पंचायती राज पर निबंध Essay on Panchayati Raj In India In Hindi: ग्रामीण क्षेत्र में समस्त वर्गों के लोगों की लोकतंत्र में अधिकतम भागीदारी दर्ज कराने एवं स्थानीय विकास के लिए भारत में पंचायतीराज व्यवस्था को अपनाया गया है.
गाँवों के स्तर पर मौजूद स्थानीय शासन को पंचायतीराज के नाम से जाना जाता है. स्वतंत्रता के बाद भारत में त्रि-स्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था का प्रारम्भ 2 अक्टूबर 1959 को नागौर (राजस्थान) से हुआ था. पंचायतीराज व्यवस्था के अंतर्गत देश की ग्रामीण जनता सरकार के कार्यों में भाग लेती है.
पंचायती राज पर निबंध Essay on Panchayati Raj In India In Hindi
ग्रामीण जनता की यह भागीदारी चुनाव प्रक्रिया में भाग लेने से शुरू होती है, इसके बाद ग्राम सभा की बैठकों में सम्मिलित होने, निर्णय लेने में अपना सहयोग देने, जन सुविधाओं व सार्वजनिक स्थानों की सामूहिक देखरेख करने तथा स्थानीय समस्याओं का समाधान करने जैसे सभी क्षेत्रों में पंचायतीराज की महत्वपूर्ण भूमिका है.
भारत में ग्रामीण स्वशासन त्रि स्तरीय सरंचना है. इसमे सबसे पहले स्तर पर गाँव की ग्राम पंचायत का गठन होता है, दूसरे स्तर अर्थात विकास खंड स्तर पर पंचायत समिति का गठन होता है.
तथा तीसरे स्तर अर्थात जिले में जिला परिषद का गठन होता है. पंचायतीराज व्यवस्था के अंतर्गत ग्रामीण स्वशासन की विभिन्न संस्थाओं और उनकी कार्यप्रणाली के बारे में जानते है.
ग्रामपंचायत (Gram Panchayat In Hindi)
वार्ड सभा
वार्ड सभा ग्राम पंचायत की सबसे छोटी इकाई होती है. एक ग्राम पंचायत में कितने वार्ड पंचो की संख्या निर्धारित होती है, उस ग्राम पंचायत क्षेत्र को उतने ही भागों में बाटा जाता है, ऐसा प्रत्येक भाग वार्ड कहलाता है.
उस वार्ड के समस्त वयस्क महिला पुरुष मतदाता अपना एक प्रतिनिधि चुनते है, जो उस वार्ड का वार्ड पंच कहलाता है. प्रत्येक वार्ड के मतदाताओं की सभा को वार्ड सभा कहते है.
वार्ड सभा की अध्यक्षता वार्ड पंच द्वारा की जाती है. वार्ड सभा के माध्यम से ही विकास की योजनाएं बनाई जाती है. इन योजनाओं को लागू करवाने के लिए प्रस्ताव ग्राम पंचायत को भेजे जाते है,
ग्राम पंचायत की स्वीकृति से यह प्रस्ताव क्रियान्वित किया जाता है. वार्ड सभा उस वार्ड से सम्बन्धित लोक उपयोगी सेवाओं जैसे सामुदायिक नल कुएँ, सफाई के कूड़ेदान आदि के लिए स्थानों का सुझाव देना, साक्षरता, शिक्षा, स्वास्थ्य, बाल विकास व पोषण कार्यों को बढ़ावा देने जैसे कार्य करती है.
ग्राम सभा (Gram Sabha In Hindi)
किसी ग्राम पंचायत क्षेत्र की मतदाता सूची में दर्ज मतदाताओं की सभा को ग्राम सभा कहते है. अर्थात गाँव का कोई स्त्री या पुरुष जिसकी उम्र 18 वर्ष या इससे अधिक हो और जिसका नाम मतदाता सूची में दर्ज हो और जिसे मतदान करने का अधिकार प्राप्त हो,
वह ग्राम सभा का सदस्य होता है. ग्राम के विकास की सभी योजनाएँ ग्राम सभा की बैठक में ही बनाई जाती है, जिसकी क्रियान्विति ग्राम पंचायत करती है.
ग्राम पंचायत के कार्यों का मुल्यांकन भी ग्राम सभा ही करती है, ग्राम सभा की बैठक प्रत्येक तीन माह में एक बार अर्थात वर्ष में चार बार होती है.
