आचार्य तुलसी की जीवनी | Biography of Acharya Tulsi In Hindi: अणुव्रत आंदोलन के सूत्रधार आचार्य तुलसी का जन्म 20 अक्टूबर 1914 को नागौर जिले के लाडनू कस्बें में हुआ था.
ग्यारह वर्ष की आयु में ही उन्होंने आचार्य कालुग्नि से दीक्षा ग्रहण की. अल्प समय में ही उन्होंने जैन आगम, न्याय, दर्शन आदि अनेक विषयों तथा संस्कृत, प्राकृत, हिंदी आदि भाषाओं में विशेश्यज्ञता प्राप्त कर ली.
आचार्य तुलसी की जीवनी | Biography of Acharya Tulsi In Hindi
पूरा नाम | आचार्य तुलसी |
जन्म | 1914, वि॰सं॰ 1971, कार्तिक शुक्ल द्वितीया |
स्थान | लाडनूं, राजस्थान |
माता-पिता | झूमरलाल और वंदना |
सर्जक | आचार्य कालूगणी |
प्रतिपादक | अणुव्रत आंदोलन |
संस्था | जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय |
निर्वाण | 23 जून 1997, गंगाशहर |
किताबों की संख्या | 100+ |
बाईस वर्ष की आयु में वे तेरापंथ के नवें आचार्य बन गये. आचार्य तुलसी के नैतिक एवं चारित्रिक विकास को महत्वपूर्ण मानते थे. नैतिकता के उत्थान के लिए उन्होंने 1949 ई में अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात किया और अणुव्रत आंदोलन से जनमानस को जोड़ने हेतु एक लाख किलोमीटर की पदयात्राएं की.
आचार्य तुलसी ने यह संदेश दिया इंसान पहले इंसान, फिर हिन्दू या मुसलमान. अणुव्रत की गूंज देश ही नहीं दुनियां में भी हुई. लंदन की टाइम पत्रिका ने भी अणुव्रत आंदोलन की सराहना की.
अणुव्रत के नैतिकतामूलक कार्यक्रम को राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरु, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, आचार्य विनोबा भावे आदि का समर्थन मिला.
आचार्य तुलसी ने नया मोड़ कार्यक्रम चलाकर दहेज, मृत्यु भोज, बाल विवाह, वृद्ध विवाह, पर्दा, अशिक्षा आदि सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध जागृति पैदा की.
आचार्य तुलसी ने सर्वधर्म सद्भावना और राष्ट्रीय उन्नयन के लिए भी कार्य किया. 1993 ई में राष्ट्रीय एकता के प्रयासों के लिए उन्हें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार से नवाजा गया. 1995 ई में महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन उदयपुर द्वारा उन्हें हाकिम खां सूरी सम्मान दिया गया.
आचार्य तुलसी ने हिंदी और राजस्थानी भाषा में लगभग 60 ग्रंथों की रचना की. विश्व में शान्ति और अहिंसा की स्थापना के उद्देश्य से तीन अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन क्रमशः लाडनूं, राजसमन्द और लाडनूं में आयोजित किये गये.
18 फरवरी 1994 को उन्होंने आचार्य पद से मुक्त होकर आचार्य महाप्रज्ञ को उत्तराधिकारी नियुक्त किया. 23 जून 1997 को गंगाशहर बीकानेर में उन्होंने शरीर त्याग दिया.
अणुव्रत आंदोलन (anuvrat movement in hindi)
भारत की लम्बी पराधीनता के पश्चात 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ. स्वतंत्रता के स्वर्ण प्रभात से लोगों के जीवन में नवीन आशाओं का संचार हुआ, लेकिन स्वतंत्रता के इस नवीन अभ्युदय से जो समाचार आ रहे थे, वे अधिक चिंताजनक थे.
हिंसा साम्प्रदायिकता, तनाव, असामाजिकता के वातावरण और अनैतिकता के बढ़ते हुए दौर को देखकर जैन श्वेताम्बर धर्म के तेरापंथी सम्प्रदाय के नवे आचार्य तुलसी की अंतरात्मा डोल उठी.
