शहरीकरण, नगरीकरण पर निबंध | Essay on Urbanization in Hindi

आज के शहरीकरण, नगरीकरण पर निबंध Essay on Urbanization in Hindi में स्टूडेंट्स जानेगे कि नगरीकरण का अर्थ क्या है इसकी परिभाषा शहरीकरण के कारण परिणाम तथा रोकने के उपायों पर गांव से शहर में हो रहे पलायन के कारण दुष्परिणाम और प्रभावों पर हिंदी में निबंध यहाँ दिया गया हैं.

शहरीकरण, नगरीकरण पर निबंध Essay on Urbanization in Hindi

शहरीकरण, नगरीकरण पर निबंध | Essay on Urbanization in Hindi

भारत आज गाँवों से शहरों की ओर तेजी से पलायन हो रहा है जिन्हें एक विशेष शब्दावली शहरीकरण अथवा नगरीकरण के नाम से जाना जाता हैं,

निरंतर लोगों के शहरों में काम धंधे तथा सुख सुविधाओं के लिए आकर बसने से शहरों की हालत और अधिक खस्ता हो रही हैं. लोगों को घर बनाने के लिए जगह नहीं बस रही हैं. गाँव निरंतर खाली हो रहे.

शहरीकरण पर निबंध

भारत का भविष्य ग्रामीण विकास के साथ साथ नगरों के विकास एवं महानगरीय क्षेत्रों के विकास से जुड़ा हैं.

यदपि बढ़ते नगरीकरण ने प्रदूषण, अत्यधिक भीड़ एवं गंदी बस्तियों, बेरोजगारी, गरीबी, अपराध, बाल अपराध, संचार एवं यातायात नियंत्रण, हिंसा, स्त्रियों के प्रति यौन शोषण, तनाव एवं दवाब जैसी अनेक समस्याओं को जन्म दिया हैं. तथापि नगर, सभ्यता एवं संस्कृति तथा विकास के केंद्र होते हैं.

शहरीकरण या नगरीकरण क्या हैं. (What Is The Meaning Of Urbanization In Hindi)

वास्तव में, लोगों का ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहरों की ओर पलायन ही नगरीकरण कहलाता हैं. समाजशास्त्री एडरसन का मानना है कि नगरीकरण में न केवल जनसंख्या का नगरों की ओर जाना निहित है बल्कि जाने वालों की अभिव्रतियों, विश्वासों, मूल्यों और व्यवहार प्रतिमानों में परिवर्तन भी शामिल हैं.

नगरीय शब्द का प्रयोग जनसंख्यात्मक सन्दर्भ के अंतर्गत जनसंख्या आकार, जनसंख्या के घनत्व और निवासियों के काम की प्रवृति पर बल देता है, जबकि दुसरे समाजशास्त्रीय अर्थ में यह विषमता, अवैयक्तिक, परस्पर निर्भरता और जीवन की गुणवत्ता पर केन्द्रित हैं.

नगरों में लोग सामान्यतया गैर कृषि कार्यों में लगे होते हैं जैसे निर्माण, वाणिज्य, व्यापार, नौकरी एवं विभिन्न पेशों में. नगरीय समुदाय आकार में बड़े होते हैं. शहरी समुदाय में जनसंख्या घनत्व भी अधिक होता हैं.

शहरी क्षेत्रों में लोग मानव निर्मित वातावरण से घिरे एवं प्रकृति से कटे होते हैं. नगरीय समुदाय अधिक विषम एवं वर्ग के आधार पर स्तरीकृत होता हैं.

नगरीय क्षेत्र की गतिशीलता ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक होती हैं. शहरी क्षेत्रों में व्यक्तियों के बीच सम्बन्ध अवैयक्तिक, आकस्मिक, संविदात्मक एवं अल्पकालिक होते हैं.

शहरीकरण का प्रभाव

नगरीकरण न केवल परिवार सरंचना को प्रभावित करता है बल्कि प्रिवात के अंतरपरिवारिक सम्बन्धों के साथ साथ परिवार द्वारा किये जाने वाले कार्यों को भी प्रभावित करता हैं.

नगरीय क्षेत्रों में जाति और नातेदारी के कार्य में भी कुछ परिवर्तन आर हैं. नगरीय क्षेत्रों में लोगों के बीच दिन प्रतिदिन अंतर्क्रिया में न तो जाति को और न ही धर्म को अधिक महत्व दिया जाता हैं.

