शिशुनाग वंश का इतिहास | Shishunaga Dynasty History In Hindi के इस लेख में वंश की स्थापना, राजधानी, वंश के शासकों तथा अंतिम शासक सहित महत्वपूर्ण जानकारी व इतिहास के बारे में संक्षिप्त में जानेगे.
मगध पर नंदवंश के शासक के पूर्व बिहार से लेकर बंगाल तक शिशुनाग का राज्य था, जिन्होंने ४१२ई॰ में एक नयें राजवंश की स्थापना की जिन्हें शिशुनाग के नाम से जाना गया था.
शिशुनाग वंश का इतिहास | Shishunaga Dynasty History In Hindi
वंश नाम | शिशुनाग |
स्थापना वर्ष | 412 ई. पू. |
संस्थापक | शिशुनाग |
मुख्य शासक | शिशुनाग, कालाशोक |
राज्य विस्तार | बंगाल से मालवा |
राजधानी | वैशाली, पाटलिपुत्र |
पूर्ववर्ती | हर्यक |
परवर्ती | नन्द |
समाप्ति | 344 ई. पू. |
अवन्ति राज्य के शासक को पराजित कर शिशु नाग ने अपने राज्य की शुरुआत की. इसके राज्य का विस्तार मगध, मालवा, वत्स, अवन्ति व बंगाल तक फैला हुआ था. कालाशोक इस वंश का दूसरा महत्वपूर्ण शासक माना जाता है जो शिशु नाग का पुत्र था.
एक व्यक्ति द्वारा इसकी चाक़ू मारकर हत्या कर दी जाती हैं. कालाशोक के 10 पुत्र थे जिन्होंने अगले २२ वर्षों तक शासन किया इसके बाद मगध पर नंद वंश का शासन स्थापित हो गया.
शिशुनाग वंश का इतिहास
- हर्यक वंश के एक सेनापति शिशुनाग ने मगध के सिंहासन पर अधिकार करके शिशु नाग राजवंशकी स्थापना की.
- शिशुनाग राजवंशके शासनकाल में राजधानी पाटलिपुत्र को बदलकर वैशाली ले जाया गया.
- इस वंश के शासक कालाशोक के शासन में दूसरी बौद्ध महासभा का आयोजन वैशाली में हुआ था.
- इस वंश की प्रमुख उपलब्धि अवन्ति को जीतकर मगध साम्राज्य में मिलाना था. नागदशक शिशुनाग राजवंश का अंतिम शासक था.
राजवंश के शासक
हर्यक वंश के अंतिम सम्राट नागदशक की कमजोरियों का लाभ उठाकर शिशुपाल में राजगद्दी पर आधिपत्य जमाया और अपने नाम से एक नये वंश “शिशुनाग डायनेस्टी” की शुरुआत की. इस वंश के मुख्य परम शक्तिशाली शासक ये रहे हैं.
शिशुनाग
इन्होने वैशाली को पुनः बसाया और प्रतिद्वंद्वी मगध के अवन्ती शासक अवन्तिवर्द्धन पर युद्ध में विजय की और उसके क्षेत्र को अपने साम्राज्य में शामिल कर दिया. इस तरह अब उनके मगध राज्य की सीमाओं का विस्तार मालवा तक विस्तृत हो गई.
अवंति के विलय के पश्चात शिशुपाल में वत्स को मगध साम्राज्य में मिलाया और पश्चिम के देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित किये.
शिशुनाग वंश के सबसे शक्तिशाली शासक के रूप में इन्हें जाना जाता हैं. इनका राज्य विस्तार बंगाल से मालवा था.
कालाशोक
यह शिशुनाग का पुत्र तथा इस वंश का दूसरा एव अंतिम प्रतापी शासक था. इनको महावंश में कालाशोक और पुराण साहित्य में काक वर्ण कहकर सम्बोधित किया गया हैं. शिशुनाग की मृत्यु के उपरान्त यह राजगद्दी पर बैठा और अगले 28 वर्षों तक एकछत्र शासन किया.
कालाशोक के शासनकाल में दो अहम इवेंट हुए जिनमें पहला वैशाली में दूसरी बौद्ध संगीति का आयोजन तथा दूसरा मगध की राजधानी को बदलना था.
हर्षचरित के अनुसार कालाशोक को महापद्मनंद नामक व्यक्ति ने पाटलिपुत्र में चाक़ू मारकर हत्या कर दी थी, इस तरह कालाशोक की मृत्यु के पश्चात शिशुनाग वंश समाप्त हो गया.
महाबोधिवंश ग्रन्थ के अनुसार कालाशोक के दस बेटे थे, जिन्होंने अगले 22 वर्षों तक पाटलीपुत्र पर शासन किया था, मगर अन्य किसी ऐतिहासिक स्रोत से इस दावे की पुष्टि नहीं हो पाती हैं.
अतः माना जाता हैं. 344 ई. पू. में कालाशोक के देहांत के पश्चात शिशुनाग वंश का समापन और नन्द वंश का जन्म हुआ.