विपिनचंद्र पाल का जीवन परिचय Bipin Chandra Pal Biography In Hindi: लाल पाल और बाल की तिगड़ी जिससे पूरी अंग्रेजी कौम खौफ खाया करती हैं.
क्रांति के विचारों को धरातल पर उतारकर अंग्रेजों के दिलो में डर भरने वाले भारतीय सपूत विपिनचंद्र पाल का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता हैं.
राजनीतिज्ञ, पत्रकार, शिक्षक और मशहूर वक्ता के रूप में इनकी पहचान न सिर्फ देश तक बल्कि विदेशों में भी इनकी खूब चर्चा हुआ करती थी.
आज हम Bipin Chandra Pal In Hindi में उनकी जीवनी, इतिहास, जीवन परिचय व भारत की स्वतंत्रता में उनका योगदान जानेगे.
विपिनचंद्र पाल का जीवन परिचय Bipin Chandra Pal Biography In Hindi
पूरा नाम | बिपिन चन्द्र पाल (Bipin Chandra Pal) |
जन्म | 7 नवंबर, 1858, |
जन्म स्थान | हबीबगंज जिला, पोइल गाँव [बांग्लादेश] |
प्रसिद्धि | लाल बाल पाल |
आयु | 74 वर्ष |
धर्म | हिन्दू |
राशि | वृश्चिक |
वैवाहिक स्थिती | विवाहित |
पिता | रामचंद्र |
माता | नारायनीदेवी |
शिक्षा | मैट्रिक |
विवाह | दो बार |
मृत्यु | 20 मई, 1932 |
मृत्यु स्थान | कोलकाता |
जाति | बंगाली कायस्थ (वैष्णव) |
बिपिनचंद्र पाल का जन्म 7 नवम्बर 1858 को सियालदह जिले के पोइल गाँव में हुआ था, जो कि अब बांग्लादेश में हैं. बिपिन चंद्र एक महान देशभक्त, अच्छे वक्ता, अध्यापक, उपदेशक, लेखक, आलोचक तथा बंगाल पुनर्जागरण आंदोलन के मुख्य निर्माता थे. वह भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे.
जन्मजात लेखक तथा विद्रोही गुणों से युक्त बिपिनचंद्र पाल बहुत कम उम्रः में ही ब्रह्म समाज में सम्मिलित हो गये तथा सामाजिक बुराइयों का जमकर विरोध किया.
उनके नजदीकी लोगों ने पाल की बहुत निंदा की पर इन सबकी परवाह नहीं करते हुए 14 वर्ष की उम्रः में उन्होंने जाति प्रथा में विश्वास करना छोड़ दिया और बाद में एक उच्च जाति की विधवा महिला से शादी भी की.
बिपिन चंद्र पाल का जन्म साल 1858 में 7 नवंबर को हुआ था। यह लाल, बाल और पाल की तिकड़ी में शामिल थे।जिसमें लाल का मतलब था लाला लाजपत राय, बाल का मतलब था बाल गंगाधर तिलक और पाल का मतलब था बिपिन चंद्र पाल।
बिपिन चंद्र पाल का व्यक्तिगत परिचय
लाल बाल पाल की तिकड़ी में शामिल बिपिन चंद्र पाल का जन्म सन 1858 में 7 नवंबर को वर्तमान के बांग्लादेश के हबीबगंज जिले में स्थित पोइल गांव में हुआ था।
बिपिन चंद्र पाल की शिक्षा
आपको बता दें कि, बिपिन चंद्र पाल ने एक मौलवी के अंडर में अपनी प्रारंभिक एजुकेशन को पूरा किया था। इसके बाद अपनी आगे की एजुकेशन को हासिल करने के लिए विभिन्न चंद्रपाल ने कोलकाता में स्थित सेंट पॉल कैथेड्रल मिशन कॉलेज में एडमिशन लिया.