उदहारण के लिए विभिन्न अवसरों पर सामाजिक और आर्थिक सहायता के लिए लोग जाति और नातेदारी की अपेक्षा पड़ोसियों, परिचितों एवं अपने कार्यालय के सहयोगियों पर अधिक निर्भर रहते हैं.

नगरीकरण के साथ साथ जाति पहचान समाप्त होती जाती हैं. नगर के लोग ऐसे सम्बन्धों में भाग लेते हैं, जिनमें अनेक जातियों के लोग होते हैं.

नगरों में लोग जाति प्रतिमानों का कठोरता से पालन नहीं करते हैं. सहयोग सम्बन्धों, विवाह सम्बन्धों सामाजिक सम्बन्धों एवं व्यावसायिक सम्बन्धों में भी परिवर्तन हो रहा हैं. नगरों में स्त्रियों की स्थिति गाँवों की स्त्रियों की तुलना में ऊँची हैं.

नगरों में स्त्रियाँ तुलनात्मक रूप से अधिक उदार एवं अधिक शिक्षित होती हैं. वे न केवल आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक अधिकारों के प्रति जागरूक हैं.

बल्कि अपमान एवं शोषण से बचने के लिए वे इन अधिकारों का प्रयोग भी करती हैं. नगरों में विवाह योग्य लड़की की औसत आयु गाँवों की अपेक्षा अधिक होती हैं.

स्त्रियों की शिक्षा से विवाह की आयु में वृद्धि तथा जन्म दर में कमी हुई हैं. लेकिन इसमें दहेज़ के साथ परम्परागत तयशुदा विवाह के स्वरूप में कोई क्रन्तिकारी परिवर्तन नहीं हुआ हैं.

लड़कियाँ नयें अवसर तो चाहती है, लेकिन साथ ही सुरक्षा भी. वे अपनी नई स्वतंत्रताओं का भोग भी करना चाहती हैं साथ ही साथ अपने पुराने मूल्यों को भी जारी रखना चाहती हैं.

तलाक और पुनर्विवाह के मामले शहरी स्त्रियों में अधिक देखने को मिलते हैं.आज स्त्रियाँ कानून तलाक में अधिक पहल करती हैं. राजनीतिक दृष्टि से भी शहरी स्त्रियाँ अधिक सक्रिय हैं.

चुनाव लड़ने वाली स्त्रियों की संख्या हर स्तर पर बढ़ी हैं वे महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं और उनकी विचारधारा भी स्वतंत्र हैं. कहा जा सकता हैं कि शहरी स्त्रियाँ ग्रामीण स्त्रियों की अपेक्षा अधिक आत्म निर्भर हैं और अधिक स्वतंत्रता का लाभ उठाती हैं.

शहरीकरण के कारण व समस्याएं

नगरीकरण सामाजिक गतिशीलता के लिए अधिक अवसर प्रदान करता हैं. आज के युग में व्यक्ति की व्यवसायिक प्रतिष्ठा अधिकतर उसकी शिक्षा पर निर्भर करती हैं.

जितनी ऊँची शिक्षा होगी, उतनी ही ऊँची व्यवसायिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने की संभावना बनती हैं. क्योंकि नगरीय समुदाय अच्छे शैक्षिक अवसर प्रदान करते हैं.

इसलिए यहाँ प्रस्थिति गतिशीलता के अवसर भी अधिक होते हैं लेकिन इन सबके अतिरिक्त नगरीकरण के साथ अनेक समस्याएं भी जुड़ी हुई हैं. महत्वपूर्ण नगरीय समस्याओं की जानकारी इस प्रकार हैं.

नगरीकरण की समस्याएं व समाधान (urbanization problems and solutions)

नगरों में रहने के लिए पर्याप्त मकान न मिलना एक गम्भीर समस्या हैं. गरीब एवं मध्यम वर्ग के लोगों की मकान की जरूरतों में तालमेल बिठाने में सरकार, उद्योगपति, पूंजीपति, उद्यमी, ठेकेदार और मकान मालिक असमर्थ हैं.

भारत के बड़े बड़े नगरों में रहने वाली नगरीय जनसंख्या का एक चौथाई और आधे के बीच की आबादी झोपड़ पट्टियों में रहती हैं. लाखों लोगों को अत्यधिक किराया देना पड़ता हैं.