ग्राम पंचायत
किसी भी बड़े गाँव में या आस पास के छोटे गाँवों को मिलाकर एक ग्राम पंचायत बनाई जाती है. ग्राम पंचायत का मुखिया सरपंच होता है तथा उस ग्राम पंचायत क्षेत्र के सभी वार्डों के पंच उस ग्राम पंचायत के सदस्य होते है.
सरपंच का चुनाब ग्राम पंचायत के मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष मतदान से किया जाता है. सभी वार्ड पंच अपने में से ही किसी एक वार्ड पंच को उप सरपंच चुन लेते है.
ग्राम पंचायत की बैठक माह में दो बार आयोजित की जाती है. इस बैठक में गाँव के विकास की योजनाओं को बनाने, उनको क्रियान्वित करने और अन्य आवश्यक मुद्दों पर चर्चा व निर्णय लिए जाते है.
ग्राम पंचायत के कार्यों की क्रियान्विति के लिए ग्राम पंचायत में सरकारी कर्मचारी होते है, जिनमे से एक ग्राम सेवक पदेन सचिव होता है.
ग्राम पंचायत के कार्य की जानकारी (Gram panchayat Ke Karya)
पंचायतीराज व्यवस्था के ग्रामीण स्वशासन में ग्राम पंचायत अपने क्षेत्र में अनेक कार्य करती है, ग्राम पंचायत के मुख्य कार्यों का वर्णन निम्नानुसार है.
- शुद्ध व स्वच्छ पेयजल, सफाई और सार्वजनिक स्थलों पर प्रकाश आदि की व्यवस्था करवाना.
- सड़क, नालियों, विद्यालय भवन आदि का निर्माण करवाना.
- महात्मा गांधी नरेगा आदि रोजगार योजनाओं का संचालन करना.
- स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करवाना.
- जन्म एवं मृत्यु का पंजीकरण करना.
- गाँवों में लगने वाले मेले/उत्सवों, हाट बाजार तथा मनोरंजन के साधनों की व्यवस्था करना.
- नए आवासीय भवनों के निर्माण के लिए भूमि आवंटन करना.
- वृक्षारोपण करना तथा बंजर भूमि तथा चारागाहों का विकास करना.
इन कार्यों के अतिरिक्त पंचायत समिति के निर्देशानुसार ग्राम विकास के कार्यो को करना, इन सब कार्य के लिए ग्राम पंचायत को सरकार से अनुदान प्राप्त होता है. उसे कर शुल्क एवं जुर्माना द्वारा भी आय प्राप्त होती है, जन सहयोग एवं ऋण द्वारा भी धन जुटाया जाता है.
ग्राम सचिवालय (Village Secretariat system)
ग्राम सचिवालय व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक माह की 5,12, 20 व 27 तारीख को ग्राम पंचायत स्तरीय कर्मचारी जैसे- ग्राम सेवक, पटवारी, कृषि पर्यवेक्षक,anm, हैंडपंप मिस्त्री आदि दिन भर ग्राम पंचायत मुख्यालय पर उपस्थित रहते है.
ये कर्मचारी सरपंच की अध्यक्षता में गाँव के लोगों की समस्याएँ सुनते है और उनका समाधान करते है. इस प्रकार इन तारीखों में लोग ग्राम पंचायत मुख्यालय पर उपस्थित होकर अपनी समस्या का समाधान करवा सकते है.
पंचायत समिति
राजस्थान राज्य को विकास की दृष्टि से 33 जिलों में विभाजित किया गया है और प्रत्येक जिले को विकास खंडो में बाटा गया है.
राज्य में प्रत्येक विकास खंड स्तर पर पंचायतीराज व्यवस्था के ग्रामीण स्वशासन के तहत पंचायत समिति का गठन किया गया है. विकास खंड में शामिल सभी ग्राम पंचायतो को मिलाकर पंचायत समिति का गठन होता है, पंचायत समिति का मुखिया प्रधान कहलाता है.
प्रत्येक पंचायत समिति क्षेत्र को वार्डों में विभाजित किया जाता है, प्रत्येक वार्ड के मतदाता अपने एक प्रतिनिधि का निर्वाचन करते है, जो पंचायत समिति का सदस्य होता है. ये सदस्य अपने में से किसी एक सदस्य को प्रधान के रूप में निर्वाचित करते है,
इनके साथ साथ पंचायत समिति क्षेत्र के विधानसभा सदस्य और उस क्षेत्र में स्थित सभी ग्राम पंचायतो के सरपंच भी पंचायत समिति के सदस्य होते है. समय समय पर इनकी बैठक होती है, जिनमे उस विकास खंड के सभी सभी विभागों के खंड स्तरीय अधिकारी भी सम्मिलित होते है.
