गणगौर 2024 व्रत कथा, महत्व, इतिहास Gangaur Pooja Katha In Hindi

गणगौर 2024 व्रत कथा, महत्व, इतिहास Gangaur Pooja Katha In Hindi:-गणगौर राजस्थान समेत उत्तर भारत का मुख्य पर्व हैं.

गणगौर का त्योहार चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता हैं.  गणगौर व्रत 2024 में 25 मार्च से शुरू होकर 11 अप्रैल तक 15 दिनों तक चलेगा. इस लेख में गणगौर की कथा, महत्व, इतिहास पढेगे.

गणगौर सधवा स्त्रियाँ व्रत  रखती हैं. कहा जाता हैं कि इसी दिन भगवान शंकर ने अपनी अरद्धागिनी पार्वती को तथा पार्वती ने तमाम स्त्रियों को सौभाग्य का वर दिया था.

गणगौर 2024 व्रत कथा, महत्व, इतिहास Gangaur Pooja Katha In Hindi

खेलण दो गणगौर
भँवर म्हाने खेलण दो गणगौर
जो म्हारो सैयों जो है बाट
माथे न मैमद लाब
म्हारी रखड़ी रतनजड़ी
भँवर म्हाने खेलण दो गणगौर

गणगौर पूजन के समय रेणुका की गौरी (गौर) बना करके उस पर चूड़ी, महावर, सिंदूर चढ़ाने का विशेष फल हैं. चन्दन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करने, सुहाग सामग्री चढ़ाने तथा भोग लगाने का नियम हैं. यह व्रत रखने वाली स्त्रियों को गौर पर चढ़े सिंदूर को अपनी मांग में लगाना चाहिए.

गणगौर पूजन का महत्व ( Gangaur pooja Mahtva)

शिव पार्वती पूजन का यह महत्वपूर्ण त्योहार हैं. लगभग सम्पूर्ण उत्तर भारत में गणगौर का पर्व मनाया जाता हैं. इस पर्व में सभी विवाहीत और कुँवारी कन्याएं व्रत रखकर विधि विधान के साथ शिव पार्वती का पूजन कर अपने दीर्घायु सुहाग की कामना करती हैं.

माना जाता है कि गणगौर पूजन से कन्या को इच्छित व योग्य वर की प्राप्ति हो जाती हैं. तथा विवाहित महिला को लम्बे वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मिलता हैं. गणगौर एक तरह से महिलाओं का मांगलिक पर्व है जिसमें वे सोलह प्रकार का श्रृंगार करके पूजा में भाग लेती हैं.

गणगौर व्रत कथा Gangaur Pooja Katha In Hindi

एक समय भगवान शंकर, नारद एवं पार्वती को साथ लेकर पृथ्वी पर चल दिए. भ्रमण करते हुए तीनों एक गाँव में पहुचे, उसी दिन चैत्र शुक्ल तृतीया थी.

गाँव के लोगों को शंकर जी तथा पार्वती की सूचना मिली तो धनी स्त्रियाँ उनके पूजनार्थ विभिन्न प्रकार के पसंदीदा भोज्य पदार्थ बनाने में जुट गये, इसी कारण से उन सुहागन स्त्रियों को काफी वक्त लग गया.

दूसरी तरफ गरीब घर की औरतें जैसे बैठी थी, वैसे ही थाली में हल्दी, चावल, अक्षत तथा जल लेकर शिव पार्वती की पूजा की, अपार श्रद्धा भक्ति में मग्न उन गरीब औरतों को देवी गौर (पार्वती) ने पहचाना तथा उनकी भक्ति रुपी वस्तुओं को स्वीकार कर उन सभी के ऊपर सुहाग रुपी हल्दी छिड़क दी.

इस तरह मातेश्वरी गौरी से आशीर्वाद तथा मंगल कामनाएं प्राप्त कर ये औरतें अपने अपने घर को गईं.

कुछ समय बाद अमीर घरों की स्त्रियाँ सोलह श्रृंगार, छप्पन तरह के भोजन को सोने को थाल में लाई, तब भगवान शिव ने शंकाव्यक्त करते हुए बोले- आपने तमाम सुहाग प्रसाद तो गरीब स्त्रियों को दे दिया, अब इन कुलवंत स्त्रियों को क्या दोगी.

तभी देवी पार्वती ने कहा आप व्यर्थ की चिंता क्यों करते हो. उन्हें केवल ऊपरी पदार्थों से निर्मित रस दिया हैं, इसलिए उनका सुहाग धोती से रहेगा, परन्तु उन लोगों को मैं मेरी अंगुली को चीरकर खून का सुहाग रस दूंगी जो मेरे समान सौभाग्यशाली बन जाएगी.

अब उच्च परिवारिय स्त्रियाँ ने देवी पार्वती तथा भगवान शंकर की पूजा अर्चना की तों देवी ने अपनी अंगुली से रक्त की धारा निकालकर उन पर छिडक दी.

और कहा- तुम सोग वस्त्रा भरणों का परित्याग कर मोह माया को त्याग दो और तन मन से अपने पतिदेव की सेवा करना, इससे तुम्हे मेरी तरह अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी.

