चित्तरंजन दास का जीवन परिचय Chittaranjan Das Biography in Hindi: चित्तरंजन दास जिन्हें देशबन्धु के नाम से जाना जाता हैं. इनका पूरा नाम चित्तरंजन भुवनमोहन दास था,
नेता, राजनीतिज्ञ, वकील , कवि, पत्रकार तथा भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के मुख्य नेता के रूप में इन्होने अपने सम्पूर्ण जीवन को राष्ट्र सेवा में अर्पित कर दिया. चित्तरंजन दास की जीवनी में उनके जीवन के बारे में संक्षिप्त में जानते हैं.
चित्तरंजन दास का जीवन परिचय Chittaranjan Das Biography in Hindi
पूर्ण नाम | चित्तरंजन भुवनमोहन दास |
जन्म | 5 नवंबर 1870 |
जन्मस्थान | कोलकता |
पिताजी | भुवनमोहन |
माताजी | निस्तारिणी देवी |
शिक्षा | 1890 ई में बीए, 1892 में वकालत |
शादी | वासंतीदेवी के साथ |
Chittaranjan Das in Hindi
चितरंजन दास 5 नवम्बर 1870 को कलकत्ता में पैदा हुए थे. जब सी आर दास लन्दन में एक विद्यार्थी थे तभी से वे वह दादाभाई नौरोजी के चुनाव सम्बन्धी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते रहे थे.
सार्वजनिक रू से वह लोगों की नजर में तब आए जब उन्होंने अलीपुर बम षड्यंत्र काण्ड 1908 में अरविंद घोष को अपने बौद्धिकता का परिचय देते हुए बचाया.
चित्तरंजन दास की पांच काव्य पुस्तकें प्रकाशित हुई जो निम्नवत हैं म्लेच्छ, माला, अंतर्यामी, किशोर किशोरी तथा सागर संगीत. उन्होंने नारायण नामक मासिक बांगला पत्रिका का सम्पादन शुरू किया.
चित्तरंजन दास ने वैष्णव कीर्तन गीत भी लिखे. 1915 में बंगाल साहित्यिक सभा के पूना अधिवेशन के दौरान वे साहित्यिक विभाग के अध्यक्ष चुने गये.
सी आर दास ने अपना खुद का अख़बार फोरवर्ड शीर्षक से अक्टूबर 1923 में प्रारम्भ किया. सी आर दास ने 1917 में बंगाल प्रांतीय सभा के भुवनेश्वर अधिवेशन में अध्यक्षता की.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष अधिवेशन बम्बई में 1918 में वहां पर मौजूद थे तथा चित्तरंजन दास ने मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट के विरोध में अपनी आवाज बुलंद की.
1919 में जलियांवाला बाग़ हत्याकांड अमृतसर के खूनी नरसंहार के मामले में छानबीन करने के मामले में बनी कांग्रेस जांच समिति में वे एक सक्रिय सदस्य थे.
कांग्रेस पार्टी ने चित्तरंजन दास को बंगाल में सरकार की गतिविधियों के खिलाफ दूर दृष्टि रखने के लिए सुप्रीमों के रूप में नियुक्त किया गया.
ब्रिटिश सरकार की गतिविधियों का विरोध करने के फलस्वरूप उन्हें 11 दिसम्बर 1921 को जेल में बंद कर दिया तथा बाद में जुलाई 1922 में रिहा कर दिया.
यदपि चित्तरंजन दास अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन में पार्टी का अध्यक्ष चुन लिए गये थे पर कैदी के रूप में चार्ज ट्रायल न होने के कारण उन्हें अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने की स्वीकृति प्राप्त नहीं हुई.
जेल से रिहा होने के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गया अधिवेशन में चित्तरंजन दास को अध्यक्ष चुना गया.
1923 में चित्तरंजन दास ने अखिल भारतीय स्वराज पार्टी की स्थापना की. वह इस पार्टी के अध्यक्ष थे तथा मोतीलाल नेहरू इसके सचिव थे, पार्टी का नाम कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी था.
और इसका घोषणा पत्र दिसम्बर 1922 में प्रकाशित कर दिया गया. पार्टी पूरी तरह शान्ति व कानून के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कटिबद्ध व समर्पित थी.
स्वराज पार्टी शीघ्र ही एक विरोधी नेताओं की एक महत्वपूर्ण पार्टी बन गई तथा उसने विधान परिषद तथा विधानसभा के चुनावों का भी डटकर सामना किया.
