कान्हड़ देव का इतिहास जीवन परिचय | Kanhad Dev History And Story in Hindi अपने शौर्य और पराक्रम के चलते राजपूताना के राजा अक्सर दिल्ली सल्तनत की विशाल फौजों के सामने विरोध का झंडा गाड़ देते थे.
ऐसी ही कहानी जालौर के सोनगरा चौहान राजा कान्हड़देव और उनके पुत्र वीरमदेव व भाई मालदेव की हैं. इसी इतिहास में जुड़ा है फिरोजा और वीरमदेव का प्रेम प्रसंग और जालौर के सुवर्णगिरी का जौहर.
कान्हड़ देव का इतिहास जीवन परिचय | Kanhad Dev History in Hindi
राजस्थान के दक्षिण पश्चिम में जालोर स्थित हैं. जालोर पर चौहान वंशीय राजाओं का शासन रहा. 1305 ई. में कान्हड़ देव जालोर का शासक बना.
साम्राज्य विस्तार की आकांक्षा, जालोर का महत्वपूर्ण व्यापारिक एवं सामरिक स्थति, कान्हड़ देव के बढ़ते शक्ति प्रभाव को रोकने आदि कारणों से अलाउद्दीन जालोर को जीतना चाहता था. कान्हड़ देव बायोग्राफी में उनके जीवन इतिहास का संक्षिप्त वृतांत दिया गया हैं.
कान्हड़ देव व जालोर के किले का इतिहास (Kanhad Dev history of jalore fort in hindi):-
अलाउद्दीन ने सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त करने तथा गुजरात विजय के लिए उलुग खान और नुसरत खान को एक विशाल सेना देकर भेजा.
गुजरात जाने का सीधा मार्ग जालोर से होकर गुजरता था. अलाउद्दीन ने अपनी सेना को जालोर होकर गुजरने के लिए कान्हड़ देव से अनुमति मांगी, जिसे कान्हड़ देव ने ठुकरा दिया.
सुल्तान की सेना मेवाड़ होकर निकल गई. इस सेना ने मार्ग में पड़ने वाले गावों को लूटा, नष्ट भ्रष्ट कर दिया. गुजरात में काठियावाड़ को जीता और सोमनाथ के मंदिर तथा शिवलिंग को तोड़ डाला.
इस तबाही तथा पवित्र स्थलों को ध्वस्त करने से कान्हड़ देव काफी क्रोधित हुआ और उसने सुल्तान को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया.
कान्हड़ देव ने गुजरात में तबाही मचाकर लौट रही सुल्तान की सेना पर भीषण आक्रमण किया और गुजरात से लूट कर लाया गया धन छिन लिया.
सुल्तान ने जालोर को जीतने के लिए अपने सेनापतियों को विशाल सेना देकर भेजा. ऐसे ही एक संघर्ष में कान्हड़ देव का युवा पुत्र वीरमदेव मारा गया. अंततः 1308 ई में अलाउद्दीन ने एक विशाल सेना को जालोर पर अधिकार करने के लिए दिल्ली से रवाना किया.
1308 ई में जालोर के प्रवेश द्वार सिवाणा पर मुस्लिम सेना ने आक्रमण किया, पर उसे सफलता नही मिली. बाद में देशद्रोहियों की मदद से छल कपट द्वारा खिलजी की सेना सिवाणा के दुर्ग को जीत लिया. इस पर कान्हड़ देव ने सभी राजपूत सरदारों का आव्हान किया. फलत जगह जगह पर खिलजी की सेना पर आक्रमण होने लगे.
मेड़ता के पास मलकाना में राजपूत सैनिक सुल्तान की सेना पर टूट पड़े और सेनापति शम्स खान को उसकी पत्नी सहित बंदी बना दिया. ये समाचार जब सुल्तान के पास पहुचा तो वह स्वयं एक विशाल सेना लेकर जालौर की ओर चल पड़ा.
अलाउद्दीन खिलजी का जालोर दुर्ग पर आक्रमण (Allauddin Khilji attack on Jalore fort)
जालोर पहुचकर सुल्तान ने दुर्ग को घेर डाला. कान्हड़ देव ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति के साथ शत्रु का मुकाबला किया. लेकिन घेरे के लम्बे समय तक चलने से किले के भीतर मौजूद रसद सामग्री खत्म होने लगी.
इससे राजपूती सेना की स्थति कमजोर होने लगी और सुल्तान की सेना की स्थति मजबूत होती गई. ऐसी संकटपूर्ण स्थति में एक दहिया सरदार ने कान्हड़ देव से विश्वाघात करते हुए राज्य पाने के लालच में खिलजी सेना को एक गुप्त दरवाजे से किले में प्रवेश करवा दिया.
इस विश्वासघात का पता चलने पर राजद्रोही पति को उसकी पत्नी ने तलवार से टुकड़े टुकड़े कर मार डाला. दुर्ग में आसानी से पहुची खिलजी सेना का कान्हड़ देव ने अपनी राजपूती सैन्य सरदारों के साथ वीरतापूर्वक मुकाबला किया, किन्तु वह वीरगति को प्राप्त हुआ.
