राजस्थान के लोक देवता पर निबंध | Essay On Folk God Of Rajasthan In Hindi

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राजस्थान के लोक देवता पर निबंध | Essay On Folk God Of Rajasthan In Hindi

Essay On Folk God Of Rajasthan In Hindi

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Essay On Folk God Of Rajasthan In Hindi In 600 words

लोक देवता का आशय– लोक देवता/ देवी से तात्पर्य ऐसे महापुरुषों महान स्त्रियों से हैं, जो मानव रूप में जन्म लेकर अपने असाधारन एवं लोकोपकारी कार्यों के कारण दैवीय अंश के रूप में स्थानीय जनता के द्वारा स्वीकारे गये हैं. इनके जन्मस्थल अथवा समाधि पर मेले लगते हैं.

प्रमुख लोक देवताओं का संक्षिप्त परिचय एवं उनके जनहितकारी कार्य– राजस्थान में लोक देवताओं की एक लम्बी परम्परा रही हैं. क्षेत्र विशेष के अपने अपने लोक देवता हैं.

कुछ सर्वमान्य लोकदेवता भी हैं, जो राजस्थान की सीमाओं से भी बाहर के लोगों की आस्था का केंद्र बने हुए हैं. कुछ प्रमुख देवताओं का संक्षिप्त परिचय एवं उनके जनहितकारी कार्य इस प्रकार हैं.

  • गोगाजी– इनका जन्म 1003 ई में चुरू जिले के ददरेवा नामक स्थान पर हुआ था. इनके पिता का नाम जेवरसिंह तथा माता का नाम बांछ्ल था. ये चौहान राजपूत थे. गोगाजी को जाहरपीर व साँपों का देवता भी कहा जाता हैं. इनकी स्मृति में भाद्रपद कृष्ण नवमी (गोगानवमी) को गोगामेड़ी हनुमानगढ़ में मेला लगता हैं. गोगाजी का प्रतीक घोड़ा हैं. गोगामेड़ी व ददरेवा चुरू प्रमुख स्थल हैं. जहाँ गौरख टीला है, वहीँ नाथ सम्प्रदाय का विशाल मन्दिर भी स्थित हैं. गोगाजी ने गौ रक्षा एवं मुस्लिम आक्रान्ताओं महमूद गजनवी से देश की रक्षार्थ अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे.
  • तेजाजी- इनका जन्म नागवंशीय जाट परिवार में सन 1047 में नागौर जिले में खड़नाल गाँव में हुआ था. पिता का नाम ताहड़जी व माता का नाम राजकुंवरी था. तेजाजी का भोपा जो कि घोडला भी कहलाता हैं. सर्प के विष से लोगों को मुक्ति दिलाता हैं. ये गायों को मेरों से मुक्त कराने के प्रयास में शहीद हुए. इनकी सर्पों के देवता के रूप में पूजा होती हैं. तेजाजी के पुजारी को घोडला व चबूतरों को थान कहा जाता हैं. नागौर जिले के परबतसर गाँव में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला दशमी को पशु मेला भरता हैं. सर्प एवं कुत्ते के काटने पर पूजा होती हैं. इनके थान अजमेर जिले के सुरसुरा ब्यावर सेंदरिया, भावता में भी हैं. ये विशेषतः अजमेर जिले के लोकदेवता हैं.
  • रामदेवजी– ये प्रमुख लोकदेवता हैं. इनका जन्म बाड़मेर जिले के उन्डूकासमेर गाँव में हुआ था. इनका जन्म विक्रम सम्वत 1409 से 1462 के मध्य माना जाता हैं. इनके पिता का नाम अजमाल एवं माता का नाम मैनादे था. समाज सुधारक होने पर हिन्दू मुस्लिम एकता पर बल देने के कारण लोग इन्हें लोकदेवता के रूप में पूजते हैं. पोकरण जैसलमेर के पास रुणेचा में इनकी समाधि हैं. जहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक मेला भरता हैं. रुणेचा को आज रामदेवरा के नाम से भी जाना जाता हैं. रामदेवजी को हिन्दू कृष्ण अवतार के रूप में तथा मुसलमान रामसा पीर के रूप में पूजते हैं. रामदेवजी का प्रतीक चिह्न पगलिये हैं. रामदेवजी के मेला का प्रमुख नृत्य तेरहताली हैं. जिसे कामड जाति की स्त्रियाँ करती हैं. ये लोकदेवताओं में एकमात्र कवि माने जाते हैं. चौबीस वाणियों इनकी प्रमुख रचनाएं हैं. इन्होने कामड पन्थ को प्रारम्भ किया.
  • पाबूजी– जन्म सन 1239 फलौदी जोधपुर तहसील के कोलू गाँव में हुआ था. ये मारवाड़ के राठौड़ वंश से सम्बन्धित थे. ये ऊँटों के देवता के रूप में प्रसिद्ध हैं. राजस्थानी लोक साहित्य में पाबूजी को लक्ष्मणजी का अवतार माना जाता हैं. पाबूजी का प्रतीक चिह्न भाला के लिए अश्वारोही हैं. पाबूजी का प्रमुख उपासना स्थल कोलू फलौदी हैं, जहाँ प्रतिवर्ष मेला भरता है. ये राइका थोरी, मेहर जाति के आराध्य हैं. इनसे सम्बन्धित गाथा गीत, पाबूजी के पवाडे नायक एवं रैबारी जाति के लोग माठ वाद्य के साथ गातें हैं. चांदा, डेमा एवं हरमल इनके रक्षक सहयोगी हैं. पाबू प्रकाश इनके जीवन पर प्रमुख पुस्तक हैं. इनका मेला चैत्र माह की अमावस्या का मरला भरता हैं.

