Source Of Energy In Hindi ऊर्जा के स्रोत क्या है परम्परागत और गैर परम्परागत स्रोत : हमें आए दिन ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ती जा रही है.
Energy Source यानी ऊर्जा के परम्परागत अथवा ऊर्जा के गैर परम्परागत स्रोत क्या है हम जानते है कि ऊर्जा का उपयोग खाना बनाने, प्रकाश के लिए तथा कृषि के कार्य में मुख्य रूप से किया जाता हैं.
Source Of Energy में हम ऊर्जा के दोनों प्रकार परिभाषा तथा इनकी श्रेणी में आने वाले ईधन के बारे में जानेगे.
ऊर्जा स्रोत क्या है परम्परागत गैर परम्परागत स्रोत Source Of Energy Hindi
ऊर्जा क्या है– किसी भी देश की आर्थिक समृद्धि वहां के ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर करती हैं. औद्योगिक उत्पादन, परिवहन, कृषि, चिकित्सा आदि सभी क्षेत्रों में ऊर्जा की जरूरत होती हैं. ऊर्जा स्रोत के दो प्रकार हैं.
- ऊर्जा के परम्परागत स्रोत– खनिज कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैसें पन बिजली, आण्विक विद्युत्
- ऊर्जा के गैर परम्परागत स्रोत– सौर ऊर्जा, वायु शक्ति, भूतापीय ऊर्जा बायो गैस.
एनर्जी ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत
अनादि काल से पृथ्वी के समस्त जीवन के लिए एनर्जी का सबसे बड़ा अक्षय स्रोत सूर्य रहा हैं. विश्व की अधिकतर संस्कृतियों ने सूर्य को जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हुए उसकी पूजा की हैं. कई कल्चर में जीवन पद्धति सूर्य के इर्द गिर्द ही रही हैं.
सूर्य उदय के साथ दिन की शुरुआत और दिन की समाप्ति इसके अस्त होते ही हो जाती हैं. हर एक पल विद्यमान रहने वाला सूर्य समस्त जगत की ऊर्जा का अक्षय स्रोत हैं. जन जीवन के साथ ही पेड़ पौधों और अन्य जीवों में भी सूर्य के कारण ही ऊर्जा का सन्चाल होता हैं.
एक अनुमान के मुताबिक़ यदि हम एक घंटे में प्राप्त होने वाली समस्त सौर ऊर्जा को सहेज ले तो यह समूची दुनिया की वर्ष भर होने वाली बिजली की खपत को पूरा कर सकती हैं. भारत में सूर्य से 270 दिन ऊर्जा प्राप्त की जा सकती हैं ऐसी अनुकूल परिस्थितयां कुछ ही देशों में उपलब्ध हैं.
ऊर्जा के परम्परागत स्रोत- Conventional Source Of Energy In Hindi
खनिज कोयला– खनिज कोयला करोड़ो वर्षों से भूमि में दबे जीवों, वृक्षों के अवशेष हैं. कालांतर में भू दाब ताप के प्रभाव से ये पत्थर की भांति कठोर जलने वाले पदार्थ के रूप प्रकट हुए.
खनिज कोयला कई प्रकार का होता हैं. जैसे बिटुमिनी, लिग्नाईट व एंथ्रेसाईट इनमें सबसे अधिक उर्जावान कोयला एंथ्रेसाइट होता हैं जिसमें 90 प्रतिशत कार्बन पाया जाता हैं. कोयले के जलने से वायु प्रदूषण होता हैं. इससे वायुमंडल में सल्फर डाई ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड आदि गैसें बढ़ जाने से वायुप्रदुषण होता हैं.
उच्च किस्म के कोयले का प्रयोग फैक्ट्रियों तापीय विद्युत् परियोजनाओं में होता हैं. इनसे न केवल वायु प्रदूषण होता है बल्कि कोयले की राख का निस्तारण कर पाना जटिल समस्या हैं.
