दहेज प्रथा पर निबंध भाषण | Speech Essay on Dowry System in Hindi

दहेज प्रथा पर निबंध भाषण | Speech Essay on Dowry System in Hindi: दहेज हमारे आधुनिक समाज का एक अभिशाप ही हैं. लड़की की शादी के अवसर पर वर पक्ष को मुहंमागी सामग्री और धन देने की कुप्रथा को हम दहेज प्रथा के रूप में जानेगे.

प्राचीन काल से चली आ रही इस प्रथा को अब समाप्त करने का समय आ गया हैं दहेज की समस्या पर निबंध को जानते हैं.

दहेज प्रथा पर निबंध भाषण | Speech Essay on Dowry System in Hindi

दहेज प्रथा पर निबंध भाषण | Speech Essay on Dowry System in Hindi

Essay On Dahej Pratha In Hindi प्रिय विद्यार्थियों आज के लेख दहेज प्रथा पर निबंध में आपका स्वागत हैं. दहेज आज एक सामाजिक समस्या का रूप ले चुका है.

बच्चों को दहेज़ क्या है दहेज पर निबंध, दहेज प्रथा क्या हैं इसका निबंध कक्षा 1, 2 ,3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के विद्यार्थियों के लिए Essay On Dahej Pratha In Hindi को 100, 200, 250, 300, 400, 500 शब्दों में यहाँ पर आपके लिए छोटा बड़ा निबंध बता रहे हैं.

निबंध Essay (400 शब्द)

दहेज निबंध 1

भारतीय संस्कृति में मंगलमय भावनाओं की प्रधानता रही है. इन भावनाओं की अभिव्यक्ति संस्कारों के रूप में, शिष्टाचार के रूप में व अन्य कई रूपों में होती रही है.

प्राचीनकाल से ही भारतीय संस्कृति में अन्नदान, विद्यादान, धन दान आदि को महत्व दिया गया है. इन दानो के अंतर्गत कन्यादान भी एक प्रमुख दान माना जाता था.

माता-पिता अपने सामर्थ्य के अनुसार कन्या को आभूष्ण, वस्त्र व आवश्यक वस्तुएं देते थे, जिससे कन्या को गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते समय समुचित सहायता मिल जाती थी. उस समय माता पिता अपने सामर्थ्य के अनुसार दहेज देते थे.

दहेज प्रथा एक सामाजिक कलंक (Dowry is a social stigma)

प्रारम्भ में दहेज प्रथा के साथ जो मंगलमय भावना थी, उसका धीरे धीरे लोप होने लगा है. शुरू में दहेज स्वैछिक था, परन्तु कालान्तर में यह परमावश्यक हो गया, फलस्वरूप कन्या का जन्म ही अशुभ माना जाने लगा. कन्यादान माता पिता के लिए बोझ बन गया है.

धर्म के ठेकेदारों ने इसे धार्मिक मान्यता भी प्रदान कर दी है. धर्म भीरु भारतीय जनता के पास इसका कोई विकल्प शेष नही था. दहेज के इस विकृत रूप से बाल विवाह, अनमेल विवाह और बहुविवाह प्रथाओं का जन्म हुआ.

दहेज प्रथा की समस्या (Problem of Dahej Pratha)

बीसवी शताब्दी में मध्यकाल से वर्तमान काल तक दहेज प्रथा ने विकराल रूप धारण कर लिया है. और इसके फलस्वरूप नारी समाज के साथ अमानवीय व्यवहार होता है. कन्या का विवाह एक विकराल समस्या बन गई है.

माता पिता अपने सामर्थ्य के अनुसार दहेज देना चाहते है. जबकि वर पक्ष वाले मुंहमांगा दहेज लेना चाहते है. वे लड़के के जन्म से लेकर शादी तक का पूरा खर्चा वसूलना चाहते है. माता पिता महंगाई के इस युग में पेट काटकर लडकियों को शिक्षित करते है, उन्हें योग्य बनाते है.

फिर दहेज के चक्कर में आजीवन कर्ज के भार से दब जाते है. कई बार मुह्मांगे दहेज की व्यवस्था नही होने पर दुल्हे सहित बरात लौट जाती है उस समय कन्या के माता पिता, रिश्तेदारों और उस कन्या की दशा क्या होती होगी.