इसके अतिरिक्त मल्लिनाथ जी, देवनारायण जी, भूरिया बाबा, बिग्गाजी, बाबा तल्लीनाथ जी, बीर कल्ला जी, हडबू जी, झुंझारु जी, देव बाबा, मामा देव, भोमिया जी आदि प्रमुख लोक देवता हैं.

लोक देवता और लोक आस्था-लोकदेवता अपने जीवनकाल में ही लोकहितकारी कार्यों व समाज सेवा के कारण समाज द्वारा आदर सम्मान के पात्र बन जाते हैं. जीते जी आस पास के लोग इन्हें महापुरुष के रूप में प्रतिस्ठा देने लग जाते हैं.

कालान्तर में यह आत्म सम्मान की भावना उनके न रहने पर उनकी समाधि व स्थल पर आस्था के रूप में प्रकट होती हैं. यही आस्था लोक देवता के प्रति लोक अवस्था में बदल जाती हैं.

उपसंहार- राजस्थान की वीरप्रसू भूमि महान वीरों के साथ साथ अनेक संतों महापुरुषों की जन्मस्थली रही हैं. परम्परा में राजस्थान की इस पुण्य धरा पर जन्म लेकर अपने जीवनकाल में संत महापुरुष के रूप में प्रतिष्ठित होकर लोक देवता/ देवी के रूप में सर्वमान्य हुए.

आज भी लाखों लाख की आस्था के केंद्र लोकदेवता अपने जनहितकारी कार्यों के कारण जनमानस द्वारा पूजनीय हैं.

राजस्थान के प्रमुख लोक देवता पर निबंध, Essay On Folk God Of Rajasthan In Hindi

लोकदेवता से आशय (Meaning of folk god)

ऐसे महापुरुषों को स्थानीय जनता द्वारा लोकदेवता माना जाता है जो मानव रूप में जन्म लेकर जनता की भलाई के अनोखे कार्य करते हुए अपना जीवन समर्पित करते है.

दैविक अंश की तरह प्रतीक रूप में पूज्य होते हैं ये लोक देवता देवी देवता के चमत्कारी शक्ति से मंडित होते हैं तथा इनकी समाधियों या थानों पर मेले आदि लगते है.

प्रमुख लोकदेवताओं का संक्षिप्त परिचय

राजस्थान के प्रमुख लोक देवताओं में बाबा रामदेव, गोगाजी, देवनारायण जी, तेजाजी, पाबूजी, भौमियाजी, डुंगजी, जवाहरजी, कल्लाजी, हड्बूजी, देव बाबाजी, केसरियाजी, झुंझारजी, बिग्गाजी आदि की विशेष मान्यता है. रामदेवजी जैसलमेर जिले के पोकरण के पास रुणिचा गाँव में रहते थे.

इस स्थान को अब रामदेवरा और रामदेवजी को रामसापीर कहते हैं. मारवाड़ के पांच पीरों में गोगाजी का नोहर में गोगामेड़ी मेला भरता है.

देवनारायण जी गुर्जर जाति के लोकदेवता है, उनका पूजा स्थल आसींद तथा देवधाम जोधपुरिया हैं. तेजाजी सारे राजस्थान में पूज्य हैं. नागौर जिले के परबतसर में इनका मेला भरता हैं.

पाबूजी फलौदी के कोलू गाँव में, देवबाबा का भरतपुर के नगला जहाज में, हड़बूजी का भुंडेल नागौर में, भौमियाजी का सारे राजस्थान के भूमि रक्षक देव के रूप में, झुंझारजी का सीकर के इमलोहा कस्बें में तथा बिग्गाजी का जांगल क्षेत्र में मेला भरता हैं. भौमियाजी को छोड़कर सारे लोक देवता किसी न किसी वंश परम्परा से माने जाते हैं.

