अमीर खुसरो की जीवनी इन हिंदी Amir Khusro Biography in Hindi: जब भारत के इतिहास के मशहूर शायरों का नाम लिया जाता है तो उनमें सबसे पहले अमीर खुसरो-Amir Khusro का नाम आता थे ये एक सूफी कवि होने के साथ साथ ग़ज़ल ,ख़याल, कव्वाली, रुबाई और तराना आदि के लिए भी खुसरों को स्मरण किया जाता है.
हिन्दू मुस्लिम एकता तथा मानवीय धर्म को अपनी रचनाओं शायरियों में जगह देने वाले अमीर खुसरों का पूरा नाम अबुल हसन यमीनुद्दीन मुहम्मद था, आज के इस लेख में उनकी जीवनी जीवन परिचय इतिहास पर संक्षिप्त जानकारी आपके साथ शेयर कर रहे हैं.
Amir Khusro Biography in Hindi अमीर खुसरो का जीवन परिचय जीवनी
अमीर खुसरो का जन्म वर्तमान उत्तरप्रदेश के एटा जिले के पटियाली गाँव में १२५३ में हुआ था. इन्हें तोता ए हिन्द अथवा तूती ए हिन्द की उपाधि दी गई थी. इन्होने फ़ारसी कविता का भारतयीकरण करना आरम्भ किया.
अमीर खुसरो ने फ़ारसी की एक नवीन शैली प्रारम्भ की जिसे सबक ए हिंदी या भारत की शैली कहा गया. इनकी रचनाएँ प्रमुख है नूह-सिपेहर, देवल, रानी- खिज्र खां, किरान उस सादैन, मिफ्ता उल फुतूह, तुगलकनामा, अफजल उल फवायद आदि.
इन्हें सल्तनत काल का सर्वश्रेष्ट संगीतज्ञ माना जाता है. इन्होने ईरानी व भारतीय रागों का मिश्रण करके तिलकत, साजगिरी आदि रागों तथा कई फारसी अरबी रागों जैसे एमन, सनम, गोरा आदि का आविष्कार किया. इन्होने कव्वाली गायन शैली प्रचलित की. इन्हें सितार व तबले का भी आविष्कारक माना जाता है यह तथ्य निर्वावादित है.
अमीर खुसरो संत निजामुद्दीन औलिया के शिष्य थे. जिन्होंने इन्हें तुर्क्ल्लाह की उपाधि दी थी. निजामुद्दीन औलिया की मृत्यु के अगले दिन ही इनकी मृत्यु हो गई थी.
खुसरो एक देशभक्त कवि थे उनकी रग रग में मातृभूमि के लिए लगाव था. उनकी देशभक्ति का प्रमाण इन्ही की एक पुस्तक नुह सिपहर में देखने को मिलता है जिसमें वो भारतीय पक्षियों की तुलना अरबी पक्षियों से करते हुए उन्हें श्रेष्ट बताते हैं.
वे मैना को अरब व ईरान के सभी पक्षियों से सुंदर तथा मोर की भी भूरी भूरी प्रशंसा करते हैं. उनकी रचनाओं में भारतीय ज्ञान, दर्शन, अतिथि-सत्कार, फूलों-वृक्षों, रीति-रिवाजों तथा सौन्दर्य को बढ़ा चढ़ाकर भारतीय महिमा का वर्णन किया हैं.
खुसरो के जीवन परिवार आदि के बारे में बहुत कम स्रोत मिले हैं. उपलब्ध जानकारी के अनुसार ये विवाहित थे. जिनके तीन पुत्र तथा एक पुत्री थी. लैला मजनू किताब में उनका एक प्रसंग अपनी बेटी को इंगित कर लिखा गया हैं.
“या तो तुम पैदा न होतीं या पैदा होतीं भी तो पुत्र रूप में” मलिक अहमद को इनका पुत्र बताया जाता है जो एक समय फिरोजशाह तुगलक का दरबारी कवि हुआ करता था.
खुसरो का आरम्भिक जीवन (The early life of Amir Khusro)
अमीर खुसरो अपने तीनों भाईओं में सबसे बड़ा था, चार साल की उम्रः में उसे दिल्ली लाया गया, 9 वर्ष की आयु में वह शेख निजामुद्दीन औलिया का शिष्य बन गया. 16-17 वर्ष की आयु से वह शेरो शायरी पढने लगा, अमीरों के घर जाकर यह शायरी सुनाता था जिससे भरण पोषण हो जाता था.