गांधी और चित्तरंजन दास के बिच कलकत्ता समझौते में कांग्रेस द्वारा स्वराज पार्टी के नेतृत्व को स्वीकार किया गया तथा 1924 में इसे कांग्रेस इंट्री विंग के रूप में जाना गया.
1925 में कांग्रेस अधिवेशन कानपुर में स्वराज पार्टी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में मिला दिया गया. चित्तरंजन दास 1924 में कलकत्ता कारपोरेशन के पहले मेयर चुने गये.
चित्तरंजन दास कृषि सम्बन्धी समस्याओं के प्रति पूर्णरूपेण समर्पित थे तथा यूरोपीय पद्धति पर भारत में औद्योगिकीकरण के सख्त विरोधी थे. इसके विपरीत वह मजदूरों की सक्रियता को अच्छी तरह समझते थे और चाहते थे.
कि कम पूंजी वाला उद्योग लगाया जाए. 1923 में अखिल भारतीय मजदूर यूनियन के लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने फैक्ट्रीयों के लिए कानून बनाने तथा उसके मजदूरों का संगठन बनाने का समर्थन दिया, उन्होंने 1924 में भी कल कत्ता में इसकी अध्यक्षता की थी.
चित्तरंजन दास स्वराज प्राप्ति के लिए संघर्ष करने हेतु पूर्ण समर्पित थे. उनकी दृष्टि में स्वराज से तात्पर्य यही नहीं हैं कि कुछ सर्वोत्तम वर्गों को अतिरिक्त अधिकार प्राप्त हो जाए, पर यह था कि सभी भारतीय समुदाय का जीवन स्तर अच्छा व वैभवपूर्ण हो.
चित्तरंजन दास के अपने जीवन समर्पण में एक कवि मन की कल्पना तथा दूसरे एक वकील की विश्लेषणात्मक बुद्धि के संयोग की समरसता थी जिसके चलते उनके मित्र व सहयोगी उन्हें देशबंधु चितरंजन के नाम से पुकारने लगे.
वे वास्तव में भौतिक राजनैतिक विचारों तथा उच्च राजनैतिक स्तरों से इतने ओत प्रोत थे कि चाहते थे कि पूरा समुदाय उसी रूप में ढल जाय.देशबंधु जीवन के प्रारम्भ में एक ब्रह्मा समाजवादी थे. बाद में वह वैष्णव बन गये.
अपने और सहयोगियों बकिम चन्द्र व अरविन्द घोष की तरह वे भी भारत राष्ट्र को देवत्व के गुणों से युक्त पाते थे. वह हिन्दू मुस्लिम सहयोग के हर तरह से पक्षधर थे तथा उन्होंने अपने दास फार्मूला के अंतर्गत बंगाल में सभी समुदाय के लोगों के अधिकारों को उसी के अनुरूप समाहित करने हेतु अपना विचार प्रकट किये.
वह मौलिक अधिकारों के सिद्धांत में विश्वास करते थे. जिसमें मानसिक व नैतिक समरसता तथा स्वराज के अंतर्गत राजनैतिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने का पूर्णतया समर्थन करते थे.
वह आधुनिक पश्चिमी राजनैतिक सिद्धांत से भी परिचित थे. चित्तरंजन दास की दूरदर्शी दृष्टि तथा राजनैतिक परिपक्वता ने ग्रामीण पंचायत राज्य की वकालत कर लोगों को स्तम्भित कर दिया.
जिसके अंतर्गत उन्होंने सरकारी पुनस्थार्पना हेतु 5 सूत्री कार्यक्रम पेश किया, जो कि निम्नवत हैं.
- प्राचीन ग्रामीण पद्धति के आधार पर स्थानीयकरण की स्थापना करना.
- इन स्थानीयकरण के अखंडता को बरकरार रखते हुए बड़े उद्योग समूह को बढ़ावा देना.
- सबकों एक समान स्तर प्राप्त हो, विकसित करना.
- ग्रामीण स्थानीयकरण तथा बड़े उद्योग समूहों को पूर्णतया स्वायत शासन के प्रारूप के अनुरूप धारण करना.
- केंद्र सरकार के साथ शेष बची शक्तियों का ठीक ठीक से प्रबंधन करना चाहिए.
