Salim Ali Biography in Hindi सलीम अली का जीवन परिचय : भारत में कई ऐसी हस्तियाँ हुई जिन्होंने कई क्षेत्रों में विरला काम करके न सिर्फ एक उदाहरण पेश किया बल्कि भारत के नाम को दुनियां में भी आगे बढ़ाया.
ऐसी ही एक शख्सियत थी सलीम अली की, जिनका पूरा नाम डॉ सलीम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली था, ये खासकर पक्षियों से बेहद लगाव रखते थे.
पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी, वन्यजीव संरक्षणवादी के रूप में इन्होने अपना पूरा जीवन लगा दिया था.
सलीम अली का जीवन परिचय | Salim Ali Biography in Hindi
बिंदु | जानकारी |
नाम | सालिम मुईनुद्दीन अब्दुल अली |
अन्य नाम | बर्डमैन |
जन्म | 12 नवंबर 1896 |
जन्म स्थान | बॉम्बे (अब मुंबई) |
पिता का नाम | मोइज़ुद्दीन |
पेशा | पक्षी विज्ञानी |
राष्ट्रीय पुरुस्कार | पद्मश्री |
मृत्यु | 29 नवम्बर 2018 |
मृत्यु कारण | कैंसर |
सलीम अली का बचपन व आरम्भिक जीवन
12 नवम्बर 1896 को मुंबई के एक मुस्लिम परिवार में जन्मे सलीम अली के पिता का नाम मोइज़ुद्दीन और माता का नाम ज़ीनत-उन-निस्सा था. ये अपने माता पिता की नौवी सन्तान थे.
जब अली तीन वर्ष के हुए उस समय तक उनके माता पिता दोनों गुजर गये थे. इस वजह से इनका लालन पोषण इनके मामा और चाची ने किया था.
बचपन से ही उनका शौक पशु पक्षियों में अधिक था उनके इसी शौक को परवान चढाने का कार्य किया बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के सचिव डबल्यू.एस. मिलार्ड ने.
इन्होंने बालक सलीम को पक्षियों की ओर आकर्षित कराया, अपनी सोसायटी में कैद सभी पक्षी उन्हें दिखाए, पक्षियों से जुड़ी किताबे उन्हें पढने दी, बस अब क्या था. पढ़ाई और अन्य क्षेत्रों से अधिक उनकी रूचि खेल और पशु पक्षियों में लग गई.
जब ये १३ साल के थे तो भारी सिरदर्द के कारण सलीम को किसी के कहने पर मामा के घर सिंध पाकिस्तान भेज दिया गया. वहा की जलवायु में उन्हें सिरदर्द की बीमारी से छुटकारा तो मिल गया.
मगर एक नयें देश नई प्रजातियों के पक्षियों ने इन्हें अपनी ओर अधिक आकर्षित किया. कुछ समय बाद इन्हें फिर मुंबई ले जाया गया. यहाँ से इन्होने 17 वर्ष की आयु में आखिर 10 वीं तक की पढ़ाई पूरी करने में कामयाबी पाई.
1985 में सालिम अली ने “द फॉल ऑफ एक स्पैरो” शीर्षक से अपनी आत्मकथा भी लिखी इस किताब में उन्होंने अपने जीवन की उन घटनाओं का जिक्र भी किया है जिसके चलते वे पक्षी प्रेमी बन पाए तथा उनके जीवन की बाधाओं का वर्णन भी किया गया है.
सलीम अली की जीवनी – Biography Salim Ali in Hindi
सलीम अली का जन्म १२ नवम्बर १८९६ को बोम्बे में हुआ. ये एक भारतीय पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी थे. सलीम अली को भारत के बर्डमैंन के नाम से जाना जाता है.
सलीम अली भारत के ऐसे पहले व्यक्ति थे. जिन्होंने भारत भर में व्यवस्थित रूप से पक्षी सर्वेक्षण का आयोजन किया और पक्षियों पर लिखी उनकी किताबों ने भारत में पक्षी विज्ञान के विकास में काफी मदद की.
पक्षियों के सर्वेक्षण में ६५ साल गुजार देने वाले इस शख्स को परिंदों का चलता फिरता विश्वकोष कहा जाता था. उनकी पक्षियों पर आधारित पुस्तकें ”द बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स” ”हैंडबुक ऑफ द बर्ड्स ऑफ इंडिया एंड पाकिस्तान” एवं ”द फॉल ऑफ ए स्पैरो” बहुत प्रसिद्ध हुई.