उनके मन में एक स्वाभाविक प्रश्न उठा कि इसलिए आजादी प्राप्त की थी ?. स्वाधीनता आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता सैनानियों ने जो सपने देखे थे, क्या वे स्वप्न रहेंगे, लाखों लाखों भारतियों ने आजादी की प्राप्ति के लिए क्या नही किया.
क्या हिसा, मारकाट, साम्प्रदायिकता, तनाव, बलात्कार, भ्रष्टाचार, अनैतिक आचरण आदि का वातावरण इस देश की स्वतंत्रता को सुरक्षित रख सकेगा. इस स्थति को देखकर आचार्य तुलसी ने अपने कर्तव्य का अनुभव किया. सोचा यह चुप बैठने का समय नही है,
उनका ह्रद्य जाग उठा. सदियों से प्रताड़ित जडवादी समाज को बदलने के संकल्प के साथ नई दिशा की ओर बढ़ने के लिए कुच किया.
इस तरह के संकल्प को लेने वाले आचार्य तुलसी जो जैन धर्म की श्वेताम्बर तेरापंथ परम्परा में नवें आचार्य थे. तुलसी का जन्म राजस्थान प्रदेश के नागौर जिले के लाडनू कस्बे में कार्तिक शुक्ल द्वितीया वि.स. 1971 को हुआ, इनके पिता का नाम झुमरलाल खटेड़ (ओसवाल) तथा माता का नाम वदनाजी था.
जब Acharya Tulsi की आयु 11 वर्ष की थी, तब तेरापंथ के अष्टमाचार्य कालुगणी के कर कमलों से मुनि दीक्षा ग्रहण की. बाईस वर्ष की आयु में ही वे तेरापंथ धर्म संघ के आचार्य बन गये, धर्मसंघ के माध्यम से आपने कई क्रांतिकारी कदम उठाए.
प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान तथा अणुव्रत आंदोलन उन्ही कदमों में से थे. आप आशुकवि, उदभट लेखक, शोधक, प्रगतिशील विचारों के धनी समाज सुधारक और रूढ़ियों के प्रबल विरोधी थे. आपका निधन 23 जून 1997 को गंगाशहर बीकानेर में हुआ था.
ऐसें क्रांतिकारी आचार्य तुलसी ने स्वतंत्र भारत को नई दिशा देने के लिए जो संकल्प लिया, उनकी घोषणा का सोभाग्य मार्च 1949 को दस हजार श्रोताओं की उपस्थिति में सरदारशहर चुरू को प्राप्त हुआ,
अणुव्रत क्रांति की यह घोषणा आचार्य तुलसी ने वर्तमान राष्ट्रीय सामाजिक एवं युगीन परिस्थियों का विवेचन करते हुए नैतिक शक्ति के नवसंचार के सन्दर्भ में की. और अणुव्रत की आचार सहिंता का महत्व बताते हुए जन जन को अपने कर्तव्य बोध से जाग्रत करने का आव्हान किया.
अणुव्रत के नियमों व व्रतों का पालन करने का आवहान किया. अणुव्रत की इस नियमावली की व्याख्या करते हुए उन्होंने 75 नियमों की जानकारी दी.
ये छोटे छोटे नियम अर्थात अणु यानि छोटे तथा नियम अर्थात व्रत की उपादेयता बताई. इस व्याख्या को सुनकर तत्काल 71 व्यक्तियों ने अणुवर्ती की प्रतिज्ञा की.
अणुव्रत के नियम समाज के सभी व्यक्तियों के लिए यथा व्यापारी, विद्यार्थी, अध्यापक, एडवोकेट, राजनीतिगज्ञ, उद्योगपति, डॉक्टर, इंजिनियर आदि के लिए थे.
सबकों अपने अपने कार्यों के अनुरूप आचरण कर समाज में नैतिकता का प्रसार करना ” Acharya Tulsi” के इस अणुव्रत आंदोलन का उद्देश्य था.