सठ सुधरहिं सतसंगति पाई पर निबंध | सठ सुधरहिं सतसंगति पाई Satsangati Ka Mahatva Nibandh

सठ सुधरहिं सतसंगति पाई पर निबंध | सठ सुधरहिं सतसंगति पाई Satsangati Ka Mahatva Nibandh: आज का हिंदी Essay एक कहावत पर आधारित है सठ सुधरहिं सतसंगति पाई अच्छी संगत पर निबंध पेश कर रहे हैं.

रहिमन नीचन संग बसि, लगत कलंक न काहि, दूध कलारिन हाथ लखि, मद समुझहि सब ताहि. अर्थात यदि मनुष्य कुसंगति में पड़ जाए तो उसका सर्वनाश सुनिश्चित है.

दूध जैसा पवित्र पदार्थ भी कलारिन के हाथ में मदिरा ही समझी जाती है. अतः बुरे मनुष्यों को संगति कभी नहीं करनी चाहिए, एक लैटिन लोकोक्ति है कि यदि तुम सभी लंगड़ों के साथ रहोगे तो तुम स्वयं भी लंगडाना सीख जाओगे.

सठ सुधरहिं सतसंगति पाई पर निबंध

सठ सुधरहिं सतसंगति पाई पर निबंध | सठ सुधरहिं सतसंगति पाई Satsangati Ka Mahatva Nibandh

वास्तव में संसगर्जा दोष गुणा भवन्ति अर्थात संसर्ग से ही दोष गुण आते है. संगति का प्रभाव इतना अधिक होता है कि सुसंगति में अधम व्यक्ति भी सुधर जाता है.

सत्संगति व्यक्ति को उच्च सामाजिक स्तर प्रदान करती है, विकास के लिए सुमार्ग की ओर प्रेरित करती है. बड़ी से बड़ी कठिनाइयों का सफलतापूर्वक सामना करने की शक्ति प्रदान करती है और सबसे बढ़कर व्यक्ति को स्वाभिमान प्रदान करती है.

सठ सुधरहिं सतसंगति पाई पर कहानी

सत्संगति के प्रभाव से बुरे लोगों के अच्छे बनने और कुसंगति के प्रभाव से अच्छे लोगों के बुरे बन जाने के अनेक उदाहरण हमारे बीच मौजूद है.

पूर्व में डाकू रहे महर्षि वाल्मीकि ने सत्संगति में आने के बाद में ही महर्षि की उपाधि प्राप्त की एवं प्रसिद्ध अमर ग्रंथ रामायण की रचना की.

इसी प्रकार अंगुलीमाल ने महात्मा बुद्ध के सम्पर्क में आने के बाद हत्या, लूटपाट के कार्य को छोड़कर सदाचरण के मार्ग को अपना लिया. जबकि ठीक इसके विपरीत कुसंगति के कारण ही दानवीर कर्ण अपना उचित सम्मान खो बैठा है.

सत्संगति एक प्राणवायु है, जिसके संसर्ग मात्र से मनुष्य सदाचरण का पालक बन जाता है, दयावान, विनम्र, परोपकारी एवं ज्ञानवान बन जाता है, इसलिए तुलसीदास जी ने लिखा है कि.

सठ सुधरहि सत्संगति पाई
पारस परस कुधातु सुहाई

सत्संगति से मनुष्य में धैर्य, साहस और सांत्वना का संचार होता है. मनुष्य इतना विवेकी बन जाता है कि वह बड़ी से बड़ी विपत्ति में भी संघर्ष करने का साहस नहीं छोड़ता.

सुसंगति मनुष्य को आशा एवं विश्वास का ऐसा मजबूत संबल प्रदान करती है, जिसके सहारे वह घनघौर अंधकार में भी प्रकाश ढूढ़ लेता है.

उत्तम मनुष्यों की संगति से जीवन में स्म्रद्धि एवं सम्मान के सारे दरवाजे खुल जाते है. कुधातु लोहा जिस प्रकार पारस की संगति से मूल्यवान सोना बन जाता है,

उसी प्रकार एक साधारण मनुष्य भी महापुरुषों, ज्ञानियों विचारवानो एवं महात्माओं की संगत से बहुत ऊँचे स्तर को प्राप्त करता है.