दहेज प्रथा के दुष्परिणाम (Side effects of Dahej Pratha)

इस प्रथा के कारण कन्या व उसके माता पिता को अनेक असहनीय यातनाएं भोगनी पडती है. आज का युवा वर्ग मानवीय द्रष्टिकोण अपनाना चाहता है, परन्तु कुछ तो लालची अपने माता पिता का विरोध नही कर पाते है.

और कुछ लोग शादी का रिश्ता तय करते समय सुधारवादी बनने का ढोंग रचते है, परन्तु शादी में इच्छित दहेज नही मिलने पर बहू को परेशान किया जाता है.

उसे अनेक यातनाएं दी जाती है. उसे कई बार मार दिया जाता है. इनमे बहु को जलाकर मार डालने का प्रतिशत अधिक होता है. रसोई घर में स्टोव से जलने की बात कह दी जाती है.

ससुराल में जब जुल्मों की हद हो जाती है तो मुक्ति पाने के लिए वह आत्महत्या करने को विवश हो जाती है.

दहेज प्रथा को रोकने के उपाय (Measures to stop Dahej Pratha)

सन 1975 में दहेज उन्मूलन कानून भी बनाया गया. कानून के अनुसार दहेज लेना व देना कानूनी अपराध है. सरकार ने दहेज विरोधी कानून को प्रभावी बनाने के लिए एक संसदीय समिति का गठन किया है.

सन 1983 में दहेज से सम्बन्धित नए कानून प्रस्तावित किये गये, इसके अनुसार जो दहेज के लालच में युवती को आत्महत्या के लिए विवश करे, उस व्यक्ति को दंडित किया जाए.

सरकार ने इस प्रथा के उन्मूलन के लिए सचेष्ट है. तथा कुछ सामाजिक संगठन भी इस समस्या के उन्मूलन का प्रयास कर रहे है. इस समस्या के कारण नारी समाज पर अत्याचार हो रहे है.

नवयुवतियों के अरमानों को रौदा जा रहा है. अतः भारत के भावी नागरिकों को इस विषय पर आगे आकर दहेज प्रथा को रोकने के लिए इनोवेटिव उपाय करने होंगे.

निबंध Essay (500 शब्द)

दहेज निबंध 2

नारी का स्थान– भारतीय नारी के सम्मान को सबसे अधिक आघात पहुचाने वाली समस्या दहेज प्रथा हैं. भारतीय महापुरुषों ने और धर्मग्रंथों ने नारी की महिमा में बड़े सुंदर सुंदर वाक्य रचे हैं.

किन्तु दहेज ने इन सभी किर्तिगानों को उपहास का साधन बना दिया गया हैं. आज दहेज के भूखे और पुत्रों की कामना करने वाले लोग गर्भ में ही कन्याओं की हत्या करा देने का महापाप कर रहे हैं.

दहेज का वर्तमान स्वरूप– आज दहेज कन्या के पति प्राप्ति की फीस बन गया हैं. दहेज के लोभी बहुओं को जीवित जला रहे हैं. फांसी पर चढ़ा रहे हैं.

समाज के धनी लोगों ने अपनी कन्याओं के विवाह में धन के प्रदर्शन की जो कुत्सित परम्परा चला दी, वह दहेज कि आग में घी का काम कर रही हैं. साधारण लोग भी इस मूर्खतापूर्ण होड़ में शामिल होकर अपना भविष्य दांव पर लगा रहे हैं.

दहेज के दुष्परिणाम– दहेज के कारण एक साधारण परिवार की कन्या और कन्या के पिता का सम्मानसहित जीना कठिन हो गया हैं.

इस प्रथा की बलिवेदी पर न जाने कितने कन्या कुसुम बलिदान हो चुके हैं. लाखों परिवारों के जीवन की शांति को नष्ट करने और मानव की सच्चरित्रता को मिटाने का अपराध इस प्रथा ने किया हैं.

समस्या का समाधान– इस कुरीति से मुक्ति का उपाय क्या हैं. इसके दो पक्ष है- जनता और शासन. शासन कानून बनाकर इसे समाप्त कर सकता हैं और कर भी रहा हैं. किन्तु बिना जनसहयोग के ये कानून फलदायक नहीं हो सकते.