हरभू जी

इनका जन्म नागौर के सांखला राजपूत परिवार में हुआ था। यह रामदेव जी के मौसेरे भाई लगते हैं और सांखला राजपूत इन्हें आराध्य देव के तौर पर पूजते हैं।

जोधपुर के बेंगटी गांव में इनका मंदिर मौजूद है। इनके द्वारा राव जोधा को मंडोर को मुक्त कराने के लिए कटार उपहार के तौर पर दी गई थी। इनके मंदिर में इनकी गाड़ी की पूजा-अर्चना होती है। इनके गुरु जी का नाम बालीनाथ था।

मेहा जी

इन्हें मांगली इष्ट देव के तौर पर पूजते हैं और इनका मुख्य मंदिर राजस्थान के जोधपुर जिले में मौजूद है। इनके घोड़े का नाम किरड़ काबरा था और भाद्र कृष्ण अष्टमी को इनका मेला जोधपुर शहर में लगता है।

देवनारायण जी

भीलवाड़ा जिले के आसींद में यह पैदा हुए थे और मध्य प्रदेश के धार इलाके के राजा जयसिंह की पुत्री के साथ इनकी शादी हुई थी। यह गुर्जर जाति के आराध्य देव हैं।

इन्हें विष्णु भगवान का अवतार भी कहा जाता है और इनके नाम पर विशाल मेला भाद्र शुक्ल सप्तमी को लगता है व। इनका मुख्य मंदिर आसींद में सवाई भोज मंदिर है और टोंक में देव धाम जोधपुरिया है।

देवबाबा जी

इनका जन्म राजस्थान के भरतपुर जिले के नगला जहाज नाम के इलाके में हुआ था और इनके नाम का मेला भाद्र शुक्ल पंचमी को लगता है। यह भी गुर्जर जाति के आराध्य देव हैं। इनका उपनाम ग्वालों का पालन हारा है।

वीर कल्ला जी

इनका जन्म नागौर के मेड़ता इलाके में हुआ था। इन्हें शेषनाग का अवतार और चारभुजा वाला देवता भी कहा जाता है। इनके गुरु जी का नाम योगी भैरवनाथ था। साल 1567 में चित्तौड़गढ़ के तृतीय युद्ध में अकबर के साथ युद्ध करने के दरमियान यह वीरगति को प्राप्त हुए थे।

मीराबाई रिश्ते में इनकी बुआ लगती है। इन्हें जड़ी बूटी और योगाभ्यास की जानकारी थी। राजस्थान में इनकी सबसे ज्यादा मान्यता दक्षिण राजस्थान में है।

लोक देवता के जनहितकारी कार्य

अनेक लोकहितकारी एवं जनरक्षक चमत्कारी कार्य करने से लोक देवताओं की पूजा की जाती हैं. रामदेवजी ने जाति पांति छुआछूत आदि का विरोध कर हिन्दू मुस्लिम एकता स्थापित की. गोगाजी ने रणभूमि में प्राणोंत्सर्ग किया, ये सर्पदंश का अचूक उपचार करते थे.

तेजाजी कृषि कार्यों के उपकारक थे. देवनारायण जी ने गोबर और नीम का औषधि के रूप में महत्व बताया. हड़बूजी और बिग्गाजी गौरक्षक थे.

पाबूजी गायों एवं ऊंटों के रक्षक थे. इनमें से कई लोक देवता गायक भी थे. इनकी वाणियाँ, पड़ या फड़ लोक जीवन में आस्था के साथ गाएं जाते हैं.

लोकदेवता और लोक आस्था

राजस्थान में अनेक स्थानों, अंचलों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में लोक देवता की मान्यता परम्परानुसार चल रही हैं. ये लोक देवता अपने चमत्कारी कार्यों से जनता के रक्षक के रूप में माने जाते हैं. इसी कारण लोक जीवन में इन पर घनिष्ठ आस्था हैं.

प्रत्येक लोक देवता के जन्म दिवस अथवा समाधि स्थल पर निश्चित मॉस तिथि वार को मेले लगते हैं और बड़ी आस्था से इनका पूजन एवं यात्राओं, जुलूसों का आयोजन होता हैं. इनके पदों एवं वाणियों का भी गायन होता है रतजगे चलते है. यह सब लोक आस्था से ही किया जाता हैं.

उपसंहार

राजस्थान के ग्रामीण जीवन में लोक देवताओं पर विशेष आस्था दिखाई देती है. इसी से यहाँ प्रतिवर्ष अनेक मेले उत्सव आदि के आयोजन पूरी श्रद्धा से किये जाते हैं. इनका लोकमंगल की भावनाओं से गहरा सम्बन्ध हैं.

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