विकास खंड (ब्लॉक) पंचायत समिति कार्य (Panchayat Samiti Member Work)
- अपने क्षेत्र की पंचायतो के कार्यों की समीक्षा व पर्यवेक्षण करना.
- किसानों के लिए उत्तम खाद बीज उपलब्ध करवाना.
- प्रारम्भिक शिक्षा की व्यवस्था करना.
- सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा संचालित योजनाओं को आवश्यकतानुसार क्रियान्वित करवाना पंचायत समिति के कार्यो में शामिल है.
- खंड विकास अधिकारी (BDO), पंचायत प्रसार अधिकारी और अन्य अधिकारी पंचायत समिति की उसके कार्यो की मदद करते है.
जिला परिषद् के कार्य एवं अधिकार (Work and rights district council in india)
ग्रामीण विकास की दृष्टि से प्रत्येक जिले में जिला परिषद बनाई गई है, जो पंचायतीराज व्यवस्था की तीसरी और सर्वोच्च इकाई है. इस जिले की सभी पंचायत समितियों को मिलाकर उस जिले की जिला परिषद का गठन होता है, इसका कार्यालय जिला मुख्यालय पर होता है.
जिला परिषद के गठन के लिए पुरे जिले को वार्डो में विभाजित किया जाता है. जिला परिषद के प्रत्येक ward के मतदाता अपने प्रतिनिधि का निर्वाचन करते है, जो जिला परिषद का सदस्य होता है.
ये सदस्य अपने में से ही किसी सदस्य को जिला प्रमुख और एक सदस्य को उपजिला प्रमुख निर्वाचित करते है. इनके साथ साथ उस जिले से निर्वाचित विधानसभा, लोकसभा और राज्य सभा के सदस्य तथा जिले की समस्त पंचायत समितियों के प्रधान भी जिला परिषद के सदस्य होते है.
जिला परिषद का मुखिया जिला प्रमुख होता है. समय समय पर इनकी बैठक होती है. समस्याओं को सुनने के लिए इस बैठक में सभी विभागों के जिला स्तरीय अधिकारी भी सम्मिलित होते है.
जिला परिषद के कार्य (Work of the zilla parishad)
जिला परिषद ग्राम पंचायतो एवं राज्य सरकार के बिच कड़ी का कार्य करती है तथा विकास के कार्यो के बारे में राज्य सरकार को सलाह देती है. यह पंचायत समितियों के कार्यों की सामान्य देखरेख करती है.
यह सम्पूर्ण जिले की विकास योजनाए बनाती है तथा जिले में होने वाले विकास कार्यो का निरिक्षण तथा पर्यवेक्षण करती है. मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) व अन्य अधिकारी जिला परिषद की उनके कार्यो में मदद करते है.
पंचायती राज व्यवस्था पर निबंध Essay on Panchayati Raj System In Hindi
हमारे भारत के इतिहास में पंचायत संस्था एवं इसके सदस्यों को न्याय के लिए ईश्वर के समरूप माना जाता था. गाँव के मुखिया की बात उस क्षेत्र के लोगों के लिए सर्वमान्य थी.
स्थानीय प्रशासन, शांति व्यवस्था एवं स्थानीय लोगों के विकास में ग्राम पंचायत का योगदान महत्वपूर्ण था. आज भी भारत का स्वरूप इन्ही गाँवों में माना जाता है.
लोकतंत्र की नीव या पहली सीढी ग्राम पंचायतों को ही माना है. इसी लिए भारत में विगत 30 वर्षों से पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया है.
पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से सुद्रढ़ स्थानीय स्वशासन व पारदर्शिता लाने के लिए भारत सरकार द्वारा एक अलग से पंचायती राज मंत्रालय भी मनाया गया है.
जिसके अधिक देश के ग्रामीण स्थानीय स्वशासन के सभी निकाय कार्यरत है. वैदिक काल में भी ग्राम पंचायतों के होने के पर्याप्त संकेत मिलते है.
उस समय की राजव्यवस्था में ग्राम पंचायत सबसे महत्वपूर्ण संस्था थी, जिसका मुखिया ग्रामीनी कहलाता था, वैदिक काल से अंग्रेजो के भारत आगमन तक ये संस्थाए कार्य करती रही.
पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास
अंग्रेजों ने भारतीय स्वशासन की इस व्यवस्था को अपने अधीन ले लिया तथा राज्य कर्मचारियों के सीधे नियंत्रण में इसे रख दिया गया.
यही वजह थी कि हजारों सालों से चली आ रही ग्राम पंचायत व्यवस्था अंग्रेजी काल के दौरान पूर्णतया लुप्त हो गई. इन पंचायतों का स्वरूप बेहद जटिल था.
ग्राम की मुख्य पंचायत के अलावा अलग अलग सामाजिक समूहों की अपनी पंचायते हुआ करती थी. जो सामाजिक जीवन के सभी कार्यों में विवादों का निपटारा करती थी, तथा नियमों की अवमानना करने वालों को पूर्व निर्धारित सजा भी दिए जाने का प्रावधान था.
भारत सरकार अधिनियम 1919
1919 के भारत सरकार अधिनियम व 1920 के सुधारों के तहत अंग्रेजी सरकार द्वारा सभी छोटे बड़े प्रान्तों को छोटी छोटी इकाइयों में बाट दिया गया. जिस पर पंचायत समिति का नियंत्रण रखा गया.
ग्राम पंचायतों को जन स्वास्थ्य, स्वच्छता, चिकित्सा. जल निकासी, सड़कों, तालाबों व कुओं सहित कुछ न्यायिक अधिकार भी प्रदान किये गये. मगर उनके पास किसी तरह का विशेषाधिकार नही रखा गया. जिस कारण धीरे धीरे ये नाम-मात्र की प्रशासनिक संस्थाएँ ही बनकर रह गई.
स्वतंत्रता के बाद पंचायती राज व्यवस्था
1950 के बाद से भारत में पंचायती राज व्यवस्था को लेकर प्रयासों में तेजी आई. इस दौरान भारतीय संविधान में पंचायतों के गठन का प्रावधान भी किया.
इस बाबत हमारे संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है. कि राज्य की यह जिम्मेदारी होगी कि वह पंचायत व्यवस्था को सुचारू रूप से चलावें.
साथ ही सता के विकेंद्रीकरण के रूप में इन पंचायतों को वो अधिकार व शक्तियाँ भी प्रदान की जाए जो एक स्वायत स्थानीय स्वशासन के लिए परिहार्य है.
भारतीय इतिहास में पंचायती राज व्यवस्था
भारतीय इतिहास में पंचायतीराज व्यवस्था को लेकर वर्ष 1956 में बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में मेहता कमेटी का गठन किया गया था. इस कमेटी को पंचायती राज के प्रारूप इनके रूप कार्यों शक्तियों, चुनावी प्रक्रिया के बारे में ढांचा तैयार करने के लिए कहा गया था.
वर्ष 1957 में मेहता कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार के समक्ष प्रस्तुत की. 12 जनवरी 1958 को भारत सरकार द्वारा मेहता कमेटी की अधिकतर सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया, जिनमें सता का विकेंद्रीकरण एक मुख्य पहलू था.
महात्मा गांधी जयंती 2 अक्टूबर 1959 को पंडित जवाहरलाल नेहरु द्वारा राजस्थान की नागौर जिले की भूमि से भारत में पंचायती राज व्यवस्था की नीव रखी.
11 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के बाद भारत में पंचायती राज व्यवस्था को लागू करने वाला आंध्रप्रदेश दूसरा राज्य बना था. बाद कई वर्षों में पंचायती राज के ढाँचे में सुधार को लेकर कई कमेटियों का गठन किया गया
जिनमें अशोक मेहता कमेटी, यशपाल कमेटी, सिन्हा कमेटी मगर भारत में पंचायतीराज का स्वरूप बलवंतराय मेहता कमेटी के आधर पर ही लागू है.
सविधान के द्वारा इसे सवैधानिक रूप देने के लिए सरकार द्वारा वर्ष 1993 में 73 वें व 74 वें संशोधन द्वारा इसे वैधानिक रूप दिया गया है.
73 वें संविधान संशोधन के तहत त्रिस्तरीय ढाँचे में महिलाओं के लिए भी अलग से 33 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई. पंचायतों का कार्यक्रम 5 वर्ष रखा गया, स्थानीय स्वशासन में 74 वाँ संविधान संशोधन नगरीय शासण व्यवस्था से जुड़ा है.
जिसके अनुसार शहर की आबादी के अनुसार उसे नगरपालिका, नगर निगम एवं नगर परिषद् तीन निकायों में विभक्त किया जाएगा.