प्रकृति की विज्ञान और पक्षियों पर किये गये महत्वपूर्ण कार्यों के लिए उन्हें भारत सरकार की ओर से पद्म विभूषण जैसे देश के अनेक सम्मानों से सम्मानित किया गया.
भरतपुर पक्षी अभयारण्य केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना और साइलेंट वैली राष्ट्रीय उद्यान को समाप्त होने से बचाने में सलीम अली का बहुत बड़ा योगदान रहा.
27 जुलाई 1987 के दिन ९१ वर्ष की आयु में भारत के इस पक्षी प्रेमी का देहावसान हो गया. उनका सपना था कि भारत में एक पक्षी शोध एवं अध्ययन केंद्र की स्थापना हो.
भारत सरकार द्वारा उनकी स्मृति में बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी’ की तथा वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की पहल पर इनके नाम पर सलीम अली पक्षीविज्ञान एवं प्राकृतिक इतिहास केन्द्र की स्थापना की गई.
बर्डमैन ऑफ़ इंडिया
भारत के बर्डमैन के नाम से विख्यात डॉ सलीम अली ने अपना समूचा जीवन पक्षियों के संरक्षण, उनको करीब से समझने जानने, उनकी जुबान को जानने में बिता दिया था. अली ने आम लोगों को पक्षियों के जीवन में रूचि जगाते हुए कई पक्षी उद्यानों और विहारों की स्थापना में अहम भूमिका निभाई.
सलीम अली ने भारत के अलावा कई देशों की यात्रा की और पक्षियों की अलग अलग जातियों के अध्ययन का कार्य किया, उन्होंने कुमाऊ के तराई के क्षेत्रों से बया की एक विलुप्त प्रजाति को पुनः खोज निकाला.
अली को साइबेरियन क्रेन के जीवन पर भी अच्छी स्टडी थी. वे सारस की हर एक आदत से वाकिफ थे, उन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि सारस मांसाहारी नहीं होते है तथा ये जल स्रोतों के निकट बची काई को खाकर अपना जीवन निर्वहन करते हैं.
ये पक्षियों के अध्ययन के लिए उन्हें बिना कष्ट दिए सैकड़ों तरीको से पकड़ना जानते थे. उन्होंने गोंग एंड फायर और डेक्कन मेथड की खोज की, जिनका उपयोग आज के पक्षी विज्ञानियों द्वारा किया जाता हैं.
डॉ सलीम अली ने बर्लिन युनिवर्सिटी में विख्यात जीव विज्ञानी इरविन स्ट्रेसमैन के निर्देशन में अपने करियर की शुरुआत की और 1930 में ये भारत लौट आए. भारत के कई पक्षी विहारों में अली ने काम किया.
स्वतंत्रता पश्चात इन्हें नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी और राजस्थान के केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान के देखरेख की जिम्मेदारी दी गई. वर्ष 1976 में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से उन्हें सम्मानित किया गया.
गाइड की नौकरी
डॉ सलीम अली का आरंभिक जीवन अस्वस्थता अपनों से बिछुड़जाने के बीच व्यतीत हुआ. दसवीं तक की पढाई इन्होने बम्बई में की, बाद में सिंध चले गये. वहां से ये बर्मा और जर्मनी की यात्रा पर गये और 1920 में पुनः मुंबई लौट आए.
विदेशों में रहकर पढाई करना जब सम्भव नहीं हुआ तो सलीम अली ने अपने अध्ययन को मुंबई में ही जारी रखा, किसी तरह उन्होंने प्राणी विज्ञान के कोर्स को पूरा किया, मगर वे डिग्री के योग्य नहीं बन सके.
इन्हें ब्रिटिश सरकार ने बम्बई नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी में एक गाइड के रूप में नियुक्त किया, जहाँ वे आने वाले लोगों को पक्षी दिखाते तथा उनके बारे में जानकारी देते. कुछ समय बाद ही यह नौकरी छूट गई. मगर अली ने पक्षियों पर अपने शोध के कार्य को जारी रखा.
वैवाहिक जीवन
डॉ सलीम अली का विवाह 1918 में तहमीना के साथ सम्पन्न हुआ, विवाह के पश्चात दोनों मुंबई में एक छोटे से घर में ख़ुशी से जीवन व्यतीत करने लगे. तहमीना भी उनके कार्यों की सराहना करती तथा हाथ बटाती थी.
