खरगोश और कछुआ की कहानी Rabbit And Turtle Story In Hindi With Moral: हिंदी कहानियों में कछुआ और खरगोश की कहानी सदियों से प्रसिद्ध रही है.
भले रंग-रूप, आकार और चाल में कछुए और खरगोश के बीच अनेक भिन्नताएं है। लेकिन इन दोनों की कहानियां आज भी बच्चों के सुनाई जाती है और किताबों में देखने को मिलती है।
खरगोश और कछुआ की कहानी Rabbit And Turtle Story In Hindi
आज हम आपके समक्ष खरगोश और कछुए की कुछ ऐसी कहानियां (Turtle And Rabbit Story In Hindi ) साझा करने जा रहे हैं।
जो न सिर्फ पढ़ने में मजेदार है, बल्कि व्यक्ति के लिए उसके जीवन में गहरा संदेश छोड़ जाती हैं।
खरगोश और कछुए की दोस्ती -1 (Story Of Friendship Of Rabbit And Turtle In Hindi)
एक बार की बात है एक जंगल में खरगोश और कछुए रहते थे, दोनों के बीच घनी मित्रता थी। वे दोनों जहां भी जाते एक साथ ही जाया करते थे और सब काम मिल बांटकर करते। कछुआ ज्यादातर पानी में रहा करता था।
लेकिन कछुआ दोस्ती निभाने के लिए कभी-कभी खरगोश के साथ उसके बिल में में भी जाया करता था। परंतु खरगोश को तैरना नहीं आता इसलिए वह अपने दोस्त को अपनी बातों से खुश रखता और सिर्फ पानी पीने के लिए ही अपने दोस्त के साथ तालाब में जाया करता ।
दोनों दोस्त हमेशा साथ में रहते और अपने भोजन की तलाश करते। एक दिन खरगोश ने कछुए को अपने घर पार्टी में खाने के लिए बुलाया इस कारण कछुआ बहुत खुश होकर रात्रि के भोजन के लिए खरगोश के घर जाता है ।
खरगोश ने अपने दोस्त के स्वागत के लिए अनेक प्रकार के व्यंजन बनाए, क्योंकि खरगोश शाकाहारी भोजन करता है और कछुआ अपने आहार में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह का भोजन लेता है।
अतः वहां शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के भोजन की व्यवस्था देखकर, भोजन का आनंद लेकर कछुआ अत्यंत खुश होता है।
जब दोनों दोस्तों की पार्टी समाप्त होती है, उसके बाद कछुआ भी खरगोश को एक दिन अपने घर दावत पर बुलाने का विचार करता है।
कछुआ इस बात को खरगोश के घर में खरगोश से कह देता है!
यह सुनकर खरगोश उससे पूछता है कि तुम मुझे दावत के लिए तालाब में बुलाओगे फिर या तालाब के किनारे?
कछुआ बोलता है,यार तुमने मुझे अपने घर में बुलाया उसी प्रकार मैं भी तुम्हें अपने घर में बुला लूंगा मैं तुम्हें आधे रास्ते में दावत किस प्रकार दे सकता हूं ।
खरगोश यह सुनकर थोड़ा पीछे ना होने लगा और सोचता है कि मुझे तैरना आता ही नहीं? तो मैं बीच तालाब में कैसे जाऊंगा?
