बाल शोषण पर भाषण Speech On Child Abusing In Hindi: आज भारत में ही नहीं दुनियां भर में बाल शोषण उत्पीड़न (Child Harassment) की घटनाएं बेहताशा बढ़ रही हैं.
इससे न केवल उनके मासूमों का जीवन प्रभावित होता हैं बल्कि समाज व देश का भविष्य भी अंधकारमय बन जाता हैं.
अशिक्षा को बाल शोषण का जनक माना जाता है यह समस्या बच्चों के जीवन की सुरक्षा को खतरों में डालकर उन्हें अंधकार भरे जीवन में धकेल देता हैं.
आज का निबंध भाषण बाल शोषण, उत्पीड़न एवं दुर्व्यवहार पर दिया गया हैं.
बाल शोषण पर भाषण Speech On Child Abusing In Hindi
सम्मानित मुख्य अतिथि महोदय, प्रधानाचार्य महोदय विद्वान् गुरुजनों एवं मेरे साथ पढ़ने वाले समस्त स्टूडेंट्स साथियों आज हम बाल दिवस मनाने निमित्त यहाँ एकत्रित हुए हैं.
मैं … कक्षा …. का छात्र/छात्रा इस अवसर पर बाल शोषण क्या है इसके विभिन्न रूप समाज व देश पर प्रभाव के बारे में इस भाषण में बताने जा रहा हूँ.
हमारी संस्कृति में बाल मन को पवित्र दृष्टि से देता जाता हैं कहते है बच्चों के दिल में ईश्वर एवं जिह्वा पर सरस्वती का वास होता हैं.
मगर आज इन्ही बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड़ करने वाले अपराध दिन ब दिन बढ़ते ही जा रहे है. बच्चों को शारीरिक मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाना बाल शोषण कहलाता हैं.
18 वर्ष की कम आयु के बालकों को डर, भय, आतंक, जबरदस्ती से किसी कार्य में लगाना उसका उपयोग लेना उनके अधिकारों का हनन करना हैं.
चाहे वह बाल मजदूरी, बाल विवाह, बाल तस्करी या बाल यौन दुर्व्यवहार के रूप में बाल शोषण की घटनाएं हमारे समक्ष उपस्थित होती हैं.
20 वीं सदी की शुरुआत में ही इसका व्यापक रूप दुनिया भर में सामने आया. शुरुआत में इनकी इतनी चर्चा नहीं होती थी यह अपराध इज्जत और शर्म के आवरण में बंद कर ढक दिया जाता था,
जिसके तले मासूम जिंदगियां दबकर रह जाया करती थी, मगर आज समस्या भयावह समस्या का रूप ले चुकी हैं. अब बच्चों के माता पिता व सम्पूर्ण समाज को जागरूक हो जाने की आवश्यकता हैं.
बाल शोषण के इतिहास की घटनाओं पर कई शोध प्रकाशित हुए हैं जिनके परिणाम आप और हम सभी को परेशान करने वाले हैं. अधिकतर रिसर्च अपने इन नतीजों पर पहुचें कि बाल उत्पीड़न मुख्य रूप से यौन अपराधों के जिम्मेदार हमारे नजदीकी लोग ही होते हैं
पड़ोसी, रिश्तेदार या नौकर इन मामलों में अधिक लिप्त पाए जाते हैं. इनकी घिनौनी करतूते बच्चें शर्म, डर के कारण अपने माता पिता को नहीं बता पाते हैं.
मानसिक रूप से बच्चे को प्रताड़ित करना उन्हें जीवन भर डर डरकर जीने का आदि बना देता हैं. बुरी प्रवृत्ति के लोग डरा धमका कर या कुछ लालच देकर अपराध करते हैं.
जितनी तकलीफ मानसिक प्रताड़ना दिलाती है उतना ही पीड़ा शारीरिक प्रताड़ना से भी मिलती हैं. उसके साथ मारपीट, शारीरिक रूप से कष्ट पहुँचाने में शामिल हैं. इससे बचाव के लिए बच्चों को शिक्षा तथा माता पिता को जागृत होने की आवश्यकता हैं.
बालपन पर शोषण का कुप्रभाव इस कद्र हावी होता हैं कि शोषण ग्रस्त बच्चे डरे हुए जीवन भर गुस्से में प्रतिशोध के भाव के साथ कुंठा से भरा जीवन व्यतीत करते हैं.