इसलिए महिला वर्ग को और कन्याओं स्वयं संघर्षशील बनना होगा, स्वावलंबी बनना होगा. ऐसे घरों का तिरस्कार करना होगा जो उन्हें केवल धन प्राप्ति का साधन मात्र समझते हैं.

इसके अतिरिक्त विवाहों में सम्पन्नता के प्रदर्शन तथा अपव्यय पर भी कठोर नियंत्रण आवश्यक हैं. विवाह में व्यय की एक सीमा निर्धारित की जाए और उसका कठोरता से पालन कराया जाय.

यदपि दहेज विरोधी कानून काफी समय से अस्तित्व में हैं, किन्तु प्रशासन की ओर से इस पर ध्यान नहीं दिया जाता. आयकर विभाग जो निरंतर नये नये करों को थोपकर सामान्य जन को त्रस्त करता हैं.

इस और क्यों ध्यान नही देता. विवाहों में एक निश्चित सीमा से अधिक व्यय पर अच्छा ख़ासा कर लगाया जाया. साधू संत और धर्मोपदेशक क्यों नहीं.

इस नारी विरोधी प्रथा की आलोचना करते हैं. जनता और प्रशासन दोनों को ही इस दिशा में सक्रिय होना चाहिए और इस सामाजिक कलंक को समाप्त कर देना चाहिए.

दहेज निबंध Essay (600 शब्द)

दहेज निबंध 3

दहेज़ की परम्परा हमारे समाज में प्राचीनकाल से चली आ रही हैं. कन्यादान के साथ दी जाने वाली दक्षिणा के सामान यह दहेज़ हजारों वर्षों से विवाह का अनिवार्य अंग बन चूका हैं. किन्तु प्राचीन और वर्तमान दहेज़ के स्वरूप और आकार में बहुत अंतर आ चूका हैं.

वर्तमान स्थिति- प्राचीन समय में दहेज नव दम्पति को नवजीवन प्रारम्भ करने के उपकरण देने का और सद्भावना का चिह्न था. राजा महाराजा और धनवान लोग धूमधाम से दहेज देते थे. परन्तु सामान्य गृहस्थी का काम तो दो चार बर्तन या गौदान से ही चल जाता था.

आज दहेज अपने निकृष्टतम रूप को प्राप्त कर चूका हैं. काले धन से सम्पन्न समाज का धनी वर्ग, अपनी लाड़ली के विवाह में धन का जो अपव्यय और प्रदर्शन करता हैं. वह औरों के लिए होड़ का कारण बनता हैं.

अपने परिवार का भविष्य दांव पर लगाकर समाज के सामान्य व्यक्ति भी इस मूर्खतापूर्ण होड़ में सम्मिलित हो जाते हैं. इसी धन प्रदर्शन के कारण वर पक्ष भी कन्या पक्ष के पूरे शोषण पर उतारु रहता हैं.

कन्या पक्ष की हीनता- प्राचीनकाल में को वर चुनने की स्वतंत्रता थी किन्तु जबसे माता पिता ने उसको गले से बाँधने का कार्य अपने हाथों में लिया, तब से कन्या अकारण ही हीनता की पात्र बन गई हैं. आज तो स्थिति यह है कि बेटी वालो को बेटे की उचीत अनुचित मांगे माननी पड़ती हैं.

इस भावना का अनुचित लाभ वर पक्ष पूरा पूरा उठाता हैं. घर में चाहे साइकिल भी न हो परन्तु वह स्कूटर पाए बिना तोरण स्पर्श न करेगे. बेटी का बाप होना मानों पुनर्जन्म और वर्तमान का भीषण पाप हो.

कुपरिणाम- दहेज के दानव ने भारतीय संस्कृति की मनोवृति को इस हद तक दूषित किया हैं कि एक साधारण परिवार की कन्या और कन्या के पिता का जीना कठिन हो गया हैं.

इस प्रथा की बलिवेदी न जाने कितने कन्या कुसुम बलिदान हो चुके हैं. लाखों परिवारों के जीवन की शांति को नष्ट करने का अपराध इस प्रथा ने किया हैं.

मुक्ति के उपाय- इस कुरीति से मुक्ति का उपाय क्या हैं. इसके दो पक्ष है जनता और शासन. शासन कानून बनाकर इसे समाप्त कर सकता हैं और कर भी रहा हैं. किन्तु बिना जन सहयोग के ये कानून फलदायी नही हो सकते.

