Pushkar Mela History In Hindi: राजस्थान में कई सारे मेले लगते है जिनमें पुष्कर मेला सबसे बड़ा धार्मिक मेला माना जाता हैं. तीर्थराज पुष्कर अजमेर शहर मुख्यालय से 14 किमी दूरी पर स्थित हैं.
यहाँ कार्तिक महीने की पूर्णिमा को विशाल मेला भरता है. धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्रता के प्रतीक पुष्करराज में लोग पवित्र स्नान करने व ब्रह्माजी, रंग नाथ जी तथा अन्य मन्दिरों के दर्शन भी करते हैं.
यहाँ आने वाले आगंतुकों में बड़ी संख्या विदेशी सैलानियों की भी होती हैं.
पुष्कर मेले का इतिहास Pushkar Mela History In Hindi
राज्य सरकार भी पुष्कर मेले में विशेष बन्दोबस्त करती हैं. कला संस्कृति तथा पर्यटन विभाग द्वारा यहाँ आने वाले लोगों की सुरक्षा होटल आदि के प्रबंध की जिम्मेदारी लेता हैं.
पुष्कर में राज्य का सबसे बड़ा ऊंट मेला लगता है यहाँ पशुओं पर आधारित कई कार्यक्रम होते हैं. ऊँट पुष्कर मेले के मुख्य आकर्षण का केंद्र होते है जिसका लुफ्त उठाने विदेशी पर्यटक भी आते हैं. राजस्थान की संस्कृति का सांस्कृतिक संगम इस तरह के आयोजनों में देखने को मिलता हैं.
क्या है तीर्थराज पुष्कर का इतिहास और मान्यता
ऐसी मान्यता है कि सब तीर्थों की यात्रा का फल पुष्कर स्नान व दर्शन से मिल जाता है. इसलिए तीर्थराज पुष्कर को सब तीर्थों का राजा माना गया हैं. इसे धर्मशास्त्रों में पांच तीर्थों में सबसे पवित्र माना गया हैं. पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार और प्रयाग को पंचतीर्थ कहा गया हैं.
पुष्कर झील अर्धचन्द्राकार आकृति में बनी हुई हैं. और यह पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र हैं. ऐसा माना जाता है कि ब्रह्माजी के हाथ से कमल का पुष्प गिरने से यहाँ जल निकल आया था, जिससे सरोवर का उद्भव हुआ.
इस पुष्कर सरोवर में पूरे विश्व से स्नान करने के लिए अनेक लोग आते है. यहाँ पर 52 घाट और अनेक मंदिर बने हुए हैं. इन घाटों में गऊ घाट, वराह घाट, ब्रह्मा घाट और जयपुर घाट प्रमुख हैं.
जयपुर घाट से सूर्यास्त का नजारा बेहद अद्भुत लगता है. उस समय प्रकृति की ख़ूबसूरती देखते ही बनती है. विदेशी पर्यटक उस द्रश्य को अपने कैमरों में कैद करने के लिए बेसब्र हो उठते हैं. यह तीर्थ तीन ओर अरावली की प्राचीन पहाडियों से घिरा हुआ है. और इसके एक ओर स्वर्णिम बालुआ मिट्टी के टीले है.
यहाँ विश्व प्रसिद्ध पुष्कर मेला लगता है. यहाँ पर सुबह और शाम नियमित रूप से पुष्करराज की आरती, श्रृंगार एवं आराधना की जाती है. जिसमें असंख्य श्रद्धालु उपस्थित रहते है. पुष्कर के मुख्य बाजार के अंतिम छोर पर ब्रह्माजी का मंदिर हैं. यह मंदिर विश्व में ब्रह्माजी का एकमात्र प्राचीन मंदिर हैं.
जैन धर्म, सिख धर्म और अन्य धर्मों के अनुयायी यहाँ प्रेमपूर्वक आते हैं. पुष्कर आदि अनादी तीर्थ है. हमारे देश के महान ऋषि मुनियों ने यहाँ कठोर तपस्या की हैं.
यहाँ अनेक ऋषि मुनियों के दर्शनीय स्थल भी हैं, जिनमे अत्रि, वशिष्ठ, ऋषि कश्यप, गौतम मुनि, ऋषि भरद्वाज, महर्षि विश्वामित्र एवं जमदग्नि हैं. अजमेर से 14 किमी की दूरी पर स्थित तीर्थराज पुष्कर एक दर्शनीय धार्मिक स्थल हैं.
