चंद्रशेखर आजाद पर निबंध इन हिंदी Essay On Chandrashekhar Azad In Hindi: आपका स्वागत हैं. आज हम महान स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद का essay साझा कर रहे हैं.
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों में आजाद की गिनती सर्वोच्च देशभक्तों में गिना जाता हैं. कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के स्टूडेंट्स के लिए आज का चंद्रशेखर आजाद का निबंध बहुत उपयोगी हैं.
चंद्रशेखर आजाद पर निबंध Essay On Chandrashekhar Azad In Hindi
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चन्द्रशेखर आजाद पर 10 पंक्तियाँ 10 lines on Chandrashekhar Azad in Hindi
आजाद का जन्म चन्द्रशेखर तिवारी के रूप में 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के भाभरा गाँव में हुआ था.
अपनी माँ की इच्छा को पूरा करने के लिए, आजाद पढ़ाई के लिए वाराणसी गये.
वह भारत के निडर स्वतंत्रता सेनानी थे.
वह 1925 में अन्य लोगों के साथ काकोरी ट्रेन डकैती में शामिल थे.
वे समाजवाद में विशवास करते थे और वे किसी भी माध्यम को अपनाकर भारत की स्वतंत्रता चाहते थे.
चंद्रशेखर आजाद एक भारतीय क्रांतिकारी थे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी.
चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु 27 फरवरी 1931 को इलाहबाद के अल्फ्रेड पार्क में हुई थी.
आजाद पर निबंध 300 शब्द
चंद्रशेखर आजाद जिन्हें भारत के निडर क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाना जाता हैं. आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मप्र के भाबरा नामक गनाव में हुआ था.
सबके प्रिय चंद्रशेखर आजाद जिनका मूल नाम चंद्रशेखर तिवारी था, महात्मा गांधी ने उनकी निडरता और साहस को देखकर आजाद उपनाम दिया, आज जिन्हें पूरा देश इसी नाम से जानता हैं.
आजाद के पिता का नाम सीताराम तिवारी और माता का नाम जगरानी देवी था. तिवारी जी भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी भगतसिंह के गुरु हुआ करते थे. आजाद की स्कूली शिक्षा अपने ही गाँव भाबरा में सम्पन्न हुई.
माँ को संस्कृत को बहुत लगाव था अतः उनके कहने पर आजाद को उच्च शिक्षा के लिए बनारस भेजा, जहाँ उन्होंने एक संस्कृत विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की.
महज 15 वर्ष की आयु में ये गांधीजी से प्रभावित होकर भारत के स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े और असहयोग आंदोलन में क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के अपराध में ब्रिटिश पुलिस द्वारा पकड़े गये. मजिस्ट्रेट ने आजाद को सजा के तौर पर 15 कोड़े मारने का आदेश दिया.
इस घटना के बाद आजाद के दिल में भारत की आजादी के प्रति अपार जूनून पैदा हो गया. ये अपने साथियों के साथ 1925 में हुई काकोरी डकैती में शामिल हुए. इन्होने और भगत सिंह ने मिलकर एक ख़ुफ़िया संगठन बनाया.
जब 1928 में लाहौर में लाला लाजपत राय की पुलिस द्वारा हत्या कर दी गई तो आजाद ने इसका प्रतिशोध लेने का निश्चय किया और जॉन सोल्ड्रस की हत्या कर लालाजी की हत्या का बदला पूरा किया.
इसी हत्या के आरोप में अंग्रेज पुलिस वर्षों तक आजाद की तलाश करती रही और अन्तः किसी देशद्रोही की सूचना पर 27 फरवरी 1931 को बनारस के अल्फ्रेड पार्क में आजाद को पुलिस ने घेरकर गोलीबारी शुरू कर दी.