उनके मकान के पास ही एक पेड़ पर बया के बहुत से घौसले थे. ये दिनभर उस पेड़ के नीचे बैठकर उनको करीब से जानते और जो कुछ वे अनुभव करते अपनी डायरी में नोट करते जाते हैं.
वर्ष 1939 में तहमीना की सर्जरी हुई तथा इस दौरान उसकी मृत्यु हो गई, पत्नी की मृत्यु के वियोग में सलीम अली पूरी तरह टूट गये. उन्होंने अपना शेष जीवन बहन कम्मो और बहनोई के साथ व्यतीत किया.
पक्षी वैज्ञानिक सलीम अली द्वारा लिखित पुस्तकें
द इंडियन बर्ड ‘भारतीय पक्षी’ उनके शोधपत्र स्वयं के नोट्स और अनुभव पर आधारित लिखित पहली पुस्तक थी, जो वर्ष 1941 में प्रकाशन में आई थी. इस किताब के आने के बाद डॉ अली ख्याति देश विदेश में एक पक्षी विज्ञानी के रूप में फैलने लगी.
डिल्लन रिप्ले के साथ मिलकर सलीम अली ने अपनी दूसरी पुस्तक हैन्डबुक ऑफ द बर्ड्स ऑफ इंडिया एण्ड पाकिस्तान लिखी, इस किताब के दस अध्यायों को लिखने में दोनों को करीब दस वर्ष लगे. सलीम अली ने कई क्षेत्रीय गाइड भी लिखी. इनकी आत्मकथा अर्थात ऑटोबायोग्राफी का नाम द फॉल ऑफ स्पैरो हैं.
सालिम अली की मृत्यु कैसे हुई
करीब 60 वर्षों तक भारत और भारत से बाहर पक्षियों के बारे में शोध करने और जानकारियाँ जुटाने वाले पक्षी विज्ञानी सलीम अली प्रोस्टेट कैंसर के शिकार हो गये. लम्बे समय तक बीमार रहने के पश्चात 91 साल की आयु में 20 जून 1987 को मुंबई में इनका निधन हो गया.
बर्डमैन अथवा परिंदों के मसीहा के रूप में उनका नाम अमर हो गया. आज के विज्ञान और तकनीक के दौर में जीवों के प्रति संवेदना रखने वाला तथा उन्हें जानने के लिए जंगलों की धुड फाकने वाले कम ही पक्षी प्रेमी पाए जाते हैं.
भारत जैसे देशों में पक्षियों के बारे में शोध के लिए अक्सर कम ही रूचि दिखाई जाती हैं. सलीम अली ने पक्षियों के अध्ययन के साथ ही कई नई बाते और शोध प्रकाशित किये थे. उन्होंने खासकर प्रवासी पक्षियों के केवलादेव और कच्छ में आवास से जुड़े जो खुलासे किये वे दुनिया के लिए नई बात थी.
सम्मान व पुरस्कार
एक पक्षी विज्ञानी के रूप में सलीम अली को कई पुरूस्कार और सम्मान मिले. अली को अंतर्राष्ट्रीय सम्मान के रूप में 5 लाख रूपये की राशि मिली, कहते हैं इन्होने इसे बम्बई नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के उत्थान के लिए दान में दे दिया.
सालिम अली को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (1958), दिल्ली विश्वविद्यालय (1973), आंध्र विश्वविद्यालय (1978) से मानद डॉक्टरेट की उपाधि मिली. इन्हें ब्रिटिश ऑर्निथोलॉजिस्ट यूनियन के स्वर्ण पदक भी दिया गया.
वर्ष 1967 में उन्हें 1 लाख डॉलर की पुरस्कार राशि वाला जे पॉल गेट्टी वाइल्डलाइफ कंजरवेशन का खिताब दिया गया. भारत सरकार की ओर से 1958 में पद्म भूषण और 1976 में पद्म विभूषण से नवाजा गया तथा ये 1985 में राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी बनाए गये.
भारत सरकार ने सलीम अली को सम्मान देने के लिए डाक टिकट भी जारी किया गया. कोयम्बटूर के पास अनाइकट्टी’ नामक जगह पर ‘सलीम अली पक्षीविज्ञान एवं प्राकृतिक इतिहास केन्द्र की स्थापना इनके सम्मान में की गई.
