रसखान का जीवन परिचय जीवनी Raskhan Biography In Hindi: रसखान को महान हिंदी कवियों में गिना जाता है। उनके नाम की तरह उनकी कविताओं में भी रस था।
कहा जाता है कि मुस्लिम कवि होने के बावजूद कृष्ण भक्ति में वो ऐसे मुग्ध हुए थे कि बाद में उन्होंने बिट्ठलनाथ के शिष्य बन गए।
उनकी कविताओं में शब्दों का सही चयन , व्यंजक शैली और भाषा की मार्मिकता थी। अपने साहित्य ज्ञान का उपयोग रसखान ने अपनी कविताओं में किया है। इसके अलावा इनकी कविताओं में भक्ति और शृंगार दोनों ही प्रधानता से मिलते हैं।
उनकी कविताओं में रूप-माधुरी, ब्रज-महिमा, राधा-कृष्ण की प्यारी लीलाओं का भी वर्णन मिलता है। उनकी रचनाओं का संग्रह रसखान रचनावली के नाम से मिलता है। महान कवियों के बीच उनका एक महत्वपूर्ण स्थान है।
रसखान का जीवन परिचय जीवनी Raskhan Biography In Hindi
नाम | रसखान (सैयद इब्राहिम ) |
जन्म | 1548 |
गुरु का नाम | गोस्वामी बिट्ठलनाथ |
विवाह | कोई प्रमाण नहीं |
विशेष | रीति काल के महत्वपूर्ण कवि |
मृत्यु | 1628 |
रचनाएं | सुजान रसखान, प्रेमवाटिका |
कार्यक्षेत्र | भक्ति क्षेत्र |
रसखान के जन्म को लेकर काफी मतभेद पाए जाते हैं। रसखान का जन्म 1548 ईस्वी में उत्तरप्रदेश के हरदोई ज़िले के पिहानी में माना जाता है। हालांकि कुछ लोग रसखान को जन्म 1590 ईस्वी के लगभग और दिल्ली के समीप मानते हैं। इनके द्वारा लिखे गए प्रेमवाटिका से मालूम होता है कि रसखान किसी राज परिवार से संबंध रखते थे।
रसखान का वास्तविक नाम सैयद इब्राहिम था। ये नाम उन्होंने अपनी कविताओं में इस्तेमाल करने के लिए रखा था। इनके पिता का नाम गंनेखां था जो कि अपने समय के एक मशहूर कवि थे।
उन्हें खान की उपाधि भी मिली हुई थी। वैसे ऐसा भी कहा जाता है कि रसखान किसी बादशाह के वंशज थे। रसखान की माता का नाम मिश्री देवी था जो कि एक समाज सेविका थी।
रसखान का परिवार आर्थिक रुप से सम्पन्न होने के कारण उनका बचपन आराम और बिना किसी दिक्कत के गुज़रा। परिवार भर में संस्कार होने के कारण बचपन से ही भक्ति जिज्ञासा थी। इनके बारे में ऐसा कहा जाता है कि बचपन में एक बार कहीं भागवत कथा आयोजित हुई।
वहाँ पर पास ही में श्री कृष्ण की तस्वीर रखी हुई थी। भागवत कथा समाप्त होने के बाद भी वो उस तस्वीर को देखते रहे। कृष्ण भक्ति को ही अपना जीवन मान चुके रसखान विट्ठलनाथ के शिष्य बन गए और मथुरा चले गए।
हालांकि कुछ विद्वान् ये भी मानते हैं कि रसखान की भक्ति से प्रभावित होकर गोस्वामी बिट्ठल ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया था। मथुरा में ही इनकी समाधि है। रसखान को रस की खान भी कहा जाता है। ये भी कहा जाता है की भगवत का अनुवाद रसखान ने हिंदी और फ़ारसी में किया है।
