पृथ्वी पर कविता हिंदी में Poem On Earth in Hindi:पृथ्वी हमारी माता है हम समस्त प्राणी उनके पुत्र हैं. उन्ही पर खाते पीते जन्म लेते व मरते हैं.
आज की कविता बूढ़ी पृथ्वी का दुःख आपके साथ साझा कर रहे हैं. यह पृथ्वी पर कविता लेखिका एवं कवयित्री निर्मला पुतुल द्वारा रचित हैं.
कविता में बूढ़ी पृथ्वी तथा उसके दुःख को दर्शाया गया हैं. आप भी पृथ्वी की पुकार की यह मार्मिक हिंदी कविता पढ़िये और आनन्द लीजिए.
पृथ्वी पर कविता हिंदी में | Poem On Earth in Hindi
एक तरफ हम पृथ्वी को माँ कहकर पुकारते हैं वहीँ दूसरी तरफ आदमी अपने स्वार्थ में इतना मशगुल हो गया हैं कि दिनों दिनों पृथ्वी को प्रदूषित करते जा रहे हैं. अपने करकलमों से नित अपनी बर्बादी के नयें आयाम स्थापित करने लग चुका हैं.
हम फिर से जागना होगा तथा अपनी पृथ्वी को बचाना होगा. हमारा भी एक छोटा सा प्रयास आप तक पृथ्वी पर इस कविता के जरिये पंहुचा रहे हैं.
पृथ्वी पर कविता हिंदी में
क्या तुमने कभी सुना हैं
सपनों में चमकती कुल्हाड़ियों के भय से
पेड़ों की चीत्कार
कुल्हाड़ियों के वार सहते
किसी पेड़ की हिलती टहनियों में
दिखाई पड़े है तुम्हें
बचाव के लिए पुकारते हजारों हजार हाथ
क्या होती है, तुम्हारे भीतर धमस
कटकर गिरता है जब कोई पेड़ धरती पर
सुना है कभी
रात के सन्नाटे में अँधेरे से मुंह ढाप
किस कदर रोती हैं नदियाँ
इस घाट अपने कपड़े और मवेशियां धोते
सोचा है कभी कि उस घाट
पी रहा होगा कोई प्यासा पानी
या कोई स्त्री चढ़ा रही होगी किसी देवता को अर्ध्य
कभी महसूस किया कि किस कदर दहलता है
मौन समाधि लिए बैठा पहाड़ का सीना
विस्फोट से टूटकर जब छिटकता दूर तक कोई पत्थर
सुनाई पड़ी है कभी भरी दुपहरिया में
हथोडों की चोट से टूटकर बिखरते पत्थरों की चीख
खून की उल्टियाँ करते
देखा है कभी हवा को अपने घर के पिछवाड़े
थोडा सा वक्त चुराकर बतियाया है कभी
शिकायत न करने वाली
गुमसुम बूढ़ी पृथ्वी से उसका दुःख
अगर नहीं तो क्षमा करना
मुझे तुम्हारे आदमी होने पर संदेह है.
Poem on Earth in Hindi धरती माँ
आओं हम सब मिलकर,
ये संकल्प उठाएँ,
धरती माँ को फिर से,
सुंदर और स्वच्छ बनाए।
हो सके स्वच्छ जिससे,
भूमि, जल और वायु,
आरोग्य बने, स्वस्थ रहे,
और हो सके जिससे सब दीर्घायु।
हरियाली फैली हो,
हो धरा रंगीली,
सुंदर पुष्पों से महके वन उपवन,
खेतों में फ़सलें हो फूली।
हो स्वच्छ और सुंदर नभ भी,
और पक्षी पंख लहराए,
गाए गीत खुशी के वो,
निडर वो उड़ते जाए।
आओं मिलकर हम सब,
ये संकल्प उठाएँ,
धरती माँ के आँचल को,
स्वर्ग सा सुंदर सजाएं।
पृथ्वी पर विशेष कविता – पूजा लूथरा
प्रकृति हमारी बड़ी निराली।
इससे जुड़ी है ये दुनिया हमारी।।
प्रकृति से ही है धरा निराली।
प्रकृति से ही फैली है हरियाली।।
वृक्ष प्रकृति का है शृंगार।
इनको क्यो काट रहा है इंसान।।
नष्ट इसे करके अपने ही पाँव पर।
कुल्हाड़ी क्यो मार रहा है इंसान।।
प्रकृति की गोद मे जन्म लिया है।
फिर इसको क्यो उजाड़ना चाहता है।।
स्वार्थ साधने के बाद मूह फेर लेना।
क्या मानव यही तेरी मानवता है।।
प्रकृति दात्री है जिसने हमे सर्वस्व दिया।