परंतु वहां पर इन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी नहीं की और बीच से ही अपनी पढ़ाई को इन्होंने छोड़ दिया और पढ़ाई छोड़ने के बाद एक स्कूल में यह शिक्षक के तौर पर साल 1879 में भर्ती हो गए और विद्यार्थियों को पढ़ाने लगे। बिपिन चंद्र पाल ने हिंदू धर्म के ग्रंथ उपनिषद और गीता की स्टडी की थी क्योंकि इन्हें लर्निंग का बहुत ही शौक था।
बिपिन चंद्र पाल का परिवार
बिपिन चंद्र पाल जी का जन्म जिस खानदान में हुआ था वह काफी अधिक भूमि के मालिक थे इसीलिए इनके पास बचपन में किसी भी प्रकार की सुख सुविधा की कमी नहीं थी।
विपिन चंद्र के पिता राम चंद्र पाल फारसी के स्कॉलर भी कहे जाते थे।आपको बता दें कि, बिपिन चंद्र पाल बचपन से ही समाज में फैली बुराइयों का पुरजोर विरोध करते थे, जो कि इनके व्यवहार में भी दिखाई पड़ता था और आगे चलकर के अपने इसी व्यवहार के कारण बिपिन चंद्र पाल ने एक विधवा लड़की से शादी की।
विधवा लड़की से शादी करने के बाद बिपिन चंद्र पाल का एक बेटा और एक बेटी हुई जिनमें से इनके बेटे का नाम निरंजन पाल था, जिसने आगे चलकर के बॉम्बे टॉकीज की स्थापना करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
इनकी बेटी के पति का नाम एस.के. डे था जो कि आईसीएस ऑफिसर थे और आगे चलकर के वह इंडिया के केंद्रीय मंत्री भी बने थे।
बिपिन चंद्र पाल का पोलिटिकल कैरियर
कुछ राष्ट्रवादियो के साथ बिपिन चंद्र पाल की मुलाकात कोलकाता में लाइब्रेरियन का काम करने के दरमियान हुई थी। उन राष्ट्रवादीयो में बीके गोस्वामी,एसएन बनर्जी, केशवचंद्र और शिवनाथ शास्त्री जैसे लोग थे।
जब यह राष्ट्रवादी बिपिन चंद्र पाल से मिले तो यह विपिन चंद्र पाल की विचारधारा से बहुत ही ज्यादा प्रभावित हुए और खुद बिपिन चंद्र पाल भी इन नेताओं की तरफ अट्रैक्ट हुए। इस प्रकार से बिपिन चंद्र पाल को एक्टिव पॉलिटिक्स में आने का मन किया।
बिपिन चंद्र पाल के राजनीतिक काम
इंडियन नेशनल कांग्रेस का हिस्सा साल 1886 में बिपिन चंद्र पाल बने। हालांकि कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ताओं से इनकी विचारधारा मेल नहीं खाती थी जिसके बाद साल 1907 में उन्होंने कांग्रेस से अपने आपको अलग कर लिया।
हालांकि कुछ ही साल के बाद लखनऊ में बिपिन चंद्र पाल ने साल 1916 में फिर से कांग्रेस को ज्वाइन कर लिया परंतु कांग्रेस में आने के बाद गांधीजी की विचार धाराओं से सहमत ना होने के कारण और कुछ अन्य कारणों से साल 1921 में उन्होंने फिर से कांग्रेस से अपने आपको अलग कर लिया।
बंदे मातरम जनरल
साल 1906 में “वंदे मातरम” नाम की एक इंग्लिश पत्रिका को बिपिन चंद्र पाल ने स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन की पहली वर्षगांठ पर लांच किया।
इस पत्रिका में वह इंडिया की आजादी आंदोलन से संबंधित विभिन्न शानदार लेख लिखते थे। इस पत्र का संपादन करने का काम अरविंदो घोष करते थे।
बहिष्कार आंदोलन
बहिष्कार आंदोलन को एक राज्य से दूसरे राज्य में पहुंचाने का काम बिपिन चंद्र पाल ने साल 1907 में जनवरी के महीने में किया और इसके लिए बिपिन चंद्र पाल ने उड़ीसा, विशाखापट्टनम, कटक और मद्रास जैसे स्थानों की यात्रा की और अपने शानदार भाषण से अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाने का काम किया।
स्वदेशी आंदोलन का योगदान
बिपिन चंद्र पाल ने इंडिया के स्वदेशी आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था। इस आंदोलन के तहत अंग्रेजी गवर्नमेंट से संबंधित सभी चीजों का बहिष्कार इंडिया में काफी बड़े पैमाने पर किया गया था, जिसके कारण अंग्रेजी गवर्नमेंट बहुत ही ज्यादा परेशान हो गई थी।
बिपिन चंद्र पाल की मृत्यु
भारत के कोलकाता राज्य में साल 1932 में 20 मई को बिपिन चंद्र पाल ने इस धरती पर अपनी आखिरी सांसे गिनी और इस प्रकार एक उग्रवादी विचारधारा को भारत ने हमेशा के लिए खो दिया।
राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान
उन्होंने 1891 के एज ऑफ कंसेट बिल को पास करने का समर्थन भी किया. 22 वर्ष की अवस्था में ही वह परिदेशक साप्ताहिक पत्र का सम्पादन करने लगे. उनके पत्रकारिता के छिपे गुणों को कलकत्ता के बंगाल पब्लिक ओपिनियन के सम्पादकीय स्टाफ के रूप में देखा व परखा जा सकता हैं.
