बाल अधिकार पर निबंध – Child Rights Essay In Hindi: समाज में बच्चों के प्रति बढ़ते अपराध के चलते आज बाल अधिकारों की व्यवस्था करना समय की आवश्यकता बन चुकी हैं.
भारत में बाल मजदूरी, बाल विवाह, कन्या भ्रूण हत्या बच्चों की तस्करी, शारीरिक दुर्व्यहार की समस्याओं के चलते चाइल्ड राइट्स की महत्वपूर्ण आवश्यकता हैं.
आज का यह निबंध बच्चों के लिए Child Rights Essay के रूप में दिया गया हैं.
Child Rights Essay In Hindi [बाल अधिकार पर निबंध]
बाल अधिकार (Children’s rights) नाबालिग बच्चों की सुरक्षा तथा उनके बचाव के लिए निर्धारित किये गये मानवाधिकार हैं, 1989 के बाल अधिकार सम्मेलन में बालक शब्द को परिभाषित करते हुए कहा गया “कोई भी व्यक्ति जिसकी आयु १८ वर्ष से कम है, जब तक कि नियम में परिभाषित वयस्कता को पहले प्राप्त नहीं किया हो,बाल कहलाता हैं.”
बाल अधिकार पर 250 शब्दों में निबंध
बचपन एक ऐसी अवस्था होती है, जिसमें किसी भी बच्चे को सबसे ज्यादा साथ, प्यार और दुलार की आवश्यकता होती है, क्योंकि बाल्यवस्था में बच्चों का मन कोमल होता है। परंतु प्रथ्वी में कई लोग ऐसे भी हैं जो अपने स्वार्थ सिद्धि करने के लिए बच्चों का शोषण बचपन में करते हैं।
वर्तमान के समय में पूरी दुनिया में बच्चों के साथ शोषण की कई घटनाएं सामने आती है। यह शोषण आर्थिक, मानसिक और शारीरिक भी होता है।
हालांकि कोमल मन होने के कारण बच्चे इसका विरोध नहीं कर पाते हैं। इसलिए बच्चों के शोषण पर लगाम लगाने के लिए बाल अधिकार कानून सामने लाया गया।
साल 1989 में बाल अधिकार सम्मेलन में इस बात को परिभाषित किया था कि जिन बच्चों की उम्र 18 साल से कम है उनकी गिनती बाल के तौर पर होगी और उन्हें बाल अधिकार प्राप्त होंगे।
बता दें हर साल 14 से लेकर के 20 नवंबर तक बालकों के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाल अधिकार सप्ताह मनाया जाता है।
हमारे देश में में भी बाल अधिकार को लेकर के लगातार काम किए जा रहे हैं और यही वजह है कि देश में भी हर साल 20 नवंबर को बाल अधिकार दिवस सेलिब्रेट किया जाता है।
इसके अलावा राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग का गठन भी बालकों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया है। यह आयोग बच्चों के अधिकारों के लिए संघर्ष करता है और उनके अधिकारों का हनन होने पर आवश्यक कार्रवाई करता है।
Essay On Child Rights In Hindi Language
14 से 20 नवम्बर तक विश्व में अंतरराष्ट्रीय बाल अधिकार सप्ताह (आईसीआरडब्ल्यू) को बाल अधिकार की जागरूकता के लिए मनाया जाता हैं.
हमारे देश भारत में भी हर वर्ष 20 नवम्बर को बाल अधिकार दिवस मनाते हैं. बाल अधिकारों के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय आयोग (एन.सी.पी.सी.आर.)- आयोग का गठन भी किया गया हैं.
आयोग का यह कार्य हैं कि वह बनने वालो कानून, नीतियों तथा सरकारी व्यवस्था को देखे तथा उसका आंकलन करे कि वह बाल अधिकारों का उल्लंघन तो नहीं कर रहे हैं. दात ही वह संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा बनाएं युनिवर्सल चाइल्ड राइट्स के संगत भी हो.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग
एनसीपीसीआर बाल अधिकार संरक्षण के लिए राष्ट्रीय आयोग द्वारा 0 से 18 वर्ष तक के बालक बालिकाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कार्य करता हैं. आयोग सुनिश्चित करता हैं कि तत्कालीन व्यवस्था में 18 साल की आयु से कम नाबालिंक के अधिकारों का समुचित उपयोग हो.
