संधि की परिभाषा, भेद और उदाहरण Sandhi In Hindi हिंदी व्याकरण में हमने आपको इससे पहले भी कई प्रकार की विस्तृत जानकारी दी है, जिस के माध्यम से आप गहराई से हिंदी व्याकरण के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं.
अगर किसी प्रकार की दिक्कत हो रही हो, तो लेख के माध्यम से समझा भी जा सकता है| ऐसे में आज हम आपको हिंदी व्याकरण के ही मुख्य संधि के बारे में जानकारी देने वाले हैं.
तो निश्चित रूप से ही आपके लिए काम किए होंगे और आप इन के माध्यम से एक नई चीज देखते हुए आगे बढ़ पाएंगे|
संधि की परिभाषा, भेद और उदाहरण Sandhi In Hindi
आज हम आपको संधि के बारे में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं साथ ही साथ उनके प्रकार के बारे में भी बताएंगे ताकि आपका किसी प्रकार का भी मन में सवाल ना रहे|
क्या है संधि?
दरअसल संधि संस्कृत भाषा का शब्द है जो 2 शब्दों के मिलने से बना है जिसमें जोर और मेल मुख्य रूप से माना जाता है। दो मुख्य शब्दों के मिलने से जो एक नया परिवर्तन देखने को मिलता है, उसे संधि का नाम दिया जाता है।
कभी-कभी दो शब्दों के मिलने से कुछ विकार उत्पन्न होता है जिसे हम आसानी से ही अपने शब्दों के माध्यम से बयां कर सकते हैं। संधि में खासतौर से पहला पद और दूसरा पद महत्वपूर्ण होता है जिसमें हम निश्चित रूप से परिवर्तन देख सकते हैं|
क्या है संधि विच्छेद
जब भी हम सन्धि के बारे में जिक्र करते हैं, तो बड़े ही आसानी के साथ उसके साथ ही संधि विच्छेद का जिक्र भी होने लगता है। संधि विच्छेद के माध्यम से किसी भी शब्द को स्वर और व्यंजन के बीच में तालमेल बिठाकर एक नया शब्द बनाना पड़ता है
और जिस में अलग-अलग पदों का इस्तेमाल भी किया जा सकता है इस प्रकार के विच्छेद का संधि विच्छेद कहा जाता है जिसका हम संस्कृत और हिंदी में परस्पर रूप से उपयोग करते हैं|
उदाहरण के तौर पर
- महा + देव = महादेव
- विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
- हिम + आलय = हिमालय
संधि के मुख्य प्रकार
अगर आप संधि बारे में ज्यादा अध्ययन करना चाहते हैं, तो आपको इनके प्रकार के बारे में भी जानना जरूरी होगा जो मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं
- स्वर सन्धि
- व्यंजन सन्धि
- विसग सन्धि
हम आपको एक एक करके प्रत्येक संधि के बारे में जानकारी देंगे—
1] स्वर सन्धि — यह संधि तब उपयोग में आती है जब दो स्वरों के मेल के कारण कोई नया शब्द उत्पन्न होता है या फिर कोई नया विकार उत्पन्न होता है इसे मुख्य रूप से स्वर संधि कहा जाएगा।
स्वर संधि के मुख्य भेद
स्वर संधि का अध्ययन करने के लिए निश्चित रूप से ही आपको उनके भेदों के बारे में भी जानकारी रखना होगा ताकि आप सही प्रकार से संधि का वर्णन कर सकें| ऐसे मैं स्वर संधि के मुख्य रूप से पांच भेद होते हैं–
- दीर्घ स्वर सन्धि — इसका इस्तेमाल उस समय होगा जब एक ही स्वर के दो रूप एक दूसरे के बाद आते हैं और एक नया शब्द दे जाते हैं| उदाहरण के रूप में
- शरण + अर्थी = शरणार्थी
- परम + अर्थ = परमार्थ
- अधिक + अधिक = अधिकाधिक
- कृष्ण + अवतार = कृष्ण अवतार
- भू + ऊर्जा = भूर्जा
- वधू + उपकार = वधूपकार
- गुण स्वर सन्धि — यह बहुत ही आसान प्रकार की संधि है जिसका निश्चित रूप से ही उपयोग किया जाता है और हमेशा स्वर्ग के स्थान पर ए, ओ, हो जाता है| उदाहरण के रूप
1 राज + इंद्र = राजेंद्र
2 शुभ + इच्छा = शुभेच्छा
3 परम + ईश्वर = परमेश्वर
4 महा + इंद्र = महेंद्र
5 राजा + इंद्र = राजेंद्र
6 पूर्व + उदय = पूर्वोदय
7 लोक + उक्ति = लोकोक्ति