ब्रज में रसखान की मृत्यु 1628 ईस्वी में हुई थी। मथुरा ज़िले के महाबन में इनकी समाधि बनाई हुई है। रसखान की जन्म और मौत का कोई प्रमाण नहीं मिलता इसलिए इसे केवल एक अंदाजा ही माना जाता है। रसखान का रचनाकाल जहांगीर का शासन काल था।
रसखान का साहित्यिक परिचय
रसखान ने पूर्ण रूप से अपनी रचनाओं को कृष्ण भक्ति में समर्पित किया है। कृष्ण भक्ति की रचनाओं से ही इन्हें कवि के रूप में एक विशेष पहचान मिल स्की। इसके अलावा रसखान की फ़ारसी और अरबी में अच्छी पकड़ थी।
काव्य में जितने गुण होते हैं इन्होने सभी का अपनी रचनाओं में इस्तेमाल किया है। इन्होने प्रेमन से कृष्ण के बाल रूप और यौवन रूप के बारे में अनेक कविताएं लिखी हैं। कृष्ण भक्त कवियों में ये अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इनकी विशेषताएं माधुर्य, सरलता और सरसता हैं।
रसखान की कृतियां
सैयद इब्राहीम यानि रसखान द्वारा लिखी गयी केवल दो ही रचनाएं उपलब्ध हैं :-
सुजान रसखान
इसमें दोहे, सोरठा, सैवये और कवित्त हैं। सुजान रसखान कुल 139 छन्दो का संग्रह है।
प्रेमवाटिका
रसखान की लगभग सारी रचनाएं कृष्ण भक्ति एवं ब्रज प्रेम को समर्पित हैं। प्रेमवाटिका में केवल 25 दोहे हैं। इस रचना में प्रेम का रस पूर्ण रूप में बसा हुआ है।
रसखान भाषा शैली
साधारण रूप से रसखान ने अपनी रचनाओं में ब्रजभाष का ही प्रयोग किया है। इनकी रचनाओं में अनेक स्थानों पर प्रचलित मुहावरों को पाया जा सकता है। इनके काव्य में इनकी भाषा का स्वरूप बेहद सहज और सरल है।
रसखान द्वारा रचित सैवये आज भी कृष्ण भक्तों में काफी मशहूर हैं। इनकी भाषा में शब्दों की सजावट से भाषा एक सौंदर्य रूप धारण कर लेती है। इन्होने अपनी भाषा में सरल एवं सुधरे हुए शब्दों का है।
रसखान की साहितियक विशेषताएं
- रसखान की रचनाएँ जो की प्यार के रस से भरपूर होती हैं, श्रृंगार की प्रधानता भी रही हैं।
- रसखान की प्यार को हावी कर देने वाली रचनाओं की वजह से उन्हें अमृत की वर्षा करने वाला भी कहा जाता है।
- रसखान के समय में अधिकतर लेखक केवल पदों की रचना ही करते थे। पर रसखान ने इस रीत के विरुद्ध जाकर ज़्यादा से ज़्यादा दोहे और कविताएं लिखने पर ज़ोर दिया।
- इन्होने अपनी लगभग सभी रचनाओं में भाषा को परिमार्जित, सरल और शुद्ध रखा।
रसखान कृष्ण भक्त कैसे बने
ऐसा माना जाता है कि एक बार रसखान पान की दुकान पर खड़े थे तो उन्होंने दुकान पर कृष्ण की लगी तस्वीर देखी तो रसखान के मन में सवाल आया कि की तस्वीर में ये बच्चा कौन है.