वानरों भालुओं को कौन याद रखता हैं, लेकिन हनुमान, सुग्रीव, अंगद, जामवंत आदि श्रीराम की संगति पाने की कारण विस्मरणीय बन गये.

सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात- satsangati ka mahatva essay in hindi

सत्संगति ज्ञान प्राप्ति की भी सबसे बड़ी साधिका है, इसके बिना तो ज्ञान की कल्पना तक नहीं की जा सकती है. बिनु सत्संग  विवेक न होई.

सत्संगति से ही मनुष्य की वाणी अत्यधिक प्रभावित होती है. विधाता की ओर से मनुष्य को प्रदान की गई सबसे अनमोल निधि है उसकी वाणी.

वाणी के कारण ही पंडित और मूर्ख, साधु और दुष्ट, सज्जन और दुर्जन की पहचान होती है. वाणी द्वारा हम न केवल अपने मन की अतल गहराइयों के विभिन्न भावों को व्यक्त करते हैं

बल्कि अपने परिवेश को संबोधित करके अपनी इच्छाओं को क्रियान्वित भी करते है, इसलिए कबीर जैसे संतों ने परामर्श दिया कि-

ऐसी वाणी बोलिए, मन की आपा खोय
औरन को शीतल करें आपहि शीतल होय.

वाणी के अंदर यह शीतलता सिर्फ वैयक्तिक स्तर की विशेषता नहीं होती बल्कि सत्संगति का प्रभाव होता हैं, व्यक्ति सत्संगति से ही अपनी वाणी में मिठास एवं गंभीरता तथा अर्थपूर्णता ला पाता हैं.

वाणी के अंदर मिठास एवं शीतलता मन को अहंकार को भूलने से ही आती है और मन का अहंकार सुसंगति के कारण ही नष्ट होता हैं.

Essay on Satsangati in Hindi : सत्संगति पर निबंध

संगति का प्रभाव व्यक्ति के मस्तिष्क एवं व्यवहार पर अधिक इसलिए पड़ता है क्योंकि व्यक्ति की यह स्वाभाविक प्रवृति है कि वह समाजीकरण की प्रक्रिया में सीखे गये व्यवहारों को ही संपादित करता है.

अपने परिवेश एवं वातावरण से व्यक्ति की भावनाएं, चिन्तन, भाषा आदि इतनी अधिक प्रभावित होती है कि उसे सामाजिक प्राणी कहा जाता हैं.

समाजीकृत होकर ही वह विवेकशील एवं चिन्तनशील बन पाता है. इस तरह यदि समाजीकरण का व्यक्ति के लिए इतना अधिक महत्व है तो स्वाभाविक है कि उसके लिए वह परिवेश जिससे वह लोगों के साथ अन्तः क्रिया करता है,

भी महत्वपूर्ण होगा अर्थात वह किन लोगों के बीच विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ को क्रियान्वित करता है, इसका व्यक्ति पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता हैं.

सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य जीवन के पथ पर एकाकी चलने में कठिनाई का अनुभव करता है, उसे ऐसे व्यक्ति की खोज रहती है,

जो उसका हर्ष एवं विषाद में साथ देने वाला हो, जिसके समक्ष वह अपने ह्रदय की कोई भी लिपि गुप्त न रहने दे, जिस पर वह पूरी तरह विश्वास कर सके.

मित्रों की ऐसी टोली किसी भी व्यक्ति के लिए एक बहुत बड़ा वरदान है. सच्चे मित्र व्यक्ति को बुरे मार्गों पर जाने से रोकते हैं, सच्चे मित्रों की पहचान करना अत्यंत कठिन है.

इसलिए बहुत सोच समझकर, जांच परखकर ही किसी को मित्र बनाना चाहिए. अच्छे व्यक्तियों की संगति किसी व्यक्ति को न सिर्फ कुमार्ग पर जाने से रोकती है बल्कि उसे सुमार्ग पर जाने के लिए प्रेरित भी करती है.

सुसंगति सचमुच हमारे जीवन को अर्थपूर्ण दिशा प्रदान करते हैं, सौ वर्ष की कुसंगति से अल्प समय की सुसंगति लाख गुना अच्छी हैं.

एक घड़ी आधी घड़ी, आधौ ,में पुनि आध
तुलसी संगति साधु की, हरै कोटि अपराध

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