भील जनजाति के बारे में जानकारी | Details of of Bhil Tribe Food, Language, Costume, Dance, Festivals In Hindi दक्षिण राजस्थान के बहुत इलाके में पाई जाने वाली भील जनजाति (Bhil Tribe) शब्द की उत्पत्ति वील यानि कमान से मानी गई हैं,
अंग्रेजी इतिहासकार जेम्स टॉड ने इन्हें वनों में रहने के कारण ही वनपुत्र की संज्ञा दी हैं. सबसे प्राचीन एवं राजस्थान की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति भील जाति में कई तरह की परम्पराएँ एवं रिवाज प्रचलित हैं,
जिनकें बारे में आम लोगों को अधिक जानकारी नही होती हैं. चलिए आज आपकों राजस्थान की भील जनजाति से जुड़ी खास बाते यहाँ बताने जा रहे हैं.
भील जनजाति के बारे में जानकारी | Details of Bhil Tribe in Hindi
पहचान | मूल जनजाति |
जनसंख्या | 2 करोड़ |
राज्य | राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, त्रिपुरा |
भाषा | भीली |
धर्म | हिन्दू |
ऐतिहासिक चरित्र | नानक भील, पूंजा भील, एकलव्य,घटोत्कच, शबरी |
उपमा | भारत का बहादुर धनुष पुरुष |
भील जनजाति के छोटे गाँव अथवा आबादी क्षेत्र को फला तथा बड़े गाँव को पाल कहा जाता हैं, जिसका प्रभावशाली व्यक्ति नेता अथवा ग्रामपति के रूप में जाना जाता हैं.
राजस्थान में 12 प्रकार की जनजातियाँ पाई जाती हैं, इनमें मीणा, भील, गरासिया, सहरिया, कथौडी, डामोर आदि मुख्य हैं.
राज्य की अन्य जनजातियों में धानका, कोकना-कोकनी, किली ढोर, नायकड़ा-नायका, पटेलिया, भील, मीणा आदि हैं.
मेवाड़ राज्य के राज्यचिह्न में चित्तोड़ के किले की एक ओर राजपूत राजा और दूसरी और भीलू राजा का चित्र अंकित हैं, जिससे मेवाड़ के समर्द्ध इतिहास में भीलों के योगदान को समझा जा सकता हैं.
भील जनजाति (Bhil Tribe Of Rajasthan In Hindi)
भील राजस्थान की सबसे प्राचीन जनजाति हैं. शिकार, वनोंपज का विक्रय तथा कृषि इनकी आजीविका के मुख्य साधन हैं. दक्षिणी राजस्थान के बाँसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर एवं चित्तोडगढ जिले की प्रतापगढ़ तहसील में Bhil Tribe बहुतायत रहती हैं.
भीलों के घर (Bhil Tribe’s House) को टापरा या कू कहा जाता हैं, उनकी प्रथाओं में बाल विवाह जैसी कुप्रथा को कोई स्थान नही हैं. इस जनजाति में विधवा विवाह प्रचलित हैं, लेकिन छोटे भाई की विधवा को बड़ा भाई अपनी स्त्री नही बना सकता हैं.
भील शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा के वील से मानी जाती है जिसका अर्थ होता है कमान अर्थात तीर कमान धारण करने वाले आदिवासी समुदाय भील हैं. धनुर्विद्या में इनका कोई सानी नहीं हैं. पुरुषों के साथ साथ महिलाएं भी इस विद्या में पूर्ण पारंगत होती हैं.
मेवाड़ रियासत के साथ भीलों का ऐतिहासिक और घनिष्ठ स्वामिभक्त सम्बंध रहा हैं. मेवाड़ राजाओं के राजतिलक का अधिकार भीलों को ही था. आक्रमणकारियों के अत्याचारों से तंग होकर इन्होने जंगलों और पहाड़ों को अपनी शरण स्थली बनाया.
भीलों का रंग सांवला, कद छोटा, चेहरा चौड़ा, नथुने बड़े, नाक चपटी और बड़ी, शरीर गठा हुआ, बाल लम्बे आर धुंघराले होते हैं. इनके गोत्र के बारे में कहा जाता है कि ये आर्य और द्रविड़ जातियों के पूर्व से भारत में रहने वाली मूल जनजाति हैं.
भील समुदाय कई उपजातियों में विभाजित है जैसे नहाल, पॉगी, मोची, मटवारी, खोतील, कोतवाल, दांगची, नौरा, करीट, बरिया, पर्वी, पोवेरा, उल्वी उसांव, बुर्दा आदि.
अगर इनके गोत्र की बात करें तो मुख्य रूप से भीलों के गोत्र रोहनिया, सोनगर, ऑवलिया, मरवाल, मोरी, पंवार, मेरा, मासरया, मेंहदा, सिसोदिया, राठौर, परमार, सोलंकी, अवाशा, जवास, भूमिया, कचेरा, जावरा और चौमड हैं.
स्वभाव से भील वीर, साहसी एवं स्वामिभक्त होते है अपने वचन के अडिंग और मनमौजी स्वभाव के होते हैं. ये स्वभाव के बेहद सरल और भोले होते है साथ ही किसी के प्रति अन्याय न करते है न उन्हें बर्दाश्त करते हैं.
भील जनजाति की वेशभूषा (Bhil Tribe Costume)
भील पुरुष सिर पर लाल, पीला अथवा केसरिया फेटा (साफा), बदन पर अंगरखी, कमीज या कुर्ता तथा घुटनों तक ढ़ेपाड़ा (धोती) बांधते हैं. भील महिला लुगड़ा, कांचली, कब्जा, घाघरा अथवा पेटीकोट पहनती हैं.
