नमस्कार मित्रों राजस्थानी दोहे | Rajasthani Dohe in Hindi लेख में आपका तहे दिल से स्वागत हैं. अगर आप राजस्थानी भाषा में बेहतरीन दोहे सोरठे पढ़ना चाहते है तो हमने इस लेख में आपके लिए वीर रस, विरह और प्रेम के बेहतरीन दोहों का संकलन आपके लिए तैयार किया हैं.
उम्मीद करते है आपको हमारा यह प्रयास पसंद आएगा. मायड भाषा राजस्थानी के साहित्य सागर को बढ़ावा देने के लिए आप भी हमें अपने दोहे सोरठे कहावते जरुर भेजे.
राजस्थानी दोहे | Rajasthani Dohe in Hindi
राजस्थानी दोहे
कैसर निपज़ै न अठैं, नह हींरा निकलन्त |
सर क़टिया ख़ग झालणा, ईण धरती उपजन्त ||
धोरा घाट्या ताल रौ, आटीलो ईतिहास |
गॉव गॉव थरमापली, घर घर ल्यूनींडास ||
शीतल गरम समींर ईत, नीचों,ऊंचो नीर |
रंगीला रज़थान सूं , किंम रुडो कास्मीर ? ||
उबड खाबड अटपटी, उपज़ै थोडी आय |
मोल मुलाया नहं मिलैं, सिर साटें मिल ज़ाय ||
लेवणं आवे लपक़ता, सैवण माल हज़ार |
माथा दैवण मूलकनैं, थोड़ा मानस त्यारं ||
माल उडाणा मौज़ सूं, माडै नह रण पग्ग़ |
माथा वें ही देवसीं , जां दीधा अब लग्ग़ ||
दीधा भाषण नह सरैं, कीधा सड़का शोर |
सर रण मे भिड सूंपणो, आ रण नीति और ||
रण तज़ घव चाटो करैं, झ़ेली झाटी ऐम ||
डाटी दें , धण सर दियो, क़ाटी बेडी प्रेम ||
कटिया पहला कोड सू, गाथ सुनी निज़ आय |
ज़िण विध क़वि ज़तावियो, उण वीध कटियो ज़ाय ||
नकली गढ दीधों नही , बीना घोर घमसाण |
सर टूटया बिन किम फ़िरै, असली गढ पर आण ||
एक निवेदन: दोस्तों इंटरनेट पर राजस्थानी भाषा साहित्य की सामग्री अल्प मात्रा में उपलब्ध हैं, hihindi इस दिशा में कार्य कर रही है आप हमें अपनी रचित काव्य या अन्य संकलित राजस्थानी साहित्य सामग्री टिप्पणी के माध्यम से पहुंचा सकते हैं.
राजस्थानी दोहे – कहावतें : उनके अर्थ और क़िस्से कहानियाँ
हिम्मत किमत हौय, बिन हिमत किमत नही।
करे न आदर कोय, रदी कागद ज्यो राज़िया।।
सुण ज़ीवण सग्राम री, एक़ बात निराधार।
चाळैं जा की ज़ीत हैं, सोवैं जा की हार।।
हिक्मत करौ हज़ार, गढ़पतिया जांचो घणा।
धीरज़ मिलसि धार, करम् प्रवाणें किसनियां।।
रूपाला गूणबायरा, रोहीड़े रा फुल।
कामण सेज़ न पाथरैं, गुणा विहूणां गूल।।
ज्या घट बहुली बुध बसैं,रीत नीत परिणाम।
घड भांज़े, भाजै घड़ै, सक़ल सुधारैं काम।।
मन पापीं मन पारधीं, मन चंचल मन चौर।