बाल अधिकार क्या है?
1959 में बाल अधिकारों की घोषणा को 20 नवंबर 2007 में सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया गया. ये वे साधारण हक हकूक हैं जो प्रत्येक देश अपने नागरिकों के बेहतरी के लिए उन्हें प्रदान करता हैं. बालक मतदान के सिवाय उन सभी अधिकारों को पाने के हकदार हैं जो उसकी उम्रः के योग्य हो तथा एक वयस्क व्यक्ति को मिल रहे हैं.
बाल अधिकारों के तहत जीवन का अधिकार, पहचान, भोजन, पोषण और स्वास्थ्य, विकास, शिक्षा और मनोरंजन, नाम और राष्ट्रीयता, परिवार और पारिवारिक पर्यावरण, उपेक्षा से सुरक्षा, बदसलूकी, दुर्व्यवहार, बच्चों का गैर-कानूनी व्यापार इत्यादि को सम्मिलित किया जाता हैं.
मार्च 2007 में ही भारतीय संविधान में बाल अधिकारों के लिए एक संवैधानिक संस्था का गठन किया गया, जिन्हें बाल अधिकार संरक्षण आयोग कहा जाता हैं.
हमारे समाज में बाल अधिकारों के प्रति जनजागरूकता के लिए संगठन, सरकारी विभाग, नागरिक समाज समूह, एनजीओ काम कर रहे हैं, साथ ही बाल अधिकार दिवस मनाने का उद्देश्य भी यही हैं.
बाल अधिकार बालकों को श्रम में लगाने तथा उनके साथ अमानवीय दुर्व्यवहार आदि का खंडन करता हैं. ये बालक को बेहतर बालपन, शिक्षा व विकास के सुलभ अधिकार प्रदान करता हैं. घरेलू हिंसा व बाल तस्करी की खिलाफत कर बच्चों को अच्छी शिक्षा, मनोरंजन, खुशी देने के प्रयत्न करता हैं.
बाल अधिकारों के उद्देश्य
- 18 वर्ष से कम आयु के बालक के समुचित विकास तथा उसके बाधक तत्वों के सम्बन्ध में अनभिज्ञ अभिभावकों को अवगत कराना.
- निम्न आर्थिक स्तर के बालक के लिए नई नीति तथा सुनहरे भविष्य के लिए राह आसान बनाना.
- बालकों के प्रति बढ़ती हिंसा को समाप्त कर उन्हें सामाजिक व विधिक स्तर पर गैर कानूनी घोषित करना
- विभिन्न देशों तथा राज्यों में बालकों की स्थिति के सम्बन्ध में शोध करना
- बालकों के प्रति बढ़ते यौन अपराधों को रोकने के लिए जागरूकता फैलाना
बाल अधिकार की आवश्यकता
कई बार हम सोचते हैं बच्चों के लिए अलग से बाल अधिकारों के प्रावधान की क्या आवश्यकता हैं. क्या मानवाधिकार बालकों के लिए पर्याप्त नहीं हैं.
मगर सच्चाई से हम सभी परिचित हैं आए दिन हमें 5,6 साल की बच्चियों के साथ रैप जैसे घिनौने अपराध की खबरे, 10 साल तक के बच्चों को होटलों की भट्टियों पर देखकर उन पर रहम आता हैं तो बाल अधिकार और संरक्षण आयोग भी इसीलिए बनाए गये हैं ताकि बालकों के बचपन को तबाह होने से रोका जाए.
हमारे देश में बाल मजदूरी, बाल तस्करी का धंधा बड़े स्तर पर चल रहा हैं. नोबेल शांति पुरस्कार पाने वाले कैलाश सत्यार्थी एक भारतीय बाल अधिकार कार्यकर्ता और बाल-श्रम के विरुद्ध दुनियाभर में काम करने वाले इंसान हैं.
भारत से इन्होने 1980 में एक बाल आन्दोलन की नीव रखी थी, जिसका नाम बचपन बचाओं रखा गया. सत्यार्थी जी ने 144 से अधिक देशों में 83 हजार बाल श्रमिकों को बचपन लौटा चुके हैं.
बाल अधिकार कौन कौनसे है
- प्रत्येक बालक को जीने का अधिकार हैं.
