Batuk Bhairav Jayanti 2024 Katha Puja Vidhi Story Mantra In Hindi कालाष्टमी भैरव जयंती क्या है पूजा विधि कथा : रूद्रमायल तंत्र में जिन ६४ भैरवों का उल्लेख मिलता है उन्हें भगवान् शिव का रूप माना जाता है.
इनके लिए रविवार तथा मंगलवार को व्रत रखा जाता है. बटुक भैरव इन्ही भैरव का रूप है जिन्हें वेदों में रूद्र कहा गया है.
इस साल 2024 में 22 नवम्बर 2024 को batuk bhairav jayanti है जिन्हें हम कालाष्टमी भैरव जयंती भी कहते है. कलियुग में बहुत से भक्त अपने जीवन की आपदाओं कष्ट पीडाओं के समाधान के लिए शिवजी के रूप भैरव की पूजा अर्चना भी करते है.
कालाष्टमी भैरव जयंती 2024 क्या है पूजा विधि कथा
मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी को भैरव जयंती मनाई जाती है. इसे कालाष्टमी भी कहते है. इसी तिथि को भैरव का जन्म हुआ था. इस दिन व्रत रखकर जल अर्ध्य देकर भैरव पूजन करना चाहिए.
इनकी सवारी तथा कुत्ते के पूजन का भी विधान है. रात्रि जागरण करके शिव पार्वती की कथा सुनना चाहिए. भैरव का मुख्य हथियार दंड है, जिसके कारण दंडपति कहलाते है.
भगवान् शिव के दो रूप है भैरव और विश्वनाथ. भैरव जी का दिन रविवार तथा मंगलवार है क्योंकि इस दिन इनकी पूजा करने से भूत प्रेत बाधाएं समाप्त हो जाती है. बारह महीनों के कृष्ण पक्ष की अष्टमी भैरव को समर्पित दिन है इन्हें कालाष्टमी माना गया हैं.
कार्तिक कृष्ण अष्टमी को भैरव जयंती के रूप में मनाया जाता हैं. स्वस्वा यानि कुत्ता भैरव की सवारी होती है अतः इस दिन उनकी पूजा की जाती हैं. मान्यता है कि ये देवताओं तथा इंसानों के लिए न्यायिक का काम करते है जो भी गलत कार्य करता है उन्हें दण्डित करते है.
Kaal Bhairava Jayanti 2024 काल भैरव जयंती 2024 भैरव अष्टमी
इस तिथि को बहुत से नामों से जाना जाता हैं जैसे भैरव जयंती, भैरव अष्टमी या कालाष्टमी यह हिन्दू कलैंडर के अनुसार मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मनाई जाती हैं.
अगर बात करें साल 2024 में कालाष्टमी कब हैं तो बता दे यह 22 नवम्बर 2024 को बुधवार के दिन मनाई जानी हैं. अष्टमी तिथि कब शुरू और कब खत्म होती हैं यह सब भी जान लेते हैं.
Kaal Bhairav Jayanti 2024 Date | 22-11-2024 |
काल भैरव जयंती 2024 | 22 नवम्बर 2024 |
चलिए अब हम अष्टमी तिथि के शुरुआत और खत्म होने के बारे में जान लेते हैं.
भैरव जयंती पूजा विधि (bhairav puja vidhi in hindi)
रविवार अथवा मंगलवार को बटुक भैरव का दिन माना जाता हैं. इस दिन का व्रत रखने वाले भक्त संकल्प लेकर अपने नित्यादी कर्मों से निवृत होने के पश्चात विधि विधान के अनुसार भैरव की पूजा की जानी चाहिए.
इस पूजा की सामग्री में लाल कनेर एवं गुलहड़ की माला तथा पकवानों में खीर, आटे या मावे के लड्डू, बेसन के लड्डू एवं तले हुये पकवान इत्यादि का भोग लगाया जाना चाहिए.
बटुक भैरव की लाल ध्वजा होती है जिस पर कुत्ते का चित्र बना होता है. इस दिन विशेष रूप से कुत्ते को भोजन कराना चाहिए, इस दिन खासतौर पर कुत्तों के साथ छेड़खानी करने उन्हें मारने पीटने से भैरव अप्रसन्न हो सकते हैं.
भैरव जयंती या कालाष्टमी के दिन उनकी पूजा करना अति आवश्यक है यह उनका जन्म दिन है इस अवसर पर पूजन करने से वे प्रसन्न हो जाते हैं.
एक चौकी पर लाल रेशमी वस्त्र बिछा कर रोली से रंगे हुये लाल अक्षतों से अष्ट दल पुष्प बनाकर उस पर भैरव जी की प्रतिमा या फोटो को स्थापित करे उसके बाद गणेश, अम्बिका, कलश, नवग्रह, षोडष की पूजा के बाद बटुक भैरव की पूजा की जानी चाहिए.
