रानी कमलापति का जीवन परिचय और इतिहास Rani Kamlapati History in Hindi भारतीय इतिहास में एक से बढ़कर एक सौन्दर्यवती रानियों का उल्लेख मिलता हैं.
भोपाल के पास ही गिन्नौरगढ़ की गोंड रियासत के नवाब निजाम शाह की सात रानियों में से एक थी रानी कमलापति या कमलावति.
वह अपने समय में न तो विशाल साम्राज्य को सभालने वाली सम्राज्ञी थी न उसका किसी बड़े राजवंश से बड़ा रिश्ता थी न ही वो एक कुशल यौद्धा थी, मगर अगले 300 वर्षों के भोपाल के इतिहास में इन्हें आदरपूर्वक याद किया जाता रहा.
रानी कमलापति का इतिहास Rani Kamlapati History In Hindi
इतिहास के पन्ने अब इसलिए पलटे गये क्योंकि भारत सरकार ने 15 नवम्बर को हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर 17वीं सदी की रानी कमलापति के नाम कर दिया हैं.
देश के पहले वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन के रूप में अब इसे तैयार किया जा रहा हैं. जहाँ शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, हॉस्पिटल, मॉल, स्मार्ट पार्किंग, हाई सिक्योरिटी सहित समस्त आधुनिक सुविधाएं मुहैया होने लगेगी.
दरअसल यह कहानी उस दौर की हैं जब दिल्ली सल्तनत मुगलों के अत्याचारों से मुक्त हो चुकी थी. अधिकतर देशी राज्य स्वतंत्र हो चुके थे अथवा कुछ राशि मुगलों के वारिशों को भेजते थे.
यह वह समय था जब कुछ अफगान लुटेरों ने अराजकता के हालातों में रिसायतों को हड़पने के विचार से भारत का रुख किया था.
ऐसा ही एक किरदार दोस्त मोहम्मद खान का हैं पश्तून कट्टर मुस्लिम, चरित्र से छलकपट और धोखे में माहिर ये जिहादी भी मध्य प्रान्त की ओर अवसर की तलाश में आता हैं. और रानी कमलापति की कहानी के दर्दान्त अंत का मुख्य किरदार बन जाता हैं.
संक्षिप्त परिचय
नाम | रानी कमलापति |
राज्य | गिन्नौरगढ़ |
वंश | गोंड |
जन्म | अज्ञात |
मृत्यु | 1710 (अप्रमाणित) |
पति | निजाम शाह |
पुत्र | नवल शाह |
विरासत | रानी कमलापति रेलवे स्टेशन भोपाल |
रानी कमलापति का इतिहास (Rani Kamlapati History)
रानी कमलापति का जन्म भोपाल के आस पास ही सन 1700 के लगभग हुआ था. इस विषय में अधिक ऐतिहासिक उल्लेख नहीं मिलता हैं.
आज के भोपाल शहर से 50 किमी दूर एक स्थान है गिन्नौर गढ़ यह उस समय की एक छोटी रियासत थी जिसका शासन निजाम शाह के पास थे, ये गौड़ वंशीय राजा थे.
निजाम शाह की सात पत्नियाँ थी, मगर इन सभी में रानी कमलापति अपनी सुन्दरता के चर्चे दूर दूर तक थे, उस समय एक स्थानीय कहावत थी ‘ताल है तो भोपाल ताल और बाकी सब हैं तलैया। रानी थी तो कमलापति और सब हैं गधाईयां’ इससे कमलापति की सुन्दरता के बारे में अनुमान लगाया जा सकता हैं.
इनके जीवन में सब कुछ सामान्य सा चल रहा था. राज वैभव के जीवन में अचानक एक घटना ने रानी के जीवन के बुरे दिनों की शुरुआत कर दी. घटना में नयापन कुछ नहीं था, पूरे मध्यकाल में जो राज रजवाड़ों के साथ घटित होता आया बस उसकी एक और पुनरावृत्ति थी.
गिन्नौर गढ़ की रियासत के पास ही निजाम शाह के भाई के पुत्र यानी उनके भतीजे आलम शाह का बाड़ी रियासत पर शासन था. ऐतिहासिक वर्णन के मुताबिक़ चाचा भतीजे में अनबन चला करती थी. भतीजे ने बारम्बार चाचा को हराकर मारकर उनकी रियासत को हड़पने के प्रयास जारी रखे.
एक रात आलम शाह अपने चाचा को पूरे परिवार सहित मारने के ध्येय से रात्रिभोज पर आमंत्रित करता हैं. भोजन में जहर मिलाकर निजाम शाह की हत्या कर दी जाती हैं, इसी बीच रानी कमलापति अपने बेटे नवलशाह के साथ गिन्नौर गढ़ आ जाती हैं.
मोहम्मद खान और रानी कमलापति
सन 1657 में पश्तून पठान अफगानिस्तान में जन्में मोहम्मद खान की एंट्री रानी कमलापति की कहानी में इनके पति की हत्या के उपरान्त होती हैं. खान मुगल सेना में एक सिपाही था तेजी से पद तरक्की पाकर उसे मालवा में बड़ा कार्यभार मिला था.