सुलतान मुहम्मद जो कि बलबन का भतीजा था इसे खुसरो की शायरी पसंद आई और उसे मुल्तान ले गया. उसे दरबार में उच्च पद दिया तथा मसनवी लिखवाई उसमें बीस हजार शेर थे. अगले पांच वर्षों तक मुल्तान में उसका जीवन बेहद शानो शोकत से गुजरा.
उसी समय मंगोलों ने पंजाब पर आक्रमण तेज कर दिए थे, तथा एक आक्रमण में उन्होंने सुलतान और खुसरो को बंदी बना लिया. बाद में सुलतान का कत्ल कर दिया.
मगर खुसरो को शायर जान कर छोड़ दिया. फिर से पटियाली होकर दिल्ली आ पंहुचा और बलबन को सारी कथा सुना दी. इस दुःख से बलबन भी बीमार पड़ गया और बाद में उसकी मृत्यु हो गई.
अमीर खुसरो का धार्मिक जीवन (Religious Life of Amir Khusra)
खुसरो मध्य एशिया की लाचन जाति से ताल्लुक रखता था. इसका पिता तुर्क सैफुद्दीन चंगेज खां के आक्रमणों से पीड़ित होकर दिल्ली के बलबन के शासन में शरण ली और भारत बस गया.
यहाँ इसका निकाह दौलत नाज़ से हुआ, नाज एक राजपूत हिन्दू महिला थी. इसका पिता अमी इमादुल्मुल्क बलबन का युद्ध मंत्री था, जिसे राजनैतिक दवाब के कारण इस्लाम स्वीकार करना पड़ा, मगर अभी भी वह हिन्दू परम्परा के अनुसार जीवन व्यतीत कर रहा था.
नाज के पिता के परिवार में संगीत का सम्रद्ध माहौल था. यह परिवार भी औलिया का भक्त था, इसी कारण आगे चलकर खुसरो ने भी इस्लाम की मजहबदीक्षा इनसे ही ली.
अमीर खुसरो की पहेलियाँ शायरी
खडा भी लोटा पडा भी लोटा
है बैठा पर कहे है लोटा
खुसरो कहे समझ का टोटा
( लोटा)
बीसो का सर काट लिया
ना मारा ना खून किया
( नाखून )
गोरी सोवे सेज पर मुख पर डारे केस।
चल खुसरो घर आपने सांझ भई चहुं देस
निजामुद्दीन औलिया के शिष्य (Disciples of Nizamuddin Auliya)
अमीर खुसरो का अपने सूफी गुरु निजामुद्दीन औलिया के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध था. खुसरो अपने तुगलक नामक ग्रंथ में इस बारे में वर्णन करते हुए लिखता हैं कि वह बंगाल आक्रमण के समय गयासुदीन तुगलक के साथ गया हुआ था, राज्य निर्वाचन की अवधि के दौरान ही दिल्ली में उसके गुरु शेख निजामुद्दीन औलिया का देहांत हो गया था.
वह इससे खुसरो को काफी आघात पहुंचा, और कहते हैं दिल्ली लौटने के बाद अगले 6 महीनों में ही खुसरो का देहांत हो गया तथा उसकी कब्र भी अपने गुरु शेख औलिया की कब्र के पास ही बनाई गई थी.
इस दौर में निजामुद्दीन औलिया जाने माने सूफी संत थे, जब खुसरो मात्र आठ वर्ष के थे, तभी इनके शिष्य बन गये थे और उन्ही की प्रेरणा से खुसरो ने काव्य रचनाएं लिखनी शुरू की.
राज दरबार और शासन की गतिविधियों में संलिप्त रहते हुए भी वह संत की तरह जीवन व्यतीत करने लगा था. औलिया ने खुसरो को तुर्कल्लाह की उपाधि दी. खुसरो को तूती ए हिन्द अर्थात हिन्दू स्तान की तूती भी कहा जाता हैं.
अमीर खुसरो जिस गयासुद्दीन खिलजी सुलतान का दरबारी था, वह खिलजी खुसरो का तो सम्मान करता था, मगर उसका गुरु शेख निजामुद्दीन औलिया उसे फूटी आँख नहीं सुहाता था.
