मौलिक कर्तव्य पर निबंध Essay on Fundamental Duties in Hindi

मौलिक कर्तव्य पर निबंध Essay on Fundamental Duties in Hindi में आपका स्वागत हैं. आज का निबंध नागरिकों के मूल कर्तव्यों पर दिया गया हैं.

भारतीय संविधान में 1976 में ऐसे 11 नागरिकों के दायित्व जोड़े गये जिनकी पालना स्वैच्छिक रखी गई. फंडामेंटल डयूटी का सांवैधानिक प्रावधान करने वाला जापान पहला देश था.

भारत के संविधान में ये प्रावधान सोवियत संघ के संविधान से लिए गये.

मौलिक कर्तव्य पर निबंध Essay on Fundamental Duties in Hindi

मौलिक कर्तव्य पर निबंध Essay on Fundamental Duties in Hindi

प्रारंभ में हमारे संविधान में केवल मूल अधिकारों का ही प्रावधान था.उनमें मूल कर्तव्यों का कोई प्रावधान नही था. सनः 1976 के संविधान संशोधन द्वारा संविधान में भाग 4-क एवं अनुच्छेद 51-क जोड़कर मूल कर्तव्य सम्मिलित किये गये.

इसके पीछे कारण यह रहा कि अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे के पूरक है. कर्तव्यों के बिना अधिकारों और अधिकारों के बिना कर्तव्यों का कोई महत्व नही रह जाता है. अनुच्छेद 51-क में नागरिकों के निम्नांकित मूल कर्तव्य बताए गए है.

मूल अधिकार व कर्तव्य में विशिष्ट सम्बन्ध हैं. अधिकार व कर्तव्य एक दुसरे के पूरक हैं. एक व्यक्ति के कर्तव्य दुसरे व्यक्ति के अधिकार बन जाते हैं. अतः कर्तव्यों की अनुपस्थिति में अधिकारों की कल्पना संभव नहीं हैं.

संविधान में 1950 में भारतीय नागरिकों के लिए सिर्फ मूल अधिकारों का ही उल्लेख किया गया था. मूल कर्तव्यों का नहीं. लेकिन 1976 में ४२ वां संविधान संशोधन करते हुए यह अनुभव किया गया

कि नागरिकों के मूल कर्तव्यों का उल्लेख किया जाना चाहिए. अतः संविधान के भाग चार क में 10 कर्तव्यों को जोड़ा गया, इसमें उल्लेख किया गया कि भारत के नागरिक का कर्तव्य ये होंगे.

क्या है मूल कर्तव्य (What Is Fundamental Duties In Hindi)

अधिकारों के साथ स्वाभाविक रूप से कर्तव्य भावना जुड़ी रहती है. कर्तव्यो के बिना अधिकारों का अस्तित्व संभव नही है.

यद्यपि जब भारत का संविधान लागू हुआ उस समय मौलिक अधिकारों के रूप में नागरिक अधिकारों का तथा नीति निर्देशक तत्व के रूप में राज्यों के कर्तव्यों का तो समावेश था,

लेकिन नागरिक कर्तव्य संविधान में शामिल नही थे. हालाँकि भारतीय परम्परा, मिथकों, धर्म व्यवस्था और संस्कार परम्परा में कर्तव्य भावना सदैव विद्यमान रही है.

माता: भूमि पुत्रोअहम प्राथ्विया के द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए जननी जन्मभूमिश्च सर्वगाद्पि गरीयसी द्वारा राष्ट्र की एकता अखंडता के प्रति हमारे कर्तव्य बोध को स्पष्ट किया गया है.

42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा संविधान के भाग 4 क व अनुच्छेद 51 क के द्वारा नागरिकों के मूल कर्तव्यों को स्थान दिया गया है.

हालाँकि कर्तव्यों के उल्लंघन के आधार पर नागरिकों को दंडित किया जा सकता है, अथवा नही, इसके बारे में संविधान मौन है. अनुच्छेद 51 क भारत के प्रत्येक नागरिक के ये मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties Of Citizens) है.

भारतीय संविधान में नागरिक के मूल कर्तव्य

11 Fundamental Duties of Indian Citizens 11 भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्य:

  1. संविधान का पालन करे और उसके आदर्शो, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे.
  2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलनों को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को ह्रद्य में सजोए रखे और उनका पालन करे.
  3. भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण बनाए रखे.
  4. देश की रक्षा करे और आव्हान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करे.
  5. भारत की सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे, जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो. ऐसी प्रथाओं का त्याग करे, जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है.
  6. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे.
  7. प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव है, रक्षा करे और सर्वधन करे तथा प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखे.
  8. वैज्ञानिक द्रष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे.
  9. सार्वजनिक सम्पति को सुरक्षित रखे, और हिंसा से दूर रहे.
  10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की और बढ़ने का सतत प्रयास करे, जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई उंचाइयो को छू ले.
  11. जो माता-पिता या संरक्षक हो, वह 6 से 14 वर्ष के बिच की आयु के अपने बच्चे तथा प्रतिपाल्य को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करेगा.

मूल कर्तव्य (Fundamental Duties) व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के सर्वागीण विकास के लिए अपरिहार्य है. हमारी न्यायपालिका ने भी समय-समय पर इन मूल कर्तव्यों का समर्थन किया है.

एम सी मेहता बनाम भारत संघ (1988 एससीसी 47 के) मामले हमारे उच्चतम न्यायालय ने यह अनुशंसा की है कि देश की शिक्षण संस्थाओं में प्रति सप्ताह एक घंटे पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा दी जानी चाहिए.

मूल कर्तव्यों की आलोचना (fundamental duties criticism in hindi)

कर्तव्यों के उल्लंघन पर दंड की व्यवस्था नहीं की गई हैं. मूल कर्तव्यों के उल्लंघन पर हमारे संविधान में किसी तरह के दंड की व्यवस्था नहीं की गई हैं. इससे इसकी पालना भली भांति नहीं हो रही हैं.

मूल कर्तव्य अत्यधिक आदर्शवाद विचारो से प्रेरित हैं. जैसे राष्ट्रीय आदर्शों की पालना, देश की समन्वित संस्कृति व गौरवशाली परम्परा की रक्षा करना, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद ऐसे ही आदर्श है

जो प्रायः व्यवहार में काम नहीं लिए जा रहे हैं. यह सर्व मान्य तथ्य है कि कर्तव्यों की पालना किये बिना अधिकारों का उपयोग संभव नहीं हैं.

ये हमारे नागरिकों के लिए आदर्श के रूप में जोड़े गये हैं. ये राष्ट्रहित व राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत करने वाले हैं. संविधान में इनकों सम्मिलित करने के पीछे कोई राजनीतिक या दलगत भावना नहीं थी.

ऐसा माना जा रहा हैं. कि नागरिक चेतना के विकास के साथ नागरिक भविष्य में इन कर्तव्यों को धीरे धीरे पालन करने में अभ्यस्त हो जाएगे. प्रत्येक नागरिक द्वारा इन कर्तव्यों का पालन करना सर्वोच्च धर्म समझा जाना चाहिए.

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