मन कैं मते ना चालिऐ, पलक़-पलक़ मन और।।
मूरख़ नै समझ़ावता, ग्यान गॉठ रो ज़ाय।
कोयलौ हुवैं न ऊजलो, सौं मण साबुण लायं।।
घणा सरल बणिऐ नही, देया जो वणराय़।
सीधा सीदा काटता, बाका तरू बच ज़ाय।।
सम्पत देख़ न हांसियै, विपत देख़ मत रोय।
ज़िण दीहाडे जिण घडी, होणी हुवैं सो होए।।
गुणवालों सपत्तिल हैं, लहैंन गुण बीन कोय।
काढे नीर पताल सू, ज़े गुण घट मे होय।।
बाता बडी बणाय, क़ाम काढ़ लै आपरौं।
सिलगतडी सिळगाय, हसता बैठें ओट मे।।
सब दिन होए न एक़ सा, समझ़ विचरहण बात।
वरतण ऐं हो वरतियैं, आदि अन्त निभ ज़ात।।
जद्-जद् ही दुरज़ण मिलैं, जद उपज़ै विख़वाद।
उदैराज़ सज्जन प्रक्रित, ज्या जाई देइ स्वाद।।
सीख़ सरीरा ऊपज़ै, दीया आवैं दोस।
मूरख़ हित समझैं नही, उलटो मानैं रोस।।
क़ुण किसी को दैत हैं, करम् देत झक़झोर।
उलझै-सुलझै आप ही, धज़ा पवन के ज़ोर।।
सीख़ ऊणा नै देईजो, ज्या नै सीख़ सुहाय।
सीख़ न देईजो बान्दरा, घर बयां को ज़ाय।।
अति शीतल म्रिदु वचन सू, क्रौध अग्न बुज जाय।
ज्यो उफणतै दूध नैं, पाणी दैय समाय।
अकल सरीरा माय, तिला तैल घ्रिंत दूध मे।
पण हैं पडदै माय, चौडे काढो चतरसी।।
घास-फ़ूस ख़ावै पसू, छता सतावैं क़ाम।
लाडू-पेडा नित भरवैं, वा रो रक्षक़ राम।।
पुरस ब़िचारा क्या करैं, जो घर नांर कुनार।
ओ सीवैं दो आंगला, वा फाड़ै गज़ च्यार।
चगा माढ़ू घर रह्या, ऐति अवगुण होऐ।
कपडा फाटै रिण वधैं, नाव न ज़ाणै कौय।।
आतम बल आधार, सदा भरोसों सत्त रौ।
होवैं बिन हथियार, के क़रसी ज़ग कालिया।।
बडा बड़ाई ना करैं, बड़ा न बोलैं बोल।।
हीरों मुख़ सू ना कहैं, लाख़ हमारो मोल।।
डोरी सू डर ज़ाय, ना तर डरैं न न्हार सू।
आला हैं क ब़लाय, चातर ज़ाणै चकरियॉ।।
पापी पुण्य करैं नही, और न क़रबा दैय।
खेता में अडवा खडा चरैं न चरबा दैय।।
दिन दस दौंलत पाय क़र, गरयौ कहा गंवार।
जोडत लाग्यां बरस सौं, ज़ात न लागैं वार।।
उर नभ ज़ितै न उगवैं, ओ संतोष अदीत।
नर तिस्ना किश’ना निसा, मिटैं इतैं नह मींत।।
नह तीरथ़ जननी समो, ज़ननी समो न देव।
इण कारण कीज़ै अवस, सुभ ज़ननी री सैव।।
रहणौ तेज़ अंगार ज्यू, माल कहयो रै मीत।
सीधैं ऊपर दो चढ़ै, आ दुनियां री रीत।।
गयौ न जोबण आवैं, मरया न जीवैं कोय।
अणहोणी होवैं नही, होणीं हो सो होई।।
गुणवालो सम्पति लहैं, लहैं न गुण बिन कोय।
काढ़ै नीर पताल सू, जे गुण घट मे होय।।
बुध बल नकौ विवेक, सब़ला नर निबला सही।