पेट्रोलियम-भूमिगत अवसादी शैलों से खनिज तेल की प्राप्ति होती हैं. ये हाइड्रो कार्बन यौगिकों के मिश्रण हैं. खनिज पेट्रोलियम के शुद्धिकरण द्वारा हाई स्पीड पेट्रोल डीजल व कैरोसीन प्राप्त होता हैं. इनका उपयोग मुख्यतः वायुयान, रेल्वे इंजन व सड़क परिवहन साधनों, बस, कार, ट्रेक्टर में होता हैं.
विश्व का 50 प्रतिशत तेल उत्पादन खाड़ी देशों सऊदी अरब, इरान, ईराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, कतर में किया जाता हैं. इनमें भी मात्र दो देश सऊदी अरब व ईरान विश्व का 40 प्रतिशत पेट्रोलियम उत्पादन करते हैं.
इसके अतिरिक्त संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, वेनेजुएला, मैक्सिको व भारत, नाइजीरिया तथा इंडोनेशिया आदि देशों में पेट्रोलियम उत्पादन होता हैं.
हमारे देश में पेट्रोलियम उत्पादन में अच्छी वृद्धि हो रही हैं. मुंबई हाई, असम तथा पश्चिमी राजस्थान के रामगढ़, खुवालिया देवा व लौंगेवाल सभी जैसलमेर के निकट पेट्रोलियम तेल व गैस के कुए स्थापित किये गये हैं.
पेट्रोलियम पदार्थों के प्रयोग से भी लेड ऑक्साइड व कार्बनडाई ऑक्साइड हानिकारक गैसें उत्पन्न होती हैं जो वायुमंडल को प्रदूषित करती हैं.
प्राकृतिक गैसें– पिछले दस वर्षों में प्राकृतिक गैसों के प्रयोग में कई गुना वृद्धि हुई हैं. प्राकृतिक गैसों हाइड्रोकार्बन युक्त भूगर्भीय संसाधन हैं. इनमें मीथेन व ज्वलनशील गैसों की अधिकता होती हैं.
इनका प्रयोग रसोई गैस व घरेलू इंधन के रूप में उद्योगों एवं विद्युत् परियोजनाओं में किया जाता हैं. विभिन्न उद्योग जैसे टायर उद्योग, सीमेंट उद्योग विद्युत् उत्पादन गैसों के कुल उत्पादन का 70 प्रतिशत उपयोग किया जाता हैं.
राजस्थान में जैसलमेर के निकट कमलीताल, मनिटारी टिब्बा, भाखरी टिब्बा श्याहगढ़ के समीप प्राकृतिक गैस के कुए खोदे गये हैं. जहाँ व्यापारिक स्तर पर गैस उत्पादन होता हैं.
बहता जल व पन बिजली – बड़ी नदियों के उपर्युक्त स्थानों परबाँध बना कर पानी की तेज धारा निकाल कर इनमें विद्युत् टरबाइन घुमाई जाती हैं. इस तरह उत्पन्न विद्युत् को पन बिजली व जल विद्युत कहते हैं.
विद्युत् उत्पादन के वास्तव में चार साधन है ये है कोयला आधारित, तापीय विद्युत् गैस आधारित तापीय विद्युत् व पन बिजली व आण्विक विद्युत्. इनमें में से केवल पन बिजली असमाप्य प्रकार का साधन हैं. शेष सभी समाप्य प्रकार के हैं.
पन बिजली से पर्यावरण को किसी तरह की कोई क्षति नहीं पहुचती. राजस्थान में चम्बल, इंदिरा गांधी नहर, माही नदी पर बने बांधों पर पन बिजली परियोजनायें स्थापित की गयी हैं. भारत में भाखड़ा नांगल योजना, नर्मदा घाटी योजना, पोंग बाँध आदि पन बिजली परियोजनायें प्रमुख हैं.
आण्विक विद्युत्– आण्विक विद्युत् रेडियो सक्रिय पदार्थों जैसे युरेनियम से प्राप्त की जाती हैं. अनुमानतः एक किलोग्राम युरेनियम से इतनी ऊर्जा बनती है जितनी २५ लाख किलो खनिज कोयले से बनती हैं.
राजस्थान में रावतभाटा कोटा में ईधन द्वारा चालित विद्युत् गृह की स्थापना की गई हैं. आण्विक विद्युत् उत्पादन में रेडियो सक्रिय पदार्थों द्वारा परमाणवीय प्रदूषण व रिएक्टरों में दुर्घटनाओं का भय बना रहता हैं.