पर मानव उसे दासी क्यो समझता है।।
क्या मानव इतना स्वार्थी है कि।
अपनी माँ को ही उजाड़ना चाहता है।।
हमको सबक सिखाती धरती
ऊँची धरती नीची धरती,
नीली, लाल, गुलाबी धरती।
हरे-भरे वृक्षों से सज्जित,
मस्ती में लहराती धरती।
कल -कल नीर बहाती धरती,
शीतल पवन चलाती धरती,
कभी जो चढ़े शैल शिखर तो,
कभी सिन्धु खा जाती धरती।
अच्छी -अच्छी फसलें देकर,
मानव को हर्षाती धरती,
हीरा, पन्ना, मोती, माणिक,
जैसे रतन लुटाती धरती।
भेद न करती उंच-नीच का,
सबका बोझ उठाती धरती,
अंत-काल में हर प्राणी को,
अपनी गोद में सुलाती धरती।
जाती धर्म से ऊपर उठ कर,
सबको गले लगाती धरती,
रहे प्रेम से इस धरती पर,
हमको सबक सिखाती धरती।
धरती मां कविता। Dharti Ma Par Kavita
धरती की है संतान हम,
धरती के हैं प्राण हम
धरती के हैं कर्जदार हम,
धरती की हैं याद हम
धरती ने हमें जन्म दिया,
धरती ने हमें अन्न दिया।
धरती ने हमें जल दिया,
धरती ने हमें रहने के लिए घर दिया।
धरती हमको है पुकारती,
धरती हमको है सँवारती ।
धरती हमको फल देती बदले में न कुछ भी लेती।
धरती माँ की है पहचान,
हम सब हैं एक ही माँ की संतान।
बस एक फर्ज सब मिलकर निभाओ,
धरती माँ को सब मिलकर बचाओ।
धरती का आँगन इठलाता / सुमित्रानंदन पंत
धरती का आँगन इठलाता!
शस्य श्यामला भू का यौवन
अंतरिक्ष का हृदय लुभाता!
जौ गेहूँ की स्वर्णिम बाली
भू का अंचल वैभवशाली
इस अंचल से चिर अनादि से
अंतरंग मानव का नाता!
आओ नए बीज हम बोएं
विगत युगों के बंधन खोएं
भारत की आत्मा का गौरव
स्वर्ग लोग में भी न समाता!
भारत जन रे धरती की निधि,
न्यौछावर उन पर सहृदय विधि,
दाता वे, सर्वस्व दान कर
उनका अंतर नहीं अघाता!
किया उन्होंने त्याग तप वरण,
जन स्वभाव का स्नेह संचरण
आस्था ईश्वर के प्रति अक्षय
श्रम ही उनका भाग्य विधाता!
सृजन स्वभाव से हो उर प्रेरित
नव श्री शोभा से उन्मेषित
हम वसुधैव कुटुम्ब ध्येय रख
बनें नये युग के निर्माता!
Poem about Earth in Hindi
माटी से ही जन्म हुआ है!
माटी में ही मिल जाना है!!
धरती से ही जीवन अपना!
धरती पर ही सजे सब सपना!!
सब जीव जन्तु धरती पर रहते!
गंगा यमुना यही पर बहते!!
सब्जी फल यहाँ ही उगते!
धन फसल यहाँ ही उपजे!!
धरती माँ की देख रेख कर!
हमको फर्ज़ निभाना है!!
Bhumi Dharti Bhu Dhara Parthivi diwas poem in hindi
भूमि, धरती, भू, धरा
तेरे हैं कितने नाम
तू थी रंग बिरंगी
फूल फूलों से भरी भरी
तूने हम पर उपकार किया
हमने बदले में क्या दिया
तुझ से तेरा रूप है छीना
तुझसे तेरे रंग है छीने
पर अब मानव है जाग गया
हमने तुझसे यह वादा किया
अपना जंगल ना काटेंगे
नदियों को साफ रखेंगे
लौटा देंगे तेरा रंग रूप
चाहे हो कितनी बारिश और धूप
आओ, धरती बचाएँ
बड़ी-बड़ी बातों से
नहीं बचेगी धरती
वह बचेगी
छोटी-छोटी कोशिशों से
मसलन
हम नहीं फेंकें कचरा
इधर-उधर
स्वच्छ रहेगी धरती,
हम नहीं खोदें गड्ढे
धरती पर
स्वस्थ रहेगी धरती,
हम नहीं होने दें उत्सर्जित
विषैली गैसें
प्रदूषणमुक्त रहेगी धरती,
हम नहीं काटे जंगल
पानीदार रहेगी धरती,
धरती को पानीदार बनाएँ
आओ, धरती बचाएँ।