जाति व्यवस्था में परिवर्तन Change in caste system in hindi: नमस्कार दोस्तों आज हम भारतीय जाति व्यवस्था के परम्परागत एवं बदलते स्वरूप अथवा जाति व्यवस्था में होने वाले मुख्य परिवर्तनों की विवेचना अथवा आधुनिक भारत में जाति में कौन कौन से परिवर्तन हो रहे हैं इस पर यहाँ निबंध के रूप में जानकारी दी गई हैं.
Change in caste system in hindi
जाति व्यवस्था का परम्परागत स्वरूप (The traditional form of caste system)
जाति व्यवस्था का परम्परागत स्वरूप निम्न बिन्दुओं में जाना जा सकता हैं.
- जाति की सदस्यता कर्म पर आधारित न होकर जन्म पर ही आधारित रहती हैं.
- एक जाति के व्यक्ति साधारणतः अपने जाति के लोगों के साथ ही खानपान का सम्बन्ध रखते हैं.
- अधिकांश जातियों के निश्चित व्यवसाय होते हैं.
- जाति प्रणाली में ब्राह्मणों की श्रेष्ठता पर आधारित हैं.
- सभी जातियों में ऊंच नीच तथा छुआछूत सम्बन्धी नियम पाए जाते हैं.
- जाति प्रणाली में निम्न जातियों के सदस्यों के लिए अनेक सामाजिक तथा धार्मिक निर्योग्यताएं होती हैं.
- एक जाति के सदस्य अपनी जाति में ही विवाह कर सकते हैं.
भारतीय जाति व्यवस्था में होने वाले परिवर्तन (Changes in Indian caste system)
वर्तमान काल में जाति व्यवस्था में निम्नलिखित परिवर्तन परिलक्षित हो रहे हैं.
ब्राह्मणों की स्थिति में गिरावट– प्राचीन एवं मध्यकाल में जाति व्यवस्था में ब्राह्मणों की स्थिति सर्वोच्च थी परन्तु आधुनिक युग में इनका सामाजिक राजनीतिक क्षेत्र में महत्व घटा है, क्योंकि वर्तमान समय में शैक्षणिक योग्यता, सम्पति व राजनीतिक सत्ता का महत्व बढ़ा हैं.
जिससे निम्न जाति के लोग भी उच्च पदों पर पहुचने लगे हैं और ब्राह्मणों को या अन्य उच्च जाति के लोगों को उनके अधीन कार्य करना पड़ रहा हैं. धार्मिक क्रियाओं एवं पूजा पाठ आदि के महत्व के कम हो जाने के कारण भी ब्राह्मणों की परम्परागत प्रभुता को ठेस पहुंची हैं.
जातीय संस्तरण प्रणाली में परिवर्तन– आज निम्न जाति के सदस्यों ने भी उच्च जातियों की जीवन विधि अपना कर अपना सामाजिक स्तर ऊँचा उठाने का प्रयत्न किया हैं.
अब निम्न जातियाँ उच्च जातियों को श्रेष्ठ भी नहीं मानती हैं क्योंकि आज व्यक्ति की सामाजिक स्थिति का निर्धारण उसके गुण, योग्यता, कार्यक्षमता, धन तथा राजनीतिक शक्ति के आधार पर होता हैं न कि जन्म जात और जाति के आधार पर.
अस्पर्शय एवं दलित वर्गों के अधिकारों में वृद्धि– परम्परागत जाति व्यवस्था के अंतर्गत शुद्र एवं अस्पर्शय जातियों एवं दलित वर्गों को कई सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक अधिकारों से वंचित रखा गया था.
परन्तु वर्तमान में सरकारी प्रयत्नों एवं समाज सुधारकों के प्रयासों से उन्हें उच्च जातियों के समान अधिकार प्राप्त हैं, आज निम्न जातियाँ किसी भी अधिकार से वंचित नहीं हैं.
विवाह सम्बन्धी प्रतिबंधों में शिथिलता– वर्तमान में विवाह से सम्बन्धित मान्यताओं में परिवर्तन हुआ हैं. अब अंतरजातीय विवाह, विधवा पुनर्विवाह, विलम्ब विवाह एवं विवाह विच्छेद जैसी मान्यताओं को महत्व दिया जाने लगा हैं.
अतः वर्तमान समय में जाति व्यवस्था के विवाह सम्बन्धी कठोर नियमों में काफी शिथिलता आई हैं. अब अंतरजातीय विवाहों के प्रति उदार वादी दृष्टिकोण का विकास हो रहा हैं.
व्यावसायिक स्वाधीनता का प्रारम्भ होना– वर्तमान में नयें नयें वैज्ञानिक साधनों के आविष्कारों के परिणामस्वरूप छोटे बड़े भिन्न भिन्न तरह के व्यवसायों में अभिव्रद्धियाँ होने से आज सभी व्यक्ति अपने कार्य एवं योग्यतानुसार व्यवसायों का चयन कर सकते हैं.
भले ही वह किसी भी जाति का क्यों न हो, आज हमे शर्मा स्टोर, अग्रवाल पान भंडार, वर्मा टेलरिंग हाउस देखने को मिलते हैं.