शहरी निकाय के लिए महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत व अनुसूचित जाति व जनजाति के समुदायों के प्रतिनिधित्व भी दिया गया है. इनका कार्यकाल भी पांच वर्षों का रखा गया है.
संविधान की 11 वीं अनुसूची में कई रोजमर्रा से जुड़े विषयों को शामिल किया गया हैं, जिनमें कृषि, भूमि सुधार, लघु सिंचाई, पशुपालन, मछली पालन, खादी ग्रामोद्योग आदि रखे गये है.
इन विषयों पर ग्राम पंचायत स्तर पर पंचायतों को व नगरीय स्वशासन की इकाई को इन पर कानून बनाने का अधिकार होगा.
ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद् स्थानीय स्वशासन की तीन मुख्य इकाईयाँ है. जिनमें ग्राम पंचायत सबसे निम्न स्तर पर व जिला परिषद् सर्वोच्च स्तर की इकाई है.
पंचायती राज की व्यवस्था
पंचायत समिति या तालुका इन दोनों इंकाईयों के मध्य समन्वय का कार्य करती है. छोटे छोटे गाँवों के समूह को मिलाकर ग्राम पंचायत का, ग्राम पंचायतों से पंचायत समिति का, व जिलें की विभिन्न पंचायत समिति इकाइयों को मिलाकर जिला परिषद का गठन किया जाता है. 18 वर्ष की आयु से अधिक के सभी व्यक्ति ग्राम सभा के सदस्य होते है.
ग्राम सभा द्वारा ही निर्धारित कार्यकाल समाप्त होने पर पंचायत सदस्यों का निर्वाचन किया जाता है. एक प्रधान, पंचायत के सरपंच व वार्ड सभा के पंचों का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष मतदान प्रणाली के माध्यम से किया जाता है.
पंचो की अधिकतम संख्या 5 से 15 तक हो सकती है. ग्राम पंचायत, पंचायत समिति एवं जिला परिषद् के सदस्यों का कार्यकाल पांच वर्ष तक का होता है.नागरिक सुविधाएं, समाज कल्याण व विकास के कार्य इन पंचायतों के माध्यम से ही संपादित किये जाते है.
ग्राम पंचायत के कार्य
नागरिकों की सुविधा में ये ग्राम पंचायत के कार्य आते है.
- नागरिकों के उत्तम स्वास्थ्य व स्वच्छता का प्रबंध
- गंदे पानी की निकासी की पर्याप्त व्यवस्था
- स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाना
- सड़क निर्माण व मरम्मत का कार्य
- रोड लाइट की निगरानी व व्यवस्था
- प्राथमिक शिक्षा का प्रबंध
इनके अतिरिक्त ग्राम पंचायत को समाज कल्याण से जुड़े कई कार्य भी करने होते है जो ये है.
- जन्म मृत्यु पंजीकरण
- कृषि विकास व पशुपालन
- सड़क, नाली, तालाब पुस्तकालय, अस्पताल, सामुदायिक सभा भवन का निर्माण व देखरेख
भारत में पंचायती राज व्यवस्था का मूल्यांकन
यदि भारत में पंचायती राज व्यवस्था के अब तक के योगदान व कार्यप्रणाली को देखे तो निश्चय ही जिन उद्देश्य के लिए इन संस्थाओं का गठन किया गया था, उनमें आंशिक सफलता ही प्राप्त हो पाई है. राजनीती का दुष्प्रभाव का असर इन स्थानीय संस्थाओं पर भी नजर आता है.
कई बुरे नतीजों का कारण यह व्यवस्था ही रही है जिनमे जातिवाद में वृद्धि, लोगों में आपसी दुश्मनी, चुनावों के समय हिंसक घटनाएं आज इसके औचित्य पर सवाल खड़ा कर रही है.
इस दिशा में सरकार को ओर प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है, जिससें गाँवों के लोगों का विकास भी हो सके तथा उन्हें शहरों की ओर पलायन न करना पड़े.
इसके .लिए ग्रामीणों को गावो में ही रोजगार उपलब्ध कराने की आवश्यकता थी इन उददेश्यों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी रोजगार गारटी योजना की शुरुआत की इसके कार्यान्वयन में ग्राम की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है भारत गाँवो का देश हैं.
एंव ग्राम विकास में ग्राम पंचायत की मुख्य भूमिका होती है. इसलिए ग्राम पंचायत का सुचारू रूप से कार्य करना न केवल गाँवो बल्कि पुरे देश के हित के लिए भी आवश्यक है.