हमारी लाभोंमुख अर्थव्यवस्था में निजी मकान भवन मालिक और कोलोनी बसाने वाले लोग नगर में गरीबों और मध्यमवर्गीय लोगों के लिए मकान बनाने में कम लाभ देखते हैं.

जबकि धनी और उच्चवर्ग के लोगों की मकान आवश्यकताओं पर ध्यान केन्द्रित करने में अधिक लाभ समझते हैं. इसी का परिणाम हैं उच्च किराया और उपलब्ध मकानों में अत्यधिक भीड़ हैं.

लगभग आधी जनसंख्या खराब मकानों में रहती है या किराएं पर अपनी आय का 20 प्रतिशत व्यय करती हैं. इस प्रकार नहर में मकान भी आज की रोटी और कपड़े के बाद सबसे बड़ी समस्या बना हुआ हैं.

भीड़ और लोगों की उदासीनता सम्बन्धी समस्या शहरी जीवन की उपज हैं. कुछ घर तो इतनी अधिक भीड़ वाले होते हैं. उसमें एक कमरे में पांच छः व्यक्ति रहते हैं. अधिक भीड़ विचलित व्यवहार को प्रोत्साहित करती हैं.

तथा बीमारियाँ फैलाती हैं. इसके अतिरिक्त निर्व्यक्तिकता के कारण लगर के लोग दूसरों के मामले में उलझना नही चाहते हैं. इसलिए अन्य लोगों के प्रति उदासीन बने रहते हैं.

नगरीकरण के दुष्परिणाम नुक्सान (Causes, Effects and Solutions to Urbanization)

भारत के सभी नगरों में परिवहन एवं यातायात की तस्वीर अत्यंत असंतोषजनक हैं. कारों, मोटरसाइकलों की आदि की बढती संख्या ने यातायात की समस्या को और अधिक भीषण बना दिया हैं. ये वाहन धुंए के साथ वायु को भी दूषित करते हैं.

इसके अतिरिक्त बड़े शहरों में दैनिक यात्रियों के लिए चलने वाली बसों या मेट्रों पर्याप्त संख्या में नहीं हैं जिसके कारण लोगों को घंटों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती हैं. और साथ ही यातायात जाम के कारण उनका बहुमूल्य समय भी नष्ट होता हैं.

भारतीय नगरों में नगरपालिकाएं और निगम कुव्यवस्थाओं में इतने अधिक घिरे है कि उनके अन्य सब कार्यों में तो रूचि रहती हैं, परन्तु सफाई में विशेष रूप से कूड़ा हटाने, नालियों की सफाई, सीवरों में रुकावटों को साफ़ करने में कोई रूचि नहीं हैं.

नगरों की व्यवस्था का प्रबंध करने में प्रेरणा का पूर्ण अभाव हैं. भीड़ वाले शहरी क्षेत्रों में अवैध गंदी बस्तियों का विस्तार और उनमें रहने वाले लोगों में नागरिक समझदारी की कमी गंदगी के ढेरों के रूप में बीमारियों को और अधिक बढ़ाती हैं.

भारत के अनेक शहर अपनी बढ़ती गाड़ियों के कारण वायुमंडल को दूषित करते हैं. अधिकांश शहर अपने सम्पूर्ण मल निष्क्रमण का लगभग ४० से ६० प्रतिशत और औद्योगिक सड़े पदार्थों का बहाव बिना शुद्ध किये पास की नदियों में बहा देते हैं.

छोटे से छोटा कस्बा भी अपनी खुली नालियों के द्वारा अपनी गंदगी निकट बहने वाली नदी या नाले में बहा देता हैं. नगरीय उद्योग अपनी चिमनियों से धुआं एवं गंदी गैस छोडकर वातावरण को प्रदूषित करते हैं. प्रदूषण का उच्च स्तर अनेक बीमारियों को आमंत्रित करता हैं.

भारत में नगर असमान रूप से विकसित हो रहे हैं. प्रदूषण, असमानता, घर से कार्यस्थल तक उचित एवं सस्ती परिवहन सुविधा का अभाव, रहने योग्य अच्छे मकान, स्वच्छ वायु एवं पानी की उपलब्धता का अभाव आदि के समाधान के लिए राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों पर बहुत अधिक निर्भर नहीं रहना चाहिए बल्कि स्थानीय निवासियों को भी अपनी बस्तियों के पुनरुद्धार के लिए प्रभावशाली ढंग से सक्रिय होना चाहिए.

