शहरी जीवन पर निबंध Essay On City Life In Hindi Language: नमस्कार साथियों आपका स्वागत हैं, आज का निबंध अरबन लाइफ अर्थात शहरी जीवन पर दिया गया हैं.
किस तरह खुले ग्रामीण परिवेश से इतर शहर के जीवन में लोग जीवन यापन करते हैं. आज के निबंध, भाषण, स्पीच अनुच्छेद पैराग्राफ में विस्तार से जानेगे.
शहरी जीवन पर निबंध Essay On City Life In Hindi Language
भारत को गाँवों का देश कहा जाता हैं, देश की कुल आबादी के 70 प्रतिशत लोग गाँवों या ढाणियों में रहते हैं. शेष 30 फीसदी लोग नगरों में बसते हैं.
आधुनिक हाईटेक महानगरों की चमक दमक और सुख सुविधाएं तेजी से लोगों को अपनी तरफ खीच लेती हैं. लोग बेहतर सेवाओं और आरामदायक जीवन का सपना लेकर शहरों की ओर पलायन करने लगते हैं.
गाँव से शहर आने वाले लगभग प्रत्येक व्यक्ति की चाहत कुछ न कुछ अवश्य होती हैं जो उसे उस महानगर में पूरी होने की उम्मीद दिखती हैं.
इस बात में कोई शक नहीं हैं कि गाँवों में आज भी आधारभूत सुविधाओं का या तो अभाव है या लोगों को संतुष्टि दिलाने के स्तर की नहीं हैं.
शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार को लेकर लोग गाँवों में भविष्य के प्रति चिंतित नजर आते हैं. खासकर युवा पीढ़ी आज के मोडर्न शहरों में स्वयं को स्थापित करने में सबसे आगे नजर आते हैं. बुजुर्ग आज भी अभावों के मध्य परम्परागत ग्रामीण जीवन के साथ स्वयं को जोड़े रखना चाहते हैं.
शहरी जीवन पर निबंध – Essay On City Life In Hindi
कहते हैं भारत गांवों में निवास करता है. गाँव इस देश की रीढ़ की हड्डी है और देश की खुशहाली हमारे गाँवों की मुस्कराहट पर निर्भर है.
बेशक यह बात शत प्रतिशत सच है, परंतु फिर भी गाँव के लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं वे अपने गाँव छोड़कर शहरों के आकर्षण की ओर खींचे जा रहे हैं.
गाँवों की शुद्ध आबोहवा शहरी लोगों को सदैव आकर्षित करती रहती हैं, क्योंकि शहरों में बस, ट्रक, कार, दुपहियों, तिपहियों की इतनी भरमार हैं कि यहाँ का वायुमंडल अत्यधिक प्रदूषित हो गया हैं.
शहरों में वायु प्रदूषण के अलावा ध्वनि प्रदूषण भी अधिक हैं. इसके अतिरिक्त जल प्रदूषण भी हैं गंदा पानी पीने के कारण शहर के अधिकांश लोग जल जनित बीमारियों बुखार हैजा दस्त उलटी आदि से हमेशा त्रस्त रहते हैं.
ध्वनि प्रदूषण से शहरों में अधिकांश लोग बहरे हो गये हैं. या कम सुनने लगे हैं और वायु प्रदूषण से इन लोगों को श्वांस सम्बन्धी बीमारियाँ हो गई हैं. ये सभी बीमारियाँ इन शहरों की ही देन हैं. फिर भी शहर में रहने का अपना आकर्षण बना हुआ हैं.
शहरी जीवन प्रदूषण से बेहाल हैं. इसके बावजूद यहाँ की चमक दमक लोगों को अपनी ओर खींच रही हैं. यहाँ जीवनोपयोगी हर वस्तु सहज उपलब्ध हो जाती हैं. इसके अतिरिक्त शहरों में रोजगार के अवसर अधिक हैं. इसलिए शहरों का अपना अलग ही आकर्षण हैं.
हालांकि यहाँ पर लोग गाँवों की तरह प्रेम और मेलजोल से नहीं रहते, जिस प्रकार गाँव में लोग एक दुसरे की मदद करने के लिए तैयार रहते हैं. प्रतिदिन सुबह शाम वे चौपाल पर एक दुसरे का हालचाल अवश्य पूछते हैं.
लेकिन शहरों में तो अधिकांशत लोग अपने पड़ोसी का नाम तक नहीं जानते, सिर्फ अपने मतलब से मतलब रखते हैं. ऐसा प्रतीत होता है जैसे सभी अपनी अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए रह रहे हो.
हालांकि केंद्र सरकार गाँवों के उत्थान के लिए वहां पर हर प्रकार की सहूलियत और साधन उपलब्ध कराने के प्रयास कर रही हैं ताकि ग्रामीण लोग शहरों की ओर पलायन न करें. परन्तु विकास की दर इतनी धीमी है कि अभी गाँवों में शहरों जैसा विकास होने में बीसियों वर्ष लग जाएगे.
