राजस्थान की लोक कलाएं Folk Art Of Rajasthan In Hindi: किसी क्षेत्र विशेष में बनी आर्ट को लोक कला कहा जाता हैं,
आज के आर्टिकल में राजस्थान राज्य की प्रमुख लोक कलाओं के बारे में सरल भाषा में जानेगे. उम्मीद करते है आपको यहाँ दी गई जानकारी पसंद आएगी.
राजस्थान की लोक कलाएं Folk Art Of Rajasthan In Hindi
काष्ट कला
काष्ठ कला क्या है– राजस्थान में काष्ट कला के लिए चित्तोडगढ का बस्सी अत्यधिक प्रसिद्ध है. यहाँ पर काष्ट पर कला का यह कार्य 1652 में गोविन्ददास जी के समय प्रभात जी सुथार ने शुरू किया था.
प्रभात जी ने इस कला में लकड़ी का गणगौर बनाया जो आज भी बस्सी में सुरक्षित है. राज्य में काष्ट कला के अन्य प्रसिद्ध केन्द्रों में उदयपुर सवाईमाधोपुर जोधपुर और बाड़मेर प्रसिद्ध है.
इस कला के अंतर्गत अन्य कार्यो से जुड़े अन्य प्रसिद्ध केंद्र इस प्रकार है.
- नक्काशी दार फर्नीचर की कला- बाड़मेर
- लकड़ी के झूले- जोधपुर
- शीशम का फर्नीचर- हनुमानगढ़, गंगानगर
- स्टील का फर्नीचर- बीकानेर और चित्तोडगढ
कावड़ बनाने की कला
इसे चलता फिरता मन्दिर भी कहा जाता है. कावड़ पर देवी देवताओं और धार्मिक व पौराणिक कथाओं से जुड़े चित्रों का अंकन होता है. मुख्य रूप से कावड़ पर भगवान् श्री राम का जीवन कावड़ पर चित्रित किया जाता है.
इसे राम जी की कावड़ या राम सीता की कावड भी कहा जाता है. कावड़ जाति के भाटों के द्वारा इसका वाचन किया जाता है. मुख्य रूप से राजस्थान में कावड़ बनाने का कार्य बस्सी चित्तोडगढ़ में खेरादी जाति के कारीगरों द्वारा किया जाता है.
बेवाण
यह एक लकड़ी की विमाननुमा आकृति जिसमे देवताओं को बिठाकर देवझूलनी एकादशी के दिन स्नान के ले जाया जाता है. इस आकृति को मिनिएचर वुडन टेम्पल भी कहा जाता है.
खांडे
लकड़ी पर बनी तलवार नुमा आकृति जिस पर आकर्षक चित्र अंकित होते है. इसे खांडे कहा जाता है. होली के अवसर पर खांडे यजमानों के घर भेजे जाने की प्रथा है.
कठपुतली की कला
कठपुतली कला की उत्पति उदयपुर राजस्थान से मानी जाती है. कठपुतली नचवाने या वाचने का कार्य राजस्थान में नट जाति के लोगों के द्वारा किया जाता है.
कठपुतली अरडू नामक लकड़ी की बनी एक कलाकृति है. कठपुतली का मुख्य सूत्रधार स्थापक कहलाता है.
कठपुतली के प्रकार
- राव अमरसिंह राठोड़
- पृथ्वीराज संयोगिता
- बतीसी
राजस्थान में मुख्य रूप से कठपुतली के ये तीन प्रकार प्रसिद्ध माने जाते है.
पातरे/तिपरनी
जैन श्वेताम्बर साधुओ द्वारा प्रयोग में लाइ जाने वाली यह लकड़ी की आकृति पात्र्रे या तिप्रंनी कहलाती है. राज्य में इसे बनाने का कार्य मुख्य रूप से पीपाड़ जोधपुर में किया जाता है.
मेहँदी
मेहँदी को सुहाग और सौभाग्य का प्रतीक समझा जाता है. राजस्थान में सोजत पाली की मेहँदी सर्वाधिक लोकप्रसिद्ध मानी जाती है. इसके अलावा भिलुंड (राजसमन्द) की मेहँदी भी प्रसिद्ध है.
जयपुर के कुछ क्षेत्रों की mehndi art की भी अपनी अनूठी विशेषता है.राजस्थान में बिस्सा जाति की महिलाएं कभी मेहँदी नही नही लगाती है.
गोदना
शरीर के किसी अंग पर सुई या कांटे की सहायता से कलात्मक चित्र बनाना या कुछ विशेष प्रकार की कलात्मक चित्रकारी करवाना गोदना कहलाता है.
इस कला में खुदे हुए शरीर के भाग में खेजड़ी और कोयले का मिश्रण भर दिया जाता है. जो सूखने के बाद हरे रंग की झांई दिखाई देती है.
मांडना
इसे साख्या स्वस्तिक या पगलिया भी कहा जाता है. यह राजस्थानी लोककला मुख्य रूप से वैवाहिक या शुभ अवसरों पर बनाई जाती है. बच्चे के जन्म के समय आंगन में बनाई जाने वाली कलात्मक आकृति मांडना कहलाती है.
इसे बनाने के लिए चार प्रकार के रंगो का उपयोग किया जाता है. जिसे हिर्मिच भी कहा जाता है. इसमे पीला केसरिया लाल और नारंगी रंगो का प्रयोग किया जाता है. इसके अतिरिक्त इसमे मिट्टी कुमकुम और हल्दी का प्रयोग किया जाता है.
