हुमायूँनामा | Humayun Nama In Hindi

हुमायूँनामा Humayun Nama In Hindi: हुमायूँनामा ग्रंथ की लेखिका हुमायूँ की बहिन गुलबदन हैं. अकबर के अनुरोध पर उसने इस ग्रंथ की रचना कीविद्वानों का मानना हैं कि उसने अपनी स्मरणशक्ति के आधार पर बाबर और हुमायूँ के शासनकाल की घटनाओं का वर्णन किया हैं. अतः उसके वर्णन में त्रुटियाँ स्वाभाविक हैं.

हुमायूँनामा Humayun Nama In Hindi

फिर भी बाबर के सम्बन्ध में जो कुछ लिखा हैं, वह काफ़ी महत्वपूर्ण हैं. और हमारी जानकारी क बढाता हैं. हुमायूँ से सम्बन्धित घटनाओं की तो वह प्रत्यक्षदर्शी थी. इस सम्बन्ध में रिजवी ने लिखा हैं कि स्त्री होने के नाते गुलबदन बेगम ने युद्धों का संक्षिप्त विवरण ही दिया हैं.

परन्तु उसने मुगल हरम के जीवन तथा हुमायूँ के पलायन का रोचक विवरण दिया हैं. कुछ मामलों में लेखिका ने हुमायूँ की कमजोरियों पर पर्दा डालने का प्रयास किया हैं तथा मालदेव के बारे में पक्षपात किया हैं. कुल मिलाकर, ऐतिहासिक दृष्टि से यह ग्रंथ महत्वपूर्ण हैं.

हुमायूंनामा का इतिहास

गुलबदन बेगम कृत हुमायूँनामा बाबर एवं हुमायूं के शासन अवधि का एकमात्र ऐतिहासिक स्रोत माना जाता हैं. लेखिका का हुमायूं के प्रति लगाव उसकी लेखनी में भी देखना को मिलता हैं. गुलबदन बेगम बादशाह बाबर की पुत्री और हुमायूं की छोटी सौतेली बहन थी.

एक लम्बे अरसे तक अँधेरे में रहा, अकबर के काल में जब अबुल फजल ने इस कृति का नाम अपने ग्रंथ में उल्लेख किया तो लोगों की ओर पहली बार इसका ध्यान खींचा.

मगर इसके बावजूद लम्बी अवधि तक कोई प्रति सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हो गई. इसकी वजह यह बताई जाती है कि शायद हुमायूँनामा की एक ही प्रति जो गुलबदन बेगम ने लिखी हो अथवा समय के साथ इसकी अन्य प्रतियाँ लुप्त हो गई हो.

कालान्तर में ब्रिटिश हुकुमत के दौर में कर्नल हैमिल्टन को फ़ारसी पांडुलिपियों के संकलन और उनके अध्ययन का कार्यभार मिला. किसी तरह हुमायूँनामा की बची एक फ़ारसी प्रति हैमिल्टन के हाथ लग गई.

वह उस पांडुलिपि को अपने साथ लन्दन ले गये. उसकी मृत्यु के उपरान्त कर्नल की पत्नी ने 1868 में सभी पांडुलिपियों को ब्रिटिश म्यूजियम को बेच दिया, जिनमें हुमायूँनामा की एक प्रति भी विद्यमान थी.

इस तरह धूल की परतों के तले दबा हुमायूँ नामा ब्रिटिश संग्रहालय पहुंचा, वहां कई विद्वान जो फ़ारसी लिपि पर काम कर रहे थे उनके हाथ लगने के बाद इसका अंग्रेजी अनुवाद हुआ.

अंग्रेजी में इस ग्रन्थ पर मिसेज बेवरिज ने तथा हिंदी में ब्रजरत्न दास ने काम किया. देवीप्रसाद की पुस्तक माला के अंतर्गत नागरी प्रचारिणी काशी ने इसके हिंदी रूपांतरण को प्रकाशित किया था. इस तरह महलों में दबी किताब हुमायूँनामा के म्यूजियम और वहां से आमजन तक पहुँचने का सफर रहा.

गुलबदन बेगम का परिचय

हुमायूँनामा किताब की रचनाकार गुलबदन बेगम की बात करें तो यह बाबर की बेटी थी तथा हुमायूं की सौतेली बहिन थी. इनका जन्म 1523 ई में बाबर की पांचवी पत्नी दिलदार बेगम की कोख से हुआ था.

दिलदार बेगम ने तीन पुत्रियों सहित पांच संतानों को जन्म दिया था. हुमायूँ की माँ का नाम माहम बेगम था, जिन्होंने गुलबदन बेगम को गोद ले लिया जब ये महज दो वर्ष की थी.

बाबर ने अफगानिस्तान से आकर भारत में दो युद्ध क्रमश 1526 में पानीपत और 1527 में खानवा की लड़ाई लड़ी तथा उसमें विजय प्राप्त की, और भारत में मुगल वंश की नींव डाली. इस बार बाबर अपने परिवार को काबुल से लेकर दिल्ली आ गया, 1529 ईसवी में बाबर अपनी पत्नी माहम बेगम और गुलबदन बेगम को भारत लेकर आया जब उसकी आयु छः वर्ष थी.

गुलबदन का निकाह सत्रह साल की अवस्था में खिज्र ख्वाजा के साथ हुआ. उसके एक बेटा हुआ जिसका नाम सआदतयार खां था. बेगम का शोहर ख्वाजा अकबर के शासन में पांच हजारी मनसबदार था.

अपने मृत भाई हुमायूं की जीवनी को हुमायूँनामा नाम से अकबर के शासन काल में ही लिखी, अपने जीवन के अंतिम पडाव में गुलबदन हज यात्रा के लिए भी गई.

1603 ई फरवरी माह में गुलबदन का देहावसान 80 वर्ष की अवस्था में हो गया. स्वयं बादशाह अकबर ने उसका जनाजा अपने कंधों पर उठाया था.

अगर बात हुमायूँनाम की विषयवस्तु की करें तो भले ही यह जीवनी एक चारदिवारी में रहने वाली खातून द्वारा लिखी गई हो मगर अपने समय के कई युद्धों और अहम घटनाओं का उल्लेख भी इसमें मिलता हैं. इसके अलावा समय समय पर आयोजित दरबारों तथा सम्राट को मिलने वाली भेंटो को भी इसमें लिखा हैं.

भले ही गुलबदन ने बाबर को बहुत कम देखा मगर अपने ग्रन्थ की शुरुआत बाबर के जीवन से ही की. जाहिर है बाबर के मरने के अगले पचास वर्षों तक के विवरण को इन्होने लिखा तो उनके मुख्य सन्दर्भ स्रोत लोगों की सुनी सुनाई बातें ही रही होगी.

गुलबदन बेगम के विषय में यह बात बड़ी अहम है कि ऐसे दौर में जहाँ महिलाओं से कुछ बड़ी अपेक्षा नहीं रखी जाती थी, ऐसे में अपने भाई की जीवनी को एक इतिहास ग्रन्थ के रूप में लिखना एक बड़ी और अहम बात हैं.

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