ऊर्जा के गैर परम्परागत स्रोत – Non- Conventional Source Of Energy In Hindi
ऊर्जा के परम्परागत स्रोतों का लगातार दोहन से हास होता जा रहा हैं. इस स्थिति में भारत दुनियां के सभी देशों में वैकल्पिक या गैर परम्परागत स्रोतों की प्राप्ति हेतु निरंतर शोध तथा प्रयास किये जा रहे हैं. इस कड़ी में मुख्य है सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वार शक्ति, भूतापीय ऊर्जा, बायो गैस.
सौर ऊर्जा (Solar Energy)– सूर्य से प्राप्त ऊष्मा ऊर्जा या विकीरण ऊर्जा को सौर ऊर्जा कहते हैं. सूर्य में ऊर्जा का असीमित भण्डार हैं.
मानव की ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति का सबसे सहज सस्ता प्रदूषण रहित साधन सौर ऊर्जा के अतिरिक्त और कोई नहीं हैं. इस हेतु सोलर कुकर, सोलर वाटर हीटर्स आदि का प्रयोग किया जा रहा हैं. अंतरिक्ष कार्यक्रम में भी सोलर बैटरियों में किया जाता हैं.
पवन ऊर्जा (wind Energy)– सौर ऊर्जा की भांति यह भी प्रकृति से प्राप्त प्रदूषण रहित ऊर्जा स्रोत हैं. राजस्थान को असाधारण वायु वेग वायु प्राप्त हैं. पश्चिमी राजस्थान में वायु गति 20-40 किमी/घंटा रहती हैं.
वायु की इस गति पर राजस्थान में प्रति वर्ष 25000 किलोवाट विद्युत् उत्पादन किया जा सकता हैं. इस प्रकार प्राप्त विद्युत् से पानी के पम्प, आटा चक्कियां आदि संचालित किये जा सकते हैं.
भूतापीय ऊर्जा (Geothermal Energy)– भूगर्भ में कई स्थानों पर 3-15 किमी गहराई पर काफी उष्ण चट्टानों पर पाई जाती हैं. इस प्रभाव के कारण कई स्थानों पर गर्म जल के सोते पाए जाते हैं.
उतरांचल में बद्रीनाथ, केदारनाथ के सम्मुख गोमुख, गंगोत्री यमुनोत्री राजस्थान में गढ़मोरा के आसपास प्राकृतिक झरने पाए जाते हैं. इस भूगर्भीय उष्णता का उपयोग टरबाइन घुमाकर विद्युत् उत्पादन में किया जा सकता हैं.
बायो गैस (Bio Gas)– पशुओं गोबर मूत्र, पौधों के कूड़े कचरे को सड़ा कर उत्पन्न की जाने वाली गैस को गोबर गैस कहते हैं. इसमें 50 से 60 प्रतिशत मीथेन गैस पाई जाती हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ पशु पालन अधिक किया जाता हैं. बायो गैस संयंत्र निर्मित करके बायो गैस उत्पन्न की जा सकती हैं. बायो गैस को पाइप द्वारा एल पी जी चूल्हों में पहुचाया जाता हैं.
इन चूल्हों में अन्य चूल्हों की भांति जलाकर भोजन बनाते हैं. गैस बनाने के बाद शेष बचे भुरभुरे पदार्थों को खेत में खाद बनाने के काम में लेते हैं.
विद्युत के नौ स्रोत
- सूर्य ऊर्जा, अथवा फोटोवाल्टिक ऊर्जा
- पन-बिजली (Hydropower)
- न्यूक्लियर ऊर्जा (Nuclear Energy)
- पवन ऊर्जा (Wind Energy)
- सागरीय लहरी ऊर्जा (Sea Waves Energy)
- ज्वार-भाटा ऊर्जा (Tidal Energy)
- भूताप ऊर्जा (Geothermal Energy)
- बायोमास ऊर्जा (Biomass Energy)
- कचरा-भराई से उत्पन्न की जाने वाली ऊर्जा (Landfills)