इसके पैरों में जूतियां क्यों नहीं हैं तो इस बात को रसखान का पागलपन समझते हुए जवाब दिया कि मुझे नहीं पता ये कौन है और इसके पैर में चप्पल क्यों नहीं है।
रसखान की इस जिज्ञासा को देखकर कृष्ण प्रकट हुए और उसे वृन्दावन जाने के लिए कहा। वृन्दावन पहुँच कर वो मंदिर में गए तो पुजारी ने रसखान को मंदिर में प्रवेश करने से मना कर दिया। इस कारण से वो बाहर ही रुके और कृष्ण की प्रतीक्षा करने लगे।
जब रात को मंदिर पूरी तरह से खाली हो गया तो कृष्ण ने रसखान को दर्शन दिए। तब से रसखान ने कृष्ण भक्त बनने का फैसला ले लिया। हालांकि ये सिर्फ मान्यता है और इसका कोई प्रमाण ना होने के कारण इसका विश्वास नहीं किया जा सकता।
रसखान के भजन
वैसे तो रसखान ने बहुत सारे भजनों की भी रचना की है लेकिन उनका भजन बता दो मुझे कहाँ मिलेगा श्याम पुरे भारत में मशहूर है। उनके और भजनों और रचनाओं को भी खोजा जा सकता है।
रसखान के पद का अर्थ
कृष्ण भक्ति का निर्णय लेने वाले रसखान अपने लिए कुछ कामनाएं करते हैं जो उन्होंने कुछ इस तरह व्यक्त की हैं:-
- अगर मुझे अगला जन्म मिलता है तो मैं गोकुल में ही जन्म लेना चाहता हूँ।
- अगर मुझे किसी पत्थर का जन्म मिलता है तो मैं गावर्धन पर्वत के पत्थर का जन्म लेना चाहता हूँ।
- मुझे अगर किसी पक्षी का जन्म मिलता है तो मैं यमुना किनारे आदम के पेड़ पर बैठे पक्षी का जन्म लेना पसंद करूंगा।
- अगर मुझे किसी पशु का रूप मिलता है तो मैं कृष्ण की गाय का रूप लेना चाहता हूँ।
रसखान की उपलब्धियां
- रसखान पुराने समय के व्यक्ति थे इसलिए उन्हें कोई उपलब्धि होने का प्रमाण नहीं मिलता मगर उनकी रचनाओं को पढ़ने के बाद कई मशहूर साहित्यकार उनकी तारीफ करते हैं और टिप्पणियां भी करते हैं।
- हरीश चंद्र ने रसखान जैसे कवियों के लिए कहा है कि इन मुसलमान हरिजनन पै, कोटि हिन्दू वरिये।।
- विजयेंद्र स्नातक जो कि एक साहित्यकार थे उन्होंने रसखान को “स्वछन्द काव्यधारा के प्रवर्तक” की उपाधि दी थी।
रसखान के कुछ दोहे
म प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोइ।
जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोइ॥
कमल तंतु सो छीन अरु, कठिन खड़ग की धार।
अति सूधो टढ़ौ बहुरि, प्रेमपंथ अनिवार॥
काम क्रोध मद मोह भय, लोभ द्रोह मात्सर्य।
इन सबहीं ते प्रेम है, परे कहत मुनिवर्य॥
बिन गुन जोबन रूप धन, बिन स्वारथ हित जानि।
सुद्ध कामना ते रहित, प्रेम सकल रसखानि॥
अति सूक्ष्म कोमल अतिहि, अति पतरौ अति दूर।
प्रेम कठिन सब ते सदा, नित इकरस भरपूर॥
भले वृथा करि पचि मरौ, ज्ञान गरूर बढ़ाय।
बिना प्रेम फीको सबै, कोटिन कियो उपाय॥
रसखान की कुछ रचनाएँ
- खेलत फाग सुहाग भरी
- संकर से सुर जाहिं जपैं
- मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं
- आवत है वन ते मनमोहन
- जा दिनतें निरख्यौ नँद-नंदन
- कान्ह भये बस बाँसुरी के
- सोहत है चँदवा सिर मोर को
- प्रान वही जु रहैं रिझि वापर
- फागुन लाग्यौ सखि जब तें
- गावैं गुनी गनिका गन्धर्व
- नैन लख्यो जब कुंजन तैं
- या लकुटी अरु कामरिया
- मोरपखा मुरली बनमाल
- कानन दै अँगुरी रहिहौं
- गोरी बाल थोरी वैस, लाल पै गुलाल मूठि
- कर कानन कुंडल मोरपखा
- सेस गनेस महेस दिनेस
- मानुस हौं तो वही
- बैन वही उनकौ गुन गाइ
- धूरि भरे अति सोहत स्याम जू
- मोहन हो-हो, हो-हो होरी