इसलिए महिला वर्ग को और कन्याओं को स्वयं संघर्षशील बनना होगा, स्वावलंबी बनना होगा. ऐसे वरों का तिरस्कार करना होगा, जो उन्हें केवल धन प्राप्ति का माध्यम समझते हैं.

उपसंहार- हमारी सरकार ने दहेज विरोधी कानून बनाकर इस कुरीति के उन्मूलन की चेष्टा की हैं. लेकिन वर्तमान दहेज कानून में अनेक कमियां हैं. इसे कठोर से कठोर बनाया जाना चाहिए. परन्तु सामाजिक चेतना के बिना केवल कानून के बल पर इस समस्या से छुटकारा नही पाया जा सकता.

निबंध Essay (700 शब्द)

दहेज निबंध 4

भारतीय संस्कृति में जिसने भी कन्यादान की परम्परा चलाई, उसने नारी जाति के साथ बड़ा अन्याय किया. भूमि, वस्त्र, भोजन, गाय आदि के दान के समान कन्या का भी दान कैसी विडम्बना हैं.

मानो कन्या कोई जीवंत प्राणी मनुष्य न होकर कोई निर्जीव वस्तु हो. दान के साथ दक्षिणा भी अनिवार्य मानी गई हैं बिना दक्षिणा  दान निष्फल होता हैं तभी तो कन्यादान के साथ दहेज रुपी दक्षिणा की व्यवस्था की गई हैं.

दहेज की परम्परा– दहेज हजारों वर्ष पुरानी परम्परा है लेकिन प्राचीन समय में दहेज का आज जैसा निकृष्ट रूप नहीं था. दो चार वस्त्र, बर्तन और गाय देने से सामान्य गृहस्थ का काम चल जाता था. वह नवदम्पति के गृहस्थ जीवन में कन्यापक्ष का मंगल कामना का द्योतक था.

आज तो दहेज कन्या का पति बनने की फीस बन गया हैं. विवाह के बाजार में वर की नीलामी होती हैं. काली कमाई के अपव्यय से समाज के सम्पन्न लोग आमजन को चिढाते और उकसाते हैं.

कन्यापक्ष की हीनता– इस स्थिति का कारण सांस्कृतिक रुधिग्रस्त्ता भी हैं. प्राचीनकाल में कन्या को वर चुनने की स्वतंत्रता थी, किन्तु जब से माता पिता ने उसको किसी के गले बाँधने का यह पुण्यकर्म अपने हाथों में ले लिया तब से कन्या अकारण  हीनता का पात्र बन गई.

आज तो स्थिति यह है कि बेटी वाले को बेटे वालों की उचित अनुचित सभी बाते सहन करनी पड़ती हैं. कन्या का पिता वर पक्ष के यहाँ भोजन तो क्या पानी तक न पी सकेगा. कुछ कट्टर रुढ़ि भक्तों में तो उस नगर या गाँव का जल तक पीना मना हैं. मानो सम्बन्ध क्या किया दुश्मनी मोल ले ली.

इस भावना का अनुचित लाभ वर पक्ष पूरा पूरा उठाता हैं. वर महाशय चाहे अष्टावक्र हो परन्तु पत्नी उर्वशी का अवतार चाहिए. घर में चाहे साइकिल भी न हो परन्तु वह कीमती मोटरसाईकिल पाए बिना तोरण स्पर्श न करेंगे.

बेटी का बाप होना होना जैसे पूर्व जन्म और वर्तमान जीवन का भीषण पाप हो गया हैं. विवाह जैसे परम पवित्र सम्बन्ध को सौदेबाजी और व्यापार के स्तर तक ले जाने वाले निश्चय ही नारी के अपमानकर्ता और समाज के घोर शत्रु हैं. यदि कोई भी व्यक्ति बेटी का बाप न बनना चाहे तो पुरुषों की स्थिति क्या होगी.

दहेज के दुष्परिणाम– दहेज के दानव ने भारतीयों की मनोवृति को इस हद तक दूषित किया हैं कि एक साधारण परिवार की कन्या के पिता का सम्मान सहित जीना कठिन हो गया हैं. इस प्रथा की बलिवेदी पर न जाने कितने कन्या कुसुम बलिदान हो चुके हैं.