भैरव जयंती कथा हिंदी में (batuk bhairav story in hindi)
भैरव को भैरू महाराज, भैरू बाबा, मामा भैरव, नाना भैरव ये कुछ कुल देवताओं के रूप है जो असल में भैरव ही है इन्हें देश के कई हिस्सों में लोक देवता के रूप में पूजा जाता है भैरव शब्द का अर्थ होता है भय को मिटाने वाला.
इन्हें त्रिदेव की शक्तियों से युक्त माना जाता है. ये काशी के कोतवाल के नाम से भी जाने जाते है. शिव तथा पार्वती के साथ इन्हें कई स्थानों पर पूजा जाता हैं.
नाथ सम्प्रदाय में भैरव पूजा का विशेष महत्व है जो शिवजी के अवतार भैरवनाथ को अपना आदि पुरूष मानते हैं. हिन्दू पुरानों में भैरव के लिए असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार आदि नामों का उल्लेख मिलता है.
मान्यता है कि शिवजी के रक्त से दो भैरव की उत्पति हुई बटुक भैरव एवं काल भैरव. कई स्थानों पर सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले लोगों की समाधि को भैरू जी के ठान के रूप में माना जाता हैं.
काशी में उज्जैन में भैरूजी के बड़े मन्दिर है. भैरव के जन्म के सम्बन्ध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार कहा जाता है तीनों बड़े देवों में एक बार इस विषय पर बहस हो गई कि सबसे बड़े देव कौन है?
देवगणों की सभा ने अपने अपने अनुसार व्यक्तव्य रखा. विष्णु जी तथा शिवजी देवसभा के सुझावों उनकी बातों से संतुष्ट हुए, मगर ब्रह्माजी को शिवजी पर गुस्सा आया और उन्होंने उसे अपशब्द भी कहे, इस पर शिवजी को अपना अपमान लगा तथा आग बबूला हो गये.
इसी क्रोध ज्वाला से भैरव का जन्म हुआ जिसका वाहन कुत्ता हाथ में छड़ी लिए शिवजी का यह रूप कलयुग में महाकालेश्वर या भैरव के रूप में जाना गया.
महाकाल के गुस्से के स्वरूप को धारण किये भैरव ने गुस्से से ब्रह्माजी का एक सिर काट डाला, इस वजह से आज भी ब्रह्माजी के पांच मुख ना होकर चार ही हैं.
उन्हें ब्रह्म हत्या का यह पाप लग गया, जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें कई वर्षों तक काशी के घाट पर भिखारी बनकर रहना पड़ा. भैरव जयंती के दिन उनका यह दंड समाप्त होता है तब से इन्हें दंडपानी भी कहा जाने लगा.
कालाष्टमी के उपाय
भगवान भोले के रूद्र रूप के अवतार कहे जाने वाले भैरव बाबा को काशी का कोतवाल कहा जाता हैं. वर्ष भर में एक दिन कालाष्टमी या भैरव जयंती होता है.
जिस दिन यदि भगवान भैरव की पूजा अर्चना की जाए तो वे जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं, यहाँ हम कुछ सरल उपायों के बारे में बता रहे है जिनके जरिये आप बाबा को प्रसन्न कर सकते हैं.
- भैरव जयंती के दिन भगवान भैरव के नाम का दीपक सरसों के तेल से जलाए और उनकी प्रतिमा के समक्ष रखकर श्रीकाल भैरवाष्टकम् मंत्र का वाचन करें यह मंत्र आपको मनोकामनाएं पूर्ण करेगा.
- भैरव अष्टमी के दिन 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ‘ॐ नम: शिवाय’ लिखकर शिवलिंग पर अर्पित करें जिससे भगवान भैरव खुश हो जायेगे.
- इस दिन काले कुत्ते को मीठी रोटी खिलाएं, रोटी के साथ गुड़ दे सकते हैं अगर काला कुत्ता न मिले तो अन्य कुत्ते को भी दे सकते हैं, यह उपाय करने से भगवान शनिदेव भी प्रसन्न हो जायेगे.
- भैरव अष्टमी पर किसी भिखारी, रोगी या भूखे को भोजन, वस्त्र आदि दान करें इससे आपको खुशहाली मिलेगी.
- कालाष्टमी की तिथि से लेकर आगामी चालीस दिनों तक बाबा भैरव की प्रतिमा का दर्शन करें तथा उनके चालीसा का पाठ करें.
- कालाष्टमी के दिन बाबा भैरव जी की प्रतिमा पर गुलाब, चंदन, और 33 अगरबत्ती जलाएं. यह उपाय आपके सारे दुःख दर्द से छुटकारा दिलाएगा.