अक्सर ये शर्मीले स्वभाव के कम बोलने वाले तथा अनजान से बातचीत में असहज महसूस करते हैं. वे सहनशक्ति की सीमा के पार होने पर अजीब ढंग का व्यवहार करने लगते हैं.
कई सारे बच्चें बाल शोषण की घटनाओं से इस हद तक शिकार होते है जो बाद में तनाव और डिप्रेशन में जीने लग जाता हैं उन का व्यवहार एक मानसिक रोगी की तरह हो जाता हैं.
बड़े होने पर वे अक्सर अपराधिक कार्यों में संलग्न हो जाते हैं. इस तरह बच्चों के जीवन की दिशा और दशा दोनों को बाल शोषण का अपराध बुरी तरह प्रभावित करता हैं. वे आम बालक से अपराधी या विशेष पिछड़ा बालक बन जाते हैं.
बाल शोषण की रोकथाम के लिए सामाजिक स्तर व कानूनी स्तर पर समन्वित प्रयास किये जाने की आवश्यकता हैं. बच्चों को बचपन में ही सही गलत का ज्ञान देकर उनकी समझ को विकसित किया जाए.
उन्हें उन तमाम गतिविधियों को समझाना चाहिए जो उसके भावी जीवन को बुरी तरह प्रभावित करती हैं. माता पिता बच्चों से नजदीकी रिश्ते बनाए ताकि वे बिना कोई बात छिपाएं खुलकर अपनी व्यथा को जाहिर कर सके.
प्राथमिक विद्यालयों में बाल शोषण से निपटने के लिए अनिवार्य विषय के रूप में इसे पढ़ाया जाए तथा विशेष परिस्थतियो में इसका किस तरह विरोध कर निपटे इस सम्बन्ध में उचित ज्ञान देने की आवश्यकता हैं.
इस तरह की शिक्षाओं को देने का सबसे अच्छा माध्यम खेल गतिविधि हो सकती हैं. जिसमें बच्चों को प्रभावी रूप से संदेश दिया जा सके.
हमें चाहिए कि यदि बच्चें का व्यवहार असामान्य है तो उससे बातचीत करे. यदि उसमें मन में किसी शोषण की पूर्व कुंठा जन्म ले रही हैं
तो उन्हें सुरक्षा का भाव दिलाकर उस घटना के दोषी को सजा दिलाकर उसके मन से इन काले अध्याय को समाप्त करे जिससे बालक फिर से स्वच्छ वातावरण में जीने लगे. क्योंकि एक बार बालक का मस्तिष्क इन बातों पर केंद्रित हो जाने के बाद जीवन भर वह उन से मुक्ति नहीं पा सकता हैं.
भारत में बाल शोषण के लिए कोई प्रभावी कानून नहीं हैं. हालांकि बाल विवाह, मजदूरी या तस्करी से जुड़े कानून तो हैं मगर १८ वर्ष से कम आयु के बच्चों के साथ होने वाले समस्त हिंसा से लेकर तस्करी तक के अपराधों को गैर जमानती एवं कठोर सजा के प्रावधान की आवश्यकता हैं.
२०१२ में लागू किये गये प्रोटेक्टशन ऑफ चिल्ड्रन अगेन्स्ट सेक्सुयल ऑफेंस बिल अधिक प्रभावी तरीके से लागू किये जाने की आवश्यकता हैं.
बाल यौन शोषण पर भाषण
बचपन जीवन का वह समय होता है जिसमें हम जैसा देखते सोचते व समझते है हमारा जीवन वैसा ही बन जाता हैं. जो विचार तथा व्यवहार इस समय किया जाता हैं वह जीवन भर के लिए मस्तिष्क में अपनी छाप छोड़ देता हैं.
यही वजह है कि इस उम्रः में बच्चों को अच्छी शिक्षा, संस्कार व आदते सिखाने का प्रयास किया जाता है ताकि वह भविष्य में एक अच्छा नागरिक बन सके.
बाल यौन शोषण की ऐसी कोई परिधि नहीं है जिससे यह अनुमान लगाया जाए कि समाज के अमुक तबके के बच्चों को इन स्थितियों से गुजरना पड़ता हैं. फिर भी आमतौर पर जिन परिवारों तक शिक्षा की पहुँच नहीं होती है,
बच्चें अकेलेपन में जीवन व्यतीत करते है, सामाजिक व्यवस्थाएं जीर्ण अवस्था में होती है या परिवार गरीबी और बेरोजगारी का दंश झेल रहा है तो ऐसे में तुलनात्मक रूप से बाल शोषण की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं.