गौरी का यह आशीष वचन सुनकर उन स्त्रियों ने उन्हें प्रणाम किया तथा अपने अपने घर को चल दी. तथा अपने पति की सेवा में लग गईं. देवी का छिड़का जिस पर जैसा गिरा उन्हें वैसा ही सोभाग्य प्राप्त हुआ.

तत्पश्चात देवी गौरी ने शिव की आज्ञा से नदी में स्नान किया, मिट्टी के गण अर्थात महादेव की मूर्ति बनाकर उनकी सेवा की पूजन कर भोग लगाया तथा प्रदक्षिणा कर के बालू के दो कणों को प्रसाद निमित खाकर, पार्वती ने मस्तक पर तिलक लगाया,

उसी वक्त पार्थिव लिंग से भगवान शंकर प्रकट हुए तथा गौरी को वरदान दिया” आज के दिन जो सुगाहन स्त्री तेरा व्रत कर पूजन करेगी, उनकें प्रति चिरंजीवी रहेगे, तथा उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी, पार्थिव शिव यह आशीष देकर अन्तर्धान हो गये.

इसके बाद पार्वती ने नदी के तट से चलकर उस स्थान पर आई जहाँ पर शिवजी तथा नारद मुनि को छोड़कर गईं थी. शिवजी ने पार्वती को देरी से आने का कारण पूछा तो पार्वती बोली- मेरे भाई और भोजाई नदी तट पर मिल गये थे,

उन्होंने दूधभात खाने तथा कुछ बाते करने का आग्रह किया तो इस कारण नाथ मुझे आने में देर ही गईं. उसी वक्त भगवान शंकर भी अन्तर्धान होकर स्वयं दूधभात खाने को चले गये, पार्वती को लगा कि उनके झूठ की पोल खुल जाएगी,

अधीर होकर देवी शिव से प्रार्थना करने लगी. तथा शंकर के पीछे पीछे नदी की चलने लगे, वहां जाकर देखा तो एक सुंदर मायावी महल नजर आया, वहां पर शिवजी के साले और सरहज उपस्थित थे, उनके वहां पर पहुचने पर उन्होंने स्वागत सत्कार किया.

दो दिनों तक उन्होंने तीनों का आतिथ्य सत्कार किया तीसरे दिन भौर को पार्वती के चलने का कहने पर शिव ने यह आग्रह ठुकरा दिया. यह पार्वती को बुरा लगा तथा क्रोधित होकर अकेली ही चलने लगी.

मजबूरी में शंकर तथा नारद को पार्वती के पीछे चलना पड़ा, चलते चलते तीनों काफी दूर तक निकल गये. जब रात होने लगी तो महादेव ने एक बहाना बनाया,

कि वों अपनी माला पार्वती के मायके में ही भूल आए, इस पर पार्वती ने कहा- नाथ आज्ञा हो तो मैं आपकी माला ले आउगी, मगर शिवजी इस बात के लिए राजी नहीं हुए.

आखिर नारद का वहां जाना निश्चित हुआ, मुनि वहां पहुचे तो अचम्भित रह गए. वहां जाकर देखा तो महल का कोई नामोनिशान भी नहीं था.

घने में अँधेरे में जंगली जानवरों की जोर जोर से आवाजे आ रही थी. अचानक से बदले इस द्रश्य को देखकर नारद जी भौचक्के रह गये. अचानक तेज गर्जना के साथ आसमानी बिजली चमकी,

जिसकी रोशनी से पेड़ पर टंगी शिवजी की माला दिखाई दी. मुनि उस माला को लेकर भागे भागे शिव पार्वती के पास पहुचे तथा उन्होंने सारी घटना का वृतांत सुनाया.

इस बात को सुनकर भगवान शंकर हंसते हुए इस सारी घटना का कारण बताते हुए बोले-हे मुनिवर, आपने जो कुछ भी द्रश्य देखा वह देवी पार्वती की माया का फल हैं. वे अपने पार्थिव पूजन की बात को आप से गुप्त रखना चाह्यी थी.

इसी कारण उन्होंने झूठा बहाना बनाया था. उस बहाने को सत्य करने के लिए उन्होंने अपने पतिव्रता धर्म से उसे सत्य में तब्दील कर दिया. तथा झूठे महल की रचना इसी का परिनाम था. सारी सच्चाई सामने लाने के लिए मैंने आपको माला लाने का नाटक किया था.

यह सब सुनकर ऋषि नारद ने देवी पार्वती के पतिव्रता धर्म की भूरी भूरी प्रशंसा की, जहाँ तक उनके गौर पूजन की बात छिपाने का सवाल हैं. वो भी सही ही प्रतीत होती है, क्योंकि यह पूजा छिपकर ही की जानी चाहिए.

मेरा यह आशीर्वाद हैं कि जो स्त्री इस दिन छुपके से अपने पति के पूजन का कार्य करेगी, उनकी कृपा से समस्त मनोकामना पूर्ण होगी, तथा उनके पति चिरंजीवी होंगे.

चूँकि पार्वती जी ने इस व्रत को छिपाकर किया था उसी परम्परा के अनुसार आज भी पूजन के अवसर पर पुरुष उपस्थित नहीं रहते हैं.

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