1708 में मालवा की एक छोटी सी राजपूत रियासत मंगलगढ़ के राजा आनन्द सिंह सोलंकी ने इसे मांडलगढ़ का मुख्तार नियुक्त किया और रानी की सम्पत्ति की रक्षा करने का दायित्व सौपा.
राजा की मृत्यु के बाद सबसे सुंदर बेटी सरदार बाई से निकाह कर उसे इस्लाम स्वीकार करवाकर फतह बीबी बना दिया. खान ने कुछ समय में ही मंगलगढ़ को अपनी जागीर बना दिया और आस पास की छोटी रियासतों पर हमलें कर अपने क्षेत्र में मिलाना शुरू कर दिया था. जगदीशपुर नामक बड़ी रियासत पर कब्जे के बाद इसे इस्लामपुर बनाकर यहाँ से शासन करने लगा.
जगदीशपुर गोंड राजपूत परिवार की रियासत थी भोपाल के पास ही स्थित रियासत को कब्जाने के लिए मोहम्मद खान ने राजपूत जागीरदारों को दावत में बुलाया.
रात में भोजन के साथ नशीली चीजे मिलाकर नशे के हाल में पड़े राजपूतों को अफगानी सैनिकों के हाथो कटवाकर कब्जा कर लिया. उपन्यासकार निरंजन वर्मा ने इसी घटना पर बाणगंगा से हलाली नाम के उपन्यास को भी लिखा हैं.
एक तरफ रानी कमलापति अपने पति के हत्यारे से प्रतिशोध लेना चाह रही थी दूसरी ओर मोहम्मद खान रानी की सुन्दरता का कायल था वह किसी तरह अवसर पाकर उसे हासिल करना चाहता था. सम्भवत वह इसी नियत से कमलापति के क्षेत्र में आने वाले एक तालाब पर मछलियाँ मारने जाने लगा,
वह तालाब मछली पकड़ने के लिए प्रतिबंधित था. कई दिनों तक यह क्रियाकलाप चलने के बाद रानी ने एक दिन मोहम्मद शाह को अपने महल में बुलाया. मोहम्मद शाह को इसी अवसर की तलाश सालों से थी. दोनों के बीच आलम शाह को मारने की बात हुई और एक लाख रूपये का सौदा हुआ.
रानी कमलापति की आत्महत्या
एक छली और कपटी इन्सान के लिए किसी व्यक्ति को मारना कोई बड़ी बात नहीं होती ऐसा ही हुआ मोहम्मद खान ने आलम शाह को मार दिया. रानी को अब एक लाख रु चुकाने थे मगर उसके पास इतने पैसे नहीं थी.
किसी तरह उसने 50 हजार रु जुटाएं तथा कुछ गाँव मोहम्मद खान को देकर अपना वायदा पूरा किया. मगर खान के दिमाग के कुछ और ही चल रहा था उसे रानी कमलापति की चाहत थी. अतः उसने रानी से निकाह करने की इच्छा जताई मगर उसने यह मांग ठुकरा दी.
अपने असली चरित्र पर आए मोहम्मद ने रानी कमलापति के मुट्टीभर सैनिकों से युद्ध कर इस लक्ष्य को पाने की ठान ली. इस दौरान हुई एक आपसी लड़ाई में रानी कमलापति का सोलह वर्षीय पुत्र नवल शाह मारा गया.
रानी कमलापति के पास गरिमा बचाने के लिए अब कोई साधन नहीं बचा थी, अतः उसने अपनी इज्जत बचाने के लिए मृत्यु का वरण ही उचित समझा और महल में ही बने तालाब में कूदकर जान दे दी.
दूसरी कहानी
चंद सिक्कों की खनक से लिखे इतिहास में आज भी दोस्त मोहम्मद खान को एक बड़े वारियर के रूप में दिखाया जाता हैं. साथ ही उसे पहला मुस्लिम शासक मानते हैं जिसने हिन्दू रानी से राखी बंधवाई और उसकी रक्षा की.
ऐसी कहानियां खूब गढ़ी गई कि कमलापति के पति के देहांत के बाद वह मोहम्मद खान के पास गई और उसे भाई कहकर राखी बाँधी , भाई ने बदले में उसे रहने के लिए गिरनौर का महल दिया.
इतिहास के साथ कुछ हद तक फेर बदल की जा सकती हैं मगर एक छली कपटी और प्रपंची इंसान जिसके इतिहास में बस फ़रेब के किस्से ही निकले उस पर कितनी ही मनमोहक गाथाएं गढ़ दी जाएं वे सच्चाई को लम्बे समय तक ढक कर नहीं रख सकेगी.
आधुनिक भोपाल के निर्माता कहे जाने वाले मोहम्मद खान और 1979 में बने हबीबगंज रेलवे स्टेशन की कहानी में भी मुगलों के दान पुण्य की गजब की कहानियां रची गई थी.
अब रेलवे स्टेशन का नाम बदलने से एक बार फिर से लोगों को अपने अतीत को याद कर भूलों को न दोहराने की सीख अवश्य लेनी चाहिए.