जालौर के इस युद्ध में कान्हड़ देव ने खिलजी की सेना के 50 से अधिक यौद्धाओं को अकेले मार दिया था. युद्ध में ब्रह्मचारी राजकुमार वीरमदेव का शौर्य अद्वितीय था. लगातार तीन दिन युद्ध लड़ते हुए वीर राजकुमार ने 40 तलवारे तोड़ दी थी.
युद्ध के मध्य खिलजी के सेनापति ने वीरमदेव को राजकुमारी फिरोजा से शादी का प्रस्ताव दिया, मगर कुमार ने यह दोहा कहते हुए न्यौता अस्वीकार कर दिया ” जैसल घर भाटी लजै, कुल लाजै चौहाण। हुं किम परणु तुरकड़ी, पछम न उगै भांण”
पिता की तरह अनूठे शौर्य प्रदर्शन के बाद वीरमदेव भी रणभूमि में बलिदान को प्राप्त हुए. आज भी भारत के युद्ध में इन पिता पुत्र की वीरता के किस्से बड़े गर्व से लिखे जाते हैं. धर्म और स्त्री रक्षा के रक्षक राजा कान्हड़ देव की कहानी इस तरह समाप्त हुई.
फिरोजा
अलाउद्दीन खिलजी की लाखों की सेना दिल्ली से गुजरात, मालवा जहाँ भी जाती उसका प्रतिकार नाम की चीज न थी, छोटे छोटे राजा और सामंत उसकी अधीनता स्वीकार कर लेते या बड़ी फौज के दम उस क्षेत्र में मारकाट और लूट शुरू कर दी जाती थी.
खिलजी की क्रूर सेना जहाँ भी जाती लूट पाट के साथ ही मन्दिरों का विध्वंस और स्त्रियों बच्चों को गुलाम बनाकर अपने साथ ले जाते थे. 1300 के आस पास खिलजी ने गुजरात पर आक्रमण किया, कई शिव मन्दिर तोडकर मूर्तियों और स्त्रियों को अपने नियंत्रण में दिल्ली की ओर बढ़ रहा था.
उसी समय कान्हड़देव को जब इसकी सूचना मिली तो अपनी सेना भेजकर तुर्क सेना को खदेड़ कर बन्दियो और मूर्तियों को छुड़ाया. जब खिलजी को यह समाचार मिला तो वह आग बबूला हो गया हिंदुस्तान में उसका प्रतिकार करने वाला कौन आ गया.
उसने बारम्बर जालौर पर आक्रमण के लिए अपनी सेनाएं भेजी, मगर छोटी सी राजपूत सेना ने अपने से दस गुना बड़ी खिलजी की सेना को हर बार मारकर भगाया.
ऐसे पराक्रमी वीर के दर्शन के लिए अलाउद्दीन बेताब हो गया. उसने कान्हड़ देव और राजकुमार वीरमदेव को दिल्ली आने का आमंत्रण दिया.
दिल्ली दरबार आने पर कान्हड़ देव की आवभगत में वह सम्मान नहीं दिया जिसके वो हकदार थे, अतः वे वापिस जालौर लौट आए मगर राजकुमार वीरमदेव कुछ महीने दिल्ली में ही रुक गये. यही से शुरू हुई अलाउद्दीन खिलजी की बेटी फिरोजा और वीरमदेव की प्रेम कहानी.
फिरोजा वीरमदेव को चाहने लगी, जब यह बात खिलजी को पता चली तो उन्होंने राजकुमार से कहा मगर वीरमदेव ने अपनी राजपूती मर्यादा को बताते हुए इसे ठुकरा दिया. आगे चलकर कान्हड़ देव और खिलजी की दुश्मनी का एक कारण यह भी रहा.
बताया जाता हैं यह प्रेम कहानी अधूरी ही रही, जालौर युद्ध में वीरगति पाने के बाद वीरमदेव के सिर को काटकर खिलजी दिल्ली ले गया और फिरोजा को दिखाया, फिरोजा ने यमुना में कूदकर आत्महत्या कर ली.
जालोर का जौहर और शाका
सन 1311 में बीका दहिया द्वारा सुवर्णगिरी किले के भेद दिए जाने के बाद अलाउद्दीन खिलजी और कान्हड़देव की सेना के मध्य युद्ध शुरु हुआ. राजा कान्हड़ देव और राजकुमार वीरमदेव की वीरगति के बाद दुर्ग की सभी 1584 महिलाओं ने जौहर किया.
खिलजी के 18 वर्षों के दौरान राजस्थान के विभिन्न किलो पर किये आक्रमणों के दौरान 5 बार जौहर हुए. राजस्थान की युद्ध परम्परा में जौहर और शाके की विशिष्ट परम्परा रही हैं, पराधीनता और मृत्यु केवल दो ही विकल्प रह जाने पर जौहर और शाके राजस्थान के इतिहास में बारम्बार हुए.
Bhai ye itihash sahi nahi hai aap thoda or pad lete to acha hota