इसके अतिरिक्त आज अनेक नये व्यवसाय जैसे इंजीनियरिंग, डॉक्टरी, वकालत एवं सरकार के विभिन्न विभागों में सेवा कार्य आदि खुले हुए हैं. जिसमें सभी जातियों के व्यक्ति कार्य करते हुए मिलेगे.
पेशे के सम्बन्ध में ऊंच नीच की धारणा में परिवर्तन– आज आर्थिक परिवर्तनों, विशेष रूप से औद्योगीकरण की प्रक्रियाओं ने पेशों के सम्बन्ध में ऊंच नीच की संकीर्ण भावनाओं को समाप्त कर दिया हैं.
आज तो चोरी एवं अनैतिक सिद्धांत पर आधारित पेशों को छोड़कर नयें पेशों के प्रति आकर्षण बढ़ते जा रहे हैं. अधिक धन कमाने के दृष्टिकोण से ही पेशे स्वीकार किये जा रहे हैं. आज के चाहे कोई जूते का व्यापार करे या शिक्षा का सभी को समान दृष्टि से देखा जाता हैं.
भोजन सम्बन्धी नियमों में शिथिलता– परम्परागत जाति व्यवस्था के अंतर्गत भोजन सम्बन्धी कई प्रकार के निषेध थे. परन्तु आज सभी जातियों ने खाने पीने के सम्बन्ध में पवित्र अपवित्र की भावनाओं को त्याग कर हर प्रकार का भोजन करना प्रारंभ कर दिया गया हैं.
वर्तमान में कुछ उच्च जातियों के सदस्य भी मांस एवं शराब जैसी वस्तुओं का सेवन करने लगे हैं. इसके अलावा आज होटलों, रेस्तरां, क्लबों आदि में सभी वर्ग एवं जाति के व्यक्ति साथ साथ बैठ कर खाने पीने लगे हैं.
अब उच्च जातियाँ निम्न जातियों के यहाँ एवं निम्न जातियाँ उच्च जातियों के यहाँ भोजन पानी ग्रहण करने लगी हैं.
जन्म के सिद्धांत के महत्व पर आघात– जाति व्यवस्था जन्म पर आधारित थी. व्यक्तियों की स्थिति जन्म पर ही आधारित की जाती थी. जिसमें किसी भी तरह का परिवर्तन सम्भव नहीं था.
आज जन्म वाले सिद्धांत को महत्व नहीं मिलता हैं. अतः वर्तमान समय में मनुष्य की योग्यता जन्म के आधार पर नहीं आंकी जाकर कर्म के आधार पर आंकी जाने लगी हैं. इससे जाति के महत्व में कमी आई हैं.
भिन्न भिन्न क्षेत्रों में जातियों समितियों के निर्माण परिवर्तन– आज भिन्न भिन्न जाति समूहों के स्थान पर जातीय समितियों का निर्माण किया जा रहा हैं.
रुडोल्फ एवं रुडोल्फ ने बताया है कि भारतीय राजनीति में जाति समितियां उसी प्रकार से भूमिका निभा रही है जैसे यूरोप और अमेरिका की राजनीती में एच्छिक समितियाँ भूमिकाएं निभा रही हैं.
ये जाति समितियाँ जातियों के सदस्यों को सामाजिक गतिशीलता, राजनैतिक शक्ति तथा आर्थिक लाभ प्राप्त करने हेतु आगे बढ़ने में समर्थ बनाती हैं.
जातियों के बदलते हुए सन्दर्भ समूह– पहले जाति व्यवस्थाओं को निम्न जाति के लोग उच्च जाति के लोगों का अनुसरण किया करते थे, किन्तु अब निम्न जाति के लोग स्वयं अपनी मौलिक प्रजातंत्रीय विचारधाराओं के आधार पर जीना सीख रहे हैं. डॉ योगेन्द्र सिंह ने इसी प्रक्रिया को स्वयं की जाति के साथ तादात्म्य स्थापित नवीन भावना बताया हैं.
भिन्न भिन्न जातियों की शक्तियों में परिवर्तन– जाति व्यवस्था ने भिन्न भिन्न जाति के लोगों को अलग अलग क्षेत्रों में भिन्न भिन्न तरह के अधिकार प्रदान कर रखे थे, किन्तु आज किसी की एक जाति को प्रमुखता प्रदान नहीं की जा रही हैं.
डॉ योगेन्द्र सिंह ने बताया है कि भारत में जाति व्यवस्था में सरंचनात्मक परिवर्तन की दृष्टि से यह एक सम्भावित क्षेत्र हैं. प्रजातांत्रिकरण सामाजिक संरचना के राजनीतिकरण, भूमि सुधारों, सामुदायिक विकास कार्यक्रमों तथा नगरों के औद्योगीकरण के फलस्वरूप जातियों का पूर्ववर्ती शक्ति स्वरूप बदल रहा हैं.
संस्कारात्मक एवं आर्थिक स्वरूपों के स्थान पर संख्या का महत्व बढ़ रहा है और भिन्न जातियों संख्यात्मक शक्ति का सफलतापूर्वक उपयोग कर रही हैं. इस प्रकार शक्ति के परम्परागत स्वरूप में परिवर्तन आ रहा हैं.