लाखों परिवार के जीवन की शांति को भंग करने और मानव की सच्चरित्रता को मिटाने का अपराध इस प्रथा ने किया हैं. जिस अग्नि को साक्षी मानकर कन्या ने वधू पद पाया हैं,

आज वही अग्नि उसके प्राणों की शत्रु बन गई हैं. किसी भी दिन का समाचार पत्र उठाकर देख लीजिए, वधू दहन के दो चार समाचार अवश्य दृष्टि में पड़ जाएगे.

समस्या का समाधान– इस कुरीति से मुक्ति का उपाय क्या है, इसके दो पक्ष हैं जनता और शासन. शासन कानून बनाकर इसे समाप्त कर सकता हैं. और कर भी रहा हैं किन्तु बिना जन सहयोग के ये कानून लाभदायक नहीं हो सकते.

इसलिए महिला वर्ग और कन्याओं को स्वयं संघर्षशील बनना होगा, स्वावलम्बी बनाना होगा. ऐसे वरों का तिरस्कार करना होगा जो उन्हें केवल धन प्राप्ति का साधन मात्र समझते हैं. इसके अतिरिक्त विवाहों में सम्पन्नता के प्रदर्शन तथा अपव्यय पर भी कठोर नियंत्रण आवश्यक हैं.

उपसंहार– यदपि दहेज विरोधी कानून काफी समय से अस्तित्व में हैं, किन्तु प्रशासन की ओर से इस पर ध्यान नहीं दिया जाता. आयकर विभाग जो निरंतर नये नये करों को थोपकर सामान्य जन को त्रस्त करता हैं.

इस ओर क्यों ध्यान नहीं देता. विवाहों में एक निश्चित सीमा से अधिक व्यय पर अच्छा ख़ासा कर लगाया जाए. साधु संत और धर्मोपदेशक क्यों नहीं इस नारी विरोधी प्रथा की आलोचना करते हैं. जनता और प्रशासन दोनों को ही इस दिशा सक्रिय होना चाहिए और इस सामाजिक कंलक को समाप्त कर देना चाहिए.

दहेज निबंध 1000 शब्द

दहेज प्रथा क्या है कारण दुष्परिणाम रोकने के उपाय व कानून | Dowry System Essay Meaning Causes Effects To Stop Low In India In Hindi

दहेज वह धन या सम्पति होती है, जो विवाह के अवसर पर वधू पक्ष द्वारा विवाह की आवश्यक शर्त के रूप में वर पक्ष को दी जाती है. इस कुप्रथा ने लड़कियों के विवाह को एक दुष्कर कार्य बना दिया है.

निम्न तथा मध्यमवर्गीय परिवार के पिता दहेज के कारण अपनी बेटियों की शादी समय पर नही कर पाते है. यदि कर भी देते है तो इनके लिए उन्हें बड़ी रकम ऋण के रूप में लेनी पड़ती है. भारत में दहेज प्रथा पर पूरी तरह रोक है, मगर आज भी यह धड़ल्ले से चल रही है.

दहेज प्रथा क्या है और इतिहास

प्राचीन समय में वधू के पिता कन्या के साथ कन्यादान के रूप में कुछ धन वर को देता था. जो स्वेच्छा से तथा स्नेह के रूप में प्रदान किया जाता था. उसमें किसी तरह की अनिवार्यता नही होती थी.

धीरे धीरे इस प्रथा ने विकृत रूप धारण कर लिया जिसे दहेज प्रथा का नाम दिया गया. इसमें वधू के पिता को आवश्यक रूप से धन और अन्य सामान वर को प्रदान करना पड़ता है. कई बार वर या वर पक्ष द्वारा विवाह मंडप में ही वधू पक्ष से अनावश्यक धन व महंगी वस्तुओं की मांग कर ली जाती है.

जो वधू पक्ष को आर्थिक कठिनाई में डाल देती है. कई बार तो वधू पक्ष को वर पक्ष की ऐसी अनावश्यक मांग को पूरा करने के लिए अपनी सम्पति तक बेचनी पड़ जाती है. तथा कई बार इस शर्त को पूरा किये बिना विवाह ही नही होता है. वर्तमान में दहेज प्रथा ने विकराल रूप धारण कर लिया है.

