डॉक्टर एल पी टैस्सीटोरी का जीवन परिचय | LP Tesscotry In Hindi कई विदेशी हस्तियों ने भारत को अपनी कर्म भूमि बनाकर उसके लिए कार्यशील रहे थे उन्ही में से एक नाम इतालवी विद्वान् डॉक्टर एल पी टेस्सीटोरी का नाम आता हैं,
राजस्थानी भाषा के लिए उन्होंने अविस्मरणीय योगदान दिया था. आज भी इस क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले महानुभावों को डॉक्टर एल पी टेस्सीटोरी अवार्ड दिया जाता हैं.
डॉक्टर एल पी टैस्सीटोरी का जीवन परिचय | LP Tesscotry In Hindi
इटली के एक छोटे से गाँव उदिने में 13 दिसम्बर 1887 को जन्में एल पी टैस्सीटोरी 8 अप्रैल 1914 को मुंबई भारत आए और जुलाई 1914 में जयपुर राजस्थान पहुचे.
बीकानेर उनकी कर्मस्थली रहा. बीकानेर का प्रसिद्ध व दर्शनीय म्यूजियम एल पी टेस्सीटोरी की ही देन है. उनकी मृत्यु 22 नवम्बर 1919 को बीकानेर में ही हुई.
एल पी टैस्सीटोरी की कब्र बीकानेर में ही है. इनकी समाधि का निर्माण श्री हजारीमल बांठिया ने किया. बीकानेर महाराजा गंगासिंह जी ने उन्हें राजस्थान के चारण साहित्य के सर्वेक्षण व संग्रह का कार्य सौपा था. जिसे पूर्ण कर इन्होने ”राजस्थानी चारण साहित्य एक ऐतिहासिक सर्वे तथा पश्चिमी राजस्थानी व्याकरण” नामक पुस्तके लिखी.
टैस्सीटोरी की जीवनी- Biography Of Tassitori in hindi
टैस्सीटोरी राजस्थानी इतिहास, भाषा और साहित्य में रूचि रखने वाला एक इटेलियन विद्वान था. इसका जन्म 13 दिसम्बर 1887 को इटली के उदीने नगर में हुआ था. उसने अंग्रेजी, लैटिन, ग्रीक, जर्मन, संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, अपभ्रंश, राजस्थानी, हिंदी ब्रज आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया.
उसने रामचरितमानस विषय पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. डॉक्टर ग्रियर्सन ने टैस्सीटोरी की योग्यता से प्रभावित होकर 1914 ई में उसे भारत बुलाया.
बंगाल की रॉयल एशियाटिक सोसायटी कलकत्ता की ओर से टैस्सीटोरी को हिस्टोरिकल सर्व ऑफ राजपूताना के सुप्रिडेनटेड के पद पर नियुक्त किया गया.
टैस्सीटोरी ने जोधपुर को कार्यक्षेत्र बनाकर हस्तलिखित ग्रंथों के सर्वेक्षण का कार्य किया. बीकानेर में उसे महाराजा गंगासिंह का सहयोग मिला.
टैस्सीटोरी ने बीकानेर रियासत के प्रमुख गाँवों एवं नगरों का भ्रमण किया और घूम घूमकर पुराने शिलालेख, सिक्के, मूर्तियाँ तथा ऐतिहासिक सामग्री का संग्रह किया.
इस दौरान वह गाँवों की गरीब जनता व किसानों के साथ घुल मिल गया. डॉ टैस्सीटोरी लो यह विशेषता थी कि वह स्थानीय लोगों से उनकी ही भाषा में बात करता था.
डॉ टैस्सीटोरी ने इन्द्रिय पराजय और नासिकेत की कथा का इटेलियन भाषा में अनुवाद किया. टैस्सीटोरी की जैन धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा थी.
उसे आचार्य विजय धर्मसुरि से प्रेरणा और सहायता मिली. जैन साहित्य का व्यापक अध्ययन कर उसने विभिन्न ग्रंथों का सम्पादन किया. टैस्सीटोरी ने लिखा कि जितना बन सकेगा मैं भारतीयों के ह्रदय में घुल मिल जाउगा, मैं इसलिए भारत आया हूँ क्योंकि मुझे भारत के लोगों व उनकी भाषा इतिहास और साहित्य से प्रेम हैं.
और इसलिए जितना भी ज्यादा इनके बारे में जान सकू उतनी ही मुझे अधिक प्रसन्नता होगी. डॉ टैस्सीटोरी का 22 नवम्बर 1919 को बीकानेर में देहांत हो गया.
पुरानी राजस्थानी की पश्चिमी विभाषा का वैज्ञानिक अध्ययन डॉ. टैस्सीटोरी ने “इंडियन एंटिववेरी” में प्रस्तुत किया था, जो आज भी राजस्थानी भाषाशास्त्र का अब तक का एकमात्र प्रामाणिक ग्रंथ है।
इन्होने रामचरित मानस, रामायण व कई भारतीय ग्रन्थों का इटेलियन भाषा में अनुवाद भी किया था. वेलि किसन रुखमणी री और छंद जैतसी रो डिंगल भाषा के इन दोनों ग्रंथों को संपादित करने का श्रेय उन्हें ही जाता है.
सरस्वती और द्वषद्वती की सूखी घाटी में कालीबंगा के हड़प्पा पूर्व के प्रसिद्ध केंद्र को सर्वप्रथम एल पी टैस्सीटोरी ने ही देखा था.