देशबंधु चित्तरंजन दास का देहांत 16 जून 1925 को दार्जलिंग में हो गया.
चितरंजन दास का व्यक्तिगत परिचय
वकालत में अच्छा एक्सपीरियंस प्राप्त करने के बाद चितरंजन दास के पास भारत के कई क्रांतिकारियों और राष्ट्र वादियों के केस आने लगे थे और उन सभी का केस चितरंजन दास ने बिना कोई फीस लिए लड़ा था, जो भारत माता के प्रति इनके प्यार को प्रदर्शित करता है।
चितरंजन दास का प्रारंभिक जीवन
अंग्रेजी गवर्नमेंट के अधीन भारत देश के कोलकाता शहर में साल 1870 में 5 नवंबर को चितरंजन दास का जन्म एक फेमस दास फैमिली में हुआ था।
इनके पिता जी का नाम भुवन मोहन दास था जो कि उस टाइम कोलकाता हाईकोर्ट में बहुत ही फेमस और सम्मानीय वकील थे।
देशबंधु चितरंजन दास की शिक्षा
चितरंजन दास ने अपनी प्रारंभिक एजुकेशन को अपने घर के पास स्थित स्कूल से पूरी की थी और इसके बाद वह हायर एजुकेशन करने के लिए कॉलेज में एडमिशन लिए और साल 1890 में उन्होंने कॉलेज से बैचलर ऑफ आर्ट की डिग्री हासिल की।
इसके बाद हायर एजुकेशन को प्राप्त करने के लिए वह इंग्लैंड चले गए, जहां से साल 1892 में वह बैरिस्टर बने और वापस भारत देश चले आएं।
चितरंजन दास और वकालत
भारत आने के बाद अपने पिता की तरह ही फेमस वकील बनने के लिए उन्होंने कोलकाता में ही वकालत की स्टडी करना स्टार्ट कर दिया।
वकालत की स्टडी चालू करने के बाद स्टार्टिंग में तो उन्हें ज्यादा कुछ खबर नहीं पड़ी परंतु धीरे-धीरे इन्हें सब समझ में आने लगा। चितरंजन दास को तब बहुत ही ज्यादा प्रसिद्धि हासिल हुई.
जब इन्होंने अरविंद घोष पर चल रहे राजद्रोह के केस में उनके तरफ से बहस की और उनकी रक्षा की और जब इन्होंने मानसिकतला बाग षड्यंत्र के केस को लड़ा तो इनके चर्चे कोलकाता में हर जगह होने लगे।
इसके बाद तो चित्तरंजन दास के पास राष्ट्रवादियों के और क्रांतिकारियों के बहुत सारे केस आने लगे और इन्होंने बिना कोई फीस लिए हुए सभी राष्ट्रवादीओं और क्रांतिकारियों के केस लड़े और उन्हें सजा से बचाया
चितरंजन दास की पॉलीटिकल लाइफ
साल 1906 मे इंडियन नेशनल कांग्रेस में चितरंजन दास शामिल हो गए और इन्हें साल 1917 में कांग्रेस की तरफ से बंगाल का प्रांतीय राज्यकिय परिषद का अध्यक्ष बनाया गया।
इस टाइम तक चित्तरंजन दास पॉलिटिक्स में पूरी तरह से एक्टिव हो गए थे। कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में साल 1917 में जब एनी बेसेंट को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाने लगा तब उनका समर्थन चितरंजन दास ने भी किया था।
चितरंजन दास कांग्रेस पार्टी के अंदर अपने तेजतर्रार विचारों और नीति के लिए प्रसिद्ध थे और इसी कारण अपने समर्थकों के साथ सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी।
चितरंजन दास ने साल 1918 में रोलेट कानून का पुरजोर तरीके से विरोध किया और महात्मा गांधी के द्वारा चलाए जा रहे सत्याग्रह आंदोलन में भी इन्होंने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और काले कानून का विरोध किया।
चित्तरंजन दास और असहयोग आंदोलन
गांधी जी के द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में भी चितरंजन दास ने पार्टिसिपेट किया और उसके बाद यह पूरी तरह से इंडियन पॉलिटिक्स में आ गए।
पॉलिटिक्स में आने के बाद इन्होंने इंडिया के कई राज्यों की यात्रा की और कांग्रेस पार्टी की विचारधारा का हर राज्य में उन्होंने प्रचार किया।
आपको बता दें कि, चितरंजन दास ने अपनी आधे से ज्यादा प्रॉपर्टी को भी भारत देश के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया।चितरंजन दास का सिलेक्शन कोलकाता नगर के प्रमुख के तौर पर भी हुआ था।
जब असहयोग आंदोलन चल रहा था तब इंडिया के कॉलेज और स्कूलों में पढ़ने वाले कई विद्यार्थियों ने कॉलेज और स्कूल जाना बंद कर दिया था.