8 ब्रह्मा + ऋषि = ब्रह्मर्षि
- वृद्धि स्वर सन्धि —-इस संधि में यदि या आ के बाद ए या ऐ के स्वर आते हो तो दोनों के ही स्थान पर ऐ हो जाता है| ऐसे में ज्यादातर इन प्रकार के शब्दों का ही उपयोग होता है| उदाहरण के तौर पर
1 सदा + एव = सदैव
- यण स्वर सन्धि— यह मुख्य रूप से उस समय इस्तेमाल होता है यदि इ, ई, उ ऋ के बाद कोई और स्वर आता हो साथ ही साथ पहले शब्द में अंतिम व्यंजन स्वर रहित होता हो| उदाहरण के तौर पर
1 अति + अंत = अत्यंत
2 अति + अधिक = अत्यधिक
3 प्रति + एक = प्रत्येक
4 मात् + आज्ञा = मात्रज्ञा
- अयादि स्वर सन्धि —- मुख्य संधि में यदि कुछ स्वर के बाद कोई भी अलग स्वर आता हो, तो इसे अयादि स्वर संधि कहा जाता है। इसमें मुख्य रूप नए शब्द बनते हैं| उदाहरण के रूप में
1 पो + अन = पवन
2 पो + अक = पावक
3 भो + उक = भावुक
2] व्यंजन सन्धि — इस सन्धि का उपयोग उस समय किया जाता है, जब व्यंजन के बाद किस वर्ग व्यंजन के आने से उस व्यंजन में परिवर्तन हो जाता है, उस जगह पर व्यंजन संधि का इस्तेमाल होता है|
जिसके अंतर्गत हमें कई सारे नियमों का उल्लेख करना होता है और इस बात की भी जानकारी रखनी होती है कि हमेशा व्यंजन को ही प्राथमिकता दी जाती है।
कई बार ऐसा भी होता है कि व्यंजन सन्धि के बनने से स्थान परिवर्तन होता है और साथ ही साथ नया शब्द निकल कर बाहर आता है। उदाहरण के रूप मे तत + अनुसार = तदनुसार
- उत + नयन = उन्नयन
- सम् + जय = संजय
- सम् + रक्षण = संरक्षण
- भर + न = भरण
- हर + न = हरण
3] विसग सन्धि — यह मुख्य रूप से उपयोग होने वाली संधि है जिसमें विसग के बाद किसी भी स्वर्ग या व्यंजन के आ जाने से वाक्य में परिवर्तन होने लगता और एक नया शब्द बन जाता है.
जिसके माध्यम से हम अपने वाक्य में इसका उपयोग भी कर सकते हैं| यह एक ऐसी संधि है, जो आराम से उपयोग में आती है| उदाहरण के रूप में
- हरि + चंद्र = हरिश्चंद्र
- दू + साहस = दुसाहस
- निः + ठुर = निष्ठुर
- दुः + कर = दष्कर
- निः + रोग = निरोग
- दुः + आचार = दुराचार
प्राचीन ग्रंथों में किया जाता था सन्धि का उपयोग
सामान्य रूप से ऐसा देखा जाता है कि जब भी प्राचीन ग्रंथों की बात की जाती है या वेदों की बात की जाती है, तो हमेशा उस में विभिन्न प्रकार की संधियों का उपयोग होता है।
ऐसे में कहा जा सकता है कि हिंदी साहित्य में भी सन्धि का विशेष उपयोग किया गया है जिसमें मुख्य रुप से विसग संधि, गुण स्वर संधि और दीर्घ संधि का इस्तेमाल किया जाता था।
ऐसा माना जाता था कि संधियों के उपयोग से वाक्य को एक नई दिशा दी जा सकती है और साथ ही साथ हिंदी व्याकरण को भी समझते हुए आगे बढ़ा जा सकता है।
संधियों का अध्ययन
ऐसे में हम समान्य रूप से देख सकते हैं कि जब भी हम स्कूली शिक्षा में होते हैं वहीं से हमारे संधियों का अध्ययन की शुरुआत हो जाती है और हम खुद के अंदर संधियों को आत्मसात करते हुए हिंदी व्याकरण को ही आगे बढ़ाते चलते हैं।
जैसे-जैसे हम आगे की ओर बढ़ते हैं वैसे वैसे हमारा ज्ञान भी बढ़ता जाता है और इसका उपयोग भी हम करते चले जाते हैं।
ऐसे में कई मशहूर लेखकों ने भी अपनी कविताओं और लेखों में संधियों का अध्ययन करते हुए हमें विशिष्ट जानकारी दी है जिसके माध्यम से हम भी और ही जानकारी प्राप्त कर सकते है।
संधियों के बारे में जानकारी रखना है जरूरी
सामान्य रूप से देखा जाता है हिंदी व्याकरण में संधिओं का विशेष महत्व है। ऐसे में हमें भी इनके बारे में जानकारी रखना आवश्यक होगा.
भविष्य में हम हिंदी व्याकरण को एक कदम आगे ले जाते हुए सही दिशा में अग्रसर हो सके और ज्ञान को भी बढ़ा सकें।