अमूमन यह मान लिया जाता है कि बाल यौन शोषण की घटनाएं केवल नाबालिग बच्चियों के साथ ही होता हैं जबकि यह लड़कों के साथ भी शारीरिक मानसिक एवं भावनाओ का शोषण किया जाता हैं.
दो साल तक के बच्चें बच्चियों के साथ दरिंदों द्वारा की गयी शोषण की कई बड़ी घटनाएं मानव जाति को शर्मसार कर देने वाली हैं.
शोषण चाहे किसी भी रूप में हो बालमन पर इसका नकारात्मक प्रभाव ही पड़ता हैं. एक बार शोषित होने के बाद बालक सदा सदा के लिए कुंठित, मानसिक रूप से टूटा हुआ महसूस करता हैं.
इन्ही घटनाओं के कारण उनके मन में बदले की भावना घर कर जाती हैं वे निरंतर उससे बदला देने के भाव मन पर छाएँ रहते हैं.
बाल शोषण / उत्पीड़न क्या हैं What Is Child Harassment (Abuse) In Hindi
बच्चों के साथ किसी प्रकार का शारीरिक लैंगिक या भावनात्मक दुर्व्यवहार, अत्याचार एवं हिंसा करना बाल उत्पीड़न (child abuse) माना जाता है. बाल उत्पीड़न समाज द्वारा सामना की जाने वाली सामाजिक बुराईयों में से सबसे ज्यादा है।
इसकी उपेक्षा के कारण भारत में बाल उत्पीड़न की घटनाएं बहुत तेजी से बढ़ रही है। इस पर ध्यान देने की जरुरत है. इसके कई प्रकार विद्यमान है जिस कारण इसे आसानी से नियंत्रित नही किया जा सकता है.
बाल उत्पीड़न के मामलों में बहुत से सामाजिक कारणों के चलते परिवार समाज के साथ यह मामले सार्वजनिक नही कर पाटा है, हमेशा उसे अपने परिवार की गरिमा मिटटी में मिल जाने के भय के चलते वह बाल उत्पीड़न को किसी क़ानूनी स्तर तक ले जाने पर भयभीत रहते है,
- शारीरिक उत्पीड़न का मतलब ऐसे किसी कार्य से है जो बच्चे को पीड़ा दे चोट पहुचाए या तकलीफ दे. Child abused माना गया है.
- बाल यौन दुर्व्यवहार में वे सभी अपराध सम्मिलित है, जो लैंगिक अपराधों से बालकों को संरक्षण (पोस्को) अधिनियम में सम्मिलित किये गये है.
- भावनात्मक दुर्व्यवहार में वे कार्य या चूक सम्मिलित है जिनके कारण बच्चा किसी तरह के तनाव भावनात्मक या मानसिक पीड़ा का शिकार बनता है.
- ऐसी किसी भी पूर्वाग्रही व्यवहार जो बच्चे की जाति, लिंग व्यवसाय धर्म या क्षेत्र के आधार पर किया जाता है.
बच्चों को सजा देना उन्हें अनुशासित करने और वयस्क के अधिकार में लाने का एक परम्परागत तरीका माना जाता है, किन्तु शारीरिक हो या मानसिक बच्चों के खिलाफ किसी तरह की हिंसा गलत है.
ये बाते दीर्घावधि में बालकों के व्यक्तित्व को प्रभावित करती है. ये गतिविधियाँ बालकों में शारीरिक एवं व्यवहारपरक नकारात्मक पैटर्न विकसित कर देती है.
इसके प्रभावस्वरूप बच्चों में अनिद्रा, नैराश्य की भावना, खुद को बेकार समझना, क्रोधित होकर चिल्लाना, चिडचिडापन बढ़ना, दोस्तों से अलग होना, ध्यान केन्द्रित नही कर पाना, पढ़ाई में कमजोरी,झगड़ालू व्यवहार, नफ़रत, विद्यालय या घर से भागना जैसी स्थतियाँ सामने आ सकती है, बच्चे की आत्मसुरक्षा की भावना खत्म हो सकती है.