जिसके बाद कॉलेज और स्कूल छोड़ने वाले स्टूडेंट की एजुकेशन के लिए बांग्लादेश के ढाका में “राष्ट्रीय विद्यालय” की स्थापना करने का काम चित्तरंजन दास ने किया था। असहयोग आंदोलन के दरमियान चितरंजन दास ने बहुत सारे स्वयंसेवकों का भी प्रबंध किया था।
चितरंजन दास और उनकी पत्नी की गिरफ्तारी
असहयोग आंदोलन को जब चालू हुए थोड़ा ही समय हुआ था, तो ब्रिटिश गवर्नमेंट के द्वारा इसे बेबुनियाद और इलीगल घोषित कर दिया गया था जिसके बाद अन्य क्रांतिकारियों के साथ चितरंजन दास को भी अरेस्ट कर लिया गया था और उन्हें 6 महीने जेल की सजा सुनाई गई थी।
इस गिरफ्तारी में चितरंजन दास की पत्नी भी शामिल थी। सुभाष चंद्र बोस चितरंजन दास की वाइफ को “मां” कहकर बुलाते थे।
चित्तरंजन दास द्वारा स्वराज्य दल की स्थापना
चित्तरंजन दास जब जेल में थे तब उस टाइम कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में इन्हे कांग्रेस के अध्यक्ष पद के तौर पर सिलेक्ट किया गया था। हालांकि जेल में होने के कारण इनके प्रतिनिधि के तौर पर हकीम अजमल खान ने पद ग्रहण किया गया था।
कांग्रेस का यह अधिवेशन साल 1921 में हुआ था। जब चितरंजन दास जेल से छूट कर बाहर आए तब उन्होंने कुछ विवाद हो जाने पर कांग्रेस के अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया और इसके बाद उन्होंने “स्वराज दल” की स्थापना मोतीलाल नेहरू और हुसैन सहित सोहरावर्दी के साथ मिलकर की।
मोतीलाल नेहरू और अन्य लोगों के साथ मिलकर के चितरंजन दास के द्वारा स्थापित स्वराज्य दल को बंगाल परिषद के इलेक्शन में बिना किसी विरोध के सिलेक्ट किया गया था।
चितरंजन दास साल 1924 से लेकर के साल 1925 तक कोलकाता महानगर पालिका के मेयर के पद पर रहे थे और यह ऐसा समय था जब इनके द्वारा स्थापित स्वराज्य पार्टी का कांग्रेस पर पूरा वर्चस्व था।
चितरंजन दास की विरासत
देशबंधु चितरंजन दास ने अपना घर और अपनी अन्य प्रॉपर्टी महिलाओं के विकास के लिए राष्ट्र के नाम अपनी मृत्यु के कुछ दिनों पहले ही कर दी थी।
चित्तरंजन दास के नाम पर दिल्ली में चितरंजन पार्क स्थित है और वर्तमान में इनके घर में मातृ शिशु संरक्षण केंद्र स्टेट गवर्नमेंट के द्वारा चलाया जा रहा है।
चितरंजन दास के नाम पर चितरंजन हाई स्कूल, चितरंजन कॉलेज, चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स, चितरंजन नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट, देशबंधु कॉलेज फॉर गर्ल्स एंड देशबंधु महाविद्यालय स्थित है।
चित्तरंजन दास की मृत्यु
अत्याधिक काम का प्रेशर हो जाने के कारण साल 1925 में इनकी तबीयत थोड़ी खराब रहने लगी थी जिसके बाद वह अपने स्वास्थ्य से संबंधित समस्या से निजात पाने के लिए दार्जिलिंग चले गए.
परंतु वहां जाने के बाद भी उनके स्वास्थ्य में कोई खास सुधार नहीं हुआ और इसी प्रकार लगातार बीमार रहने के कारण साल 1925 में ही 16 जून के दिन तेज बुखार के कारण चितरंजन दास ने भारत में अपनी आखिरी सांसे ली।