वह लाहौर में ट्रिब्यून पत्रिका के 1887-88 में सम्पादक रहे, 1901 में वह अंग्रेजी साप्ताहिक न्यू इंडिया के संस्थापक,सम्पादक थे जिस पर बाद में ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया. 1908 से 1911 तक भारत से निष्कासन के दौरान लंदन में भी वह अंग्रेजी साप्ताहिक स्वराज का संपादन व प्रकाशन करते रहे.
1912 में उन्होंने हिंदू रिव्यू नामक मासिक पत्रिका निकाली. 19-19 से 1920 तक इंडिपेंडेंट तथा साप्ताहिक दिमोक्रेट का संपादन करते रहे व बंगाली का संपादन 1924-25 में किया.
विपिनचंद्र पाल का मोडर्न रिव्यू, द अमृत बाजार पत्रिका तथा स्टेट्समैन में भी नियमित रूप से योगदान व सहयोग रहा. अरविंद घोष ने उन्हें राष्ट्रवाद के सबसे महान पैगंबर के रूप में पुकारा.
बिपिनचंद्र पाल ने बड़ी दृढ़ता के साथ सत्याग्रह आंदोलन, विदेशी कपड़ो के बहिष्कार विदेशी सरकार से सभी तरह के सम्बन्ध विच्छेद करने तथा राष्ट्रीय शिक्षा को बढ़ावा देने की वकालत की.
उनके प्रभावशाली भाषणों ने 1905 से 1907 के दौरान लाखों स्वदेशी आंदोलनकारी महिलाओं पुरुषों व नवयुवकों को प्रभावित किया. पूर्ण स्वराज्य की घोषणा कांग्रेस ने बहुत पहले कर दी थी.
जिसे वे निरंतर अपने व्यक्तव्यों व लेखों से प्रचारित प्रसारित करते रहे. वह केन्द्रीयकरण शासन पद्धति के विरोधी थे तथा चाहते थे कि एक संघीय भारतीय गणतन्त्र की स्थापना हो जिसके अंतर्गत प्रत्येक प्रांत, जिला व गाँव तथा कस्बा अपनी स्वायत्ता के अपने अनुसार विकास कर सके.
विपिनचंद्र पाल का सिद्धांत व विचार यह था देशभक्ति व स्वतंत्रता का अधिकार संयुक्त रूप से व्यक्तिगत व राष्ट्रीय स्वतंत्रता से था. जिसके अंतर्गत व्यक्ति तथा राष्ट्र दोनों स्वेच्छापूर्वक आकाश की ऊँचाइयों तक स्वतंत्र पक्षी की तरह जड़ सके व अपने मन मयूर को नचा सके.
एक गम्भीर राजनीतिज्ञ विचारक दार्शनिक तथा सामयिक लेखक थे. साहित्यिक गुण उनमें जन्मजात थे उनकी पुस्तक द न्यू इकोनॉमिक मीन्स ऑफ़ इंडिया में भारतीय मजदूरों की मजदूरी बढ़ाने तथा कार्यकाल की अवधि को तर्कपूर्ण कम करने की मांग का रूप में वर्णन किया गया हैं.
19 वी शताब्दी के अंतिम दौर में उन्होंने आसाम के चाय बागानों में मजदूरों की मजदूरी व सुख सुविधा आदि के लिए जमकर संघर्ष किया. उन्होंने आर्थिक रूप से भारतीयों का शोषण करने पर ब्रिटिश सरकार को सख्त चेतावनी भी दी.