नमस्कार आज हम ऋग्वैदिक काल का इतिहास History Of Rig Vedic Period In Hindi पढेगे. हमारे वैदिक काल का सम्पूर्ण अतीत ऋग्वैदिक काल से ही मिलता हैं.
इस युग के सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक जीवन के बारे में मैक्समूलर समेत कई इतिहासकारों ने अपनी स्टडी की हैं. आज हम ऋग्वैदिक काल के इतिहास के बारे में संक्षिप्त में जानेगे.
ऋग्वैदिक काल का इतिहास Rig Vedic Period In Hindi
ऋग्वैदिक काल के भौगोलिक प्रचार की जानकारी ऋग्वेद से प्राप्त होती हैं. ऋग्वेद में उल्लेखित पर्वत, मरुस्थल तथा पंजाब की सात नदियों (सिन्धु, सरस्वती, सतलज, व्यास, रावी, झेलम, चिनाब) के आधार पर इनके निवास क्षेत्र को सप्त सैन्धव कहा गया हैं.
ऋग्वेद में अफगानिस्तान की भी नदियों का उल्लेख मिलता है जिससे पता चलता है कि उस समय अफगानिस्तान भी भारत का ही हिस्सा था.
ऋग्वैदिक काल का क्षेत्र विस्तार व समयावधि (Geographical Expansion of India During Vedic Period)
ऋग्वेद में उत्तर भारत की कुल ४२ नदियों का उल्लेख है जो अफगानिस्तान से लेकर उत्तर पूर्व में यमुना नदी तक फैली हुई थी. उपरोक्त विवरणों के आधार पर ज्ञात होता है
कि ऋग्वैदिक आर्य, अफगानिस्तान,पंजाब, सिंध एक भाग कश्मीर, उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त, राजस्थान तथा उत्तरप्रदेश में फैले हुए थे.
ऋग्वैदिक नदियाँ (rigvedic name of rivers)
प्राचीन नाम वर्तमान नाम
- सिन्धु- सिन्धु
- असिक्नी- चिनाब
- शुतुद्री- सतलज
- विपाशा- व्यास
- वितस्ता- झेलम
- सरस्वती/दृष्टिवती- घग्घर
- परुशनी- रावी
अफगानिस्तान की नदियां (Rivers of Afghanistan)
प्राचीन नाम – वर्तमान नाम
- कुम्भा- काबुल
- सुवास्तु- स्वात
- कृमु- कुर्रम
- गोमती- गोमल
ऋग्वैदिक कालीन जनजीवन (Early Vedic Age Origin, Social Life, Economic Life, Culture and Religion)
आर्य लोग स्थायी या स्थिर निवासी नही थे. वैदिक संस्कृति मूलतः ग्रामीण थी. आर्यों का आरम्भिक जीवन मुख्यतया पशुचारण था, कृषि उनका गौण व्यवसाय था.
आगे हम ऋग्वेदकालीन लोगों के राजनितिक, सामाजिक, आर्थिक जीवन उनके रीती रिवाज, देवी देवता तथा ऋग्वैदिक साहित्य एवं पुस्तकें जो इस काल में लिखी गईं थी. चलिए राजनितिक जीवन के साथ इसकी शुरूआत करते हैं.
ऋग्वैदिक कालीन राजनीतिक जीवन (early vedic period political life)
ऋग्वैदिक राजनीतिक व्यवस्था सरल तथा कबिलाई सरंचना पर आधारित थी. इस काल में राज्य निर्माण के महत्वपूर्ण घटक अनुपस्थित थे, इसमें सैनिक तत्व प्रबल था.
आरम्भ में आर्यों के कुटुंब कुल या परिवार रक्त सम्बन्धों पर आधारित थे. जिसका प्रधान कुलप या कुलपति कहलाता था. वह परिवार का मुखिया होता था.
अनेक परिवारों को मिलाकर ग्राम बनता था, जिसका प्रधान ग्रामणी कहलाता था तथा अनेक ग्रामों को मिलाकर विश बनता था, जिसका प्रधान विश्पति होता था. कुटुंब ही सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई थी.
