मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध | man ke hare har hai man ke jeete jeet essay in hindi:- मनोविज्ञान का मानना है कि वनस्पति जाग्रत रहती है पशु सोते है पत्थर में भी चेतना सोती है.
और मनुष्य विचार चिन्तन करता है इसलिए इन अन्य सजीवों तथा निर्जीवों से भिन्न हैं. चिन्तन एवं मनन करना इन्सान की विशेषता है जिनका सीधा सम्बन्ध मन से होता है.
मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध
मन लगने पर अस्म्भव एवं कठिन लगने वाले कार्य भी संकल्प के साथ सहज हो जाते है तथा बेहद सरल लगने वाले कार्य भी मन टूटने से नही हो पाते है.
मन की इसी बला पर आज हम आपके लिए man ke hare har hai man ke jeete का हिंदी निबंध अनुच्छेद भाषण प्रस्तुत कर रहे हैं.
मन के हारे हार है मन के जीते जीत essay in hindi
मनुष्य के पास संकल्प शक्ति एक महत्वपूर्ण हथियार है जिसके दम पर बड़े से बड़े शत्रु को आसानी से हराया जा सकता है. संकल्प की शक्ति के आगे बड़ी बड़ी फौज एवं अस्त्र शस्त्र भी निष्प्रभावी हो जाते है.
मन का संकल्प व्यक्ति की आंतरिक वस्तु हैं. मानव की इस अद्भुत क्षमता के आगे देवता भी घबराते है. व्यक्ति के मन की इस ताकत के बल पर उसने आज प्रकृति पर शासन स्थापित करने में सफलता अर्जित की हैं.
मानव के मन की ताकत ने ही आज आकाश की उंचाई तथा जमीन की गहराई को नाप डाला हैं. अपनी कल्पना शक्ति में मानव में सुखी जीवन के जो जो सपने देखे थे उन्हें पूरा करने का साधन उसनें जुटा लिए हैं.
जीवन रुपी अनवरत चलने वाले इस संघर्ष के साथ ही मानव जीवन की यही लालसा निरंतर आगे बढ़ रही हैं. निर्बाध जीवन में कई सारी बाधाओं ने इसको घेरने का साहस भी किया, मगर इन्ही अवरोधों को मानव ने पराजित कर अपनी राह को अधिक मजबूत बनाया हैं.
जीवन कर्म का पथ है यहाँ उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कड़ी एवं लम्बी साधना की आवश्यकता पड़ती हैं. कई बार विकट स्थितियों में जीवन को असहाय होने की स्थिति में पाया हैं.
जब वह टूटने बिखरने लगा, समस्याओं से जूझते थक गया, तथा मन में लक्ष्य के प्रति निराशा के भाव जन्म लेने लगे, तो इस स्थिति में खुद को संभालकर आगे कदम बढ़ाने की आवश्यकता आन पड़ी.
हरेक व्यक्ति का जीवन एक संघर्ष है मगर इससे भागकर या पलायन कर कोई नहीं बच पाया हैं. सार्थक दिशा में किये गये कर्म ही मनुष्य को इन जटिलताओं से निकाल पाते हैं.
हरेक के जीवन में संघर्ष तो आने निश्चित है मगर जिन्होंने दृढ संकल्प के साथ काम किया तथा स्वयं की योग्यता का सौ प्रतिशत योगदान इन विकट परिस्थियों में विश्वास के साथ दिया तो निश्चय ही वह संघर्ष को पार कर एक नये साहस, ताजगी और अपनी क्षमताओं में पहले से अधिक विश्वास के साथ वह आगे बढ़ सकेगा.
essay on It is the Mind which Wins and Defeats’ in Hindi language
यहाँ आपकों एक कहानी के जरिये मन के हारे हार है मन के जीते जीत का अर्थ समझाने का प्रयत्न करते हैं. आपने बचपन में मकड़ी वाली कहानी तो सुनी ही होगी. जो सीधी दीवार पर सैकड़ों बार चढती है गिरती है फिर हिम्मत जुटाकर फिर चढ़ती है.
