Essay on Mahavir Jayanti in Hindi महावीर जयंती पर निबंध : जैन धर्म के तीर्थकर भगवान महावीर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं देते हैं.
इस साल 14 अप्रैल को वर्द्धमान महावीर जयंती हैं इस पर आपके लिए छोटा बड़ा हिंदी निबंध एस्से भाषण speech आर्टिकल अनुच्छेद नोट्स तथा जयंती फेस्टिवल की जानकारी आपके साथ साझा कर रहे हैं.
लार्ड महावीरजी की जयंती कब और क्यों मनाते है तिथि महत्व के बारें में जानते हैं.
महावीर जयंती पर निबंध Essay on Mahavir Jayanti in Hindi
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महावीर जयंती Mahavir Jayanti in Hindi
वर्द्धमान महावीर स्वामी का जन्म आज से करीब 2500 वर्ष पूर्व बिहार के वैशाली जिले के कुंड नामक ग्राम में हुआ था. किसी समय में कुंड ग्राम जान्तरिक नामक क्षत्रियों का गणराज्य था.
महावीरजी के पिताश्री उक्त गणराज्य के अधिपति थे. उनकी माता त्रिशाला देवी, लिच्छवी गणराज्य की शासन सत्ता के प्रधान चेतक की बहन थीं. इस प्रकार महावीरजी के पिता तथा माता दोनों ही राजवंश से सम्बन्धित थे.
महावीरजी के युवा होने पर उनका विवाह यशोदा नाम की एक सुंदर राजकुमारी से किया गया, जिसने कालांतर में एक कन्या को जन्म दिया था.
वर्द्धमान की आयु केवल 30 वर्ष थी जब उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था. माता पिता के देहावसान के बाद अपने बड़े भाई से आज्ञा लेकर वर्द्धमान गृह त्याग करके तपस्या करने के लिए घोर जंगल में चले गये.
स्वामी ने अनवरत १२ वर्षों तक कठोर तपस्या कि इसके बाद उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई तथा इन्होने अपनी सम्पूर्ण इन्द्रियों पर काबू पा लिया. इस कारण उन्हें जितेन्द्रिय व जिन के रूप में जाना गया.
उनकी तपस्या की राह भी सरल नहीं थी, बहुत से लोगों द्वारा इन्हें परेशान किया गया मगर वे अपनी राह पर अटल रहे तथा महावीर कहलाए.
जैन धर्म के पांच प्रमुख सिद्धांतों का महावीर ने प्रतिपादन किया, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य ये उनके पांच मुख्य सिद्धांत अथवा तीर्थ थे.
इसके अलावा इन्होने 18 अकर्मों को भी बताया जो मानव को नहीं करने चाहिए वे इस प्रकार हैं. हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मोह, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, दोषा रोपण, चुगली, निंदा, छल, मिथ्या दर्शन तथा असंयम रति आदि.
जैन धर्म में सन्यासी के लिए महावीर जी ने तम, योग और यज्ञ इन तीन पावन गुणों को बताया हैं वही उन्होंने एक गृहस्थ के लिए अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह तथा सब वासनाओं से दूर रहने अथवा ब्रह्मचर्य का गुण बताया हैं.
महावीर स्वामी ने व्यक्ति के आचरण अर्थात व्यवहार को सर्वोच्च प्राथमिकता दी हैं उनके अनुसार अच्छे व्यवहार के बल पर ही कोई व्यक्ति अपना भविष्य बना सकता हैं.
निर्वाण के सम्बन्ध में महावीर स्वामी के विचार बेहद स्पष्ट और व्यवहार में बेहद कठिन भी माने गये हैं. उनके अनुसार एक गृहस्थ साधक निर्वाण अर्थात मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकता.
निर्वाण के लिए उन्हें सब प्रकार के त्याग की आवश्यकता होती हैं उसे घर परिवार रिश्ते नाते यहाँ तक कि वस्त्र का भी त्याग करना पड़ता हैं.
स्वामी जी के विचारों को दिगम्बर मत के जैन अनुसरण करते हैं जबकि श्वेताबर मुनि महावीर के इन विचारों को नही मानते हैं तथा सफेद वस्त्र धारण करते हैं.
पूर्व समय में जैन साधक जीवन के अंतिम दिनों में निर्वस्त्र होकर ठंडे गर्म मौसम में पर्वतों में तपस्या करते जीवन त्याग देते थे.
कैवल्य प्राप्ति के बाद महावीरजी अगले चार दशक तक अपने मत मान्यताओं व शिक्षाओं का प्रचार करते रहे. ४२७ ई पू में पटना के पास ही पावापुरी में भगवान महावीर का महाप्रयाण हुआ.
उन्होंने अपने जीवन के समस्त ७० वर्षों में भारत में घूम घूमकर विचारों का प्रचार किया, उनके महाप्रयाण के बाद सुधर्मन अगले जैन प्रधानाचार्य बने.
भारत में दुनिया के सर्वाधिक जैन धर्म को मानने वाले लोग भारत में रहते हैं. अन्य धर्मों की तुलना में इनकी संख्या बेहद कम हैं मगर देश का बहुसंख्यक वर्ग जैन मत तथा महावीर स्वामीजी के प्रति अगाध श्रद्धा रखता हैं. वणिक वर्ग जो व्यापार क्षेत्र में लगे होते हैं वे इस मत को मानते हैं,
भारत में चैत्र शुक्ल द्वादशी तिथि के दिन भगवान महावीर स्वामी की जयंती हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती हैं. महावीर के विचार न सिर्फ जैन मत को मानने वालों के लिए बल्कि समस्त भारतीयों के लिए प्रेरणा व आदर्श के स्रोत हैं उन्हें भारतवर्ष के महान पुरुष व अवतारों की श्रेणी में ऊपर रहेगे.