अनेक विशों का समूह जन या कबीला कहलाता था जिसका प्रधान राजा/राजन या गोप होता था. जनपद राष्ट्र या राज्य की अवधारणा भी वैदिक काल के उतराध में स्थापित हुई.
शासन का प्रधान राजा हुआ करता था. प्रारम्भ में राष्ट्र की सम्पूर्ण प्रजा मिलकर राजा का चुनाव करती थी. परन्तु बाद में यह अनुवांशिक हो गया.
ऋग्वैदिक काल में राजा भूमि का स्वामी नही था. वह प्रधानतः युद्ध का नेता होता तथा तथा व्यक्तिगत रूप से युद्धों में भाग लेता था.
ऋग्वेद में पुरोहित, सेनानी तथा ग्रामिणी, रथकार तथा कर्मादी आदि उपस्थित रहते थे. इन्हें रत्निन कहा गया हैं, इसमें ग्रामिणी गाँव का मुखिया होता था.
अन्य पदाधिकारियों में पुरप तथा दूत उल्लेखनीय है इनमें पुरप दुर्गपति होते थे. दूत के कार्य राजनितिक थे जो समय समय पर संधि विग्रह के प्रस्तावों को लेकर अन्य राज्यों में जाते थे.
इस काल में अनेक जनतांत्रिक संस्थाओं का विकास हुआ, जिनमें सभा, समिति, तथा विदथ प्रमुख है. इस संस्थाओं में राजनीतिक सामाजिक धार्मिक तथा आर्थिक प्रश्नों पर चर्चा होती थी.
समिति समस्त समुदाय की जनसभा थी तथा सभा का स्वरूप गुरुजन सभा से मिलता जुलता था. जिसमें स्त्रियाँ भाग लिया करती थी. सभा का मुख्य कार्य न्याय करना होता था, जबकि समिति का मुख्य कार्य राजा का निर्वाचन था .
राजा पर अंकुश रखना तथा प्रशासन में उनकी सहायता करना उनके कार्य थे. विदथ मुख्यतः धार्मिक तथा सैनिक महत्व के कार्य किया करती थी.
ऋग्वैदिक कालीन सामाजिक जीवन (early vedic period social life)
ऋग्वैदिक समाज का आधार परिवार था. परिवार पितृसत्तात्मक था. कुलपति का परिवार के सदस्यों पर प्रभाव और नियंत्रण रहता था.
पितृसत्तात्मक तत्व की प्रधानता होते हुए भी परिवार में स्त्रियों को यथोचित आदर एवं सम्मान दिया जाता था. माता का गृहस्वामिनी के रूप में पर्याप्त आदर होता था तथा स्त्रियों को पर्याप्त स्वतंत्रता प्राप्त थी.
स्त्रियों के विवाह सम्बन्धी स्वतंत्रता प्राप्त थी. उन्हें शिक्षा पाने तथा राजनीतिक संस्थाओं में हिस्सा लेने का भी अधिकार था, विश्वतारा, विश्पला और घोषा ऐसी विदुषी महिलाएं थी.
आर्य लोगों के विवाह, दास एवं दस्युओं के साथ निषिद्ध था. ऋग्वेद में ऐसी कन्याओं का उल्लेख मिलता है जो दीर्घकाल तक अथवा आजीवन अविवाहित रहती थी ऐसी कन्याओं को अमाजू कहते थे.
परिवार में एक पत्नी विवाह सामान्यतः प्रचलित था. यदपि कुलीन वर्ग के लोग कई कई पत्नियाँ रखते थे, बाल विवाह की प्रथा नही थी, अंतरजातीय विवाह होते थे.
समाज में सती प्रथा के प्रचलित होने का उदहारण नही मिलता है. स्त्रियों को राजनीति में भाग लेने का अधिकार था परन्तु सम्पति सम्बन्धी अधिकार प्राप्त नही थे.
आर्यों का प्रारम्भिक सामाजिक वर्गीकरण वर्ण एवं कर्म के आधार पर हुआ था. आर्यों के तीन वर्ग थे- ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य. यह वर्गीकरण जातिगत व जन्मजात न होकर कर्म के आधार पर निश्चित किया गया था.
