धारा 306 आईपीसी क्या है | IPC Section 306 in Hindi दोस्तों आजकल अखबारों में आत्महत्या की खबरें बहुत ही आम हो गई है कई मामलों में व्यक्ति आत्महत्या करता है लेकिन ज्यादातर मामलों में व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए उकसाया जाता है।
वैसे मैं आपको बता दूं कि आत्महत्या करना कानून की नज़रों में जितना बड़ा अपराध है। उससे कहीं बड़ा अपराध आत्महत्या करने के लिए उकसाना है और इसके लिए भारतीय दंड संहिता 1860 में धारा 306 बनाई गई है।
जिसके अंतर्गत आत्महत्या करने के लिए उकसाने वाले व्यक्ति को कड़ी से कड़ी सजा दी जाती है। धारा 306 क्या है ? जानने के लिए इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
धारा 306 आईपीसी क्या है | IPC Section 306 in Hindi
धारा 306 इंडियन पैनल कोर्ड की धारा है, अगर कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है तो जो व्यक्ति आत्महत्या कर रहे व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए उकसाता है उसे एक निश्चित अवधि के लिए कारावास में डाला जाएगा।
इसके अलावा न्यायाधीश अगर चाहे तो उसकी सजा को 10 सालों तक बढ़ा सकते हैं या फिर उस पर फाइन (जुर्माना) भी लगा सकते हैं।
धारा 306 में उकसाने का मतलब क्या है ?
धारा 306 में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि व्यक्ति अगर दूसरे व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए उकसा ता है तभी जाकर उस व्यक्ति पर यह धारा लगाई जाएगी! पर अब सोचने वाली बात यह है कि यहां ” उकसाना ” शब्द का संदर्भ क्या है ?
उकसाना, शब्द का मतलब होता है किसी दूसरे व्यक्ति को कोई अपराध या फिर कुछ गलत करने में प्रोत्साहित करना, सहायता करना, समर्थन करना या फिर मदद करना।
एक व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को उकसा रहा है ये बात तब कही जाएगी, जब वह व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कोई काम करने के लिए कहेगा।
या फिर उस काम को करने या कराने के लिए दूसरे व्यक्तियों के साथ मिलकर षड्यंत्र करेगा। जानबूझकर, किसी व्यक्ति का गलत काम में साथ देना भी उकसाना की श्रेणी में ही आता है।
इन सबके अलावा अगर कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कोई गलत काम करने के लिए या फिर और बड़ा अपराध करने के लिए मना लेता है राजी कर लेता है या फिर लुभा लेता है तो ये काम भी उकसाना ही कहलाएगा।
आईपीसी धारा 306 की क्या दायरा है ?
जैसा कि मैंने आपको बताया कि किसी दूसरे व्यक्ति को कोई अपराध या गलत काम करने के लिए किसी भी तरह से उकसाना या फिर मानसिक तौर पर उस व्यक्ति को प्रोत्साहित करना उस काम को करने के लिए धारा 306 के तहत अपराध माना जाता है।
पर यह धारा किसी व्यक्ति पर तभी लगाई जाती है जब यह बात साफ होगी जिस व्यक्ति पर यह आरोप लगा है उसने जानबूझकर दूसरे व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए उकसाया है। मतलब की यह धारा लगाने के लिए आरोपी का मकसद पता होना चाहिए।
M. Mohan v/s State के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जिस व्यक्ति पर आत्महत्या करने के यह उकसाने का आरोप लगा है उस व्यक्ति का आत्महत्या कर चुके व्यक्ति के साथ घनिष्ठ संबंध होना चाहिए!
क्योंकि अगर आरोपी का मृतक व्यक्ति के साथ कोई संबंध नहीं होगा तो यह प्रमाणित कर पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा कि आरोपी ने ही व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए उकसाया था।
और आत्महत्या के लिए उकसाना भी तभी कहलाएगा जब आरोपी ने कथित तौर पर मृतक को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित किया हो या फिर उसने मृतक के सामने ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी कि उसने स्वयं ही आत्महत्या कर ली तो ये भी बड़ा अपराध ही माना जाएगा।
क्योंकि जब आरोपी आत्महत्या कर रहे व्यक्ति को कुछ कह कर उकसाता है या फिर उसके सामने ऐसी परिस्थिति पैदा कर देता है कि उस व्यक्ति के पास आत्महत्या के अलावा दूसरा कोई विकल्प ना हो तब आरोपी के ऊपर धारा 306 लगाई जाएगी।
धारा 306 के अंतर्गत क्या सजा है ?