जब खिलजी खुसरो के साथ बंगाल आक्रमण से बाद दिल्ली लौट रहा था तो जब दिल्ली से थोड़ी दूर पड़ाव पर रुका तो उसने खुसरो से कहा कि वह निजामुद्दीन तक संदेश पंहुचा दे कि सुलतान के आने तक वह दिल्ली खाली कर दे. मगर खुसरो ने उस वक्त कहा था अभी दिल्ली दूर हैं, जो आजकल कहावत में भी प्रसिद्ध हैं,
उस रात खिलजी ने अपने पुत्र जूना खां के बनाए महल में आश्रय लिया और वह महल ढह गया तथा खिलजी की मौत हो गई, कुछ इतिहासकार मानते हैं कि जुना खां जो कि खिलजी का बेटा था उसने अपने बाप की हत्या कर दी जबकि कुछ का मानना हैं कि खुसरो ने अपने गुरु के अपमान करने के कारण खिलजी पर घात करवाकर हमला किया और उसे मार डाला था.
जब खुसरो को औलिया के निधन का समाचार मिला तो वह रास्ते में था, दिल्ली पहुचने पर वह मृत शरीर से सिर पटक पटक कर रोने लगा. उस दिन से संसार से विरक्त हो गया, समस्त मोह, धन आदि का त्याग कर काले वस्त्र धारण कर पीर की मजार पर कभी न उठने का निश्चय कर बैठ गया और यही उसका देहावसान हो गया.
अमीर खुसरो की रचनाएँ (Creations by Amir Khusro In Hindi)
बलबन की मृत्यु के बाद उसका पौत्र मुईजुद्दीन कैकुबाद दिल्ली का सुलतान बना और खुसरो को उसके राज दरबार में सम्मान मिला. सन 1298 में इन्होने मुईजुद्दीन कैकुबाद के लिए मसनवी किरानुससादैन की रचना की.
गुलाम वंश के पतन के बाद गुलाम वंश के जलालुद्दीन खिलजी का राज दरबारी बना. खिलजी ने खुसरो को अमीर की उपाधि दी. इससे प्रसन्न होकर खुसरो ने खिलजी के लिए मिफ्तोलफ़तह ग्रन्थ की रचना की. जब अलाउद्दीन ने अपने चाचा की हत्या कर सत्ता हाथ में ली तो उसने भी खुसरो को राजकवि बनाया,
बदले में उसने अलाउद्दीन के सम्मान में भी कई रचनाएं लिखी. आज उपलब्ध खुसरो की अधिक तर रचनाएं इसी काल की हैं. तुगलकनामा खुसरो द्वारा रचित अंतिम कृति हैं.
जब अलाउद्दीन की मृत्यु हुई तो कुतुबुद्दीन मुबारकबाद शासक बना, उसने भी अपने पूर्ववर्ती शासको की भांति खुसरो को राजकीय सम्मान दिया, मगर अपने पूर्वकालिक शासकों की तुलना में मुबारकशाह की एक धारणा ठीक विपरीत था,
वह खुसरो को तो सम्मान देता था मगर उसे उसके गुरु निजामुद्दीन से शत्रुता थी. इस कालखंड में खुसरो ने नूहसिपहर नामक ग्रन्थ की रचना की.
हिंदी में खुसरो का योगदान (Khusro’s contribution in Hindi)
मूल रूप से खुसरो ने अपनी रचनाएं फ़ारसी भाषा में की थी. उसे फ़ारसी के बड़े समकालीन विद्वानों फिरदौसी आदि के सम तुल्य माना जाता था. इन्होने स्वयं को हिन्द की तूती कहकर सम्बोधित किया था.
उन्होंने कहा कि यदि तुम मुझसे जानना चाहते हो तो हिन्दवी में पूछो, मैं तुम्हे अनुपम बाते बता सकूगा. हालांकि अमीर खुसरो की कोई भी हिन्दवी रचनाएं आज तक प्राप्त नहीं हो सकी हैं. हालांकि एक दो मध्ययुगीन ग्रंथों में इनकी हिन्दवी रचनाओं के बारे में साक्ष्य मिलते हैं.
निधन
कवि, शायर, गायक और संगीतकार अमीर खुसरो का देहावसान 1325 में दिल्ली में हो गया था.