अंत में वह उस दीवार पर चढने में सफलता अर्जित कर ही लेती है. भले ही यह कहानी छोटी व छोटे बच्चों के लिए ही हो. मगर जो सीख देती हैं वह विचारने योग्य हैं.
यदि चींटी की तरह हम अपने मन को कभी भी कमजोर न होने दे, मन ही हमारी सम्पूर्ण शक्ति का स्रोत है जितना साहस हम सींच सकते है सींचे.
हमें उस शक्ति की संभावना को महसूस करना होगा. बस हम इसे कितना मानते है और कितना नहीं यही हमारी सफलता और असफलता का निर्धारण करती हैं. .
जैसा कि हमने पूर्व में कहा जीवन एक संघर्ष है, कई बार हमे अपनी आशाओं अपेक्षाओं के अनुसार परिणाम मिल जाते है मगर कई बार ऐसा नहीं होता है, हम असफलता से घबरा जाते हैं तथा मन को निराशा के भाव से भर देते हैं.
ऐसे अवसरों पर साहस के साथ काम लेना चाहिए तथा अपना मन छोटा करने की बजाय हमारे मन से और शक्ति सींचते हुए संघर्ष में कूद पड़ना है क्योंकि अभी कहानी खत्म नहीं हुई हैं.
यदि हम छोटी छोटी निराशाओं को अपनी पराजय मान लेते है तो जीवन में उत्साह समाप्त हो जाता है तथा जीवन बोझ की तरह प्रतीत होता है, इसीलिए कहा गया है मन का हारना ही वास्तविक हार है तथा मन का जीतना ही जीत,
एक बार जब इन्सान मन हार जाता है तो उसकी समस्त ऊर्जा,उत्साह, उमंग, दृढ इच्छाशक्ति जैसी कई शक्तियाँ एक साथ ही समाप्त हो जाती है जिसके चलते वह दुबारा उठकर प्रयास ही नहीं कर पाता हैं.
मन के हारे हार है मन के जीते जीत विषय पर निबंध
प्रस्तावना – मनुष्य मन आधारित प्राणी है. वह मन के बल पर ही चलता है और विपरीत परिस्थतियों से संघर्ष कर विजयी होता है,
उसकी विजय के पीछे उसका उत्साह और दृढता संजीवनी का काम करती हैं. यदि मन कमजोर पड़ जाता है तो ऊस्में निराशा का भाव प्रबल हो जाता है और वह अपनी लक्ष्य सिद्धि में हार जाता हैं.
यह हार उसके जीवन में निराशा ला देती हैं. जीवन में आगे बढ़ने के लिए, लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मन का दृढ संकल्पित होना आवश्यक हैं. क्योंकि हार और जीत मन पर ही आधारित होती हैं.
मन की प्रबलता को दृष्टिगत करके ही संस्कृत में कहा गया है, मन एवं मनुष्याणां कारण बंध मोक्ष्यों अर्थात मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण हैं. कहने का अभिप्रायः यह है कि मन ही मनुष्य को संसारिक बन्धनों में बांधता हैं.
और मन ही सांसारिक बन्धनों से छुटकारा दिलाता हैं. इसीलिए कहा गया है कि जिसने मन को जीत लिया, उसने जगत को जीत लिया.
उक्ति का आशय – उक्ति का आशय जानने से पूर्व हमें सबसे पहले उक्ति को पूर्ण रूप में जान लेना भी आवश्यक प्रतीत होता है यह उक्ति अपने पूर्ण रूप में इस प्रकार हैं.
दुःख सुख सब कहँ परत हैं, पौरुष तजहु न मीत,
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत.
अर्थात इस संसार में दुःख और सुख तो सभी पर पड़ते हैं, इसलिए मनुष्य को अपना पौरुष नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि हार और जीत मन के मानने और न मानने पर ही निर्भर करती हैं.