कारण

  • गरीबी के कारण अपनी आर्थिक स्थति सुधारने की नियत से वर पक्ष वधू पक्ष से इस प्रकार की मांग करता है.
  • 1956 से पहले भारत में हिन्दू उतराधिकारी कानून के पूर्व पुरुषों को उतराधिकार प्राप्त था. इस कारण महिलाओं को हमेशा उन पर आश्रित रहना पड़ता था. इस कारण भी पुरुष वर्ग द्वारा विवाह के अवसर पर दहेज के रूप में धन लेने की प्रवृति को बढ़ावा मिला.
  • अशिक्षा भी दहेज प्रथा का एक मुख्य कारण रहा है. आज जैसे जैसे बालिका शिक्षा को बढ़ावा मिल रहा है, इस प्रथा का उन्मूलन हो रहा है.
  • अपनी झूठी सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण भी लोग वधू पक्ष से विवाह के समय दहेज की मांग करते है.
  • महिलाओं का आर्थिक रूप से सक्षम न होना भी दहेज प्रथा का एक मूल कारण है.

भारत में इस कुप्रथा की रोकथाम के लिए बच्चों को शिक्षित किया जाना बेहद जरुरी है. समाज में इस कुरीति के विरुद्ध जागरूकता पैदा की जानी चाहिए तथा जो व्यक्ति दहेज की मांग करे उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाना चाहिए.

हमारे देश में दहेज प्रथा की रोकथाम के लिए वर्ष 1961 में दहेज निरोधक कानून पारित किया गया. लेकिन इस प्रथा को रोकने में यह प्रभावी नही हो सका है.

दुष्परिणाम

कर्ज का बोझ-दहेज प्रथा गरीब परिवारों के लिए ऋणग्रस्तता का कारण बनती है. गरीब माँ बाप को अपनी लाडली कन्या का विवाह करने के लिए धन जुटाना आवश्यक होता है.

चूँकि उनके आर्थिक साधन सिमित होते है, अतः उन्हें मजबूरन इस कार्य के लिए ऋण लेना पड़ता है. जिसकों चुकता कर पाना उनके लिए कठिन कार्य होता है. कई बार इस कार्य के लिए उन्हें अपनी जमीन, जायदाद, आभूषण आदि भी बेचने पड़ते है.

महिलाओं पर अत्याचार- जो महिलाएं अपने साथ दहेज के रूप में काफी धन व अन्य सामान नही ला पाती है, उन्हें ससुराल में पति, सास व अन्य परिवारजनों की प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है.

कभी कभी वे इन दहेजलोभियों से तंग आकर आत्महत्या तक कर लेती है. तो कभी ससुराल वालों द्वारा जलाकर या अन्य प्रकार से मार दी जाती है. अतः दहेज प्रथा के कारण कन्या का जीवन नरक बन जाता है.

समाज में कन्या भ्रूण हत्या व कन्या वध को बढ़ावा- दहेज की इस प्रथा के कारण लड़कियां माँ बाप पर बोझ मानी जाती है. अतः समाज भी युवतियों को हेय दृष्टि से देखता है.

लड़की के जन्म पर कोई खुशी नही मनाई जाती है. बल्कि समाज के कई वर्गों में तो पैदा होने से पूर्व ही मार दिया जाता है. या उन्हें पैदा होते ही गला घोटकर मार दिया जाता है.

बेमेल विवाह को प्रोत्साहन- गरीब परिवारों में युवतियों को दहेज की व्यवस्था करने में विफल हो जाने पर कई बार अनमेल विवाह जैसे शारीरिक रूप से अक्षम या अधिक उम्रः के व्यक्ति के साथ विवाह कर दिया जाता है.

उपाय व कानून

दहेज निरोधक कानून 1961

इस प्रथा को समाप्त करने के उद्देश्य से वर्ष 1961 में इस कानून को पारित किया गया. यह अधिनियम 20 मई 1961 से लागू हुआ. 1984 में इसमें संशोधन हुआ तथा 1986 में इसे पुनः संशोधित किया गया, ताकि यह कानून और अधिक शक्तिशाली बन सके.

अब इस कानून के तहत न्यायालय अपने ज्ञान के आधार पर किसी भी मान्यता प्राप्त कल्याण संस्था की शिकायत पर कार्यवाही कर सकता है. इन अपराधों की ठीक प्रकार से जांच करने के लिए इसे गैर जमानती अपराध की श्रेणी में रखा गया है.