आजाद ने अपने साथियों को किसी तरह बचाकर पार्क से बाहर निकाल दिया और अकेले लड़ते रहे. अंत में जब उनके पास एक ही गोली बची तो उन्होंने अंग्रेजों के हाथों न पकड़े जाने के वचन की पालना में स्वयं को गोली मारकर शहीद कर दिया. इस तरह एक महान वीर ने भारत की आजादी की खातिर स्वयं की आहुति दे दी.
निबंध 400 शब्द
23 जुलाई 1906 को बदर गांव जिला-उन्नाव उत्तर प्रदेश में भारत के सपूत चंद्रशेखर आजाद का जन्म हुआ था. इनके पिताजी का नाम सीताराम तिवारी माताजी का नाम जगरानी देवी था. जाति ब्राह्मण परिवार में जन्में आजाद का बालपन भाबरा में व्यतीत हुआ, जो एक आदिवासी बहुसंख्यक क्षेत्र था.
स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद आजाद को संस्कृत की शिक्षा देने के लिए बनारस भेजा गया, मगर गांधीजी के आव्हान पर ये भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े.
जब वे 17 साल के थे तो इन्होने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन दल की सदस्यता ग्रहण कर ली, यह भगतसिंह, आश्फाकुल्ला खान, बिस्मिल, राजगुरु जैसे क्रांतिकारियों का सक्रिय संगठन था, जो अंग्रेजों के खिलाफ कार्यवाहियां करता था.
इस दल के क्रांतिकारी सदस्य आजाद ने हमेशा अग्रिम भूमिका निभाई वे काकोरी कांड में सक्रिय भागीदारी निभा रहे थे जब ब्रिटिश सरकार का खजाना लूटा गया था.
सांडर्स वध, सेण्ट्रल असेम्बली में भगत सिंह द्वारा बम फेंकना, वाइसराय की ट्रेन में बम धमाके की गतिविधियों की पूर्व योजना चन्द्रशेखर आजाद ने ही तैयार की थी.
वर्ष 1921 में जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को आरंभ किया तो आजाद एवं उनके साथियों ने पूर्ण सहयोग किया, भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त के साथ चंद्रशेखर आज़ाद भी थे, जब दिल्ली की असेम्बली में 8 अप्रैल 1929 को बम फेका गया था.
27 फ़रवरी, 1931 के दिन चंद्रशेखर आज़ाद अपने एक साथी से मिलने के लिए अल्फर्ड पार्क में गये थे, उसी वक्त किसी व्यक्ति की चुगली के चलते ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें चारो तरफ से घेर लिया.
आज़ाद ने अपने साथी को भगा दिया तथा स्वयं पुलिस से लम्बे वक्त तक लोहा लेते रहे, अचानक चंद्रशेखर आज़ाद को एहसास हुआ कि उनकी पिस्टल की सारी गोलियां खत्म होने वाली हैं, बस अंतिम बची गोली को अपनी कनपट्टी पर रखकर चला दिया,
उनका यह संकल्प था कि हम आजाद है और आज़ाद ही रहेगे और गोरों तुम जिन्दा पकड़ नहीं पाओगे. इस प्रकार चंद्रशेखर आज़ाद की इहलीला अपने ही हाथों समाप्त हो गई.
चंद्रशेखर आज़ाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी थे, भले ही वे अपनी जान देकर भारत से अंग्रेजों को भगा न सके, मगर उनकी मृत्यु के बाद भारतीय जनमानस में पनपे क्रोध ने स्वतंत्रता संग्राम को तीव्र कर दिया. लाखों नवयुवक आजादी के आंदोलन में कूद पड़े और आखिर उनके शहीद होने के 16 वर्ष बाद भारत को स्वतंत्रता मिली. आज़ाद सभी भारतीयों के दिलों में आज भी जिन्दा हैं.
निबंध 500 शब्द
चंद्रशेखर आज़ाद एक सच्चे क्रांतिकारी देशभक्त थे. उन्होंने भारत माता की स्वतंत्रता के लिए प्राण न्यौछावर कर दिए. वर्ष 1920 की बात है, जब गांधीजी द्वारा चलाए गये असहयोग आन्दोलन में सैकड़ों देशभक्तों में चंद्रशेखर आजाद भी थे.