शहरीकरण के दुष्प्रभाव पर निबंध – Essay on the Impact of Urbanization in Hindi

प्रस्तावना

इक्कीसवीं सदी नगर सभ्यता की सदी है, ऐसा कहना बहुत ही सही प्रतीत होता है. कम से कम भारत में तो उजड़ते गाँव और प्रतिदिन बसते शहर यही कहानी कह रहे हैं.

शहरी जीवन की बाहरी तड़क भड़क और सुख सुविधाओं से भ्रमित होकर ग्रामीण युवा शहरों की ओर भगा रहे हैं. यह बढ़ता शहरीकरण किस तरह चुपके चुपके जहर परोस रहा हैं. इस पर भोतिक सुख सुविधाओं के दीवानी का ध्यान नहीं हैं.

शहरीकरण का आशय

पहले मनुष्य छोटे समूह के रूप में एक स्थान पर रहने लगे तो ग्राम बने. जब उसने खेती करना सीखा तो उसे एक ही स्थान पर रहने की आवश्यकता हुई.

यही ग्राम धीरे धीरे कस्बों, नगरों तथा महानगरों में विकसित हो गये. महा नगरों के विकास में पाश्चात्य सभ्यता का विशेष योगदान रहा हैं.

शहरों की ओर पलायन के कारण

  • शहरों में रोजगार के पर्याप्त साधन हैं, सरकारों का ध्यान बड़े उद्योगों की तरफ अधिक है जिससे लोग मजदूरी हेतु शहरों की ओर पलायन करते हैं.
  • गाँवों में आज की शिक्षा, चिकित्सा, बिजली, संचार जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव हैं. अधिक सुविधायुक्त जीवन जीने की स्वाभाविक लालसा के कारण लोग शहरों में बसने के लिए ललायित करते हैं.
  • सरकारों का ध्यान भी शहरों के विकास पर अधिक रहता हैं.

शहरीकरण का भारतीय समाज पर प्रभाव

शहरों की तीव्र वृद्धि होने से जो दुष्प्रभाव हमारे समक्ष उत्पन्न हो रहे हैं, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

  1. आवास के नाम पर पेड़ काटे जा रहे हैं तथा कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल घटता जा रहा हैं.
  2. जनसंख्या में वृद्धि से गंदगी में भी बढ़ोतरी हो रही हैं.
  3. पैसों की भागदौड़ में शहरी जीवन नीरस सा प्रतीत होता हैं. मानवीय मूल्य लुप्त हो रहे हैं और अपराधों में बढ़ोतरी हो रही हैं.
  4. पर्यावरण प्रदूषण शहरों की सबसे भयंकर समस्या बन चुका हैं.
  5. भूमि अधिग्रहण को लेकर किसानों का असंतोष और तीव्र विरोध अप्रिय घटनाओं का कारण बन रहा हैं. नंदीग्राम और भट्टा पारसौल जैसी घटनाएँ इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं.

शहरीकरण का निराकरण

बढ़ते शहरों पर नियंत्रण हेतु गाँवों में स्वरोजगार, कुटीर उद्योग आदि को प्रोत्साहन देना होगा. गाँव की प्रतिभा का उपयोग ग्रामीण विकास में ही करने की योजना निर्मित करनी होगी.

कृषि को उद्योग का दर्जा प्रदान कर उससे संबंधित अन्य उद्योग जैसे- पशुपालन, डेयरी, ऑयल मिल, आटा मिल, चीनी उद्योग आदि को प्रोत्साहन दिया जाए तो लोग गांवों में रोजगार का अभाव महसूस नहीं करेंगे.

इसके अतिरिक्त संचार सुविधा, परिवहन सुविधा आदि को भी ग्रामीण संरचना की दृष्टि से विस्तारित किया जाए. शहरों की तुलना में ग्रामीणों को अधिक साधन सुविधाएं देने से लोग पलायन नहीं करेगे और बढ़ते शहरों पर नियंत्रण किया जा सकेगा.

उपसंहार

विकास के पाश्चात्य मॉडल का अंधानुकरण ही शहरीकरण की अबाध वृद्धि का कारण है. यदि ग्रामों की उपेक्षा करते हुए विकास का यही प्रयास जारी रहता है तो वह अधुरा विकास होगा. देश के लाखों गाँवों के विकास में ही देश की प्रगति का मूल मंत्र निहित हैं.

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