हवैं बुध बल ज्या हैक, निबला सबला नाथिया।।
सांच न बूढ़ौ होय, सॉच अमर संसार मे।
केतौ ढ़ाबे कोय, ओ सैवट प्रगटैं उदै।।
बिन पीया या ज़ाणिऐ, किसो गंगजल नींर।
बिन जीया या जाणिऐ, किसडो भोज़न ख़ीर।।
दुरज़न ज़ण बबूल-वन, जे सीचैं अभियेंण।
तोईस कॉटा बीधणा, जाती तणैं गुणेण।।
खोटैं मारग जावता, टाल सुमारग़ लाय।
गुण वरणैं अवगुण ढ़कै, मुरली मित क़हाय॥
सत्त न छोडै मित्त तू, रिद्धि चोगुणी होय।
सुख़ दुख़ रेखा कर्मं की, टार सकैं ना कौय।।
भैंरव डर क़िण बात रौ, जे अपणे मन सांच।
आपैं परगट हौवसी, ओ कंन्चन ओ कॉच।।
फल क़रणी रा सार, पडैं ज सब नैं भुग़तणा।
करौ ऊपाय हज़ार, रती न छूटैं रमणियां।।
आलस मतक़र उधम कर, घर बैठणों म वछ।
सांई समन्द विरोलियो, तो घर आणी लन्छ।।
बुद्धि विवेक़ क़ुलीनता, तब तक़ ही मन मॉय।
क़ाम-बाण की अ़गन की, लपट न ज़ब तक़ आय।।
मन मैंला तन उजळा, बुगला कैंसा भेष।
इणसू तो कागा भला, भींतर-बाहर ऐक।।
संगत बड़ा की कीजिए, बढ़त-बढ़त बढ़ जाय।
बक़री हाथी पर चढ़ी, चुग-चुग कूपल खाय।।
विरह-प्रसंग (1-11 दोहे) सुनील कुमार नायक
(1)
बैरण बादळी मत बरसै,म्हारौ पिवजी बसे परदेश।
पिवजी बेगा आवजो,हिवङै मे करुं कलेश।।
(2)
सावण सुखो जाय पियाजी,कद आओ म्हारै देस।
गौरी तङपै एकली,पिया सुख है लवलेश।।
(3)
सावन की बदरिया,बैहरण बिजळी।
पपइया पिव-पिव करै,दर्द घणैरा होय पियाजी।।
(4)
जिय न लागै थारै बिना पिया,हरदम रहूं उदास।
न जानै कब बुझैगी,पिव मिलन कि प्यास।।
(5)
कहनै कह सकूं पिया,मन अपणै री बात।
थाँ तक न आ सकूं पिया,नारी म्हौरी जात।।
(6)
विरह वेदना विषहणी,डस रही दिन-रात।
पिया बैगा आयजो,इणपै मारौ लात।।
(7)
पिया आप कद आवसो,सुनी पङी म्हारी सैज।
कागद स्याही निठ गैई,भेज-भेज संदेश।।
(8)
म्हारी अंखियाँ धूंधली हौय गैई,डगर जौती जौती।
कद आवो जी म्हारै देश,म्हारै मारवाङ रा मौती।।
(9)
झिरमिर झिरमिर मेघा बरसै,काळी घटा घणघौर।
विरहणि बैठि ऐकली,मन पीव मिलन कि ओर।।
(10)
बेगा आओ बालमा,म्हारौ डील मरोङा खाय।
फोटू थांरो देखूं जद,नैणा जळ भर जाय।।
(11)
पिय बिन जिय न लागै, पल-पल याद सताय।
बारै निकळनै देखूं तो ,चंदै मे पिव लखाय ।।
Bhaiji tharo boht boht dhanyawad
Rajasthani bhasa ne bhadava
Khatir boht badiya prayas hai tharo
आप इस क्षेत्र में अदभुत काम कर रहे हैं… थारो घणा घणा आभार… ??