परहित सरिस धर्म नहिं भाई पर निबंध | Parhit Saris Dharam Nahi Bhai Essay In Hindi

परहित सरिस धर्म नहिं भाई पर निबंध Parhit Saris Dharam Nahi Bhai Essay In Hindi: हम सभी मनुष्य एक सामाजिक व्यवस्था में बंधे हुए हैं समाज द्वारा नियत कुछ दायित्वों का हमें पालन करना होता हैं.

दूसरे की मदद करना मुश्किल समय में उनका हाथ बटाना परहित या परोपकार कहलाता हैं. उच्च सामाजिक आदर्शों में यह भी एक हैं.

तुलसीदास जी ने तो यहाँ तक कहा हैं परहित से बढ़कर कोई धर्म नहीं हैं. आज का निबंध गोस्वामी जी की इसी उक्ति पर हैं.

परहित सरिस धर्म नहिं भाई पर निबंध Essay In Hindi

परहित सरिस धर्म नहिं भाई पर निबंध | Parhit Saris Dharam Nahi Bhai Essay In Hindi

मानव एक सामाजिक प्राणी है; अत: समाज में रहकर उसे अन्य प्राणियों के प्रति कुछ दायित्वों का भी निर्वाह करना पड़ता है। इसमें परहित अथवा परोपकार की भावना पर आधारित दायित्व सर्वोपरि है।

तुलसीदासजी के अनुसार जिनके हृदय में परहित का भाव विद्यमान है, वे संसार में सबकुछ कर सकते हैं। उनके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है

परोपकार से बढ़कर इस दुनियां में कोई महान कर्म नही हैं. परोपकार ही मनुष्यता का दूसरा रूप हैं. इन्सान को सच्चे दिल से किसी की मदद करने में जिस ख़ुशी का भान होता है वह अन्य किसी कार्य से संभव नही होता हैं.

अभाव और कष्ट में जीवन जीने वाले व्यक्ति की निस्वार्थ भाव से की गई मदद को ही परोपकार या परहित की संज्ञा दी जाती हैं, जिसका फल आत्मिक संतोष के स्वरूप में मिलता हैं जो सभी सुखों से बढकर होता हैं.  

परहित सरिस धरम नहिं भाई,
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई

इन्सान विचारधाराओं के संघर्ष के मध्य जीवन बीताता है जहाँ स्व और पर की भावना का टकराव हर जगह देखने को मिलता हैं, स्व की भावना खुद तक सिमित एक संकीर्ण सोच है, जबकि पर की भावना में उदात्त एवं आत्म विस्तार के गुण होते है तथा यह अन्य लोगों के सुख दुःख से जुड़ा विषय हैं.

हमारी इस स्रष्टि में भांति भांति के जीव है. मगर अधिकतर के बारे में एक समानता है कि वे केवल स्वयं के बारे में सोचते है अथवा अपने बच्चों के पेट भरने तक की चिंता करते हैं.

उनके लिए अन्य लोगों की आवश्यकता एवं दुखों का कोई मूल्य नहीं होता हैं. मनुष्य के पास विवेक तथा चिन्तन की क्षमता होने के कारण वह न सिर्फ अपने बारे में सोच विचार करता है बल्कि हर प्राणी की चिंता करता हैं. मनुष्य के इसी दृष्टिकोण के कारण वह न सिर्फ स्वयं का बल्कि अपने परिवार समाज तथा देश के हितों के बारे में चिन्तन मनन करता हैं.

इन्सान की यही सोच भाईचारे का स्वरूप हैं. वह विश्व में भाइचार शान्ति एवं प्रेम की कामना करता हैं. एक आधुनिक समाज का प्रत्येक नागरिक एक ऐसे समतावादी समाज के निर्माण पर जोर देता है जहाँ इंसानों के मध्य किसी तरह के आपसी भेद न हो.

उसका मनुष्य होने का मतलब मानवता तथा मनुष्यता के धर्म की रक्षा व उनका एक ही नारा मानवीयता का होता हैं. जब सभी लोगों में इस तरह की सोच होगी तो पृथ्वी लोग स्वर्ग बन जाएगा.

इंसानों के प्रति समानता एवं एक दुसरे की गरिमा का समान समझने वाली यह उस मानव के मस्तिष्क की उपज हो सकते है जो न केवल मानव मानव के मध्य कोई भेद न समझे बल्कि सभी असमानता को समाप्त कर समरूपता के विचार रखता हो.

जो इन्सान हर मानव में परमात्मा का के स्वरूप को देखता हैं तथा भगवान को ही स्रष्टि का रचियता मानता है. वह न सिर्फ धर्म के आधार पर बल्कि वैज्ञानिक एवं भौतिकी नजरिये से भी इनसानों में कोई अंतर महसूस नहीं करता हैं.

“वह शरीर क्या जिससे जग का, कोई भी उपकार न हो।
वृथा जन्म उस नर का जिसके, मन में दया–विचार न हो।।”

मनुष्य की नैतिकता उन्हें औरों के प्रति चिंता एवं उनके हितों की पूर्ति की ओर सार्थक कदम उठाने को प्रेरित करती है. हर व्यक्ति में समाज कल्याण की भावना निहित होती हैं.

तथा इसके मूल में समाज के हर तबके का व्यक्ति होता हैं. जो व्यक्ति अन्य का हित यानि परहित की भावना के साथ अपने आचार व्यवहार करता हैं. एक दिन वह इस तरह के समाज का निर्माण कर देता हैं.

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