ऋग्वेद के दसवें मंडल के पुरूष सूक्त में चार वर्णों की उत्पत्ति की कथा के अनुसार ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, बाहू से क्षत्रिय, जंघा से वैश्य और पैर से शुद्र का जन्म हुआ हैं. शुद्र की श्रेणी में अनार्यो को रखा गया था.
ऋग्वैदिक समाज में दास अथवा दस्युओं का भी उल्लेख मिलता है जिन्हें आर्यों का प्रबल शत्रु बताया गया है तथा अमानुष कहा गया है. सोम आर्यों का प्रमुख पेय पदार्थ था. मांसाहारी तथा शाकाहारी दोनों प्रकार के भोजन किये जाते थे.
नमक तथा मछली का प्रयोग नही होता था. वेशभूषा में सूती, ऊनी व रंगीन कपड़ो का प्रचलन था. स्त्री और पुरूष दोनों को आभूषण पहनने का शौक था.
आभूषण सोने, चांदी तांबे, हाथीदाँत व मूल्यवान पत्थरों से निर्मित होते थे. मनोरंजन के साधनों में संगीत गायन, संगीत वादन, नृत्य, चौपड़, शिकार, अशवधावन आदि शामिल थे.
ऋग्वैदिक काल की आर्थिक व्यवस्था (economic life of early vedic period)
ऋग्वैदिक आर्यों की संस्कृति मूलतः ग्रामीण थी. कबायली सरंचना के अनुरूप पशुचारण मुख्य पेशा तथा कृषि गौण पेशा था. आर्यों की अधिकांश लड़ाईयां गायों को लेकर होती थी.
गाय का इतना अधिक महत्व था कि जीवन से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण गतिविधियों को गाय से जोड़ दिया गया था. गाय सबसे उत्तम धन माना जाता था. अनेक शब्दों की उत्पत्ति गाय से हुई जैसे गवयुती (दूरी का माप), गोधूली( संध्या वेला) गोमत (धनी व्यक्ति) आदि.
ऋग्वैदिक लोग गाय चराने खेती करने और बसने के लिए जमीन पर कब्जा करते थे, परन्तु भूमि निजी सम्पति नही होती थी. इस काल में बढाई, रथकार, बुनकर, चर्मकार, कुम्हार आदि का उल्लेख मिलता हैं.
सीमित व्यापार का आधार विनिमय प्रणाली होती थी. मुद्रा के रूप में निष्क और शतमन की चर्चा है किन्तु ये नियमित सिक्के नही थे. प्रजा स्वेच्छा से राजा को उसका अंश देती थी, जिसे बलि कहा जाता था.
ऋग्वैदिक काल की आर्थिक स्थिति (economic life of early vedic period)
इस काल में धर्म व्यक्तियों के दायित्वों का स्वयं तथा दूसरों के प्रति व्यक्तिगत कर्तव्यों की इस समय प्राकृतिक शक्तियों का मानविकरण कर उनकी पूजा की गई. ऋग्वैदिक काल में अग्नि, इंद्र, वरुण, सूर्य, सवितु, ऋतु, यम, रूद्र, अश्विनी आदि प्रमुख देवता थे
उषा, अदिति, रात्रि, संध्या आदि प्रमुख देवियाँ थी. देवताओं में सर्वोच्च स्थान इंद्र को दिया गया हैं. हमारे महत्वपूर्ण देवता, अग्नि, देवताओं और मनुष्यों के बीच मध्यस्थ थे, जिनके माध्यम से देवताओं को आहुतियों दी जाती थी.
ऋग्वेद में जिन देवताओं की स्तुति अंकित है, वे प्राकृतिक तत्वों में निहित शक्तियों के प्रतीक थे लेकिन इस समय पूजा अर्चना का उद्धेश्य मोक्ष की प्राप्ति न होकर भौतिक सुख प्राप्ति था.
देवताओं को प्रसन्न करने के लिए आर्य मुख्यतः दो प्रकार के कार्य करते थे मन्त्रो का उच्चारण तथा यज्ञ करना. इस काल में यज्ञों का अत्यधिक महत्व था. इस काल के लोग पुत्र की प्राप्ति, पशुधन की प्राप्ति, युद्ध में विजय आदि के लिए देवताओं की उपासना करते थे.
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