मजिस्ट्रेट ने बुलाकर उनसे उनका नाम, पिता का नाम और निवास स्थान पूछा तो उन्होंने बड़ी ही निडरता से उत्तर दिया, मेरा नाम आजाद, पिता का नाम स्वतंत्रता व मेरा निवास जेल हैं. इससे मजिस्ट्रेट आगबबूला हो गया और उसने 14 वर्षीय चंद्रशेखर आजाद को 15 कोड़े लगाने का आदेश दिया.
महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में भावरा गाँव में हुआ था. इसी गाँव की पाठशाला में उनकी शिक्षा प्रारम्भ हुई. परन्तु उनका मन खेलकूद में अधिक था. इसलिए वे बाल्यावस्था में ही कुश्ती, पेड़ पर चढ़ना, तीरंदाजी आदि में पारंगत हो गये.
फिर पाठशाला की शिक्षा पूर्ण करके वे संस्कृत पढ़ने के लिए बनारस चले गये. परन्तु गांधीजी के आह्वान पर वे अपनी पढ़ाई छोड़कर स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े.
गांधीजी के अहिंसक आन्दोलन के पश्चात 1922 में वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी में शामिल हो गये. उनकी प्रतिभा को देखते हुए 1924 में उन्हें इस सेना का कमांडर इन चीफ बना दिया गया.
इस एसोसिएशन की प्रत्येक सशस्त्र कार्यवाही में चंद्रशेखर हर मौर्चे पर आगे रहते थे. पहली सशस्त्र कार्यवाही 9 अगस्त 1925 को की गई. इसकी पूरी योजना रामप्रसाद बिस्मिल द्वारा चंद्रशेखर की सहायता से बनाई गई थी.
इसे इतिहास में काकोरी ट्रेन कांड के नाम से जाना जाता हैं. इस योजना के अंतर्गत सरकारी खजाने को दस युवकों ने छीन लिया था.
पुलिस को योजना का पता लग गया था. इसमें आजाद की भागीदारी पाई गई. अंग्रेज सरकार ने इसे डकैती मानते हुए राम प्रसाद और आशफाकउल्ला को फांसी की सजा और अन्य लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई.
अगली कार्यवाही 1926 में की गई जिसमें वायसराय की रेलगाड़ी को बम से उड़ा दिया. इसकी योजना भी चंद्रशेखर आजाद ने बनाई थी. इसके पश्चात लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए 17 दिसम्बर 1928 को लाहौर में सोडर्स की हत्या कर दी गई.
सादर्स की हत्या का काम भगतसिंह को सौपा गया था, जिसे पूरा कर वे बच निकलने में सफल हुए. इस एसोसिएशन की अगली कारगुजारी सेंटरल असेम्बली में बम फेकना और गिरफ्तारी देना था.
इस योजना में भी चंद्रशेखर आजाद की भूमिका थी. इस प्रकार को अंग्रेज सरकार को भारत से भगाने और भारत को उनसे आजाद कराने के लिए अनेक योजनाएं बनाते रहे और हर योजना में वे सफल होते जा रहे थे.
परन्तु 27 फरवरी 1931 को सुबह साढ़े नौ बजे चंद्रशेखर आजाद निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार अल्फ्रेड पार्क में एक साथी कामरेड से मिलने गये. वहां सादा कपड़ों में पुलिस ने उन्हें घेर लिया.
उन्होंने अंग्रेज पुलिस से खूब लोहा लिया. फिर जब छोटी सी पिस्तौल में एक गोली बची तो उन्होंने अपनी कनपट्टी पर रखकर चला दी और इस लोक को छोड़ गये.