और कछुवे की दावत पर कई दिनों तक विचार करते हुए अंत में खरगोश कछुए से कहता है कि दोस्त मैं तुम्हारी दावत में नहीं आ सकता।
क्योंकि मुझे तैरना आता ही नही ,अगर मैं उस तालाब में कूद गया तो मैं अपनी जान से हाथ धो बैठूंगा। तुम्हारी दावत धरी की धरी रह जाएगी।
तब कछुआ सोचता है कि अगर मेरा दोस्त मेरे घर दावत के लिए नहीं आ सकता तो उस दावत का क्या फायदा? कछुआ भी यही निर्णय लेता है कि जिस प्रकार मेरे दोस्त ने मुझे दावत दी उसी प्रकार मैं भी अपने दोस्त को दावत दूंगा।
और वही दूंगा जहां मेरे दोस्त को बहुत पसंद आएगी । कछुआ यह निर्णय लेता है कि मैं अपने दोस्त खरगोश को दावत तालाब के किनारे दूंगा । यह निर्णय सुनकर खरगोश अत्यंत खुश होकर अपने मित्र को गले लगाता है और अपनी सच्ची दोस्ती को समझ पाता है।
इस प्रकार कछुए और खरगोश की दोस्ती अत्यंत मजबूत बन पाती है और आने वाले समय में भी वे एक दूसरे का हमेशा साथ निभाते हैं ।
सीख-
हमें कछुए और खरगोश की छोटी सी कहानी से सीख मिलती है कि हमें हमेशा अपनी दोस्ती सच्चे दिल से निभानी चाहिए। दोस्ती में एक दूसरे की जरूरत& इच्छाओं को समझते हुए सही फैसले लेने चाहिए, न कि स्वयं का हित देखना चाहिए।
कछुआ और खरगोश की दौड़ -2 (Story Of Tortoise And Rabbit Race In Hindi)
एक समय की बात है कछुआ और खरगोश एक जंगल में रहते थे। खरगोश की चाल अत्यंत तीव्र थी अतः इस बात पर उसे बेहद घमंड था।
परंतु धीमी चाल वाला कछुआ साधारण जीवन जीता था और खुद में मस्त रहता। वहीं खरगोश कछुए की चाल को उसकी कमजोरी समझकर हमेशा उसकी मजाक उड़ाया करता।
1 दिन खरगोश के पीछे उसका शिकार करने के लिए लोमड़ी भागती है तो खरगोश अपनी तीव्र चाल के कारण लोमड़ी को मात देकर अपने बिल में छुप जाता हैं।
और इसी दिन से खरगोश को अपनी शान और शौकत पर और घमंड होने लगा। वह लोगों को अपनी चाल की बड़ी बड़ी कहानियां सुनाता, एक दिन बीच सभा में कछुआ खरगोश से बोल पड़ा कि तुम अपनी चाल की कुछ ज्यादा ही चर्चा नहीं करते?
ऐसा कहने पर खरगोश को गुस्सा आ जाता है और वह कहता है अगर तुम्हें मेरी चाल पर गर्व ना हो तो क्यों ना तुम मेरे साथ दौड़ में हिस्सा लो, और इस रेस को जीतकर दिखाओ।
खरगोश की यह बात सुनकर कछुआ भरी सभा में खरगोश की चुनौती को स्वीकार कर लेता है।
अगली सुबह जंगल में खरगोश और कछुए की रेस होने वाली थी जिसमें अधिकतर जानवरों को यह मालूम था कि कछुआ बड़ी ही बेरहमी से अपनी हार स्वीकार कर लेगा।
परंतु कछुए को इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता और वह दौड़ में हिस्सा लेने के लिए तैयार रहता है।
अगली सुबह जब जंगल में कछुए और खरगोश की दौड़ प्रारंभ होने का समय होता है तो कुछ ही क्षणों में रेस शुरू हो जाती है
उनका लक्ष्य सामने वाली दूर खड़ी एक पहाड़ी पर पहुंचने का होता है। कछुए और खरगोश की दौड़ प्रारंभ होने के कुछ देर पश्चात खरगोश सबकी नजरों से ओझल हो जाता है।
और कछुआ अपनी धीमी सी चाल के कारण धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ता है।
खरगोश जब उस ठीक पहाड़ी पर पहुंचने वाला होता है तो लक्ष्य से कुछ दूरी पहले वह थोड़ा रुकता है और वह जब पीछे देखता है तो उसे कोई भी नजर नहीं आता।