अर्थात मन के द्वारा हार स्वीकार किये जाने पर व्यक्ति की हार होती है इसके विपरीत मन के द्वारा हार न स्वीकार किये जाने पर विपरीत परिस्थतियों में भी विजयश्री उसके चरण चूमती है,
जय- पराजय, यश- अपयश, दुःख-सुख और लाभ- हानि सब मन के कारण ही हैं. अतः जैसा मनुष्य मन से सोचेगा, वैसा ही बनेगा. इसलिए कहा गया है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत.
मन के सम्बन्ध में विचार – गुरु नानक ने मन के सम्बन्ध में कहा है कि मन जीते, जग जीते, उन्होंने मन की जीत को महत्व दिया हैं. मन को जीतने का अर्थ है संसार को जीतना.
अतः मनुष्य को सबसे पहले अपने मन पर विजय प्राप्त करनी चाहिए तभी वह दूसरों के मन को भी जीत सकता हैं. दिनकरजी ने कहा भी है कि हम तलवार से मनुष्य को पराजित कर सकते है उसे जीत नहीं सकते.
सच्ची जीत तो उसके मन पर अधिकार प्राप्त करना हैं. नीतिशास्त्र में लिखा है- मनस्विन सिंहमुपैति लक्ष्मी अर्थात दृढ एवं स्थिर मन वाले वीर सिंहो का ही लक्ष्मी वरण करती हैं. अतः मन की संकल्प शक्ति की सफलता की कुंजी हैं.
कार्य सम्पादन में मन की स्थिति – यदि मन स्थिर एवं विचारशील नहीं है तो हमारे लिए कर्म हमें विपरीत परिणाम देते हैं. मन की इच्छा और प्रेरणा से ही अच्छा बुरा फल मिलता हैं.
अतः इस चंचल मन को स्थिर व नियंत्रण में रखने का अभ्यास करना आवश्यक हैं. मन की चंचलता की ओर संकेत करते हुए कबीर ने कहा है मन के मते न चालिए मन के मते अनेक.
मन भौतिक वस्तुओं की ओर भागता हैं, पर भौतिक वस्तुएं तो तृष्णा है तृप्ति नहीं. अतः तृप्ति के लिए मन को जीतना आवश्यक हैं.
श्रीकृष्ण ने अर्जुन के दुर्बल मन को धैर्यशाली बनने का उपदेश दिया था. मन की संकल्प शक्ति और दृढता के कारण ही महात्मा गांधी ने अंग्रेजों की दमन नीति का मुकाबला किया था, मन के हार जाने पर मनुष्य ही नहीं राष्ट्र तक पराजित हो जाता हैं.
मन विचारों का उत्पादक – हमारे विचारों का उत्पादक मन ही है इसलिए मनुष्य मन के विचारों से प्रभावित होकर कार्य करता है जैसा कि तुलसीदास ने लिखा हैं.
कर्म प्रधान विश्व रूचि राखा
जो जस करहि सो तस फल चाखा
शुभ अशुभ, सत असत विचार मन में ही उत्पन्न होते हैं. उसी विचार भेद से कामी व्यक्ति के स्वभाव व कार्यों में अंतर आता हैं. जिस प्रकार यह संसार द्वंदात्मक है उसी प्रकार मन भी द्वंदात्मक हैं. कुविचारों से, असत से उसे सुविचारों, सत की ओर मोड़ना चाहिए.
उपसंहार – मन परम शक्ति सम्पन्न है. मन को शक्ति सम्पन्न बनाने के लिए हीनता की भावना का दूर करना भी आवश्यक हैं. यदि मन को अपरिमित शक्ति को भूलकर हमने उसे कमजोर बना लिया तो हम अपने आप को असंतुष्ट और पराजित ही अनुभव करेंगे.
यदि मन को शक्ति सम्पन्न बनाकर रखेगे तो जीवन में पराजय और असफलता का अनुभव कभी नहीं होगा. इसलिए कहा गया है कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत.
mujhe bachpan ki yaad dila di joमेरे पित! जी कha karte the