- अभिभावकों को अपने बालक को अच्छा खिलाने व उसकी देखभाल का अधिकार देता हैं.
- प्रत्येक बालक बालिका को अपने परिवार के साथ रहने का हक हैं.
- उन्हें समस्त प्रकार की स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने का अधिकार हैं.
- शिक्षा पाने का अधिकार
- अपनी बात को रखने का अधिकार
- अपनी पसंद व मांग को माता-पिता के समक्ष रखने का अधिकार
- स्वतंत्र रूप से अपनी इच्छा के खेल तथा गतिविधियों में सम्मिलित होने का अधिकार
- बच्चों को सभा करने या संगठन बनाने का अधिकार हैं.
- वे अपने प्रति हो रहे आर्थिक, सामाजिक शोषण के विरुद्ध आवाज उठा सकते हैं शिकायत कर सकते हैं.
- बालक को अपने निजी जीवन की बाते, व्यवहार आदि में बाहरी हस्तक्षेप से रक्षा का अधिकार हैं.
- किसी आपदा के समय पहले मदद पाने का अधिकार तथा
- अपने अधिकार व भलाई के लिए सुरक्षा का अधिकार बाल अधिकारों में आते हैं.
बाल अधिकार एवं संरक्षण पर निबंध Essay on Child Rights and Protection In Hindi
बालक (Children) समाज एवं राष्ट्र की सम्पति है. उसके विकास से न केवल उसका बल्कि उसके परिवार समाज और राष्ट्र का भविष्य भी जुड़ा हुआ है.
बालक के प्रति हमारे व्यवहार, उसकी शिक्षा, उसके स्वास्थ्य, बच्चों के अधिकार (Child Rights In Hindi) पर उनके व्यक्तित्व का विकास निर्भर करता है.
इस कारण बालक की स्थति के सम्बन्ध में हमे अवश्य ही विचार करना चाहिए.समाज के विभिन्न वर्गों की तरह बालकों के भी बाल अधिकार है. यह सही है कि वह आयु में छोटा है, उसे अपने बाल अधिकारों का ज्ञान नही है.
बालकों की उपेक्षा करने से समाज को ही नुकसान है. भविष्य में सुखद समाज के लिए बच्चो के अधिकारों की रक्षा करना अति आवश्यक है. इस कारण प्रगतिशील समाज बालकों के विकास एवं उनके अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा जागरूक रहता है.
बाल अधिकार एवं बाल संरक्षण के इस लेख में हम आगे बाल अधिकार क्या है, कितने और कौन कौनसे अधिकार बाल अधिकार होते है, बाल अधिकारों की लिस्ट, बाल अधिकार हनन, बाल दुर्व्यवहार क्या है, बच्चों के कर्तव्य के बारे में Child Rights In Hindi इस लेख में बात करेगे.
संयुक्त राष्ट्र संघ एवं भारत सरकार ने बच्चों के अधिकार एवं नीतियों का निर्धारण किया है. बच्चों को उनके जन्म से ही उनकी पहचान, सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन और समानता के Child Rights बिना किसी जाति धर्म और बिना लिंग भेद स्वतः ही प्राप्त हो जाते है.
बाल अधिकार क्या है (what are child rights in hindi)
बाल अधिकार संरक्षण आयोग कानून 2005 के अनुसार बाल अधिकार में बालक/बालिकाओं के वे समस्त अधिकार शामिल है जो 20 नवम्बर 1989 को संयुक्त राष्ट्र संघ के बाल अधिकार अधिवेशन द्वारा स्वीकार किये गये थे तथा जिन पर भारत सरकार ने 11 दिसंबर 1992 में सहमती प्रदान की थी.
संयुक्त राष्ट्र संघ बाल अधिकार समझौते के तहत बच्चों को दिए गये अधिकारों को चार प्रकार के अधिकारों में वर्गीकृत किया गया है.
बाल अधिकारों की सूची (List of child rights)
- जीने का अधिकार- बच्चों के जीने का अधिकार उनके जन्म के पूर्व ही आरम्भ हो जाता है. जीने के अधिकार में दुनिया में आने का अधिकार, न्यूनतम स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने, भोजन, आवास, वस्त्र पाने का अधिकार तथा सम्मान के साथ जीने का अधिकार शामिल है.