- अटक –Bhil Tribe के एक ही पूर्वज के गोत्र को अटक कहा जाता हैं.
- झूमटी (दाजिया)- मैदानी भूमिका को जलाकर कृषि योग्य बनाने को झूमटी या झूम कृषि कहा जाता हैं.
- चिमाता- पहाड़ की ढ़लान में की जाने वाली खेती
- गमेती- Bhil Tribe के सबसे बड़े नेता को गमेती नाम से जाना जाता हैं.
- केसरियाजी या कालिया बाबा इनके सबसे बड़े देवता हैं, इन पर चढ़ी केसर खाने के बाद भील लोग कभी झूठ नही बोलते हैं.
- पिरिया- Bhil Tribe के विवाह में विवाहित स्त्री द्वारा पहने जाने वाले लहंगे को पीरिया तथा ओढ़नी को सिंदूरी’ कहा जाता है.
- भराड़ी – शुभ अवसर पर अपने लोक देवता का चित्र बनाने की परम्परा
- फाइरो -ढोल के जरिये किया जाने वाला रणघोष
- Bhil Tribe टोटम जी को अपना कुलदेवता मानते हैं.
भील जनजाति का नृत्य
भील जनजाति के प्रमुख लोकनृत्य निम्नलिखित हैं :-
हाथी मना :- शादी के प्रसंग पर भील युवकों द्वारा घुटने पर बैठकर तलवार बाजी का जो नृत्य किया जाता हैं उसे हाथी मना कहा जाता हैं.
गैर नृत्य :-यह भीलों के साथ ही कई अन्य जातियों का प्रसिद्ध लोक नृत्य हैं खासकर होली के दिनों में भील पुरुषों द्वारा किया जाता हैं. गोल घेरे में फागुन के गीत गाते हुए नृत्य किया जाता हैं.
युद्ध नृत्य :-यह जनजाति युद्ध में परम्परागत रूप से सक्षम रही हैं उनके इस लोक नृत्य में भी तीर कमान भाले बरछी और तलवार के साथ नृत्य किया जाता हैं.
द्विचकी नृत्य :- भील पुरुष एवं महिलाएं गोल दो घेरे बनाकर यह नृत्य करते हैं बाहर वाले घेरे में पुरुष बाए से दाए की ओर तथा महिलाएं अंदर के घेरे में दाए से बाए की ओर नृत्य करती हुई चलती हैं.
घूमरा :-राजस्थान की भील जाति के लोगों द्वारा अर्ध घेरे में ढोल और थाली के वादन के साथ घूम घूमकर यह नृत्य किया जाता हैं, इसमें स्त्री पुरुषों के दो दल बना लिए जाते हैं एक दल द्वारा पूर्व गायन तथा दूसरे दल द्वारा इसकी पुनरावृत्ति की जाती हैं.
गवरी या राई नृत्य :-रक्षा बंधन के अगले दिन से अगले चालीस दिनों तक चलने वाला यह राजस्थान का सबसे प्राचीन नृत्य माना जाता हैं, इस नृत्य के मूल में भगवान शिव और भस्मासुर का प्रसंग जुड़ा हुआ हैं.
भील जनजाति के लोकवाद्य
भील समुदाय के अपने निर्मित कुछ वाद्य यंत्र भी हैं जिनका उपयोग विभिन्न अवसरों पर किया जाता हैं. प्रमुख वाद्य यंत्रों में रबाज, जो एक कामायचा की भांति अंगुली के नाखूनों से बजाय जाता हैं, पाबूजी की पड़ / फड़ के वाचन के समय इसे बजाया जाता हैं.
ठुकाको भी एक वाद्य यंत्र है जिसे खासकर दिवाली पर बजाय जाता है तथा इसे बजाने के लिए घुटनों के बीच रखकर दबाना पड़ता हैं.
डैरू एक आम की लकड़ी का बना वाद्य यंत्र है जो कांसी की थाली के साथ बजाते हैं. नड भी एक वाद्य यंत्र हैं जो माता या भैरव की पूजा के समय बजाय जाता हैं.
भील राज्य की मांग
राजस्थान, गुजरात,मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र में भीलों की अधिकतर आबादी बसती हैं, पिछले कुछ समय से इस जनजाति के लोगों ने भील प्रदेश की मांग की है साथ ही सेना में भील रेजिमेंट की बात भी पिछले वर्षों में की जाने लगी हैं.
ट्राइबल बेल्ट से उठी नये राज्य की मांग में आदिवासी समुदाय का उनके संसाधनों पर पहला अधिकार होने की सर्वोपरि मांग उठाई जा रही हैं.
दक्षिणी राजस्थान के जिले डूंगरपुर, बांसवाडा, प्रतापगढ़, मध्य प्रदेश के रतलाम झाबुआ,अलिराजपुर, धार, पेटलावाद तथा गुजरात व महाराष्ट्र पंचमहल गोधरा, दाहोद, डांग, नाशिक, धुले को मिलाकर नये राज्य की मांग की गई हैं.
आदिवासी अधिकारों और उन्हें हितो की रक्षा के लिए राजस्थान और गुजरात से भारतीय ट्राइबल पार्टी नामक राजनैतिक दल का गठन भी किया गया, वर्तमान में राजस्थान और गुजरात की विधानसभा में इनके दो दो सदस्य हैं.
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