साधु सीताराम दास की जीवनी | Biography of Sadhu Sitaram Das In Hindi

Biography of Sadhu Sitaram Das In Hindi | साधु सीताराम दास की जीवनी : साधु सीताराम दास का जन्म 1884 ई में बिजौलिया में हुआ. इन्होने बिजौलिया के ठिकानों के अधीन पुस्तकालय की नौकरी की.

उन्हें किसान के बीच रहकर सामन्ती शोषण और किसानों की दशा को निकट से देखने का अवसर मिला. अतः वे अपने क्षेत्र में घूम घूमकर किसानों में जाग्रति करने लगे.

साधु सीताराम दास की जीवनी | Biography of Sadhu Sitaram Das In Hindi

साधु सीताराम दास की जीवनी | Biography of Sadhu Sitaram Das In Hindi
पूरा नामसाधु सीताराम दास बैरागी
जन्म1883
पहचानक्रांतिकारी, कृषक आंदोलनकारी
जनकबिजौलिया आंदोलन
स्थानभीलवाड़ा

जब बिजौलिया के राव पृथ्वीसिंह को तलवार बंधाई के रूप में महाराणा को बड़ी राशि देनी पड़ी तो उसने जनता पर तलवार बन्धी की लागत लगा दी. किसानों ने साधु सीताराम दास, फतहकरण चारण एवं ब्रह्मदेव के नेतृत्व में राव की इस कार्यवाही का विरोध किया.

फलस्वरूप राव ने साधु सीताराम दास को पुस्तकालय की नौकरी से हटा दिया. साधु सीताराम दास पूर्णरूपेण किसानों को जागृत करने के लिए समर्पित हो गये.

उन्होंने हरिभाई किंकर द्वारा संचालित विद्या प्रचारणी सभा से नाता जोड़ लिया एवं उसकी एक शाखा बिजौलिया में स्थापित कर दी.

विद्या प्रचारिणी सभा के वार्षिक अधिवेशन में भाग लेने जब सीताराम चित्तोड़ पहुचे तो उनकी मुलाक़ात विजयसिंह पथिक से हुई.

सीताराम ने उन्हें बिजौलिया किसान आंदोलन का नेतृत्व संभालने के लिए आमंत्रित किया, जिसे पथिकजी ने स्वीकार कर लिया. इस प्रकार साधु सीताराम दास का पूरा जीवन शोषण के विरुद्ध संघर्ष में बीता.

परिचय

राजस्थान की धरती से देश की आजादी की आवाज उठाने वाले कई स्वतंत्रता सेनानी निकले इनमें एक थे साधू सीताराम दास, इनका जन्म 1883 में बिजौलिया के एक बैरागी परिवार में हुआ था.

दास ने शुरूआती शिक्षा बिजौलिया से ही अर्जित की तथा बाद में उच्च शिक्षा के लिए बनारस गये. साल 1905 में इन्होने एक मित्र मंडल बनाया तथा इसके माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए जन जागरण का कार्य किया.

वर्ष 1907 में ब्रिटिश हुकुमत ने इन्हें कैद कर लिया फिर रिहा भी कर दिए गये. 1907 में ये बिजौलिया के सरदार बने तथा कुछ समय बाद ही इस पद का त्याग कर दिया. इसके बाद इन्होने थोड़े समय के लिए आयुर्वेद की प्रेक्टिस भी की और किसानों के बीच रहने लगे.

जब इन्होने किसानों के साथ हो रहे उत्पीडन की पीड़ा सुनी तो उनकी दुदर्शा जानने के लिए गाँव गाँव का दौरा किया तथा अपना शेष जीवन किसानों के हितों की आवाज बुलंद करने में ही व्यतीत कर दिया.

बिजौलिया आंदोलन और साधु सीताराम दास

स्वतंत्रता से पूर्व भीलवाड़ा का बिजौलिया क्षेत्र मेवाड़ रियासत के अंतर्गत आता था. वर्ष 1897 में सीताराम जी ने किसानों के लिए आवाज उठाना शुरू किया. किसानों की दुदर्शा को शाही वर्ग के सामने रखने के लिए यह किसान आन्दोलन किया गया.

बिजौलिया से शुरू हुआ यह आन्दोलन तीन चरणों तक चला. पहले चरण में सीताराम जी ने किसानों की पीड़ा वहां के शासकों और सामन्तो तक पहुचाया.

मगर उनकी आवाज को अनसुना कर दिया गया इसके बाद वे किसानों को लामबंद करने लगे और किसानों को खेती बंद करवाने के काम में लग गये. दूसरे चरण में खेती न किये जाने से परती भूमि छोड़ दी गई.

आन्दोलन को सफलता तीसरे चरण में मिली जब ये एक बड़े किसान नेता विजय सिंह पथिक से मिले और उनके हाथ में इस किसान आंदोलन की बागडौर दी.

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