नमस्कार फसल सुरक्षा की विधियाँ Crop Protection Methods In India In Hindi में हम फसल सुरक्षा की तकनीकों और विधियों के बारे में जानेगे.
किसान अपने खेतों को कीड़े मकोड़े, विषाणु आदि से बचाने के लिए जैविक और रासायनिक तकनीके अपनाकर फसल की सुरक्षा करते हैं. आज के लेख में हम इन्ही के बारे में जानेगे.
फसल सुरक्षा की विधियाँ | Crop Protection Methods In India In Hindi
फसल सुरक्षा पौधों की बीमारियों , खरपतवारों और अन्य कीटों के प्रबंधन का विज्ञान और अभ्यास है जो कृषि फसलों और वानिकी को नुकसान पहुंचाता है।
कृषि फसलों में अनाज फसल ( मक्का , गेहूं , चावल , आदि), सब्जी फसलें ( आलू , गोभी , आदि) और फल शामिल हैं। खेत में फसलों को कई कारक प्रभावित करते है। फसल के पौधे कीड़े, पक्षियों, जीवाणु, बैक्टीरिया, आदि से क्षति हो सकती हैं। फसल सुरक्षा शामिल है.
खेतों में फसल खरपतवार, कीट, पीड़क तथा रोगों से प्रभावित होती हैं. यदि समय रहते खरपतवार तथा पीड़कों को नियंत्रित नही किया जाए तो वे फसलों को बहुत नुकसान पहुचाते हैं.
खरपतवार फसली पौधों के साथ उगे अनावश्यक पौधे होते हैं. उदहारण- विलायती गोखरू (जैथियम), गाजरघास (पारथेनियम) व मोथा (साइप्रस रोंटेडस).
ये खरपतवार भोजन, स्थान तथा प्रकाश के लिए स्पर्धा करते है. खरपतवार पोषक तत्व भी लेते हैं, जिससे फसलों की वृद्धि कम हो जाती है. इसलिए अच्छी पैदावार के लिए फसली पौधों को प्रारम्भ अवस्था में ही खरपतवार को खेतों से निकाल देना चाहिए.
फसल सुरक्षा की विधियाँ | Crop Protection Methods In India In Hindi
प्रायः कीटनाशक तीन प्रकार से पौधों पर आक्रमण करते हैं.
- ये मूल, तने तथा पत्तियों को काट देते हैं.
- ये पौधें के विभिन्न भागों से कोशिकीय रस चूस लेते हैं.
- तथा ये तने तथा फलों में छिद्र कर देते हैं.
इस प्रकार ये फसल को खराब कर देते हैं. और फसल उत्पादन कम हो जाता हैं. पौधों में रोग जीवाणु, कवक तथा वायरस जैसे रोग कारकों द्वारा होता हैं.
ये मिट्टी पानी तथा हवा में उपस्थित रहते हैं, और इन माध्यमों द्वारा ही पौधों में फैलते हैं. खरपतवार कीट तथा रोगों पर नियंत्रण कई विधियों द्वारा किया जा सकता हैं. इनमें से सबसे प्रचलित विधि पीड़कनाशी रसायन का उपयोग हैं.
इसके अंतर्गत शाकनाशी, कीटनाशी तथा कवकनाशी रसायन आते हैं. इन रसायनों का फसल के पौधों पर छिड़काव करते हैं अथवा बिज और मिट्टी के उपचार के लिए करते हैं.
लेकिन इनके अधिकाधिक उपयोग से बहुत सी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं. ये रसायन पौधों तथा जानवरों के लिए विषेले हो जाते हैं और पर्यावरण प्रदूषण के कारण बन जाते हैं.
यांत्रिक विधि द्वारा खरपतवारों को हटाना भी एक विधि हैं. निरोधक विधियों जैसे समय पर फसल उगाना, उचित क्यारियां तैयार करना, अंतराफसलीकरण तथा फसल चक्र खरपतवार को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं.
पीड़्को पर नियंत्रण पाने के लिए प्रतिरोध क्षमता वाली किस्मों का उपयोग तथा ग्रीष्म में हल से जुताई कुछ निरोधक विधियाँ हैं. इस विधि में खरपतवार तथा पीड़कों को नष्ट करने के लिए गर्मी के मौसम में गहराई तक हल चलाया जाता हैं.
फसल सुरक्षा हेतु जैविक विधियाँ
भारतीय परम्परागत कृषि में फसलों की सुरक्षा के लिए कई विशेष प्रकार की विधियों का उपयोग किया जाता था, जिनका चलन आज भी हैं और बड़े पैमाने पर किसान इनका उपयोग फसलों की सुरक्षा के लिए करते हैं. मसलन नीम का तेल, गाय का मूत्र और सड़ा हुआ मट्ठा व्यापक रूप में काम में ली जाने वाली जैविक विधियाँ हैं.
फसल चक्र, फसल अवशेष, हरी, कार्बनिक और गोबर की खाद आदि के प्रयोग से फसलों की उत्पादकता जमीन की उर्वरकता तथा अनाज व सब्जियों के स्वाद और गुणों को बनाए रखने में मदद करते हैं. फसल की सुरक्षा के लिए निम्न जैविक विधियों का भारत में मूलतः उपयोग किया जाता हैं.
फसल अवशेष मिटाना– जैविक खेती के कीटों को नष्ट करने के लिए एक फसल चक्र के समाप्त हो जाने पर गर्मी में गहरी जुताई करके रोगों के कारकों को नष्ट किया जाता हैं. निराई गुड़ाई और बुहाई को सही समय पर करने से भी फसलों को कीटों से बचाने में मदद मिलती हैं.
गाय का मूत्र– किसान परिवार खेती के साथ साथ पशुपालन का कार्य करते हैं. गाय के मूत्र में 33 प्रकार के तत्व पाए जाते हैं जो पेड़ पौधो और फसलों के कीट फुफुन्द और विषाणु जनित रोगों पर नियंत्रण पाने में कीटनाशक का काम करते हैं.
गोमूत्र में विद्यमान नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम, लोहा, चूना, सोडियम फसलों को रोगमुक्त और मजबूत बनाते हैं. गोमूत्र को नीम के पत्तों के साथ गलाकर जल मिलाकर खेतों में छिडकाव किया जाता हैं. करीब 18 प्रतिशत किसान इस जैविक विधि से अपने फसलों की सुरक्षा करते हैं.
नीम का उपयोग– देश के 33 प्रतिशत किसान अपने अनाज के भंडारण और खेत में खड़ी फसल को कीड़ों और रोग जनकों से बचाने हेतु नीम की पत्तियों के तेल और घोल का उपयोग छिडकाव के रूप में करते हैं. नीम का असर कई प्रकार के केमिकल रसायनों के छिड़काव से अधिक प्रभावी होता हैं.
अलग अलग फसलों को उगाना– एक ही खेत में फसल चक्रण के रूप में कई रिले क्रॉप फसले उगाकर भी कई बीमारियों से क्रॉप्स को बचाया जा सकता हैं.