अगर किसी व्यक्ति की सजा धारा 306 के अंतर्गत प्रमाणित हो जाती है या फिर यह प्रमाणित हो जाता है कि आरोपी ने ही मृत व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए उकसाया था.
तब आरोपी को एक निश्चित अवधि तक कारावास में रखा जाएगा। जिसकी समय सीमा को 10 सालों के लिए अलग से बढ़ाया भी जा सकता है और उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
धारा 306 किस तरह की धारा है ?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अगर आपको यह लग रहा है कि यह धारा एक मामूली सी धारा है तो वैसा नहीं है क्योंकि धारा 306 एक गैर-जमानती, गैर-शमनीय धारा है। मतलब अगर किसी व्यक्ति पर यह धारा लगाई जाती है तो उस व्यक्ति को जमानत नहीं मिल सकती हैं!
आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में शामिल होने पर क्या करें?
अगर किसी व्यक्ति पर अन्य व्यक्ति के आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया है तो ऐसे हालात में उस व्यक्ति को धारा 306 के अंतर्गत कड़ी सजा मिल सकती है।
इसीलिए इस मामले में आरोपी और पीड़ित व्यक्ति दोनों को ही इस धारा के संदर्भ में पूरी जानकारी होनी चाहिए। यही कि इस मामले की पूरी जानकारी होनी चाहिए तभी जाकर वे अपनी बात सही तरीके से न्यायाधीश के सामने रख पाएंगे।
इस मामले को सही तरह से संभालने के लिए वकील की मदद लेना भी अनिवार्य है। क्योंकि वकील मामले की पूरी देख रेख करके केस को आपकी तरफ करने के लिए अच्छा प्लान तैयार करेगा जो कि आप खुद से तैयार नहीं कर सकते हैं।
इसके अलावा आपको कानून की जानकारी होनी भी जरूरी है! चाहे आप आरोपी के पक्ष से हो या फिर पीड़ित के पक्ष से आपको अपने केस को मजबूत बनाने के लिए वकील के साथ रहकर मामले को समझने की पूरी कोशिश करनी चाहिए।
आत्महत्या के झूठे उकसावे के मामले में शामिल होने पर क्या करें?
अगर किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से उस पर धारा 306 लगाई गई है तो यह काफी गंभीर समस्या हो सकती है क्योंकि इस मामले में स्वयं को निर्दोष साबित करना कई बार बहुत मुश्किल हो जाता है।
ऐसे में अगर आपको स्वयं को निर्दोष साबित करना है तो आपको पहले अपने लिए एक वकील ढूंढना होगा और उन्हें बिना ज्यादा बदले सारी बात समझानी होगी।
आपको ये भी देखना होगा कि जो आपका वकील है वो सही तरह से आप के मामले की जांच कर रहा है या नहीं, या फिर आप को बचाने के लिए आपके पक्ष में सबूत इकट्ठा कर रहा है या नहीं।
अगर आपको ऐसा लगे कि आपके वकील की देख रेख में अगर आपका मामला सही तरह से हैंडल नहीं हो रहा है तो आप खुद भी अलग से मामले का शोध कर सकते हैं।
इसके अलावा आपको अपने वकील की बात माननी चाहिए और उनके दिए निर्देशों का पालन करना चाहिए। साथ ही आपको उनसे ये भी पूछ लेना चाहिए कि अदालत में आप को किस तरह से पेश आना है।
आपराधिक आरोपों को खारिज न करने के प्रभाव
अगर आपके ऊपर कोई व्यक्ति झूठे तौर पर धारा 306 लगा रहा है तो आपको कोशिश करनी चाहिए कि आप उनके आरोपों अदालत जाने से पहले ही निपटा लें।
क्योंकि अगर अदालत में उनका झूठा आरोप प्रमाणित हो जाता है तो आपको निश्चित समय के लिए जेल जाना पड़ सकता है या फिर जुर्माने की रकम चुकानी पड़ सकती हैं।
इसके अलावा अगर आपके ऊपर यह धारा लग जाती है तो आपको भविष्य में भी नौकरी नहीं मिलेगी।