- विकास का अधिकार- बच्चों को भावनात्मक मानसिक तथा शारीरिक सभी प्रकार के विकास का अधिकार है. भावनात्मक विकास तब संभव होता है जब अभिभावक संरक्षक, समाज, विद्यालय और सरकार सभी बच्चों की सही देखभाल करे और प्रेम दे. मानसिक विकास उचित शिक्षा और सीखने द्वारा तथा शारीरिक विकास मनोरंजन खेलकूद तथा पोषण द्वारा संभव होता है.
- संरक्षण का अधिकार- बच्चें को घर तथा अन्यत्र उपेक्षा, शोषण, हिंसा तथा उत्पीड़न से संरक्षण का अधिकार है. विकलांग बच्चें विशेष संरक्षण के पात्र है. प्राकृतिक आपदा की स्थति में बच्चों को सबसे पहले सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार है.
- भागीदारी का अधिकार- बच्चों को ऐसें फैसले या विषय में भागीदारी करने का अधिकार है जो उसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है. बच्चों की आयु व परिपक्वता के अनुसार इस भागीदारी में अनेक स्तर हो सकते है.
बाल अधिकार हनन क्या है (What is Child Abuse & child rights Violence in India)
हम बाल अधिकार (child rights) के हनन को को इसके विभिन्न रूपों के माध्यम से समझ सकते है, बाल अधिकारों का हनन निम्न रूपों में देखा जाता है.
- कन्या भ्रूण हत्या- समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता, अपरिपक्व मानसिकता एवं पुत्र मोह की इच्छा में बड़ी संख्याओं में बालिकाओं को जन्म से पूर्व ही गर्भ में मार दिया जाता है. सरकार द्वारा बाल अधिकार हनन की रोकथाम के लिए पीसी एंड एन डी टी कानून 1994 के तहत दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही की जाती है. भारत सरकार द्वारा बालिकाओं के संरक्षण के लिए ”बेटी बचाओं बेटी पढाओं” अभियान संचालित किया जा रहा है.
- बाल विवाह- समुचित शिक्षा एवं जन चेतना की कमी के कारण बड़ी संख्या में विशेषत ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह सम्पन्न होते है, यह पुरानी सामाजिक कुरूति है, इससे बच्चों के अधिकारों का हनन होता है. बाल विवाह से बच्चों को बेहतर स्वास्थ्य, पोषण व शिक्षा पाने के अधिकार के हनन के साथ ही हिंसा उत्पीड़न व शोषण के बचाव के मूलभूत अधिकारों का भी हनन होता है. कम उम्र में विवाह करने से बच्चों के शरीर एवं मस्तिष्क दोनों को गम्भीर एवं घातक खतरे की सम्भावना रहती है. कम उम्र में विवाह से शिक्षा के मूल अधिकार का भी हनन होता है, इसकी वजह से बहुत सारे बच्चे अनपढ़ और अकुशल रह जाते है. इससे उनके सामने अच्छे रोजगार पाने एवं बड़े होने पर आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने की ज्यादा सम्भावना नही बचती है, बाल अधिकार में बाल विवाह की प्रभावी रोकथाम हेतु बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 कार्य कर रहा है.
- बाल श्रम- आज भी हमारे समाज में बड़ी संख्या में बच्चे शिक्षा प्राप्त करने की बजाय दुकानों, कारखानों, घरों, ढाबो, चाय की दुकानों, ईट भट्टों और खेतों आदि विभिन्न प्रकार के कामों में लगे हुए है, उनसे लगातार काम लेकर बाल अधिकारों का शोषण किया जाता है. 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को श्रम कराने सूचना मिलने पर किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम 2000 के तहत कार्यवाही की जाती है.
- बाल यौन हिंसा- भारत सरकार द्वारा 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ होने वाली यौन हिंसा की रोकथाम के लिए लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 लागू किया गया है.
- बाल तस्करी- बाल श्रम, यौन हिंसा एवं अन्य प्रयोजन के लिए पैसे देकर, बहला फुसलाकर, डरा धमकाकर, शक्तियों का दुरूपयोग करके बालक/बालिकाओं की तस्करी की जाती है. ऐसें अपराधिक कार्यों की रोकथाम के लिए दंडात्मक कानून बनाएं गये है.