चंद्रशेखर आजाद ने शपथ ली थी कि वे अंग्रेजों की गोली से नहीं मरेंगे. इस प्रकार उन्होंने अपने आजाद नाम को सार्थक किया. जीवन के अंतिम क्षण तक वे किसी की गिरफ्त में नहीं आए. चंद्रशेखर आजाद एक व्यक्ति नहीं, वे अपने में एक आंदोलन थे, आज हम उन्हें एक महान क्रांतिकारी के रूप में याद करते हैं.
निबंध (900 शब्द)
चंद्रशेखर आजाद पर निबंध
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मातृभूमि के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले वीर क्रांतिकारियों मे चंद्रशेखर आजाद का नाम सम्मान और गौरव के साथ लिया जाता है। चंद्रशेखर आजाद उग्रवादी क्रांतिकारी थे. आजाद स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा के पुंज बने.
भगत सिंह ,सुखदेव, राजगुरु ,सुभाष चंद्र बोस जैसे वीर शहीदों के साथ आजाद का नाम भी महान क्रांतिकारियों में शामिल किया जाता है.
चंद्रशेखर आजाद का जन्म पंडित सीताराम तिवारी और जगरानी देवी के घर में 23 जुलाई 1906 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में एक छोटे से गांव बदरका में हुआ꫰ आजाद को इमानदारी ,स्वाभिमान तथा वचनबद्धता जैसे गुण पारिवारिक परिवेश तथा संस्कारों के चलते विरासत में मिले꫰
आजाद का बचपन भाबरा गांव मध्य प्रदेश में बीता꫰ भाबरा गांव में इनके पिता नौकरी करते थे꫰
चंद्रशेखर आजाद 14 वर्ष की आयु में अपनी माता जगरानी देवी के कहने पर संस्कृत शिक्षा की प्राप्ति के लिए बनारस गए. चंद्रशेखर आजाद को आजाद नाम ऐसे ही नहीं मिला। इन्होंने कानून भंग आंदोलन में भाग लिया तथा युवाओं में जनजागृति का कार्य किया.
चंद्रशेखर आजाद की राष्ट्रीय आंदोलनों में उपस्थिति वर्ष 1920- 21 में महात्मा गांधी के द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में देखी. आंदोलन में सक्रिय योगदान के कारण इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
गिरफ्तारी के बाद जब चंद्रशेखर को जज के समक्ष प्रस्तुत किया गया तो इन्होंने अपना नाम आजाद बताया. पिता का नाम स्वतंत्रता तथा जेल को अपना निवास स्थान बताया.
जज ने सजा के रूप में आजाद को कोड़े लगाए प्रत्येक कोड़े पर आजाद ने वंदे मातरम कहां . इस घटना के बाद आजाद नाम से चंद्रशेखर प्रसिद्ध हो गए.
चंद्रशेखर आजाद कम उम्र में जेल जाने वाले क्रांतिकारियों में अग्रणी थे꫰ 1922 में गठित चोरा चोरी कांड के कारण गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया । चंद्रशेखर आजाद तथा इनके साथी गांधी जी के इस निर्णय से सहमत नहीं थे।
असहयोग आंदोलन की समाप्ति के बाद चंद्रशेखर आजाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापक राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आए तथा हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय कार्यकर्ता बन गए꫰
चंद्रशेखर आजाद तथा इनके युवा साथियों नहीं दिन रात एक कर के हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन संगठन को नवीन पहचान दिलाई। कुछ ही वर्षों में यह संगठन क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बन गया .
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन चंद्रशेखर आजाद ने अपने साथियों भगत सिंह ,सुखदेव , जगदीश चंद्र चटर्जी तथा अशफाउल्ला खान के साथ मिलकर किया.
कांकेरी ट्रेन डकैती सुभाष चंद्र बोस तथा हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के सदस्यों ने मिलकर 9 अगस्त 1925 को लखनऊ के निकट कांकेरी नामक स्थान पर की।
डकैती का प्रमुख उद्देश्य संगठन की क्रांतिकारी गतिविधियों के संचालन हेतु धन का अर्जन करना था। इस डकैती के द्वारा इन्होंने अंग्रेजों को खुली चुनौती पेश की।
वायसराय इरविन की ट्रेन को बम से उड़ाने का प्लान आजाद तथा उनके साथियों ने बनाया हालांकि इस घटना को अंजाम 23 दिसंबर 1926 को दिया परंतु इस घटना में इरविन बस गया था .