पुष्कर मेले में कैसे जाएं? (How to reach Pushkar Fair)
राजस्थान के पुष्कर नामक स्थान पर पुष्कर मेले का आयोजन किया जाता है यह मेला रेत के मैदान में आयोजित किया जाता है। इस मेले में जाने के लिए आपको राजस्थान जाना होगा और राजस्थान जाने के बाद आप पुष्कर नामक स्थान पर इस मेले का आनंद प्राप्त कर सकते हैं।
पुष्कर नाम के पीछे की पौराणिक कहानी (Mythological story behind the name Pushkar)
पुष्कर नाम के पीछे एक बहुत ही पुरानी कहानी छिपी हुई है! इस विषय पाए हिंदू धर्म शास्त्र के पद्म पुराण में उल्लेख किया गया है।
शास्त्रों के अनुसार यह बहुत साल पहले हमारी धरती पर वज्रनाश नामक राक्षस ने चारों तरफ कोलाहल मचा दिया था। सभी मनुष्य इस राक्षस से भयभीत थे इसीलिए इस राक्षस का दमन करने के लिए ब्रह्मा जी आए और उन्होंने इस राक्षस का वध कर दिया।
राक्षस से लड़ते समय ब्रह्मा जी के हाथ से कमल के कुछ पुष्प नीचे गिर गए थे। ब्रह्मा जी के हाथों से कमल के पुष्प गिरने के कारण वहां पर 3 नदियों की उत्पत्ति हुई तब से उस जगह को पुष्कर नाम से बुलाया जाता है।
हालांकि पुष्कर राजस्थान कि एक जगह का नाम है लेकिन इसके अलावा यह नाम बहुत से पुरुषों के भी होते हैं। ब्रह्मा जी के राक्षस वध की घटना के बाद इस नाम की उत्पत्ति हुई थी और तब से यह नाम हमारी दुनिया में व्याप्त है।
पुष्कर मंदिर के बारे में (About Pushkar Temple)
पुष्कर मंदिर की कहानी बेहद अलौकिक और पुरानी है। पुष्कर मंदिर में ब्रह्मा देव की पूजा की जाती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ब्रह्मा जी का इस मंदिर के अलावा दुनिया में और कोई मंदिर नहीं है।
हिंदू धर्म में ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों देवताओं को सर्वोपरि माना जाता है। जहां विष्णु जी और महेश यानी कि भगवान शिव के कई बड़े बड़े मंदिर है वही ब्रह्मा जी का केवल एक ही मंदिर है। यह बात लोगों को हमेशा आश्चर्यचकित करती हैं।
पुष्कर मंदिर के पीछे भी एक पौराणिक कथा है, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वज्रनाश नामक राक्षस का वध करने के बाद ब्रह्मा जी ने उस स्थान पर एक यज्ञ करने की सोची और उन्होंने यज्ञ को शुरू कर दिया।
इस यज्ञ को पति और पत्नी दोनों के द्वारा किया जाना था लेकिन माता सरस्वती इस यज्ञ में समय से नहीं पहुंची थी जिसके कारण भगवान ब्रह्म ने गुर्जर समुदाय की गायत्री नामक कन्या से विवाह कर लिया और उनके साथ यज्ञ पूरा किया। जब मां सरस्वती यज्ञ में पहुंची और उन्होंने ब्रह्मा जी के बगल में किसी अन्य कन्या को देखा तो वह बहुत ही क्रोधित हो गई।
जिसके बाद मां सरस्वती ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि पूरे विश्व में कोई उनकी पूजा नहीं करेगा। ब्रह्मा जी के इस कार्य में विष्णु जी ने भी उनकी सहायता की थी तो उन्हें यह श्राप दिया गया कि उन्हें पत्नी विरह की पीड़ा सहनी होगी इसलिए रामायण में उन्हें 14 वर्ष तक और उसके बाद भी पत्नी विरह की पीड़ा सहनी पड़ी थी।
इस श्राप को सुनने के बाद देवी देवताओं ने मां सरस्वती को बहुत समझाया तब माता ने कहा कि केवल पुष्कर नाम के इस मंदिर में ही उनकी पूजा की जाएगी।