भीष्म पंचक क्या है कब है 2024 व्रत कथा महत्व गीत | Bhishma Panchak Vrat In Hindi: भीष्म पंचक व्रत कार्तिक शुक्ल एकादशी से प्रारम्भ होकर पूर्णिमा को समाप्त होता हैं. इसे पन्चभीका भी कहते हैं.
कार्तिक स्नान करने वाली स्त्री पुरूष पांच दिन निराहार निर्जला व्रत करते हैं. अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष के लिए भीष्म पंचक व्रत किया किया जाता हैं. इसकें दौरान महिलाओं द्वारा यह गीत गाया जाता हैं.
भीष्म पंचक व्रत कथा महत्व गीत 2024
यह व्रत गंगापुत्र भीष्म पितामह को समर्पित हैं. महाभारत के इस महान यौद्धा ने आजीवन विवाह न करके ब्रह्मचर्य का पालन किया था. पितृ भक्ति के चलते इन्हें इच्छा मृत्यु का वर प्राप्त था.
महाभारत युद्ध में इन्होने कौरवों की सेना का नेतृत्व किया था. दस दिनों तक कौरवों के सेनापति रहने के बाद आखिर अर्जुन ने बाण शय्या पर लेटा दिया था, भीष्म ने गंगा के किनारे इच्छा मृत्यु प्राप्त की थी.
ऐसा कहा जाता हैं कि देवुत्थान एकादशी से पूर्णिमा तक पांच दिनों तक भीष्म ने युधिष्ठर के कहने पर राजधर्म, वर्णधर्म, मोक्षधर्म पर उपदेश दिए थे. उन्ही की याद में प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने भीष्म पंचक व्रत को स्थापित किया था.
मान्यता है कि कार्तिक स्नान करने वाली स्त्रियाँ या बिना आहार के रहकर इस व्रत को पूरे विधि विधान से सम्पन्न करते है तो वे जीवन पर्यन्त लौकिक सुखों की प्राप्ति के बाद मोक्ष पाते है तथा धन धान्य और सन्तान सुख की प्राप्ति होती हैं.
भीष्म पंचक व्रत 2024 पूजा की तिथि, समय
12 नवम्बर, 2024 से इस वर्ष भीष्म पंचक व्रत आरम्भ हो रहे हैं. हिन्दू पंचाग के अनुसार यह व्रत कार्तिक माह की शुक्ल एकादशी के दिन शुरू होता हैं. महाभारत के यौद्धा भीष्म के नाम पर इस व्रत का नाम रखा गया हैं.
इस व्रत को एकादशी से लेकर अगले पांच दिनों पूर्णिमा तक किया जाता हैं. व्रत रखने वाले भक्त पांच दिनों के दौरान सिर्फ दूध और जल ही पीते हैं.
भीष्म पंचक व्रत गीत भजन आरती (Bhishma Panchaka Vrata Geet )
कौन जाति पनिहारिन रे नेक ठाढ़ी रहियों,
का तेरी नाऊ कौन की बेटी रामा
कौन के घर ब्याही रे नेक ठाडी रहियो
मथुरा जी से चली रे गुजरिया रामा
धारी इडुरी सिर गगरी रे नेक ठाडी रहियो ||
भीष्म पंचक व्रत का महत्व (Importance of Bhishma Panchak fast)
यह भीष्म पंचक व्रत पांच दिनों तक किया जाता हैं. पांच दिनों तक अनवरत उपवास किया जाता हैं. हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता हैं कि जब भीष्म पितामह शर शय्या पर थे.
उस समय के पांच दिनों की अवधि में इन्होंने कौरवों और पांडवों को राज धर्म, वर्ण-धर्म, मोक्ष धर्म आदि का ज्ञान बताया था. यही वजह है कि ये पांच दिन इस महापुरुष को समर्पित भीष्म पंचक (भीष्म के पांच दिन) के रूप में जाना जाता हैं.
भीष्म पंचक व्रत कथा (Bhishma Panchaka Vrat Katha In Hindi)
ऐसा कहा जाता है कि जब महाभारत के युद्ध में जब कौरवों की पराजय हुई तब विजय सारथि भगवान् कृष्ण के साथ पांडव भीष्म पितामह के साथ थे, उन्होंने अपने पूर्वज से आग्रह किया कि वे उन्हें राजनीती व धर्म की शिक्षा देवे.
ब्रह्मलोक जाने की प्रतीक्षा में लेटे भीष्म ने कृष्ण जी के आग्रह पर पांडवों को राज धर्म, वर्ण धर्म एवं मोक्ष धर्म दिया. यह व्याख्यान कार्तिक एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा को पांच दिनों तक चलता रहा,
तब तक इन्होने पांडवों को पूरा ज्ञान प्रदान कर दिया. इस कारण धर्म के इतिहास में ये यादगार पांच दिन के रूप में अंकित हो गये.
कथा-२
इस सम्बन्ध में एक और कथा का विवरण मिलता हैं. जिसके अनुसार एक समय किसी नगर में एक सेठ रहा करता था. उसके एक विवाहित पुत्र था जिसकी पत्नी बेहद संस्कारित थी.
वह कार्तिक महीने में नहा धोकर पाठ पूजा करने का कर्म हर साल किया करती थी. उसी नगर में एक राजा का लड़का भी नित्य गंगा स्नान करने आया करता था. वह अपने दंभ के कारण किसी को स्नान करने की आज्ञा अपने स्नान करने के बाद ही देता था.
जब कार्तिक माह के पांच दिन बचे थे तो उस समय एक दिन वह सेठ की बहु वधु स्नान करने निकलती है लेकिन उस दिन वह अपना हार वही नदी के किनारे भूल आती हैं.
राजा का वह पुत्र उस हार को देखकर उस लड़की से विवाह कर लेने की ठान लेता हैं. राजा का बेटा उस लड़की के स्नान करने आने का समय पता करने के लिए एक तोता वहां रख देता हैं. वह बेटी भगवान् से अपने पतिव्रता धर्म की पालन की गुहार लगाती हैं.
इस तरह पांच दिन बीत जाने के बाद वह कन्या उस तोते से कहती हैं. भाई मैं अपना पांच दिन का स्नान कर चुकी हैं. अपने स्वामी से कहना मेरा हार लौटा दे. राजा के बेटे को जब उसके पतिव्रता धर्म की शक्ति का पता चला उसी समय उसके पूरे शरीर पर कोढ़ हो गई.
जब वह इस कष्ट से छुटकारा पाने का ब्राह्मणों से उपाय पूछता है तो ब्राह्मण बताते है कि वह उस कन्या को अपनी बहिन बनाए, ऐसा करने से वह अपने कष्ट से छुटकारा पा सकता हैं.
राजा के कहने पर वह कन्या उस राजकुमार को अपना भाई बनाना स्वीकार कर लेती हैं इससे उसके समस्त कष्ट समाप्त हो जाते हैं.