इस अधिनियम के तहत दहेज लेने या देने के लिए प्रेरित करने वाले व्यक्ति को कम से कम 5 वर्ष तक का कारावास या न्यूनतम 15000 रूपये या दहेज की रकम जो भी अधिक हो, का आर्थिक दंड या दोनों सजाएं न्यायालय द्वारा दी जा सकती है.

दहेज कानून इंडियन पैनल कोड

भारतीय कानून संहिता (ipc) में एक नया अनुच्छेद 304B हाल ही के वर्षों में जोड़ा गया है. जिसके अनुसार यदि लड़की की मृत्यु विवाह के 7 वर्ष के अंदर असामान्य परिस्थितियों में हुई हो तो, इसमें पति या उसके परिवार वालों को प्रमाण प्रत्र देने का उत्तरदायी ठहराया गया है.

तथा यदि के दहेज हत्या के दोषी है तो यह कानून उन्हें 7 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक का प्रावधान करता है. अधिनियम में दहेज निषेध अधिकारी की नियुक्ति का भी प्रावधान किया गया है. दहेज के मामलों को प्रभावशाली ढंग से निपटाने के लिए दहेज विरोधी प्रकोष्ठ की स्थापना की गई है.

IPC की धारा 498 A भी पत्नी को उसके पति या ससुराल वालों की ओर से दहेज हेतु प्रताड़ित करने पर दोषियों को तीन वर्ष तक की सजा का प्रावधान करती है.

महिलाओं का घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम

भारतीय संसद द्वारा महिलाओं को घरेलू उत्पीड़न व अपराधों से बचाने के लिए जिनमें दहेज के लिए तंग करना भी शामिल है. यह अधिनियम पारित किया गया था. इस अधिनियम के तहत महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा के विरुद्ध दीवानी न्याय (civil remedy) उपलब्ध करवाने का प्रावधान है.

इस अधिनियम के तहत न्यायालय को पीड़ित महिला को न्यायिक सुरक्षा प्रदान करने व दोषी पक्षकार को मौद्रिक परितोष (Monetary gratification) प्रदान करने का अधिकार भी दिया गया है.

रोकने के उपाय

जैसे जैसे समाज में शिक्षा का स्तर बढ़ेगा, वैसे वैसे दहेज प्रथा, बाल विवाह आदि कुप्रथाएँ समाप्त होती जाएगी. अब लड़कियां भी शिक्षित होकर अपने पैरों पर खड़ी होने लगी है. अतः शिक्षित परिवारों में दहेज की पूर्व जिसु अनिवार्यता काफी हद तक कम होने लगी है.

साथ ही समाज में अन्तर्रजातीय विवाह को बढ़ावा देकर भी इस प्रथा को कम किया जा सकता है.

दहेज प्रथा पर भाषण- Short Speech on Dowry System in Hindi

हमारे समाज में दहेज प्रथा एक भयावह कुरीति का रूप ले रही हैं, आए दिन कई बहिन बेटियां इस अभिशापित प्रथा के चलते अपना जीवन गंवा रही हैं.

मेरे प्रिय गुरुजनों प्यारे दोस्तों एवं मंच की शोभा मुख्य अतिथि महोदय, समस्त मेरे शिक्षकों एवं स्टूडेंट्स फ्रेड्स को मेरी ओर से प्रणाम. मैं रोहन कक्षा 9 का विद्यार्थी हूँ, आज के भाषण समागम में मैं दहेज़ प्रथा एक अभिशाप विषय पर बोलने जा रहा हूँ.

रीति रिवाज एवं प्रथाएं समाज का अभिन्न अंग होती हैं, समय के साथ साथ इनका स्वरूप भी बदल जाता हैं. भारत में दहेज़ की प्रथा काफी पुरातन हैं.

सबसे प्राचीन ग्रन्थ मनुस्मृति में विवाह के अवसर पर कन्या के माता पिता को कुछ धन, सम्पति, गाय इत्यादि देने की बात कहीं गई हैं, जो दहेज कहलाता था.

मगर इस ग्रन्थ में ऐसा कही नहीं कहा गया कि बेटी को कितना धन का भाग दिया जाए. यह स्वैच्छिक प्रथा कालान्तर में वर पक्ष के लिए अधिकार के रूप में प्रतिस्थापित कर दी गई. बदलते दौर में इसने एक सामाजिक बुराई और कुप्रथा के स्वरूप को अपना लिया.

