिल्लत के मुकद्दर का सितारा
अल्लामा इक़बाल ने ज़र्ब-ए-कलीम में तौहीद का एक मिस्रा यह है:-
कौम क्या चीज है क़ौमों की इमामत क्या है
इसको क्या समझें ये बेचारे दो रकअत के इमाम
खुद को कर बूलंद इतना की हर तकदीर सें पहलें
अल्लाह बदे से खुद पूछें बता तेंरी रजा* क्या हे
Shams bhi hai,
qamar bhi hai,
rahamat ye rahmaan ki hai ,
islam bhi hai momin bhi hai,
kami bas emaan ki hai…
अल्लामा इकबाल देश भक्ति शायरी
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा !!
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा !!
~Allama Iqbal
वतन की फ़िक्र कर नादाँ मुसीबत आने वाली है
तिरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में
~Iqbal
फ़िदा-ए-मुल्क होना हासिल-ए-क़िस्मत समझते हैं
वतन पर जान देने ही को हम जन्नत समझते हैं
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा
~Allama Iqbal
वतन की फ़िक्र कर नादाँ मुसीबत आने वाली है
तेरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में ~allama iqbal
ग़ुर्बत में हों अगर हम रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा
~iqbal
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसिताँ हमारा
अल्लामा इक़बाल
अल्लामा इकबाल इस्लामिक शायरी
जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी
उस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम को जला दो
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ
कि दरवेशी भी अय्यारी है सुल्तानी भी अय्यारी
अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
Allama iqbal shayari on karbala
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख
न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की
नशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं
उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं
कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए
यक़ीं मोहकम अमल पैहम मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम
जिहाद-ए-ज़िंदगानी में हैं ये मर्दों की शमशीरें
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
तू ने ये क्या ग़ज़ब किया मुझ को भी फ़ाश कर दिया
मैं ही तो एक राज़ था सीना-ए-काएनात में
अविभाजित भारत का अल्लामा मोहम्मद इकबाल और 40 के दशक के इस्लाम में दो जन्मों का अंतर देखा जा सकता हैं. अपने शेरो शायरी के कारण भारत में अच्छी खासी लोकप्रियता थी. लोग उन्हें सुनना पसंद करते थे.
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा “तराना ए हिन्द” उसी इकबाल ने लिखा था जिन्होंने भारत के विभाजन में बड़ी भूमिका निभाई और मुस्लिमों में कट्टरता फैलाने के लिए “चीन-ओ-अरब हमारा, हिन्दोस्तां हमारा ; मुस्लिम है वतन है, सारा जहाँ हमारा…”तराना ए मिली” लिखा.
“हिंदी है हम वतन है” “मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना” उनकी ये मशहूर पंक्तियाँ आज भी हर मंच से पढ़ी जाती हैं,
मगर इन पंक्तियों को कहने वाला अल्लामा इकबाल स्वयं दोगला इंसान था. आपको जानकर हैरत होगी, इकबाल के दादा का नाम सहज सप्रू था जो एक कश्मीरी पंडित थे.
Allama Iqbal Shayari On Love In Hindi
इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में,
या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर।
इश्क़ तेरी इन्तेहाँ इश्क़ मेरी इन्तेहाँ,
तू भी अभी ना-तमाम मैं भी अभी ना-तमाम
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का,
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है।
अनोखी वजाअ है सारे ज़माने से निराले हैं,
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या रब रहने वाले हैं।
अक्ल अय्यार है सौ भेष बना लेती है,
इश्क बेचारा न मुल्ला है न जाहिद न हकीम।
दिल की बस्ती अजीब बस्ती है,
लूटने वाले को तरसती है।
इश्क़ क़ातिल से भी मक़तूल से हमदर्दी भी
यह बता किस से मुहब्बत की जज़ा मांगेगा
सजदा ख़ालिक़ को भी इबलीस से याराना भी
हसर में किस से अक़ीदत का सिला मांगेगा।
साकी की मुहब्बत में दिल साफ हुआ इतना
जब सर को झुकाता हूं शीशा नजर आता है
आईन-ए-जवाँ-मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकी
अल्लाह के शेरों को आती नहीं रूबाही