शहरों में लोगों के पलायन से शहरों की दशा अत्यंत खराब हो गई हैं जिनमें दिल्ली शहर मुख्य हैं. यहाँ जनसंख्या अत्यधिक ट्रेफिक प्रदूषण, बीमारियाँ आदि बहुत बढ़ रहे हैं.
इससे पहले की यहाँ हालात विस्फोट हो जाएं, सरकार को कुछ करना होगा. यह हैं शहरी जीवन की दशा अथवा दुनिया, जिसे समय रहते सुधारना होगा.
बड़े शहर के जीवन पर निबंध – Essay on the Life in a Big City in Hindi
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एक बड़े शहर में जीवन विभिन्न युद्ध के मैदानों में संघर्ष जैसा हैं. किसी पड़ोसी की सूचना पर चीनी राशन की दूकान पर पहुँच चुकी हैं. इस बात का संकेत हैं कि लड़ाई के लिए जूते कस लो.
अपने नाश्ते, रात्रि भोज अथवा चाय को छोड़, अपने मित्र से भेंट को छोड़ करके बड़े शहर का निकासी चीनी लाने के लिए दौड़ पड़ता हैं. इस तरह एक व्यूह रचना कर लोग राशन की दूकान के सम्मुख खड़े हो जाए हैं.
यहाँ बड़े शहर का निवासी थकान, प्यास, पंक्ति तोड़ने वाले कम होते भंडार एवं बेईमान दुकानदार से लड़ता हैं. इस वीरोचित युद्ध के पश्चात उसे लूट मिल सकती हैं, अगर उसे नहीं मिल पाती तो उसे घर पर कमांडर द्वारा डांट खानी पड़ेगी.
बड़े श्हों में रहने वालों की बस यात्रा की अपनी एक अलग कहानी हैं. प्रत्येक सुबह उसे घर से बस स्टॉप तक की तेज दौड़ लगानी पडती हैं. जहाँ जेब कतरों से भिडंत हो सकती हैं.
शरारती बच्चों से मुलाक़ात सम्भव हैं, औरतों के धक्के एवं कन्डक्टर के साथ बहस का दृश्य बन सकता हैं. पहियों पर चलते साक्षात करके में उसे चोट लग सकती हैं, मोच आ सकती हैं, हड्डी भी टूट सकती हैं.
रेलगाड़ी से यात्रा करने के लिए अग्रिम योजना बनानी पड़ती हैं. अपनी टिकट बुक कराने के लिए उसे असली युद्ध से दो महीने पूर्व युद्ध लड़ना पड़ेगा.
पंक्ति में प्रतीक्षा करने के वक्त किसी को भी पिछले दरवाजे से आकर टिकट ले जाते देखकर कुछ नहीं कर सकते. बुकिंग बाबू द्वारा वक्त समाप्त हो गया हैं.
यह कहने से पूर्व खीसें निपोरते देख कर बर्दाश्त करना होगा. रूपये खेल बदल सकता हैं और बुकिंग बाबू की हंसी के मायने भी कई बार कंधों पर हल्की सी दस्तक होती है और हट्टा कट्टा व्यक्ति सौ रूपये के अधिमूल्य पर टिकट प्रस्तुत करता दिख सकता है.
बड़े शहर के निवासी की वीर गाथाएँ और भी हैरत अंगेज हैं. जब वो किसी विद्यालय या कॉलेज में अपने बच्चे का दाखिला कराने जाता हैं.
रजिस्ट्रेशन फॉर्म के लिए पंक्ति, माता पिता का साक्षात्कार, विद्यालय की शिक्षिका का दम्भपूर्ण व्यवहार, ऑफिस के बाबू व चपरासी, विद्यालय के चंदे की मांग एवं ऐसी ही कई अन्य बाधाएं पार करनी होती हैं.
अगर बच्चे का दाखिला भी हो जाता है तो एक मोटी रकम की जरूरत होती हैं. विद्यालय की यूनिफार्म, फेट के लिए पैसे, स्थापना दिवस के लिए पैसे, कक्षा की सजावट के लिए पैसे और किस लिए पैसे नहीं चाहिए. अगर यह व्यय थोड़ा और बढ़ गया तो लोगों के परिवार विस्तार पर रोक लगाने का कारण बन जाएगा.
दूध के डीपों पर जोड़ तोड़, स्थानीय फोन सेवा के डेड फोन एवं नौकरशाही के गलियारे की कहानी भी कम तकलीफ देह नहीं होती हैं.
शहर के निवासी को तेजी से आते हुए ट्रक से सड़क पर अपने आप को बचाना है जो उसके ऊपर से गुजर सकता है, भोला भाला सा दिखने वाला गरीब भिखारी 50 रूपये के लिए चाक़ू भी मार सकता हैं. और बचना होगा.
उन फेरी वालों से जो मीठी मीठी बातों से ठग सकते हैं. ट्रेफिक जाम, भीड़ भरी सड़के, दुकाने, रूपये लुटाते अमीर एवं बढ़ते मूल्य के शहरियों को अजीब पशोपश में डाले रखते हैं. उदासी के निराशा में थका हुआ शहरी बुड बुडाता हैं, ईश्वर ने गाँव बनाए और शैतान ने शहर.