दहेज प्रथा आज के आधुनिक समाज में एक महादानव का रूप ले चूका हैं. यह ऐसा विषैला सर्प है जिसका डंसा पानी नहीं मांगता हैं. इस कुरीति के कारण विवाह जैसे पवित्र संस्कार को एक व्यापार बना दिया गया.

भारतीय हिन्दू समाज के सिर पर कलंक बन चुकी हैं. जिन्होंने न जाने कितने घरों को बर्बाद कर दिया, अनेक अल्पायु में बहनों को घूट घुट कर जीवन जीने को मजबूर हो जाती हैं.

इस प्रथा ने समाज में अनैतिकता को बढ़ावा भी मिला जिससे पारिवारिक संघर्ष को तेजी से बढ़ रही हैं. इस प्रथा के चलते बाल विवाह, बेमेल विवाह और विवाह विच्छेद जैसी विकृतियों ने हमारे समाज में स्थान पा लिया.

दहेज की समस्या आजकल बड़ी तेजी से बढ़ती जा रही हैं. धन के लालच के कारण पति पक्ष के लोग विवाह में दहेज से संतुष्ट नही होते हैं. इसके नतीजेजन बेटियों को जीवित ही जला दिया जाता हैं.

इसके कारण बहुत से परिवारों तो लड़की के जन्म को अभिशाप मानने लगे हैं. यह समस्या दिन प्रतिदिन तो लड़की के जन्म को अभिशाप मानने लगे हैं. यह समस्या दिन प्रतिदिन विकराल रूप में धारण करती जा रही हैं. धीरे धीरे सारा समाज इसकी चपेट में आता जा रहा हैं.

इस सामाजिक कोढ़ से छुटकारा पाने के लिए हमें भरसक प्रयास करना चाहिए, इसके लिए हमारी सरकार द्वारा अनेक प्रयास भी किये हैं उदहारण के लिए हिन्दू उतराधिकार अधिनियम पारित कर दिया.

इसमें कन्याओं को पैतृक सम्पति में अधिकार मिलने की व्यवस्था हैं. दहेज़ प्रथा को दंडनीय अपराध घोषित किया तथा इसकी रोकथाम के लिए दहेज़ निषेध अधिनियम पारित किया गया. तथा इसकी रोकथाम के लिए दहेज निषेध अधिनियम पारित किया गया.

इन सबका बहुत प्रभाव नहीं पड़ा हैं. इसके उपरान्त विवाह योग्य आयु की सीमा बढ़ाई गई. आवश्यकता इस बात की हैं कि कठोरता से पालन किया जाय.

लड़कियों को उच्च शिक्षा दी जाए, युवा वर्ग के लिए अन्तर्रजातीय विवाह सम्बन्धों को बढ़ावा दिया जाए ताकि वे इस कुप्रथा का डट कर सामना किया जा सके. अतः हम सबकों मिलकर इस प्रथा को जड़ से ही मिटा देनी चाहिए तभी हमारा समाज और देश आगे बढ़ सकता हैं.

दहेज एक समय अच्छी सामाजिक प्रथा थी, माता पिता अपनी बेटी को उपहार स्वरूप कुछ उपहार दिया करते थे, जिसे दहेज का नाम दिया जाता था.

मगर बदलते वक्त के साथ इसका स्वरूप विकृत होता चला गया और आज वर पक्ष की तरफ से धन की मांग की जाने लगी हैं. एक तरह से बेटी का मोल भाव किया जाने लग गया हैं. विचारों की पतनशीलता को रोकने के लिए समाज को अपने स्तर पर ऐसी अमानवीय प्रथा पर रोक लगानी होगी.

आज हम सभी को यह संकल्प लेना हैं कि हम न तो अपनी बेटी को दहेज देगे और न ही अपनी बहु से दहेज मांगेगे, जब हर एक भारतवासी ऐसा सोचेगा तो अपने आप इस प्रथा का उन्मूलन हो जाएगा.

हमारे छोटे से प्रयास से किसी बहु बेटी को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ना से मुक्ति मिल सकती हैं. इन दो पंक्तियों के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देना चाहुगा.

दहेज़ की खातिर, लड़की को मत जलाओ,
अगर वास्तव में मर्द हो तो, कमाकर खिलाओ.

Leave a Comment