प्रतिवर्ष भारत में 12 नवम्बर को सलीम अली की याद में राष्ट्रीय पक्षी दिवस मनाया जाता हैं. भारत के पक्षियों से जुडी खोजो और जानकारियों में अली का बड़ा योगदान हैं. इनके सम्मान में भारत में सलीम अली पक्षी अभ्यारण गोवा की राजधानी पणजी के पास ही स्थापित किया गया हैं.
सलीम अली और विवाद
परिंदों के जीवन के बीच मशगूल रहने वाले सालिम अली पर कुछ बेहद गम्भीर आरोप भी लगे थे. सिडना डिलन रिप्ले के साथ उनके कामकाज के चलते उन पर अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए के एजेंट होने का आरोप लगा.
लोके वान के साथ भी अली की काफी घनिष्ठता थी, दोनों पक्षी विज्ञानी और अच्छे फोटोग्राफर थे. दोनों के साथ साथ मिलकर भी काम किया. अली का वास्ता पंडित नेहरु और इंदिरा गांधी के साथ भी था.
सलीम अली की विरासत
परिंदों के प्रेम करने और उन्हें जानने के जूनून को लिए वे दुनियाभर में घूमते रहे, अपनी जीवनी में सलीम अली लिखते कि जब आप परिदों पर अपना ध्यान लगा रहे होते हैं तो आप भौतिक अवस्था को भूल जाते हैं.
आपको कोई नहीं रोक सकता हैं. चाहे मौसम खराब हो या इलाके बीहड़ और डरावने. भारत के हर एक क्षेत्र को बड़ी करीबी से जानने वाले अली की उम्र बढ़ती गईं मगर पक्षियों को और अधिक जानने की लालसा कभी खत्म न होने वाली थी.
अमूमन लम्बा जीवन जीने के बाद व्यक्ति आत्मिक शान्ति की तलाश में एकांत वास करने लगता हैं. मगर सालिम अली तो अभी भी महान अल्बाट्रॉस थे, जो परिंदों की ऊंची उड़ानों को देख रहे थे तथा उनका लुफ्त उठा रहे थे.
उनका मुकाबला किसी और से न होकर स्वयं से ही था. सलीम अली ने जितना समय जंगलों में बिताया और उसका सार निकाला उतना योगदान कम से कम इस क्षेत्र में किसी और का नहीं रहा हैं.
सलीम अली जब बचपन में मामा अमिरुदीन के साथ रहते तो उनके मामा का पक्षियों के शिकार में बेहद रूचि थी. वे छोटे बच्चों को भी कांच के छर्रे वाली छोटी बंदूक थमाकर इस काम में लगा देते थे. ऐसे ही बच्चों के बीच शिकार की प्रतियोगिता हो जाया करती थी.
एक दिन सलीम अली ने एक गौरेया को खेल खेल में मार गिराया. गले में पीले रंग के निशान की इस चिड़ियाँ को अली ने गौर से देखा वे समझ नहीं पाए तो अपने मामा को भी दिखाई मगर अली की शंका का समाधान उनके पास भी नहीं थे.
चिड़ियाँ के बारे में जानने की उत्कंठा में वे इसे बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के सचिव डब्ल्यू. एस. मिलार्ड के पास भिजवाते हैं, जो सोनकंठी चिड़ियाँ के रूप में इसकी पहचान करते हैं.
मिलार्ड पक्षियों के प्रति बालक सलीम अली की जिज्ञासा से प्रसन्न हुए और उन्हें कई भारतीय प्रजाति के पक्षी दिखाएं. अली ने इन्ही पक्षियों पर बाद में कॉमन बर्ड ऑफ़ मुंबई पुस्तक लिखी. अली अपनी जीवनी में इस घटना को अपने जीवन का टर्निंग पॉइंट बताते हैं.
डॉ सलीम अली का व्यक्तित्व बहुत बड़ा था, सदैव अपने गले में एक दूरबीन टाँगे हाथ में नोट बुक लिए बाज सी बड़ी आँखे हर पल पक्षियों की हलचल पर टिकी रहा करती थी. अली का योगदान अतुलनीय हैं उनकी किताबें और पक्षी प्रेम आने वाली पीढियों के लिए विरासत की तरह काम आएगा.