स्वास्तिक/ताम
बच्चे के जन्म या अन्य शुभ अवसरों पर स्वास्तिक बनाए जाते है. साथ ही भील जाति के लोग विवाह के अवसर पर दीवार पर जो भीति चित्र बनाते है. उन्हें ताम कहते है. देवी देवताओं के पद चिह्नों को आंगन में उकेरित करना पगलिया कहलाता है.
पाना/पाने
कागज पर निर्मित चित्र पाने कहलाते है. राजस्थान में सांगानेर जयपुर के पाने विशेष रूप से लोकप्रिय है. श्रीनाथ जी का पाना सबसे अधिक लोकप्रिय कलात्मक और 24 श्रंगारों से युक्त माना जाता है.
गोरबंद
ऊंट के गले का आभूषण जो कांच कोदियाँ एवं मनको तथा मोतियों से बना होता है. गोरबंध कहलाता है. गोरबंद नाखरालों राजस्थान का मुख्य लोकप्रिय गीत है.
कशीदाकारी/कढ़ाई Embroidery Hand Work
- मुकेश-: सूती एवं रेशमी कपड़े पर बादले की सहायता से छोटी छोटी बिन्दकी वाली कढ़ाई या कशीदाकारी मुकेश कहलाती है. यह राजस्थान के शेखावटी क्षेत्र की प्रसिद्ध कला है.
- पेंचवर्क-: कपड़े के मनचाहे डिजायन काटकर उन पर हाथी घोडा ऊंट आदि विभिन्न प्रकार के जानवरों के चित्र उकेरित करना तथा उन चित्रों को बड़े कपड़े पर रखकर उनकी सिलाई कर देना पेंचवर्क कहलाता है. राजस्थान में कशीदाकारी की यह कला मारवाड़ और शेखावटी क्षेत्र की विशेष रूप से प्रसिद्ध है.
- मिरर वर्क-: कांच के छोटे छोटे टुकडो को सुई और धागे की सहायता से कपड़े पर कशीदाकारी/कढ़ाई करना मिरर वर्क कहलाता है. यह कार्य पश्चिमी राजस्थान एवं बाड़मेर जैसलमेर में विशेष रूप से प्रसिद्ध है.
- चटापट्टी-: यह शेखावटी क्षेत्र की प्रसिद्ध कला है.
- कोटा डोरिया-: कैथून कोटा की प्रसिद्ध मसुरिया साड़ी जिन्हें राजस्थान की बनारसी साड़ी भी कहा जाता है. कोटा के दीवान झाला जालिम सिंह इस कला के बुनकरों को मैसूर से लाए थे. यह कार्य महमूद मसुरिया नाम के एक बुनकर द्वारा शुरू किया गया था.राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस कशीदाकारी की साड़ी को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई थी. उनके इस कार्य के लिए UNO ने उन्हें वुमेन टुगेदर अवार्ड प्रदान किया था.
फड़ चित्रण और वाचन
लोक देवी देवताओं के जीवन को कपड़े के केनवास पर चित्रित करना फड़ चित्रण कहलाता है.फड़ शब्द पढ़ (पढना) धातु से बना है जिसका अर्थ होता है पढना या बाचना.
यह कला राजस्थान में मुख्य रूप से प्रसिद्ध है राज्य में इस कला के लिए भीलवाड़ा का शाहपुरा क्षेत्र विशेष प्रसिद्ध है. भीलवाड़ा के शाहपुरा का जोशी परिवार इस फड़ चित्रण कला में सिद्धस्त है.
सबसे लोकप्रिय फड़- पाबूजी राठोड़ की फड़ राजस्थान की सबसे लोकप्रिय फड़ है. भील थोरी या नायक जाति के भोपो के द्वरा इस फड़ का वाचन रावणहत्था वाध्य यंत्र के साथ किया जाता है.
सबसे लम्बी एवं छोटी फड़-: देवनारायण जी की फड़ को सबसे लम्बी एवं सबसे छोटी फड़ माना है. यह गुर्जर भोपो के द्वारा इसका वाचन किया है.
इस फड़ के वाचन में जन्तर नामक वाद्य यंत्र का उपयोग किया जाता है. भारत सरकार ने वर्ष 1992 में देवनारायण जी की फड़ पर डाक टिकट जारी किया था इस कारण इस पर इसका सबसे सबसे संक्षिप्त रूप चित्रित किया गया था.
रामदला कृष्णदला की फड़-: हाड़ोती क्षेत्र में भाट भोपों द्वारा बिना वाध्य यंत्र के इस फड़ का वाचन दिन में किया जाता है. धुलजी भाई चितेरे ने इस फड़ का चित्रण किया था.
भैसासुर की फड़-: इस फड़ का वाचन नही किया जाता है. बागरी जाती के लोग चोरी करने के लिए जाने से पूर्व सुकून के लिए इस फड़ का पूजन करते है.
रामदेवजी की फड़-: जैसलमेर और बीकानेर के क्षेत्र में रावणहत्था वाद्य यंत्र के साथ लोकदेवता बाबा रामदेवजी की फड़ का चित्रण किया जाता है.
इस फड़ का चित्रण चौथमल चितेरे द्वारा किया गया था. कामड़ जाति के भोपों के द्वारा रामदेवजी की फड़ का वाचन किया जाता है.
- पार्वती देवी जोशी को प्रथम फड़ चितेरी महिला माना जाता है.
- भीलवाड़ा के श्रीलाल जोशी को फड़ चित्रण तथा इस कला में उत्कृष्ट योगदान के लिए 2006 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री पुरस्कार प्रदान किया गया था.
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