वह सोचता है कि कछुए की धीमी चाल की वजह से उसे यहां पहुंचने में काफी समय लगेगा तब तक मैं थोड़ा आराम कर लेता हूं। खरगोश के आराम करते करते उसे कब नींद आ जाती है, पता ही नहीं चलता और वह बहुत गहरी नींद में सो जाता है।
अब कछुआ धीमे धीमे लक्ष्य की ओर बढ़ता जाता है और आखिरकार दूर पहाड़ी में पहुंच कर सर्वप्रथम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। और कछुआ सोया ही रह जाता है। प्रकार खरगोश का घमंड चूर चूर हो जाता है और कछुआ इस रेस का विजेता बन पाता है।
सीख – इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें धीमे ही मगर अपनी मंजिल तक पहुंचने का सफर लगातार जारी रखना चाहिए।
साथ ही कहानी खरगोश से हमें यह सबक देती है कि हमें ईश्वर द्वारा दी गई खूबियों पर कभी भी अभिमान कर दूसरों का अनादर नहीं करना चाहिए। और किसी भी प्राणी को तुच्छ समझने की भूल नहीं करनी चाहिए।
कछुआ और खरगोश का प्यार -3 (Tortoise And Rabbit Love Story In Hindi)
एक समय की बात है,घने जंगल में एक कछुवा और खरगोश रहते थे। दुर्भाग्यवश दोनों नन्हे जीव बचपन से ही अपने मां बाप से बिछड़ गए और एक दूसरे के साथ अपना जीवनयापन करने लगे।
समय बीतने के साथ दोनों जानवर आपस में एक पक्के मित्र बन चुके थे, और बगैर एक दूसरे के समय नहीं बिताते।
एक दिन जंगल में घूमते घूमते दोनों को पानी की प्यास लगी, और दोनों तालाब के किनारे पानी, पीने के लिए पहुंचे। तालाब में कछुए ने अपने जैसे अन्य कछुए तालाब में देखें ।
उन कछुओं को देखकर खरगोश का मित्र भी उस तालाब में गया और उसे खुद पर यकीन होने लगा कि वह भी तैर सकता है।
कछुआ अपने मित्र खरगोश से भी उस तालाब में कूदने के लिए कहता है ।परंतु खरगोश ऐसा नहीं करना चाहता क्योंकि, उसे पूरा यकीन होता है वह इस तालाब में तैर नहीं सकता ।
लेकिन तालाब में घूमते हुए कछुए को जब अपने साथ अन्य जानवर दिखाई दिए तो वह उनके साथ घुलमिल गया और कुछ दिन तक ऐसे ही चलता रहा।
और इस प्रकार खरगोश बेचारा अकेला पड़ गया। परंतु अपने जीवन का अधिकतर समय उन्होंने एक साथ बिताए थे इसलिए वह एक दूसरे को ही अपने सच्चे मित्र समझते थे l
अतः एक दिन खरगोश,कछुए से बोलता है दोस्त मुझे बहुत समय हो गया है इस तालाब के किनारे बैठे बैठे परंतु तुम तो हमेशा ही इस तालाब में घूमते रहते हो, इसके अंदर आनंद लेते हो
मैं बैठा बैठा इस तालाब के किनारे बहुत दिनों से बोर हो चुका हूं। मेरे दोस्त सुनो,अब कुछ ऐसा करते हैं इस तालाब को छोड़कर कुछ महीनों के लिए यहां से ऐसी जगह चले जाते हैं?
जहां हम दोनों आनंद कर सकेंगे। परंतु कछुआ वहां जाने से इनकार करता है फिर खरगोश अपनी मित्रता के उन यादगार पलों को सांझा करता है जो दोनों ने साथ में बिताए थे।
अंततः कछुआ मान जाता है इस प्रकार वे दोनों दोस्त इस तालाब के किनारे को छोड़कर घने से जंगल में जाकर बसने लगते हैं और दोनों साथ में आनंदमई जीवन जीते हैं।
सीख-
खरगोश और कछुए की यह लघु कहानी हमें संदेश देती है कि हमें अपने आंनद के दिनों में, उन लोगों को कभी न भूलना चाहिए जिन्होंने हमारा मुश्किल वक्त में साथ दिया हो।