साइमन कमीशन के भारत आगमन का विरोध देश के सभी हिस्सों में किया गया था। पश्चिमोत्तर भारत में ला लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन का विरोध हुआ. इस विरोध के दौरान ही अंग्रेज अधिकारी सांडर्स के आदेश पर हुए लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय का स्वर्गवास हो गया था.
इस घटना से संपूर्ण देश में क्रोध की ज्वाला भड़क उठी। प्रतिशोध के लिए भगत सिंह राजगुरु तथा आजाद ने मिलकर सांडर्स की हत्या की कार्य योजना बनाई.
अंग्रेजो के द्वारा पब्लिक सेफ्टी बिल के तहत अप्रैल 1929 में एक कानून बनाया। जिसके प्रावधानों के अनुसार भारतीय मजदूर ना तो हड़ताल कर सकते थे और ना ही अन्याय के विरुद्ध लड़ाई.
बटुकेश्वर दत्त तथा भगत सिंह इस बिल का विरोध करने के लिए दिल्ली जा रहे थे। इनके साथ आजाद भी दिल्ली जाना चाहते थे। असेंबली हॉल में बम विस्फोट के कारण राजगुरु सुखदेव यशपाल को गिरफ्तार कर लिया गया था।
चंद्रशेखर आजाद तथा उनके साथियों को गिरफ्तार करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने बड़े स्तर पर सर्च अभियान चलाना स्टार्ट कर दिया।
भगत सिंह बटुकेश्वर दत्त तथा राजगुरु को लाहौर षड्यंत्र केस के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था। आजाद ने अपने साथियों के साथ मिलकर इनको रिहा करवाने के भरपूर प्रयास किए थे। 23 मार्च 1931 वाले काले दिन को जब भगत सिंह सुखदेव राजगुरु को फांसी दे दी गई।
चंद्रशेखर आजाद ने संकल्प लिया था कि अंग्रेजों ने कभी गिरफ्तार नहीं कर सकेंगे और ना ही फांसी दे पाएंगे। चंद्रशेखर आजाद अपनी पिस्टल में एक गोली हमेशा रखते थे क्योंकि कभी गिरफ्तारी हो जाए तो अंग्रेजों के हाथ लगने से पहले ही स्वयं को गोली मार सके.
इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में जिसका वर्तमान नाम आजाद पार्क है चंद्रशेखर आजाद तथा उनके मित्र क्रांतिकारी गतिविधियों पर चर्चा कर रहे थे। पुलिस को सूचना मिलने पर पुलिस ने पार्क को चारों तरफ से घेर लिया ।
चंद्रशेखर आजाद ने एक पेड़ का सहारा लेते हुए जवाबी गोलियां चलाई। आजाद ने पुलिस को इतने समय के लिए रोक लिया कि जब तक उनके साथ ही सुरक्षित निकल जाए। जब आजाद चारों तरफ से घिर गए तो उन्होंने अंतिम गोली से हमको मार ली तथा मातृभूमि के लिए शहीद होकर इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में अपना नाम दर्ज करवा लिया ।
आजाद अपने जीवन में हर पल आजाद ही रहे। उन्हें कभी ब्रिटिश हुकूमत कैद नहीं कर पाए। आजाद के साहस को शब्दों में व्यक्त करना मैं तो कहूंगा असंभव है।
आजाद ने ब्रिटिश नीतियों का विरोध किया तथा क्रांतिकारी गतिविधियों के द्वारा युवाओं में जोश की लहर पैदा की । चंद्रशेखर आजाद को मातृभूमि के लिए बलिदान तथा उनके निराले व्यक्तित्व के लिए युगो युगो तक याद किया जाएगा।